संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(क्रियाविशेषण के रूप में अव्ययों का प्रयोग) मन्दं चल, मा त्वर = धीरे चल, जल्दी मत कर। मन्दं मन्दं गीतं गुनगुनायते गीता = गीता मन्द स्वर में गीत गुनगुनारही है। मा तिष्ठ, शीघ्रं चल..! = मत रुक, जल्दी चल..! चिरं भवति, शीघ्रं शीघ्रं कथं न चलसि ? = देर हो रही…
मृषा भोजयति कुपुत्रम् = कपूत को खिलाना व्यर्थ है।
मृषा वदति वादी = वादी झूठ बोल रहा है।
मुधा मा वद, पतिष्यति..! = झूठ मत बोल, पतन होगा..!
ज्योक् जीव..! = दीर्घजीवी हो..!
ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तम् = हम सदा देखें हृदय में विद्यमान (उपस्थित) प्रेरक को।
मिथ्या मा कुरु पदम्, सम्यक् लिख = शब्द को गलत मत कर ठीक से लिख।
प्रायः समापन्नविपत्तिकाले धियोऽपि सुधीनां मलिनी भवन्ति = विपत्तिकाल आने पर प्रायः विद्वानों की बुद्धि भी मलिन (= अच्छे-बुरे, उचितानुचित का विवेक न कर पाना) हो जाया करती है।
भूयो भूयो नमाम्यहं देवम् = दाता को बारम्बार मेरा प्रणाम।
भूयश्च शरदः शतात् = सौ वर्षों से भी अधिक जीएं।
उपभोगेन कामः भूयोऽभिवर्धते = भोग से कामना (= इच्छाएं) और अधिक बढ़ती हैं।
शुकं धावति घोटकः = घोड़ा तेज दौड़ रहा है।
सुकं तु शोभते व्यायामी संयमी दमी = व्यायाम करनेवाला, इन्द्रियसंयम करनेवाला मनोनियन्त्रण करनेवाला मनुष्य अतिशय शोभा को प्राप्त होता है।
दाता वसु मुहुर्मुहुर्दाशुषे ददाति = दाता ईश्वर देनेवाले को बार बार धन देता है।
अभीक्ष्णं चिन्तयति राष्ट्रं जागरूकाः = जागरूक नागरिक राष्ट्र की लगातार चिन्ता करते हैं।
मनाग् ददाति कृपणः = कंजूस थोड़ा देता है।
बालः सामि खादति सामि क्षिपति = बच्चा आधा खाता है, आधा फेंकता है।
संस्कृतानुवादपाठिभ्यः भूरि भूरि धन्यवादाः = संस्कृतानुवाद पढ़नेवालों को बहुत बहुत धन्यवाद।
गुणसन्धिः
{आद्गुणः। अ, ए, ओ इन तीन वर्णों की गुण संज्ञा है। अर्थात् इन तीनों को ‘गुण’ कहते हैं। अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई हो तो दोनों (अ/आ+इ/ई) के स्थान पर ‘ए’, उ/ऊ हो तो दानों के स्थान पर ‘ओ’, ऋ/ऋृ हो तो दोनों के स्थान पर ‘अर्’, तथा लृ हो तो दोनों के स्थान पर ‘अल्’ हो जाता है।}
अ / आ + इ / ई = ए; मह् आ + ई शः = मह् ए शः = महेशः।
अ / आ + उ / ऊ = ओ; पर् अ + उ पकारः = पर् ओ पकारः = परोपकारः।
अ / आ + ऋ / ऋृ = अर्; मह् आ + ऋ षिः = मह् अर् षिः = महर्षिः।
अ / आ + लृ = अल्; = तव् अ + लृ कारः = तव् अल् कारः = तवल्कारः।
का + इदानीम् = केदानीम्।
केदानीं वेला ? वेला अस्ति भोक्तुम् = अभी क्या समय हुआ है ? भोजन का समय हुआ है।
का ईशा = केशा।
केशा अस्ति केशानाम् = लम्बे बालोंवाली महिला कौैन है ?
काक + ईश्वरः = काकेश्वरः।
काकेश्वरः काकसभम् अकार्षीत् = कौओं के मुखिया ने कौओं की सभा बुलाई।
पश्य + इदानीम् = पश्येदानीम्।
पश्येदानीं संध्याकालः संजातः, ईश्वरम् उपास्स्व..! = देख अभी संध्याकाल हो गया है, ईश्वर की उपासना कर..!
चन्द्र + उज्ज्वलाः = चन्द्रोज्ज्वलाः।
केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः = मानव की शोभा न तो बाजूबन्द से है न हि चन्द्र के समान चमकते हार से होती है।
विद्या + उत्तमाः = विद्योत्तमा।
सा विद्योत्तमा या मूर्खकालिदासं कविकालिदासं करोति = जो मूर्ख कालिदास को कवि कालिदास बनाती है, वह स्त्री उत्तम विद्यावाली मानी जाती है।
क्षेत्र + ऊर्वरम् = क्षेत्रोर्वरम्।
क्षेत्रोर्वरं दृष्ट्वा बीजं वपेत् = उर्वर भूमि में बीज बोना चाहिए (= पात्र को दान देना चाहिए)।
ब्रह्म + ऋषिः = ब्रह्मर्षिः, राज + ऋषिः = राजर्षिः।
वशिष्ठः ब्रह्मर्षिः बभूव विश्वामित्रश्च राजर्षिः = वशिष्ठ ब्रह्मर्षि थे और विश्वामित्र राजर्षि।
महा + ऋषिः = महर्षिः।
विजयतां महर्षिदयानन्दः येन संसारः निबोधितः = महर्षि दयानन्द जी की जय हो जिसने संसार को जगाया।
तव + लृकार = तवल्कार, तवल्कार + उच्चारणम् = तवल्कारोच्चारणम्।
तवल्कारोच्चारणं सम्यक् नास्ति, सुष्ठु कुरु = तेरा लृकार का उच्चारण ठीक नहीं है, उसे ठीक करो।
#vakyabhyas
मृषा वदति वादी = वादी झूठ बोल रहा है।
मुधा मा वद, पतिष्यति..! = झूठ मत बोल, पतन होगा..!
ज्योक् जीव..! = दीर्घजीवी हो..!
ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तम् = हम सदा देखें हृदय में विद्यमान (उपस्थित) प्रेरक को।
मिथ्या मा कुरु पदम्, सम्यक् लिख = शब्द को गलत मत कर ठीक से लिख।
प्रायः समापन्नविपत्तिकाले धियोऽपि सुधीनां मलिनी भवन्ति = विपत्तिकाल आने पर प्रायः विद्वानों की बुद्धि भी मलिन (= अच्छे-बुरे, उचितानुचित का विवेक न कर पाना) हो जाया करती है।
भूयो भूयो नमाम्यहं देवम् = दाता को बारम्बार मेरा प्रणाम।
भूयश्च शरदः शतात् = सौ वर्षों से भी अधिक जीएं।
उपभोगेन कामः भूयोऽभिवर्धते = भोग से कामना (= इच्छाएं) और अधिक बढ़ती हैं।
शुकं धावति घोटकः = घोड़ा तेज दौड़ रहा है।
सुकं तु शोभते व्यायामी संयमी दमी = व्यायाम करनेवाला, इन्द्रियसंयम करनेवाला मनोनियन्त्रण करनेवाला मनुष्य अतिशय शोभा को प्राप्त होता है।
दाता वसु मुहुर्मुहुर्दाशुषे ददाति = दाता ईश्वर देनेवाले को बार बार धन देता है।
अभीक्ष्णं चिन्तयति राष्ट्रं जागरूकाः = जागरूक नागरिक राष्ट्र की लगातार चिन्ता करते हैं।
मनाग् ददाति कृपणः = कंजूस थोड़ा देता है।
बालः सामि खादति सामि क्षिपति = बच्चा आधा खाता है, आधा फेंकता है।
संस्कृतानुवादपाठिभ्यः भूरि भूरि धन्यवादाः = संस्कृतानुवाद पढ़नेवालों को बहुत बहुत धन्यवाद।
गुणसन्धिः
{आद्गुणः। अ, ए, ओ इन तीन वर्णों की गुण संज्ञा है। अर्थात् इन तीनों को ‘गुण’ कहते हैं। अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई हो तो दोनों (अ/आ+इ/ई) के स्थान पर ‘ए’, उ/ऊ हो तो दानों के स्थान पर ‘ओ’, ऋ/ऋृ हो तो दोनों के स्थान पर ‘अर्’, तथा लृ हो तो दोनों के स्थान पर ‘अल्’ हो जाता है।}
अ / आ + इ / ई = ए; मह् आ + ई शः = मह् ए शः = महेशः।
अ / आ + उ / ऊ = ओ; पर् अ + उ पकारः = पर् ओ पकारः = परोपकारः।
अ / आ + ऋ / ऋृ = अर्; मह् आ + ऋ षिः = मह् अर् षिः = महर्षिः।
अ / आ + लृ = अल्; = तव् अ + लृ कारः = तव् अल् कारः = तवल्कारः।
का + इदानीम् = केदानीम्।
केदानीं वेला ? वेला अस्ति भोक्तुम् = अभी क्या समय हुआ है ? भोजन का समय हुआ है।
का ईशा = केशा।
केशा अस्ति केशानाम् = लम्बे बालोंवाली महिला कौैन है ?
काक + ईश्वरः = काकेश्वरः।
काकेश्वरः काकसभम् अकार्षीत् = कौओं के मुखिया ने कौओं की सभा बुलाई।
पश्य + इदानीम् = पश्येदानीम्।
पश्येदानीं संध्याकालः संजातः, ईश्वरम् उपास्स्व..! = देख अभी संध्याकाल हो गया है, ईश्वर की उपासना कर..!
चन्द्र + उज्ज्वलाः = चन्द्रोज्ज्वलाः।
केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः = मानव की शोभा न तो बाजूबन्द से है न हि चन्द्र के समान चमकते हार से होती है।
विद्या + उत्तमाः = विद्योत्तमा।
सा विद्योत्तमा या मूर्खकालिदासं कविकालिदासं करोति = जो मूर्ख कालिदास को कवि कालिदास बनाती है, वह स्त्री उत्तम विद्यावाली मानी जाती है।
क्षेत्र + ऊर्वरम् = क्षेत्रोर्वरम्।
क्षेत्रोर्वरं दृष्ट्वा बीजं वपेत् = उर्वर भूमि में बीज बोना चाहिए (= पात्र को दान देना चाहिए)।
ब्रह्म + ऋषिः = ब्रह्मर्षिः, राज + ऋषिः = राजर्षिः।
वशिष्ठः ब्रह्मर्षिः बभूव विश्वामित्रश्च राजर्षिः = वशिष्ठ ब्रह्मर्षि थे और विश्वामित्र राजर्षि।
महा + ऋषिः = महर्षिः।
विजयतां महर्षिदयानन्दः येन संसारः निबोधितः = महर्षि दयानन्द जी की जय हो जिसने संसार को जगाया।
तव + लृकार = तवल्कार, तवल्कार + उच्चारणम् = तवल्कारोच्चारणम्।
तवल्कारोच्चारणं सम्यक् नास्ति, सुष्ठु कुरु = तेरा लृकार का उच्चारण ठीक नहीं है, उसे ठीक करो।
#vakyabhyas
Teacher:- What are the benefits of semester system ?
Student:- Sir, I don't know the benefits. But there is a disadvantage of being insulted twice in an year.
#hasya
Student:- Sir, I don't know the benefits. But there is a disadvantage of being insulted twice in an year.
#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
आत्म बोध के इस पहले प्रवचन में पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानंद सरस्वतीजी महाराज आत्म बोध ग्रन्थ का परिचय / ग्रंथकार का परिचय / आत्म-बोध का महत्त्व / पहला श्लोक एवं अनुबंध चतुष्टय बता रहे हैं।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
तपोभिः क्षीणपापानां शान्तानां वीतरागिणाम्।
मुमुक्षूणामपेक्ष्योऽयमात्मबोधो विधीयते।।1।।
1. I am composing the ATMA-BODHA, this treatise of the Knowledge of the Self, for those who have purified themselves by austerities and are peaceful in heart and calm, who are free from cravings and are desirous of liberation.
#Ātmabōdha
।।आत्मबोधः।।
आत्म बोध के इस पहले प्रवचन में पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानंद सरस्वतीजी महाराज आत्म बोध ग्रन्थ का परिचय / ग्रंथकार का परिचय / आत्म-बोध का महत्त्व / पहला श्लोक एवं अनुबंध चतुष्टय बता रहे हैं।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
तपोभिः क्षीणपापानां शान्तानां वीतरागिणाम्।
मुमुक्षूणामपेक्ष्योऽयमात्मबोधो विधीयते।।1।।
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#Ātmabōdha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 30 minutes only
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : आयव्ययपत्रम्।
(Budget.)
दिनाङ्कः : 2nd February 2022,
Wednesday.
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😇 Please come prepared to discuss ( आयव्ययपत्रे किं किम् आसीत्, भवते/भवत्यै किम् अरोचत।)in Sanskrit , If possible.
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🍃
♦️sa tayaa shraddhayaa yuktastasyaaraadhanamiihate|
labhate cha tataH kaamaanmayaiva vihitaan hi taan7.22
⚜Endowed with that faith, he engages in the worship of that (form) and from it he obtains his desire, these being verily ordained by Me (alone). 7.22
⚜वह (भक्त) उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उससे मेरे द्वारा विधान किये हुये इच्छित भोगों को निसन्देह प्राप्त करता है।। 7.22 ।।
#geeta
स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान्
।।7.22।। ♦️sa tayaa shraddhayaa yuktastasyaaraadhanamiihate|
labhate cha tataH kaamaanmayaiva vihitaan hi taan
⚜Endowed with that faith, he engages in the worship of that (form) and from it he obtains his desire, these being verily ordained by Me (alone). 7.22
⚜वह (भक्त) उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उससे मेरे द्वारा विधान किये हुये इच्छित भोगों को निसन्देह प्राप्त करता है।। 7.22 ।।
#geeta
🍃
♦️antavattu phalaM teShaaM tadbhavatyalpamedhasaam|
devaandevayajo yaanti madbhaktaa yaanti maamapi7.23
⚜Verily the reward (fruit) that accrues to those men of little intelligence is finite. The worshippers of the gods go to them, but My devotees come to Me. 7.23
⚜परन्तु उन अल्प बुद्धि पुरुषों का वह फल नाशवान् होता है। देवताओं के पूजक देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं।। 7.23 ।।
#geeta
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि
।।7.23।। ♦️antavattu phalaM teShaaM tadbhavatyalpamedhasaam|
devaandevayajo yaanti madbhaktaa yaanti maamapi
⚜Verily the reward (fruit) that accrues to those men of little intelligence is finite. The worshippers of the gods go to them, but My devotees come to Me. 7.23
⚜परन्तु उन अल्प बुद्धि पुरुषों का वह फल नाशवान् होता है। देवताओं के पूजक देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त मुझे ही प्राप्त होते हैं।। 7.23 ।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - प्रतिपदा सुबह ०७:३१ तक तत्पश्चात द्वितीया
⛅️ दिनांक - ०२ फरवरी २०२२
⛅️ दिन - बुधवार
⛅️ शक संवत -१९४३
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - शिशिर
⛅️ मास - माघ
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - धनिष्ठा शाम ०५:५३ तक तत्पश्चात शतभिषा
⛅️ योग - वरीयान रात्रि ११:५९ तक तत्पश्चात परिघ
⛅️ राहुकाल - दोपहर १२:५३ से दोपहर ०२:१७ तक
⛅️ सर्योदय - ०७:१६
⛅️ सर्यास्त - १८:२८
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
https://youtu.be/1M1ldD6XQJA
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वार्ता : लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा
वार्ता : लोकसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar Bharat...
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अस्माभिः मुखावरकं ________।
Anonymous Quiz
4%
धरति
22%
धरितव्यम्
24%
धर्तव्यम्
18%
ध्रियते
32%
धारितव्यम्
कार्तिक: — कुतः आगच्छसि रे ?
रमणः — लिङ्लोटौ स्वामीजी आश्रमतः
कार्तिकः — किं नामधेयमेषः ?
रमणः — किमपि पुच्छतु स: सदा वदति
- भवेत् भवतु ... भवेत् भवतु
इति अतः ...
#hasya
रमणः — लिङ्लोटौ स्वामीजी आश्रमतः
कार्तिकः — किं नामधेयमेषः ?
रमणः — किमपि पुच्छतु स: सदा वदति
- भवेत् भवतु ... भवेत् भवतु
इति अतः ...
#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
बोधोऽन्यसाधनेभ्यो हि साक्षान्मोक्षैकसाधनम्।
पाकस्य वह्निवज्ज्ञानं विना मोक्षो न सिध्यति।।2।।
2. Just as the fire is the direct cause for cooking, so without Knowledge no emancipation can be had. Compared with all other forms of discipline Knowledge of the Self is the one direct means for liberation.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - २ :
आत्म-बोध के दूसरे श्लोक की व्याख्या में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी महाराज बता रहे हैं की भगवत्पाद भगवान् शंकराचार्य जी मोक्ष के मुख्य साधन की चर्चा कर रहे हैं - और वो है साक्षात् ज्ञान जिसे वे इस ग्रन्थ में बोध शब्द से बता रहे हैं। अर्थात ज्ञान मात्र से मुक्ति हो जाती है। दूसरे जितने भी साधन होते हैं वे भी आदरणीय हैं लेकिन उनका प्रयोजन कुछ न कुछ विकार आदि की निवृत्ति करते हैं और ज्ञान की हमारी पात्रता बढ़ाते हैं।
#Ātmabōdha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
बोधोऽन्यसाधनेभ्यो हि साक्षान्मोक्षैकसाधनम्।
पाकस्य वह्निवज्ज्ञानं विना मोक्षो न सिध्यति।।2।।
2. Just as the fire is the direct cause for cooking, so without Knowledge no emancipation can be had. Compared with all other forms of discipline Knowledge of the Self is the one direct means for liberation.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - २ :
आत्म-बोध के दूसरे श्लोक की व्याख्या में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी महाराज बता रहे हैं की भगवत्पाद भगवान् शंकराचार्य जी मोक्ष के मुख्य साधन की चर्चा कर रहे हैं - और वो है साक्षात् ज्ञान जिसे वे इस ग्रन्थ में बोध शब्द से बता रहे हैं। अर्थात ज्ञान मात्र से मुक्ति हो जाती है। दूसरे जितने भी साधन होते हैं वे भी आदरणीय हैं लेकिन उनका प्रयोजन कुछ न कुछ विकार आदि की निवृत्ति करते हैं और ज्ञान की हमारी पात्रता बढ़ाते हैं।
#Ātmabōdha
@samskrt_samvadah is starting Narayaneeyam Classes.
विषय — नारायणीयं गायनं (How to recite Narayaneeyam)
शिक्षिका — ललिता विश्वनाथन्
Time — 9AM🕘 (Indian time)
Date —3rd February, Thursday (Every Thursday)
Please come with hard copy or soft copy of Narayaneeyam on time.
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#Narayaneeyam
विषय — नारायणीयं गायनं (How to recite Narayaneeyam)
शिक्षिका — ललिता विश्वनाथन्
Time — 9AM🕘 (Indian time)
Date —3rd February, Thursday (Every Thursday)
Please come with hard copy or soft copy of Narayaneeyam on time.
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