संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

ूलश्लोकः-100
पठन्‌ द्विजो वागृषभत्वमीयात्‌ स्यात्‌ क्षत्रियो भूमिपतित्वमीयात्‌।
वणिग्जनः पण्यफलत्वमीयाज्जनश्च शूद्रोऽपि महत्त्वमीयात्‌।।100।।

श्लोकान्वयः -
द्विजः पठन्‌ वागृषभत्वम्‌ ईयात्‌ स्यात्‌ क्षत्रियः भूमिपतित्वम्‌ ईयात्‌
वणिग्जनः पण्यफलत्वम्‌ ईयात्‌ शूद्रः जनः च अपि महत्त्वम्‌ ईयात्‌।।100।।

हिन्दी-अनुवाद -
इस रामायण को पढकर ब्राह्मण वाक्‌चातुर्य प्राप्त करे, यदि क्षत्रिय है तो भूमि के स्वामित्व को प्राप्त करे।
वैश्य होने से व्यापार में लाभ प्राप्त करे तथा शूद्र को भी महत्त्व प्राप्त हो।।100।।

English Meaning

पठन् जन: People by reading this, द्विज: स्यात् if he is a brahmin, वागृषभत्वम् proficient in the eighteen branches of learning, ईयात् attains, क्षत्रिय: kshatriya, भूमिपतित्वम् lordship over landed possessions, ईयात् gets, वणिग्जनः vaisya, पण्यफलत्वम् fruits of his merit, ईयात् gets, जनश्च men, शूद्रोऽपि sudra also, महत्वम् greatness, ईयात् attains.

A brahmin becomes proficient in the eighteen branches of learning a kshatriya gets lordship over landed possessions a vaisya gets the fruits of his business and sudra also attains greatness by reading Ramayana".
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीय आदिकाव्ये बालकाण्डे (श्रीमद्रामायणकथासङ्क्षेपो नाम) प्रथम: सर्ग:।।

Thus ends the first sarga of Balakanda of the holy Ramayana in synopsis of the first epic composed by sage Valmiki.

Jay Shriram. Shubham bhuyat

#SankshepaRamayanam
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कालावधिः : 30 minutes only
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :भारते प्रवर्धमानं मतान्तरणं तस्य उपायः च।
(Religious Conversion in Bharat.)
दिनाङ्कः : 1st February2022,
Tuesday.
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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [07.20]
🍃कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः। 
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया
।।7.20।। 

kaamaistaistairhRRitaj~naanaaH prapadyante'nyadevataaH|
taM taM niyamamaasthaaya prakRRityaa niyataaH svayaa7.20

7.20 Those whose wisdom has been rent away by this or that desire, go to other gods, following this or that rite, led by their own nature. 

।।7.20।। भोगविशेष की कामना से जिनका ज्ञान हर लिया गया है ऐसे पुरुष अपने स्वभाव से प्रेरित हुए अन्य देवताओं को विशिष्ट नियम का पालन करते हुए भजते हैं।। 

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [07.21]
🍃यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति। 
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्
।।7.21।। 

♦️yo yo yaaM yaaM tanuM bhaktaH shraddhayaarchitumichChati|
tasya tasyaachalaaM shraddhaaM taameva vidadhaamyaham7.21

7.21 Whatsoever form any devotee desires to worship with faith that (same) faith of his I make firm and unflinching. 

।।7.21।। जोजो (सकामी) भक्त जिसजिस (देवता के) रूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है उसउस (भक्त) की मैं उस ही देवता के प्रति श्रद्धा को स्थिर करता हूँ।। 

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - अमावस्या सुबह ११:१५ तक तत्पश्चात प्रतिपदा

दिनांक - ०१ फरवरी २०२२
दिन - मंगलवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - श्रवण शाम ०७:४४ तक तत्पश्चात धनिष्ठा
योग - व्यतिपात ०२ फरवरी रात्रि ०३:१० तक तत्पश्चात वरीयान
राहुकाल - शाम ०३:४१ से शाम ०५:०५ तक
सूर्योदय - ०७:१७
सूर्यास्त - १८:२७
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
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Live stream scheduled for
______ बालकैः सह मिलित्वा ध्वजारोहणं ______।
Anonymous Quiz
32%
माता , क्रियते
18%
मात्रा, क्रियते
17%
मात्रा, करोति
32%
माता, कारयति
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(क्रियाविशेषण के रूप में अव्ययों का प्रयोग) मन्दं चल, मा त्वर = धीरे चल, जल्दी मत कर। मन्दं मन्दं गीतं गुनगुनायते गीता = गीता मन्द स्वर में गीत गुनगुनारही है। मा तिष्ठ, शीघ्रं चल..! = मत रुक, जल्दी चल..! चिरं भवति, शीघ्रं शीघ्रं कथं न चलसि ? = देर हो रही…
मृषा भोजयति कुपुत्रम् = कपूत को खिलाना व्यर्थ है।
मृषा वदति वादी = वादी झूठ बोल रहा है।
मुधा मा वद, पतिष्यति..! = झूठ मत बोल, पतन होगा..!
ज्योक् जीव..! = दीर्घजीवी हो..!
ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तम् = हम सदा देखें हृदय में विद्यमान (उपस्थित) प्रेरक को।
मिथ्या मा कुरु पदम्, सम्यक् लिख = शब्द को गलत मत कर ठीक से लिख।
प्रायः समापन्नविपत्तिकाले धियोऽपि सुधीनां मलिनी भवन्ति = विपत्तिकाल आने पर प्रायः विद्वानों की बुद्धि भी मलिन (= अच्छे-बुरे, उचितानुचित का विवेक न कर पाना) हो जाया करती है।
भूयो भूयो नमाम्यहं देवम् = दाता को बारम्बार मेरा प्रणाम।
भूयश्च शरदः शतात् = सौ वर्षों से भी अधिक जीएं।
उपभोगेन कामः भूयोऽभिवर्धते = भोग से कामना (= इच्छाएं) और अधिक बढ़ती हैं।
शुकं धावति घोटकः = घोड़ा तेज दौड़ रहा है।
सुकं तु शोभते व्यायामी संयमी दमी = व्यायाम करनेवाला, इन्द्रियसंयम करनेवाला मनोनियन्त्रण करनेवाला मनुष्य अतिशय शोभा को प्राप्त होता है।
दाता वसु मुहुर्मुहुर्दाशुषे ददाति = दाता ईश्वर देनेवाले को बार बार धन देता है।
अभीक्ष्णं चिन्तयति राष्ट्रं जागरूकाः = जागरूक नागरिक राष्ट्र की लगातार चिन्ता करते हैं।
मनाग् ददाति कृपणः = कंजूस थोड़ा देता है।
बालः सामि खादति सामि क्षिपति = बच्चा आधा खाता है, आधा फेंकता है।
संस्कृतानुवादपाठिभ्यः भूरि भूरि धन्यवादाः = संस्कृतानुवाद पढ़नेवालों को बहुत बहुत धन्यवाद।

गुणसन्धिः

{आद्गुणः। अ, ए, ओ इन तीन वर्णों की गुण संज्ञा है। अर्थात् इन तीनों को ‘गुण’ कहते हैं। अ अथवा आ के बाद इ अथवा ई हो तो दोनों (अ/आ+इ/ई) के स्थान पर ‘ए’, उ/ऊ हो तो दानों के स्थान पर ‘ओ’, ऋ/ऋृ हो तो दोनों के स्थान पर ‘अर्’, तथा लृ हो तो दोनों के स्थान पर ‘अल्’ हो जाता है।}

अ / आ + इ / ई = ए; मह् आ + ई शः = मह् ए शः = महेशः।
अ / आ + उ / ऊ = ओ; पर् अ + उ पकारः = पर् ओ पकारः = परोपकारः।
अ / आ + ऋ / ऋृ = अर्; मह् आ + ऋ षिः = मह् अर् षिः = महर्षिः।
अ / आ + लृ = अल्; = तव् अ + लृ कारः = तव् अल् कारः = तवल्कारः।
का + इदानीम् = केदानीम्।
केदानीं वेला ? वेला अस्ति भोक्तुम् = अभी क्या समय हुआ है ? भोजन का समय हुआ है।

का ईशा = केशा।
केशा अस्ति केशानाम् = लम्बे बालोंवाली महिला कौैन है ?

काक + ईश्वरः = काकेश्वरः।
काकेश्वरः काकसभम् अकार्षीत् = कौओं के मुखिया ने कौओं की सभा बुलाई।

पश्य + इदानीम् = पश्येदानीम्।
पश्येदानीं संध्याकालः संजातः, ईश्वरम् उपास्स्व..! = देख अभी संध्याकाल हो गया है, ईश्वर की उपासना कर..!

चन्द्र + उज्ज्वलाः = चन्द्रोज्ज्वलाः।
केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः = मानव की शोभा न तो बाजूबन्द से है न हि चन्द्र के समान चमकते हार से होती है।

विद्या + उत्तमाः = विद्योत्तमा।
सा विद्योत्तमा या मूर्खकालिदासं कविकालिदासं करोति = जो मूर्ख कालिदास को कवि कालिदास बनाती है, वह स्त्री उत्तम विद्यावाली मानी जाती है।

क्षेत्र + ऊर्वरम् = क्षेत्रोर्वरम्।
क्षेत्रोर्वरं दृष्ट्वा बीजं वपेत् = उर्वर भूमि में बीज बोना चाहिए (= पात्र को दान देना चाहिए)।

ब्रह्म + ऋषिः = ब्रह्मर्षिः, राज + ऋषिः = राजर्षिः।
वशिष्ठः ब्रह्मर्षिः बभूव विश्वामित्रश्च राजर्षिः = वशिष्ठ ब्रह्मर्षि थे और विश्वामित्र राजर्षि।

महा + ऋषिः = महर्षिः।
विजयतां महर्षिदयानन्दः येन संसारः निबोधितः = महर्षि दयानन्द जी की जय हो जिसने संसार को जगाया।

तव + लृकार = तवल्कार, तवल्कार + उच्चारणम् = तवल्कारोच्चारणम्।
तवल्कारोच्चारणं सम्यक् नास्ति, सुष्ठु कुरु = तेरा लृकार का उच्चारण ठीक नहीं है, उसे ठीक करो।

#vakyabhyas
Teacher:- What are the benefits of semester system ?
Student:- Sir, I don't know the benefits. But there is a disadvantage of being insulted twice in an year.

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
आत्म बोध के इस पहले प्रवचन में पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानंद सरस्वतीजी महाराज आत्म बोध ग्रन्थ का परिचय / ग्रंथकार का परिचय / आत्म-बोध का महत्त्व / पहला श्लोक एवं अनुबंध चतुष्टय बता रहे हैं।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

तपोभिः क्षीणपापानां शान्तानां वीतरागिणाम्।
मुमुक्षूणामपेक्ष्योऽयमात्मबोधो विधीयते।।1।।

1. I am composing the ATMA-BODHA, this treatise of the Knowledge of the Self, for those who have purified themselves by austerities and are peaceful in heart and calm, who are free from cravings and are desirous of liberation.

#Ātmabōdha
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विषयः : आयव्ययपत्रम्।
(Budget.)
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Wednesday.
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