संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

ूलश्लोकः-98
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च सम्मितम्‌ ।
यः पठेद् रामचरितं सर्वपापैः प्रमुच्यते।। 98।।

श्लोकान्वयः -
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वैदेश्च सम्मितं रामचरितं
यः पठेत्‌ सर्वपापैः प्रमुच्यते।।98।।

हिन्दी-अनुवाद -
जो भी व्यक्ति इस निष्पाप पुण्यप्रद तथा वेदानुसारी राम के चरित्र को
पढ़ेगा वह सभी पापों से मुक्त जाएगा।।98।।

English Meaning

इदं रामचरितम् this story of Rama, पवित्रम् sacred, पापघ्नम् destroyer of sins, पुण्यम् auspicious, वेदै: by vedas, सम्मितं च equal to, य: who, पठेत् reads, सर्वपापै: from all sins, प्रमुच्यते will be released.

This story of Rama is sacred and holy. It destroys sins and is equal to the Vedas. Whosoever reads it will be freed from all sins.

#SankshepaRamayanam
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 30 minutes only
समयः : IST 17:00 PM 🕔
विषयः : भाग्यं प्रधानम् उत पौरुषम् ।
(Luck or Hardwork - Which is important.)
दिनाङ्कः : 30th January 2022,
Sunday.
Please Join the voicechat on time.
😇 Please come prepared to discuss ( जीवने भाग्यस्य प्रधानता अस्ति अथवा प्रयत्नस्य।)in Sanskrit , If possible.
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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [07.16]
🍃चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ
।।7.16।।

♦️chaturvidhaa bhajante maaM janaaH sukRRitino'rjuna|
aarto jij~naasurarthaarthii j~naanii cha bharatarShabha7.16

7.16 Four kinds of virtuous men worship Me, O Arjuna, and they are the distressed, the seeker of knowledge, the seeker of wealth and the wise, O lord of the Bharatas. 

।।7.16।। हे भरत श्रेष्ठ अर्जुन उत्तम कर्म करने वाले (सुकृतिन) आर्त जिज्ञासु अर्थार्थी और ज्ञानी ऐसे चार प्रकार के लोग मुझे भजते हैं।। 

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [07.17]
🍃तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्ितर्विशिष्यते। 
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः
।।7.17।।

♦️teShaaM j~naanii nityayukta ekabhak्itarvishiShyate|
priyo hi j~naanino'tyarthamahaM sa cha mama priyaH7.17

7.17 Of them the wise, ever steadfast and devoted to the One, excels (is the best); for I am exceedingly dear to the wise and he is dear to Me. 

।।7.17।। उनमें भी मुझ से नित्ययुक्त अनन्य भक्ति वाला ज्ञानी श्रेष्ठ है क्योंकि ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह मुझे अत्यन्त प्रिय है।। 

#geeta
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🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - त्रयोदशी शाम ०५:२८ तक तत्पश्चात चतुर्दशी

दिनांक - ३० जनवरी २०२२
दिन - रविवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - पूर्वाषाढा रात्रि १२:२३ तक तत्पश्चात उत्तराषाढा
योग - हर्षण दोपहर ०२:१६ तक तत्पश्चात वज्र
राहुकाल - शाम ०५:०४ से शाम ०६:२८ तक
सूर्योदय - ०७:१७
सूर्यास्त - १८:२६
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
Live stream scheduled for
महाभारतस्य भाषा
Course Description
Enjoy Samskrit – the Language of Mahabharata
• Selected 117 slokas from Yaksha-Yudhishthira-samvaada, Niti-upadesha, Rajadharma-upadesha of Mahabharata Kavya are explained.
• Total videos = 101 ; Total viewing time = 21:15 hours.
• Continue enjoying other portions of the Kavya.

Course Requirements :
• Knowledge on Samskrit Grammar (similar to level 3 of SSP series).
• Linguistic analysis of the sloka is provided to facilitate the learner to enjoy Kavya on their own terms.

Target Audience :
• Students, BA, MA students of Samskrit, others interested to study kavyas.
• These courses are prepared considering that the learner is 16+.

Course Instructions :
1. You can learn yourself and enjoy the text.
2. Text Book and Video shall be referred as per your convenience.
3. Please use CHAT or WhatsApp or email to put your doubts & questions to a teacher. Please communicate with instructors or teachers in Samskrit.
4. This course supports your interest to learn subject text and gives all linguistic help required. Please pursue & master Samskrit. No test or certificate is provided for this level.

Course Details
Duration 4 Months
Lectures 101
Course Fee INR 500
Level Mid-level
Students 121
Language Samskrit

To enrol Click here

https://learnsamskrit.online/course_details?name/=MDQ0ODQ4NDI5OTE5MQ==

#SanskritEducation
Forwarded from Troll Sanskrit
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ: (12) तृतीया विभक्ति (4) + गुण सन्धिः

(क्रिया की विशेषता बतानेवाले शब्द को क्रियाविशेषण कहते हैं क्रियाविशेषण में तृतीया विभक्ति होती है। कहीं अव्यय शब्दों का भी प्रयोग क्रियाविशेषण के रूप में होता है।)

ज्ञानी सुखेन जीवती = ज्ञानी सुख से जीता है।
महात्मानः स्वभावेन कोमलाः भवन्ति = महात्मा स्वभाव से कोमल होते हैं।
गोदुग्धं प्रकृत्या मधुरं भवति = गाय का दूध स्वभावतः मीठा होता है।
विना धर्मं धनं च जीवनयात्रा दुःखेन चलति = धर्म और धन के बिना जीवन यात्रा दुःख से चलती है।
सन्तोषं विना च दुःखतरेण चलति = और सन्तोष के बिना तो जीवनयात्रा अत्यन्त दुःख से चलती है।
वैरागी तु सुखसुखेन जीवति = विरक्त व्यक्ति बहुत सुख से जीता है।
व्यापारे हानिः जाता। अहो वराक ! कृच्छ्रेण दिनानि यापयति = व्यापार में नुकसान हुआ.. अरे बेचारा..! कठिनाई से दिन बिता रहा है।
द्वीपी वेगेन धावति = चीता वेग से दौड़ता है।
चपला क्षणेन पलायते = बिजुली पलभर में भाग जाती है।
अविरलवारिधारासंपातेन वृष्टिः अभवत् = मूसलाधार बारिश हुई।
संयमी संयमेन जीवति तापसश्च तपसा = संयमी संयम से जीता है और तपस्वी तपपूर्वक।
परसुखासहिष्णुः दुःखदुःखेन जीवति = ईर्ष्यालु अत्यन्त कष्ट से जीता है।
नीचैः गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण = जीवन की दशा पहिए के गोले के समान ऊपर-नीचे होती है।
किन्तु धीराः धैर्येण तिष्ठन्ति = परन्तु धीर लोग धैर्यपूर्वक रहते हैं।
नाम्ना शीतला अहम् = नाम से ही मैं शीतल हूं (=मेरा नाम शीतल है)।
नाम्ना जलनिधिः अस्ति, बिन्दुमपि न पाययति = नाममात्र का सागर है, बून्दभर भी पानी नहीं पिलाता।
श्रान्तः घोरया निद्रया शेते = थका हुआ व्यक्ति गहरी नीन्द सो रहा है।
विपत्तौ प्रायेण छिद्राः बहुली भवन्ति = गरीबी में आटा गीला।
साधुवृत्तानां विपत्तयः प्रायेण अस्थायिन्यो भवन्ति = सदाचारियों के जीवन में आयी हुई विपत्तियां प्रायः करके अस्थायी होती हैं।
हृदा उक्तं त्वरया शृणोति भगवान् = दिल से कही बुई बात शीघ्र ही भगवान सुनता है।
कर्मफलदाता कर्मफलम् अचिरेण ददाति = कर्मफलदाता कर्मफल को बिना देर किए (= समय पर) देता है।
चिरेण शयनं चिरेण जागरणं न शिष्टाचारः = देर से सोना और देर से जगना शिष्टों का आचरण नहीं है।
यदृच्छया किमपि न भवति जगति, सर्वं सहेतुकं भवति = अपनेआप संसार में कुछ भी नहीं होता, सबकुछ कारणपूर्वक ही होता है।
यौवनपदवीमारूढः सः यानं यदृच्छया चालयति = जवानी के मद में चूर वह गाड़ी को बेछूट चलाता है।
यदृच्छया अहमपि तत्र अगमम् = संयोग की बात है, मैं भी वहां गया हुआ / गई हुई था / थी।
विपणीपथं गच्छन्तं मां यदृच्छया भवान् अमिलत् = बजार जाते हुए मुझे रास्ते में संयोग से आप मिले।
नियमपालनं स्वेच्छया क्रियते स्वेच्छाचारिभिः = मनमौजियों के द्वारा निममों का पालन स्वेच्छापूर्वक किया जाता है।
चंचलं प्रमाथि बलवद् दृढं मनः काठिन्येन निगृह्यते = चंचल, मथ देनेवाला, बलवान् हठी मन कठिनाई से पकड़ में आता है।
किन्तु विरक्तं मनः सारल्येन निरुध्यते = परन्तु विरक्त मन सरलता से रुक जाता है।
पर्वतलुण्ठितः अनायासेन पतत्येव = पर्वत से लुढ़का हुआ अनायास गिरता ही जाता है।
धान्येन सह यवसं अनायासेन उद्गच्छति = धान के साथ घास बिना किसी प्रयत्न के ही उग जाता है।
प्रकृतिः जगद्रूपेण परिणमते न तु ब्रह्म = प्रकृति जगतरूप में परिणत होती है, ब्रह्म नहीं।
शीनकेन पयो दधिभावेन परिणमते = जामन के कारण दूध दहि बन जाता है।
धर्म रहिताः मनुष्यरूपेण मृगसदृशाः एव = धर्म से रहित लोग मनुष्यरूप में जंगली पशु के समान ही हैं।
त्यक्तेन भुञ्जीथाः = त्यागपूर्वक भोग कर।
अल्पेन न तुष्यन्ति तृषाः = प्यासे थोड़े से तृप्त नहीं होते।
शान्त्या उपविश मा शब्दं कुरु = शान्ति से बैठ, शोर मत कर !
साधवः सारल्येन वर्तन्ते = साधू लोग सरलता से व्यवहार करते हैं।
वाल्मिकी लवकुशौ सावधानेन पर्यपाठयत् = वाल्मिकी ने लवकुश को सावधानी से पढ़ाया।

#vakyabhyas
@koiralasanskrit — अहो, दूरवाणीव्यसनम् कथं त्यजेयम्?
@Patangaha — उच्चतमे पर्वते गत्वा ततः‌ वेगेन फोनम् अधः क्षिप।
शीघ्रं हि तव मदः अपगमिष्यति न संशयः।

#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

ूलश्लोकः-99
एतदाख्यानमायुष्यं पठन्‌ रामायणं नरः।
सपुत्रपौत्रः सगणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते।। 99।।

श्लोकान्वयः -
एतद् आयुष्यम्‌ आख्यानं रामायणं पठन्‌ नरः
सपुत्रपौत्रः सगणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते।।99।।

हिन्दी-अनुवाद -
दीर्घायुष्य कारक इस राम कथा (रामायण) को पढ़कर मनुष्य शरीर त्यागने के बाद पुत्र,
पौत्र एवं अनुयायियों के साथ स्वर्गलोक में पूजा जाता है।।99।।

English Meaning

एतद् रामायणम् this Ramayana, आख्यानम् true meaning, आयुष्यम् longevity, पठन् reading, नर: men, सपुत्रपौत्र: with sons and grandsons, सगण: with servants and relations, प्रेत्य after death, स्वर्गे in heavens, महीयते worshipped.

This story of Ramayana enhances longevity of those who read it and recite it. They will be worshipped in heavens after their death along with their sons and grandsons, servants and relations.

#SankshepaRamayanam