संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
🚩तिथि - पंचमी सुबह 08:15 तक तत्पश्चात षष्ठी

दिनांक - 02 अप्रैल 2021
दिन - शुक्रवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - ज्येष्ठा 03 अप्रैल प्रातः 03:44 तक तत्पश्चात मूल
योग - व्यतिपात रात्रि 11:40 तक तत्पश्चात वरीयान्
राहुकाल - सुबह 11:09 से दोपहर 12:42 तक
सूर्योदय - 06:32
सूर्यास्त - 18:52
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
चाणक्य नीति⚔️
✒️एकादशः अध्याय*

♦️श्लोक:-१४

लाक्षादितैलनीलानां कुसुम्भमधुसर्पिषाम्।
विक्रेता मद्यमांसानां स विप्रः शुद्र उच्चते।।१४।।

♦️भावार्थ--लाक्षादि, तेल, नील, कुमकुम, मधु, घी, शराब, मांस आदि का काम करने वाला विप्र शुद्र कहलाता है।

#Chanakya
हरिःॐ। भृगुवासर-सुप्रभातम्।

आकाशवाण्या अद्यतन्यःप्रातःकालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
हरिःॐ। २०२१-०४-०२ शुक्रवासरः।

https://youtu.be/KrvdXDqd1mU

जयतु संस्कृतम्॥
सुभाषितानि

१. यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति॥


जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है, उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।

As a chariot (cart) can't move with one wheel, similarly, without hard work destiny doesn't bring fruit.

२. यो यमर्थं प्रार्थयते, यदर्थं घटतेऽपि च।
अवश्यं तदवाप्नोति न चेच्छ्रान्तो निवर्तते॥


कोई मनुष्य अगर कुछ पाना चाहता है, और उसके लिए अथक प्रयत्न करता है, तो वह उसे प्राप्त करके ही रहता है।

If a person wants something, and if he makes efforts to achieve it - without getting tired - then no doubt he gets it.

३. गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥


बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान् तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं |

One should not mourn over the past and should not remain worried about the future. The wise operate in present.

४. यथा धेनुसहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्।
तथा पूर्वकृतं कर्म कर्तारमनुगच्छत्॥


जिस प्रकार एक बछड़ा हजार गायों के बीच में अपनी माँ को पहचान लेता है, उसी प्रकार पूर्व में किये गए कर्म कर्ता का अनुसरण करते हैं।

A calf recognizes its mother among thousands of cows; similarly, previous deeds go with the doer.

५. सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परोददातीति कुबुद्धिरेषा।
अहं करोमीति वृथाऽभिमानः स्वकर्मसूत्र ग्रथितो हि लोक:॥


हमारे सुख-दुःख दूसरों ने दिये है, ये समझना गलत है। ये भी समझना गलत है कि मैं ही सब कार्य करता हूँ। सभी लोग अपने कर्मों के फल भुगतते हैं।

It is the wrong perception that pain or pleasure are provided to us by others. Pleasure and pain are not to given to us by someone else.
It is equally vain glorious to claim that I am the doer of everything.
The life in the world is arranged by the karmas one has practiced and is practicing.

६. वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये महार्णवे पर्वतमस्तके वा।
सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा रक्षन्ति पुण्यानि पुरा कृतानि॥


अरण्य में, रणभूमि में, शत्रु समुदाय में, जल, अग्नि, महासागर या पर्वत शिखर पर, सोते हुए, तथा उन्मत्त स्थिति में या प्रतिकूल परिस्थिति में - मनुष्य के पूर्व पुण्य उसकी रक्षा करतें हैं।

When one is trapped in the middle of a jungle, in the war, in the midst of enemies, water/flood or fire, in the ocean or on the mountains; while sleeping, in unconsciousness, or in (any kind of) odd situation - The good deeds that one might have done in the past, protect oneself.

७. आस्ते भग आसीनस्य ऊर्ध्वम् तिष्ठति तिष्ठत:।
शेते निषद्यमानस्य, चरति चरतो भग:॥


जो मनुष्य कर्तव्य मार्ग में बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है। जो खड़ा रहता है, उसका भाग्य भी खड़ा रहता है। जो सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है। और जो चलने लगता है, उसका भाग्य भी चलने लगता है। अर्थात् कर्म से ही भाग्य बनता है।

Fortune of a person who sits idle, also sits idle. That of who stands, also stands. That of who sleeps, also sleeps, and fortune of a person, who walks, also walks. One who Works, or puts efforts, succeeds (you can say his fortune also works for him). In other words God helps them, who help themselves.

८. तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासायापरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम्॥


कर्म वही है, जो बन्धन का कारण न हो और विद्या भी वही है, जो मुक्ति की साधिका हो। इसके अतिरिक्त और कर्म तो परिश्रमरूप तथा अन्य विद्याएँ कला-कौशलमात्र ही हैं।

That which does not create attachments is a good action. All other actions only drain your energy. Only the education that liberates is the right kind. All other education is like sculpturing.

#Subhashitam
🙏 *2.4.21 वेदवाणी* 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌷

कथा सबाधः शशमानो अस्य नशदभि द्रविणं दीध्यानः।
देवो भुवन्नवेदा म ऋतानां नमो जगृभ्वाँ अभि यज्जुजोषत्॥ ऋग्वेद ४-२३-४॥🙏🌷

प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी जो उस परमेश्वर की आराधना में आनंद लेता है। वह परमेश्वर की कृपा का पात्र होता है। हे परमेश्वर ! मेरी भी सत्य आराधना को स्वीकार करो।🙏🌷

One who takes pleasure in worshiping that God, even in the face of adverse circumstances. He deserves the grace of God. O God ! Accept my true worship as well. (Rig Veda 4 -23-4)🙏🌷#vedgsawan🙏🌷
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

निपीडिता वमन्त्युच्चै-
रन्तःसारं महीपतेः।।
दुष्टव्रणा इव प्रायो
भवन्ति हि नियोगिनः।।

अर्थः:

जैसे घाव या फोडा अधिक दबाने से अपने अंदर की रास/रक्त आदि को उछालता है, वैसे ही राजा के अधिकारियों पर अधिक दबाव डालने पर राजा के सभी रहस्यों का खुलासा कर देते हैं।

MEANING:

As an ulcer releases its contents like blood when pressed, so too do the king's officers reveal his secrets when put under excessive pressure.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।

🍃ब्राह्मणा भुञ्जते नित्यं नाथवन्तश्च भुञ्जते।
तापसा भुञ्जते चापि श्रमणा भुञ्जते तथा।।१०।।

⚜️यही नहीं कि वहाँ केवल ब्राह्मणों ही को भोजन दिया जाता था, प्रत्युत सभी नौकर चाकरों को भी भोजन मिलता था इनके अतिरिक्त सभी वर्णो तपस्वी, संन्यासी भी भोजन पाते थे॥१०॥

🍃वृद्धाश्च व्याधिताश्चैव स्त्रियो वालास्तयैव च।
अनिशं भुञ्जमानानां न ठृप्तिरुपलभ्यते॥११॥

⚜️बूढ़े, रोगी, स्त्रियां और बालक वारंबार भोजन करते थे तो भी भोजन कराने वाले अ्धाते न थे॥११॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त-२३, प्रथम मंडल,
मंत्र-०८ देवता-वायु आदि


🍃इन्द्रज्येष्ठा मरुद्गणा देवासः पूषरातयः, विश्वे मम श्रुता हवम्.. (८)

⚜️हे मरुद्गणो! तुम लोगों में इंद्र सबसे महान् हैं. पूषा नाम के देव तुम्हारे दाता हैं. आप सब हमारा आह्वान सुनें. (८)

#Rgveda
चाणक्य नीति⚔️
✒️एकादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१५

परकार्यविहन्ता च दाम्भिकः स्वार्थसाधकः।
छलीद्वेषी मधुक्रूरो विप्रो मार्जार उच्यते।।१५।।

भावार्थ--दूसरे के कामों को बिगाड़ने वाला पाखण्डी, अपना ही स्वार्थ सिद्ध करने में लगा अर्थात् स्वार्थी, छल करने वाला, दूसरों की प्रगति को देखकर ईर्ष्या करने वाला, ऊपर से बहुत कोमल तथा नम्र लेकिन अन्दर से बहुत कपटी - ऐसा विप्र पशु कहलाता है।

#Chanakya
Foresight of our Ancestors

CLEAR INSTRUCTIONS TAUGHT BY "SANATAN DHARMA" 5000 YEARS AGO TO PREVENT PANDEMICS BY MAINTAINING PERFECT HYGIENE.

1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च ।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।।
धर्मसिन्धू ३पू. आह्निक

Salt, ghee, oil, rice and other food items should not be served with bare hand. Use spoons to serve.

2. अनातुरः स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्ततः ।।
मनुस्मृति ४/१४४

Without a reason don't touch your own indriyas (organs like eyes, nose, ears, etc.)

3. अपमृज्यान्न च स्न्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।।
मार्कण्डेय पुराण ३४/५२

Don't use clothes already worn by you & dry yourself after a bath.*

4. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे भोजनं चरेत् ।।
पद्म०सृष्टि.५१/८८
नाप्रक्षालितपाणिपादो भुञ्जीत ।।
सुश्रुतसंहिता चिकित्सा २४/९८

Wash your hands, feet, mouth before you eat.

5. स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः स्युः निष्फलाः क्रियाः ।।
वाघलस्मृति ६९

Without a bath or Snan and Shudhi, all Karmas (duties) done are Nishphal (no use).

6. न धारयेत् परस्यैवं स्न्नानवस्त्रं कदाचन ।।
पद्म० सृष्टि.५१/८६

Don't use the cloth (like towel) used by another person for drying yourself after a bath.

7. अन्यदेव भवद्वासः शयनीये नरोत्तम ।
अन्यद् रथ्यासु देवानाम् अर्चायाम् अन्यदेव हि ।।
महाभारत अनु १०४/८६

Use different clothes while sleeping, while going out, while doing pooja.

8. तथा न अन्यधृतं (वस्त्रं) धार्यम् ।।
महाभारत अनु १०४/८६

Don't wear clothes worn by others.

9. न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं वसनं बिभृयाद् ।।
विष्णुस्मृति ६४

Clothes once worn should not be worn again before washing.

10. न आद्रं परिदधीत ।।
गोभिसगृह्यसूत्र ३/५/२४

Don't wear wet clothes.

11. चिताधूमसेवने सर्वे वर्णाः स्न्नानम् आचरेयुः।
वमने श्मश्रुकर्मणि कृते च विष्णुस्मृति २२

Take a bath on return from cremation ground. Take a bath after every haircut.

These precautions were taught to every SANATANI five thousand years ago in the SANATANA DHARMA.We were forewarned about importance of maintaining personal hygiene, when no microscopes existed, but our ancestors using Vedic knowledge prescribed these Dharma as *SADHAACHAARAM* and followed these !

See in today's scenario how true these are

सनातन ही सत्य है और सत्य ही सनातन है।
🙏🙏🙏
🙏 *3.4.21 वेदवाणी* 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा, ऑडियो रिकॉर्डिंग सुकांत आर्य द्वारा🙏💐

कथा कदस्या उषसो व्युष्टौ देवो मर्तस्य सख्यं जुजोष।
कथा कदस्य सख्यं सखिभ्यो ये अस्मिन्कामं सुयुजं ततस्रे॥ ऋग्वेद ४-२३-५॥🙏💐

उषाकाल के उदय होने पर किस प्रकार नश्वर मनुष्यों को इंद्र की मित्रता प्राप्त होगी ? कब और कैसे इंद्र की मित्रता उनके पास पहुंचेगी जो उससे प्रगाढ़ स्नेह करते हैं ? इसका मार्ग खोजने की आवश्यकता है।🙏💐

How will mortal humans get Indra's friendship with the emergence of dawn ? When and how will Indra's friendship reach to those who are deeply affectionate to Him ? There is a need to find its way. (Rig Veda 4-23-5)🙏💐#vedgsawan🙏💐
सर्वद्रव्येषु विद्यैव
द्रव्यमाहुरनुत्तमम् ।
अहार्यत्वादनर्घ्यत्वाद्
अक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥


अर्थ:

विद्या ही सभी द्रव्यों में सर्वोत्तम मानी जाती है। यह चोरी नहीं हो सकती, अत्यंत मूल्यवान है, और नाशरहित है। इसलिए विद्या सभी द्रव्यों में श्रेष्ठ है।

Translation:

Among all forms of wealth, knowledge is considered the highest. It cannot be stolen, is of immense value, and is imperishable. Thus, knowledge is regarded as the supreme wealth.

©Sanjeev GN #Subhashitam
विदारीवरमूलं तु ।
जलेन सह घर्षयेत् ॥
विभूत्या संयुतो मन्त्री ।
तिलकं लोकवश्यकृत् ॥


अर्थः:

विदारी नामक पौधे की जड़ों को जल के साथ घिसकर प्राप्त पेस्ट को विभूति के साथ मिलाकर माथे पर तिलक करने से सभी प्राणियों को अपने वश में किया जा सकता है। इसे वशीकरण विद्या का मूल ज्ञान कहा गया है।

मूल:- सिद्धनागार्जुनतन्त्रं का द्वितीय अध्याय
कवि:- श्रीसिद्धनागार्जुन जी
काल:- 9वी शती

ॐ नमो भगवते हयास्याय

©Sanjeev GN #Subhashitam
हरिःॐ। भानुवासर-सुप्रभातम्।

आकाशवाण्या अद्यतन्यःप्रातःकालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
हरिःॐ। २०२१-०४-०४ रविवासरः।

https://youtu.be/sp3Qs7DkzuQ

जयतु संस्कृतम्॥