संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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हरिःॐ। इन्दुवासर-सुप्रभातम्।

आकाशवाण्या अद्यतन्यःप्रातःकालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
हरिःॐ। २०२१-०३-२९ सोमवासरः।

https://youtu.be/GVkAUhnGAMw

जयतु संस्कृतम्॥
अयं होलीमहोत्सवः भवत्कृते भवत्परिवारकृते च
क्षेमस्थैर्य-आयुः-आरोग्य-ऐश्वर्य-अभिवृद्घिकारकः भवतु।।
।।होलिकाया: हार्दिकशुभाशयाः।।
हरिःॐ। सोमवासर-सायङ्कालशुभेच्छाः।

आकाशवाण्या अद्यतनसायङ्कालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।

🍃अथ संवत्सरे पूर्णे तस्मिन्माप्ते तुरङ्गमे।
सरय्वाश्वोचरे तीरे राज्ञो यज्ञोऽभ्यवर्तत ॥१॥

⚜️एक वर्ष बाद जब यज्ञ का घोड़ा चारों ओर घूमकर आ गया, तब महाराज दशरथ का अ्वमेधयज्ञ सरयू के उत्तरतट पर होने लगा॥१॥

🍃ऋश्यभृङ्गं पुरस्कृत्य कर्य चक्रुद्विजर्षभाः।
अववमेधे महायज्ञे राज्ञोऽस्य सुमहात्मनः॥२॥

⚜️ऋषि श्रृंग प्रमुख ब्राह्मणश्रेष्टों ने महाराज दशरथ से अश्वमेध यक्ष करवाया॥२॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त-२३, प्रथम मंडल,
मंत्र-०५ देवता-वायु आदि


🍃ऋतेन यावृतावृधावृतस्य ज्योतिषस्पती. ता मित्रावरुणा हुवे.. (५)

⚜️मित्र और वरुण सत्य के द्वारा यज्ञकर्म की वृद्धि करते हैं. और वास्तविक प्रकाश के पालनकर्ता हैं. मैं इन दोनों का आह्वान करता हूँ. (५)

#rgveda
चाणक्य नीति ⚔️
✒️एकादशः अध्याय

♦️श्लोक:-११

अकृष्टफलमूलेन वनवाहरताः सदा।
कुरुतेअ्हरहः श्राद्धमृषिविप्रः स उच्यते।।११।।

♦️भावार्थ--बिना जोती हुई धरती से फल एवं कंदमूल आदि खाकर जो जीवन बिताता है और सदैव वन में बसने की इच्छा रखता है, हर रोज़ पितरो का श्राद्ध करता है, वह ब्राह्मण ऋषि कहा जाता है।।

#chanakya
हरिःॐ। मङ्गलवासर-सायङ्कालशुभेच्छाः।

आकाशवाण्या अद्यतनसायङ्कालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
हरिःॐ। बुधवासर-सुप्रभातम्।

आकाशवाण्या अद्यतन्यःप्रातःकालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।

🍃कर्म कुर्वन्ति विधिवघाजका वेद पारगा।
यथाविधि यथान्यायं परिक्रामन्ति शास्त्रतः॥३॥

⚜️वेद जानने वाले तथा यज्ञ कराने वाले ब्राह्मण, (ऋत्विज ) कल्पसूत्रों में कथित यज्ञ की विधि के अनुसार सब कार्य करवाते थे॥३॥

🍃प्रवयं शास्त्रतः कृत्वा तथैवोपसदं द्विजाः।
चक्रुश्च विधिवत्सर्वमधिकं कर्म शास्त्रतः॥४॥

अभिपूज्य ततो हृष्टाः सर्वे चक्रुर्यथाविधि ।_*
प्रातःसबनपूर्वाणि कर्माणि मुनिपुङ्गवाः॥५॥

⚜️प्रवर्ग और उपसद ( यज्ञ कर्म विशेष) दोनों कर्म शास्त्रानुसार विधिवत् करके, वड़ी प्रसन्नता के साथ तत् तत् कर्मों में पूज्य देवताओं की पूजा ब्राह्मणों ने की और दूसरे दिन श्रेष्ठ मुनियों ने प्रातः सवन ( यज्ञीय विधि विशेष ) कर के,पूजन आरंभ हुआ॥४॥५॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त - २३ , प्रथम मंडल ,
मंत्र-०६-०७ देवता-वायु आदि

🍃ऐन्द्रश्च विधिवद्दच्तो राजा चाभिष्टुतोऽनघः।
माध्यदिनं च सवनं प्राधतंत यथाक्रमम् ।।६॥

⚜️विधि पूर्वक इन्द्र का भाग दे और पाप दूर करने वाली सोमलता का रस निकाल, मध्यान्ह सवन किया गया ॥६॥

🍃तृतीयसवनं चैव राज्ञोऽस्य सुमहात्मनः ।
चक्रुस्ते शास्त्रतो दृष्ट्वा तथा त्राह्मणपुङ्गवाः॥७॥

⚜️फिर महाराज और ब्राह्मणों ने शास्त्रानुसार यथाविधि तीसरा सायं सवन किया॥७॥

#rgveda
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७७
🚩तिथि - तृतीया दोपहर 02:06 तक तत्पश्चात चतुर्थी

दिनांक 31 मार्च 2021
दिन - बुधवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - स्वाती सुबह 09:45 तक तत्पश्चात विशाखा
योग - हर्षण सुबह 09:59 तक तत्पश्चात वज्र
राहुकाल - दोपहर 12:43 से दोपहर 02:15 तक
सूर्योदय - 06:33
सूर्यास्त - 18:51
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण - संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय रात्रि 09:51)
भ्रमति नभसि विद्युच्चण्डवातानुविद्धैर्नवजलदनिनादैर्मेदिनी सप्रकम्पा ।
इह तु जगति नूनं रक्षणार्थं प्रजानामसुरसमितिहन्ता विष्णुरद्यावतीर्णः ॥


अन्वयः (संस्कृतवाक्यरचनापद्धतिः)

नभसि विद्युच्चण्डवातानुविद्धैः नवजलदनिनादैः मेदिनी सप्रकम्पा भ्रमति । तु इह नूनं प्रजानां रक्षणार्थं असुरसमितिहन्ता विष्णुः जगति अद्य अवतीर्णः भवति ।

प्रतिपदार्थ:
- नभसि - आकाश में
- विद्युत् - बिजली
- चण्डवात - और तूफान से
- अनुविद्धैः - युक्त हो कर
- नव - नये
- जलद - मेघों की
- निनादैः - गर्जन से
- मेदिनी - भूमि
- सप्रकम्पा - प्रकंपित हो कर
- भ्रमति - डर गयी है (या भ्रमण कर रही है)
- तु - तब तो
- इह - यहाँ
- नूनम् - निश्चय ही
- प्रजानाम् - भक्तों की
- रक्षणार्थम् - रक्षा के लिये
- असुर - असुरों के
- समिति - गणों के
- हन्ता - विनाशी
- विष्णुः - भगवान श्रीमन्महाविष्णु जी
- जगति - धरती में
- अद्य - आज
- अवतीर्णः - उतर रहें
- भवति - हैं

विवरण:

लगभग 2700 वर्ष पूर्व महान नाटककार श्रीभास महाकवि द्वारा रचित बालचरितम् नाटक के प्रथमांक का यह नववां श्लोक है।

इस श्लोक में भगवान श्रीमन्महाविष्णु जी की भक्तों की रक्षा के लिए धरती पर आने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। जब भगवान इस धरती पर आते हैं, तो आकाश में होने वाली हलचल का चित्रण यहाँ कवि ने किया है।

श्लोक में वर्णित है कि जब आकाश में बिजली चमकती है, तो जल से भरे मेघ तो होंगे ही। इसके साथ ही, चंडवात का भी उल्लेख किया गया है, जो तब उत्पन्न होता है जब कोई बड़ी वस्तु तेजी से आकाश में घूम रही हो। आजकल, हम सुनते हैं कि आकाशीय पिंडों या धूमकेतुओं के वेग से आकाश में धूल और पुच्छ जैसा बन जाता है, जो वास्तव में चंडवात का ही उदाहरण है।

मेघों के बीच में बिजली का चमकना और तूफान आना एक बड़े घटना का संकेत है। जब भगवान श्रीमन्महाविष्णु धरती पर आते हैं, तो सामान्यतः वे विमान से आते हैं। श्लोक में विमानों का गुप्त संकेत दिया गया है। आकाश इतना बड़ा होता है कि एक वस्तु के तेज़ी से घूमने पर हलचल नहीं होती, बल्कि जब वह वस्तु बहुत बड़ी होती है, तब आकाश में हलचल मचती है। भगवान विष्णु जी संभवतः अपने विमान, श्रीगरुड़ जी पर बैठकर आए होंगे या उनके पास कोई अन्य बड़ा विमान होगा, जिसके वेग से धरती कंपित हो उठी और आकाश में तूफान के साथ बिजली भी चमक रही थी।

कविवर्य के समय में ज्योतिषशास्त्र, विमानशास्त्र आदि विषयों पर गहरी जानकारी थी। कवि स्वयं भी कई शास्त्रों के ज्ञाता थे। उनके नाटकों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनके समय में विशाल विमानों का संचालन होता था। ऐसे श्लोकों की रचना तभी संभव है जब कवि उस प्रसंग से भलीभांति परिचित हो।

हमारे प्राचीन ग्रंथ जैसे वेद, वेदांग, पुराण, और अन्य शास्त्रों का अध्ययन करने से पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। प्राचीन कवि और ऋषि अपने जीवन को अध्ययन में बिताते थे। आजकल, ऐसे श्लोकों का केवल परीक्षा दृष्टि से अध्ययन किया जाता है। यदि वैज्ञानिक तरीके से इन श्लोकों का अध्ययन और संशोधन किया जाए, तो भारत और इस पृथ्वी की स्थिति आकाश में ऊँची हो सकती है और भविष्य में अन्य ग्रहों के जीवों का इस ग्रह पर आगमन भी संभव हो सकता है।

ॐ नमो भगवते हयाननाय

©Sanjeev GN #Subhashitam
चाणक्य नीति⚔️
✒️एकादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१२

एकाहारेण सन्तुष्टः षड्कर्मनिरतः सदा।
ऋतुकालेअ्भिगामी च स विप्रो द्विज उच्यते।।१२।।

♦️भावार्थ--एक समय के आहार से संतोष पाकर हमेशा छः कर्मों-यज्ञ करना-कराना, वेद पठन-पाठन, दान लेना-देना-के लिए तैयार रहने वाला व ऋतुकाल में ही स्त्री-संग करने वाला विप्र ही द्विज कहलाता है।।

#chanakya
📒📒📒 वेदपाठन 📒📒📒

📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।


🍃ऐन्द्रश्च विधिवद्दच्तो राजा चाभिष्टुतोऽनघः।
माध्यदिनं च सवनं प्राधतंत यथाक्रमम् ।।६॥

⚜️विधि पूर्वक इन्द्र का भाग दे और पाप दूर करने वाली सोमलता का रस निकाल, मध्यान्ह सवन किया गया ॥६॥

🍃तृतीयसवनं चैव राज्ञोऽस्य सुमहात्मनः ।
चक्रुस्ते शास्त्रतो दृष्ट्वा तथा त्राह्मणपुङ्गवाः॥७॥

⚜️फिर महाराज और ब्राह्मणों ने शास्त्रानुसार यथाविधि तीसरा सायं सवन किया॥७॥

#Ramayan
चाणक्य नीति ⚔️
✒️एकादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१३

लौकिके कर्मणि रतः पशूनां परिपालकः।
वाणिज्यकृषिकर्मा यः स विप्रो वैश्य उच्यते।।१३।।

♦️भावार्थ--सदा लौकिक कर्मो में लीन रहने वाला, पशुपालन करने वाला, व्यापार और खेती करने वाला विप्र वैश्य कहलाता है।।

#chanakya