संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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________ अवकरानि सन्ति
Anonymous Quiz
12%
सरित्
17%
नदी
27%
सरिति
13%
सागर
30%
सरिते
महाभारत के युद्ध में गाण्डीवधारी अर्जुन कौरवों का संहार कर रहे थे।
•• महाभारतस्य युद्धे गाण्डीवधारी अर्जुन: कौरवसैनिकान् सञ्जहार (संहरति स्म)।

जिधर श्रीकृष्ण रथ को घुमाते थे, उधर अर्जुन के बाणों से बड़े-बड़े महारथी तथा विशाल सेना मारी जाती थी।
•• यत्र-यत्र श्रीकृष्णः रथं परिबभ्राम (परिभ्राम्यति स्म) तत्र तत्र अर्जुनस्य बाणैः श्रेष्ठमहारथिन: विशालसेना: च मार्यन्ते स्म।

द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात कौरव सेना भाग खड़ी हुई।
•• द्रोणाचार्यस्य मरणोपरान्तं कौरवसैनिका: पलायञ्चक्रिरे (पलायितवन्त:) ।
.
इसी बीच अचनाक महर्षि वेदव्यासजी स्वेच्छा से घूमते हुए अर्जुन के पास आ गए।
•• एतस्मिन् मध्ये अकस्मात् महर्षि: वेदव्यास: स्वेच्छया भ्रमन् अर्जुनं निकषा आजगाम (आगच्छत्)।

उन्हें देखकर जिज्ञासावश अर्जुन ने उनसे पूछा- महर्षि! शत्रुसेना का संहार जब मैं अपने बाणों से कर रहा था, उस समय मैंने देखा कि एक तेजस्वी महापुरुष हाथ में त्रिशूल लिये हमारे रथ के आगे-आगे चल रहे थे।
•• तं दृष्ट्वा जिज्ञासया अर्जुनः पप्रचछ (पृष्टवान्)- महर्षे! यदा अहं शत्रुसेनां स्वबाणैः संहरामि स्म तदा मया दृष्टं यत् एकः तेजस्वी त्रिशूलधारी महापुरुषः अस्माकं रथस्य अग्रे-अग्रे चलति स्म।

सूर्य के समान तेजस्वी महापुरुष का पैर जमीन पर नहीं पड़ता था।
•• सूर्यवत् तेजस्विनो महापुरुषस्य पादौ भूमौ नापतताम्।

त्रिशूल का प्रहार करते हुए भी वे उसे हाथ से कभी नहीं छोड़ते थे।
•• त्रिशूलेन प्रहरन्नपि स तं हस्तात् कदापि न मुञ्चति स्म।

उनके तेज से उस एक ही त्रिशूल से हजारों नये -नये त्रिशूल प्रकट होकर शत्रुओं पर गिरते थे।
•• तस्य तेजसा तेन एकेनैव त्रिशूलात् नूतनानि सहस्रत्रिशूलानि प्रकटीभूय शत्रुषु आगत्य पतन्ति स्म।

उन्होंने ही समस्त शत्रुओं को मार भगाया है, किंतु लोग समझते हैं कि मैंने ही उन्हें मारा और भगाया है।
•• स एव सर्वशत्रून् असंहरत् ,परन्तु जना: अवगच्छन्ति यत् अहमेव तान् असंहरम्।

भगवन मुझे बताइये, वे महापुरुष कौन थे ?
•• भगवन्!मां बोधयतु । स महापुरुष: क: आसीत् ?

कमण्डलु और माला धारण किये हुए महर्षि वेदव्यास ने शान्त भाव से उत्तर दिया।
•• कमण्डलुधारी मालाधारी च महर्षि: वेदव्यास: शान्तभावेन सह प्रत्युवाद ।

वीरवर ! प्रजापतियों में प्रथम, तेजः स्वरुप, अन्तर्यामी तथा सर्वसमर्थ भगवान् शंकर के अतिरक्त उस रोमांचकारी घोर संग्राम में अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य आदि के रहते हुए कौरव सेना का विनाश दूसरा कौन कर सकता था।
•• वीरवर! प्रजापतिषु प्रथम:, तेज: स्वरूप:, अन्तर्यामी , सर्वसमर्थ: चेति गुणै: सुशोभितं भगवन्तं शंकरमतिरिच्य तस्मिन् रोमहर्षके भयङ्करयुद्धे अश्वत्थामा, कृपाचार्य:,कर्ण: च इति योद्धानाम् उपस्थितौ अपि अन्य: क: कौरवसैनिकान् विनाशयितुं शक्नोति स्म।

तुमने उन्हीं भुवनेश्वर का दर्शन किया है।
•• त्वं तस्यैव भुवनेश्वरस्य दर्शनं कृतवान्।

उनके मस्तक पर जटाजूट तथा शरीर पर वल्कल वस्त्र शोभा देता है।
•• तस्य मस्तके जटाजुट: शरीरे च वल्कलवस्त्रं शोभेते।

भगवान शिव भयानक होकर भी चंद्रमा को मुकुट रुप से धारण करते हैं।
•• भगवान् शिव: भयङ्करोऽपि इन्दुं किरीटवत् धारयति।

साक्षात् भगवान शंकर ही वे तेजस्वी महापुरुष हैं, जो कृपा करके तुम्हारे आगे-आगे चला करते हैं।
•• साक्षात् भगवान् शंकर एव स तेजस्वी: महापुरुष: अस्ति ,य: कृपां कृत्वा तव अग्रस्तत: सदैव चलति।

जिनके हाथों में त्रिशूल, ढाल, तलवार और पिनाक आदि शस्त्र शोभा पाते हैं, उन शरणागतवत्सल भगवान् शिव की आराधना करनी चाहिए।
•• यस्य हस्तयो: त्रिशूलम् ,आवरणम् ,खड्गं पिनाक: चेत्यादीनि शस्त्राणि शोभन्ते , स शरणागतवत्सल: भगवान् शिव: पूजनीय:।

#vakyabhyas
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— हिमालय कहां पर है।
— मैं नहीं जानता गुरुजी
— मेज़ (Table) पर खड़े हो जाओ।
— गुरुजी लेकिन यहाँ से भी नहीं दिख रहा है।

#hasya
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सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

मूलश्लोकः-25-26
तं व्रजन्तं प्रियो भ्राता लक्ष्मणोऽनुजगाम ।
स्नेहाद्विनयसम्पन्न: सुमित्रानन्दवर्धन:।।25।।
भ्रातरं दयितो भ्रातु: सौभ्रात्रमनुदर्शयन्‌।।26।।

श्लोकान्वयः - 25-26
विनयसम्पन्न: सुमित्रानन्दवर्धन: भ्रातु: दयित: प्रिय: भ्राता लक्ष्मण: स्नेहात्‌ सौभ्रात्रम्‌
अनुदर्शयन्‌ तं व्रजन्तं भ्रातरम्‌ अनुजगाम।।25-26।।

हिन्दी - अनुवाद -25-26
भ्राता राम के प्रति सौहार्द रखने वाले अनुज सुमित्रानन्दन विनयसम्पन्न लक्ष्मण जो श्री राम के अत्यधिक प्रिय थे
उन्होंने भी वन जाते हुए राम का स्नेहवश अनुगमन किया।।25-26।।
English Meaning

विनयसम्पन्न: endowed with modesty, भ्रातु: for brother Rama, दयित: beloved, प्रिय: भ्राता brother with natural affection, सुमित्रानन्दवर्धन: one who enhances the joy of Sumitra, लक्ष्मण: Lakshmana, सौभ्रात्रम् affectionate brotherhood, अनुदर्शयन् showing, व्रजन्तम् departing to the forest, तं भ्रातरम् his brother Rama, स्नेहात् out of affection, अनुजगाम ह followed.

Lakshmana beloved brother to Rama is drawn towards him. Endowed with modesty he is an enhancer of the joy of his mother Sumitra. Displaying his fraternal love, he followed Rama who was departing to the forest.

Note: The second line of 26th Shloka will follow together with 27th Shloka

#SankshepaRamayanam
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [04.18]
🍃कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः। 
स बुद्धिमान् मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्
।।4.18।। 

♦️karmaNyakarma yaH pashyedakarmaNi cha karma yaH|
sa buddhimaan manuShyeShu sa yuktaH kRRitsnakarmakRRit||4.18||

4.18 He who seeth inaction in action and action in inaction, he is wise among men; he is a Yogi and performer of all actions. 

।।4.18।। जो पुरुष कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है वह मनुष्यों में बुद्धिमान है वह योगी सम्पूर्ण कर्मों को करने वाला है।। 

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [04.19]
🍃यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः। 
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः
।।4.19।। 

♦️yasya sarve samaarambhaaH kaamasa~NkalpavarjitaaH|
j~naanaagnidagdhakarmaaNaM tamaahuH paNDitaM budhaaH||4.19||

4.19 He whose undertakings are all devoid of desires and (selfish) purposes and whose actions have been burnt by the fire of knowledge, him the wise call a sage. 

।।4.19।। जिसके समस्त कार्य कामना और संकल्प से रहित हैं ऐसे उस ज्ञानरूप अग्नि के द्वारा भस्म हुये कर्मों वाले पुरुष को ज्ञानीजन पण्डित कहते हैं।। 

#geeta
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - चतुर्दशी शाम ०४:५५ तक तत्पश्चात अमावस्या

⛅️ दिनांक - ०३ दिसम्बर २०२१
⛅️ दिन - शुक्रवार
⛅️ शक संवत -१९४३
⛅️ अयन - दक्षिणायन
⛅️ ऋतु - हेमंत
⛅️ मास - मार्ग शीर्ष मास
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - विशाखा दोपहर ०१:४५ तक तत्पश्चात अनुराधा
⛅️ योग - अतिगण्ड दोपहर १२:५७ तक तत्पश्चात सुकर्मा
⛅️ राहुकाल - सुबह ११:०७ से दोपहर १२:२९ तक
⛅️ सर्योदय - ०७:०२
⛅️ सर्यास्त - १७:५५
⛅️ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
Audio
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमश्शाश्वतीस्समा: ।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी: काममोहितम् ॥


O fowler, may you not attain glory for a duration akin to eternity, for having killed one of the infatuated couple of kraunchas.

This shloka is actually the result of Maharshi Valmiki's anger! It is said that शोकः श्लोकात्मगतः – his curse took the form of a verse! One day, as the great sage was returning from his bath, he witnessed a male क्रौञ्च bird engaged in mating, only to be struck down by the arrow of a hunter. Infuriated by this sight, the sage uttered a curse that miraculously took the shape of lines following a fixed rhythm. Thus was born the first shloka in history, along with the legendary meter of anuṣṭup (अनुष्टुप्). This inspired Lord Brahma to command Maharshi Valmiki to compose the epic of Ramayana in the same meter!

#celebrating_Sanskrit
महाभारत का युद्ध चल रहा था।
•• महाभारतस्य युद्धं प्रचचाल।

भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होकर बाणों की बनी हुई एक शय्या पर पड़े हुए थे।
•• भीष्मपितामह: अर्जुनस्य बाणै: आहतोभूय बाणै: निर्मितशय्याशायी बभूव।

कौरव और पांडव दल के लोग प्रतिदिन उनसे मिलने जाया करते थे।
•• कौरवजना: पाण्डवजना: च प्रत्यहं तं मेलितुं जग्मु:।

एक दिन का प्रसंग है कि पांचों भाई और द्रौपदी चारो तरफ बैठे थे।
•• कस्मिंश्चित् दिने पञ्चभ्रातर: द्रौपदी च तं निकषा उपविष्टो बभूवु।

सभी श्रद्धापूर्वक उनके उपदेशों को सुन रहे थे कि अचानक द्रौपदी खिलखिला कर हंस पड़ी।
•• सर्वे श्रद्धाभावै: सह तस्योपदेशं शुश्रुवुः यत् अकस्मात् द्रौपदी उच्चै: जहास।

पितामह इस हरकत से बहुत दुखी हो गए
और उपदेश देना बंद कर दिया।
•• पितामह: तस्या: एतेन व्यहारेण अतीव दुःखितोभूय उपदेशश्रावणं रुरोध।

पांचों पांडवों भी द्रौपदी के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित थे।
••पञ्चपाण्डवा: अपि द्रौपद्या: एतेन व्यहारेण आश्चर्यचकितो बभूवु।

सभी बिल्कुल शान्त हो गये।
•• सर्वे पूर्णतः शान्ता: बभूवु।

कुछ देर बाद पितामह बोले, " पुत्री, तुम एक राजघराने परिवार की बहु हो।क्या मैं तुम्हारी इस हंसी का कारण जान सकता हूँ ?”
•• कस्माञ्चित् क्षणात्परं पितामह: उवाच - सुते!त्वम् एका राजवधू असि।किमहं तव अस्य हासस्य कारणं ज्ञातुं शक्नोमि ?

द्रौपदी बोली-” पितामह, आज आप हमें अन्याय के विरुद्ध लड़ने का उपदेश दे रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मुझे निर्वस्त्र करने की कुचेष्टा की जा रही थी तब कहाँ चला गया था आपका यह उपदेश ? आखिर तब आपने भी मौन क्यों धारण कर लिया था ?
•• द्रौपदी उवाच - "पितामह!अद्य भवान् अस्मान् अन्यायविरुद्धं संघर्षितुं उपदिशति , परन्तु यदा अहं जनपूर्णयुक्तराज्यसभायाम् निर्वस्त्रं कर्तुं कुचेष्टा अक्रिये , तदा भवत: उपदेश: कुत्र जगाम ? अन्तत: तदानीं भवान् अपि मौनधारणं किमर्थं चकार?

यह सुनकर पितामह की आंखों में आंसू आ गए।
•• एतत् श्रुत्वा पितामह: अश्रूपूरित: बभूव।

कातर स्वर में उन्होंने कहा - "पुत्री , तुम तो जानती हो कि उस समय मैं दुर्योधन का अन्न खा रहा था।
•• पश्चातापभावेन सह स कथयाम्बभूव - " त्वं तु जानासि यत् तदानीमहं दुर्योधनस्य अन्नं चखाद।

वह अन्न प्रजा को दुःखी करके एकत्र किया गया था।
•• तदन्नं प्रजा: तुत्त्वा सञ्चितं बभूव।

ऐसे अन्न को भोगने से मेरे संस्कार भी क्षीण हो गये थे।
•• एतादृशानि अन्नानि भक्षयित्वा मम संस्कारोऽपि क्षीणो बभूव।

और अब जबकि उस अन्न से बना लहू बह चुका है।
•• अपिच इदानीं यद्यपि तेन अन्नेन निर्मितं रक्तम् ऊढवदस्ति।

मेरे स्वाभाविक संस्कार वापस आ गए हैं और अपने आप ही मेरे मुख से उपदेश निकल रहे हैं।
•• मम स्वाभाविक: संस्कार: पुनः प्रत्यावर्तितवान् स्वतो च मम मुखात् उपदेशवचनस्य वृष्टिर्भवति इदानीं।

बेटी ,जो जैसा अन्न खाता है,उसका मन भी वैसा ही हो जाता है।
••पुत्री!य: यथा अन्नं खादति , तस्य चित्तः तथैव भवति।
•• पुत्री!यथा अन्नं तथा मनः।

#vakyabhyas
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
*केनचिद् एकेन नग्नसाधुना सह कस्यचन कथोपकथनम्।* अस्माकं भारतदेशे बहवः साधवः सन्ति। तेषु नग्नसाधवः अपि केचन विशिष्टाः साधवः भवन्ति। कुम्भमेलायां केनचिद् एकेन साधुना कस्यचन साक्षात्कारः। तदानीं सः ध्यानं कुर्वन् आसीत्। प्रश्नः - हे महाराज! भवतः आश्रमः कुत्र?…
*कुम्भमेलायां नग्नसाधुना सह कथोपकथनस्य द्वितीयो भागः।*

प्रश्नः - कुम्भमेलायां नग्नसाधवः किमर्थं सर्वप्रथमं स्नानं कुर्वन्ति?
साधुः - सैनिकाः प्रथमं गत्वा मार्गे सङ्कटः अस्ति वा न वा इति पश्यन्ति। अनन्तरं ते अन्यान् सूचयन्ति।

प्रश्नः - श्रूयते यद् भवान् पूर्वं तन्त्रांश-अभियन्ता आसीत् विदेशीयसंस्थायाम्!
उत्तमा वृत्तिः, महद् धनम्। तत् सर्वं किमर्थं त्यक्तवान्?
साधुः - वेतनं दशसहस्रं वा भवतु एकलक्षं वा भवतु, जीवनं तु तदेव।
प्रतिदिनं प्रातःकाले उत्थाय प्रातराशं स्वीकृत्य कार्यालयस्य गमनम्, आदिनं कार्यं कृत्वा सायङ्काले गृहं प्रति प्रत्यागमनम्। चायं पीत्वा पीत्वा दूरदर्शनस्य दर्शनम्, अनन्तरं रात्रिभोजनम् , ततः परं निद्रा।
सहसा मम मनसि चिन्ता अभवत् यद् एतत् किं जीवनम्! अर्थहीनं जीवनम्!

एकदा गङ्गासागरे एकेन नग्नसाधुना सह मम मेलनम् अभवत्। तेषाम् आश्रममपि गतवान्। एकवर्षानन्तरं वृत्तिं त्यक्त्वा अहं तैः साधुभिः सह संयुक्तः अभवम्।

प्रश्नः - साधुः भूत्वा किं प्राप्तवान्?
साधुः - आत्मनि स्थिरसत्तां प्राप्तवान्। जगतः जीवनस्य च तात्पर्यम् अन्विष्य प्राप्तवान्।

प्रश्नः - भवतः साधनायाः मार्गः कः?
साधुः - नग्नसाधवः सर्वे ज्ञानमार्गस्य साधकाः। शिवोपासकाः।

प्रश्नः - कुम्भमेलायाः समाप्तेः परं किं भवान् आश्रमं प्रति गमिष्यति उत अन्यत्र कुत्रापि गमिष्यति?
साधुः - आश्रमं गमिष्यामि। वर्षे एकवारं तीर्थयात्रां कुर्मः। मासत्रयं यावद् आश्रमात् बहिः तिष्ठामः।
अस्मिन् वर्षे कुम्भमेलायाम् अस्मि। गतवर्षे परशुरामकुण्डम् अगच्छम्। (असम-अरुणाचलराज्ययोः सीमायाम्)
साधवः एवमेव सर्वत्र भ्रमन्ति।

प्रश्नः - भवन्तः तु कदापि रेलयाने बसयाने वा न दृश्यन्ते। तर्हि कथं भवन्तः इतस्ततः भ्रमन्ति?
साधुः - वयं पादाभ्यां हि सर्वत्र भ्रमामः।

प्रश्नः - भवान् तु उच्चशिक्षितः अभियन्ता च। निरक्षरैः नग्नसाधुभिः सह स्थित्वा भवान् कथम् अनुभवति? कापि समस्या न भवति?
साधुः - भवन्तः मन्ये न जानन्ति यद् बहवः साधवः सन्ति समाजे। ते सर्वेऽपि उच्चशिक्षिताः। अस्माकम् आश्रमे हि सन्ति बहवः। तेषु प्राक्तन आई ए एस् अधिकारी, वैमानिकः अभिनेता च सन्ति।

पुनश्च एका कथा यत् कश्चन उच्चशिक्षितः वा भवतु निरक्षरः वा भवतु, परन्तु सः उत्तममनुष्यः उत न इत्येव ज्ञातव्यम्।
*-प्रदीपः!*
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)

मूलश्लोकः-26-28
रामस्य दयिता भार्या नित्यं प्राणसमा हिता।। 26।।
जनकस्य कुले जाता देवमायेव निर्मिता।
सर्वलक्षणसम्पन्ना नारीणामुत्तमा वधू: ।। 27।।
सीताप्यनुगता रामं शशिनं रोहिणी यथा।।28।।

श्लोकान्वयः 26-28
जनकस्य कुले जाता देवमाया इव निर्मिता
रामस्य दयिता नित्यं प्राणसमा हिता भार्या सर्वलक्षणसम्पन्ना नारीणाम्‌ उत्तमा वधू:
सीता अपि यथा शशिनं रोहिणी (तथा) रामम्‌ अनुगता।।27-28।।

हिन्दी - अनुवाद -26-28
राजा जनक के कुल में उत्पन्न मोहिनी की तरह निर्मित राम की प्रेयसी,
सदा प्राणसदृश हितकारिणी, उत्तम स्त्री के सभी गुणों से भूषित,
स्त्रिया­ में­ श्रेष्ठ सीता ने भी राम का उसी प्रकार अनुगमन किया जिस प्रकार रोहिणी चन्द्रमा का अनुगमन करती है।।27-28।।

English Meaning

रामस्य for Rama, दयिता beloved, भार्या wife, प्राणसमा equal to his vital breath, नित्यम् always, हिता doing fit and proper acts beneficial to him, जनकस्य king Janaka's, कुले in the race, जाता born, निर्मिता created, देवमायेव like Maya Mohini, the assumed form of visnuhnu, सर्वलक्षणसम्पन्ना endowed with all auspicious characteristics, नारीणाम् among women, उत्तमा the foremost, वधू: daughterinlaw (of Dasaratha), सीतापि Sita also, रोहिणी Rohini, (one of the several daughters of Daksha and consort of moon) शशिनम् यथा like moon, रामम् Rama, अनुगता followed.

Born in the race of Janaka and daughterinlaw of Dasaratha, Sita, beloved spouse of Rama is like his vital breath always desired the wellbeing of Rama she followed him like Rohini, the Moon. Endowed with all virtues she is the foremost woman.

Note: The second line of 28th Shloka will follow together with 29th Shloka
#SankshepaRamayanam