🍃
♦️ajo'pi sannavyayaatmaa bhuutaanaamiishvaro'pi san|
prakRRitiM svaamadhiShThaaya saMbhavaamyaatmamaayayaa||4.6||
⚜4.6 Though I am unborn, of imperishable nature, and though I am the Lord of all beings, yet, governing My own Nature, I am born by My own Maya.
⚜।।4.6।। यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप हूँ और भूतमात्र का ईश्वर हूँ (तथापि) अपनी प्रकृति को अपने अधीन रखकर (अधिष्ठाय) मैं अपनी माया से जन्म लेता हूँ।।
#geeta
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया
।।4.6।। ♦️ajo'pi sannavyayaatmaa bhuutaanaamiishvaro'pi san|
prakRRitiM svaamadhiShThaaya saMbhavaamyaatmamaayayaa||4.6||
⚜4.6 Though I am unborn, of imperishable nature, and though I am the Lord of all beings, yet, governing My own Nature, I am born by My own Maya.
⚜।।4.6।। यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरूप हूँ और भूतमात्र का ईश्वर हूँ (तथापि) अपनी प्रकृति को अपने अधीन रखकर (अधिष्ठाय) मैं अपनी माया से जन्म लेता हूँ।।
#geeta
🍃
♦️yadaa yadaa hi dharmasya glaanirbhavati bhaarata|
abhyutthaanamadharmasya tadaa''tmaanaM sRRijaamyaham||4.7||
⚜4.7 Whenever there is decline of righteousness, O Arjuna, and rise of unrighteousness, then I manifest Myself.
⚜।।4.7।। हे भारत जबजब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तबतब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।।
#geeta
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्
।।4.7।। ♦️yadaa yadaa hi dharmasya glaanirbhavati bhaarata|
abhyutthaanamadharmasya tadaa''tmaanaM sRRijaamyaham||4.7||
⚜4.7 Whenever there is decline of righteousness, O Arjuna, and rise of unrighteousness, then I manifest Myself.
⚜।।4.7।। हे भारत जबजब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तबतब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।।
#geeta
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - अष्टमी २८ नवंबर सुबह ०६:०० तक तत्पश्चात नवमी
⛅ दिनांक - २७ नवंबर २०२१
⛅ दिन - शनिवार
⛅ शक संवत -१९४३
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - मार्ग शीर्ष मास
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - मघा रात्रि ०९:४३ तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
⛅ योग - इन्द्र सुबह ०७:३७ तक तत्पश्चात वैधृति
⛅ राहुकाल - सुबह ०९:४२ से सुबह ११:०४ तक
⛅ सूर्योदय - ०६:५८
⛅ सूर्यास्त - १७:५४
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
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⛅ दिनांक - २७ नवंबर २०२१
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⛅ शक संवत -१९४३
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⛅ ऋतु - हेमंत
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⛅ नक्षत्र - मघा रात्रि ०९:४३ तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
⛅ योग - इन्द्र सुबह ०७:३७ तक तत्पश्चात वैधृति
⛅ राहुकाल - सुबह ०९:४२ से सुबह ११:०४ तक
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@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic: Jokes in sanskrit
(संस्कृतेन हास्यम्)
Date : 27th November 2021, Saturday
Please Join the voicechat on time.
संस्कृतभाषया हास्यकणिकां वक्तुं सिद्धाः भवन्तु।
😇 Please come prepared to tell jokes in Sanskrit , If possible.
We are waiting for you.😇
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(संस्कृतेन हास्यम्)
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
https://youtu.be/L5QephQdAq8
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Vaarta: News in Sanskrit | 27.11.2021
सिंहायते ग्रामसिंहः शूकरः कलभायते
धनप्रसादात्सहसा खरोऽपि तुरगायते
A village-lion, i.e., dog, acts as a lion while a pig acts as a young elephant. Being pleased with wealth, even a donkey quickly starts acting as a horse.
धनप्रसादात्सहसा खरोऽपि तुरगायते
A village-lion, i.e., dog, acts as a lion while a pig acts as a young elephant. Being pleased with wealth, even a donkey quickly starts acting as a horse.
एक इंसान घने जंगल में भागा जा रहा था
=एको मानवो निबिडवने धावति स्म।
अंधेरे में कुंआ दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया = तिमिरे कूपो न दृष्टः तथा स तस्मिन् अपतत्।
गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई = पतनकाले कूपं प्रति नमत: वृक्षस्य एका शाखा तस्य हस्ते आगता।
जब उसने नीचे झांका,तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे थे ।
=यदा स: अध: प्रति सूक्ष्मनिरीक्षणं कृतवान्,चेत् अपश्यत् यत् कूपे चत्वारो बाहसा: मुखम् उद्घाटिता: तं पश्यन्ति स्म।
वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान्।अब क्या होगा? = स: अधीरभूय चिन्तयितुम् आरभत यत् भगवन्!इदानीं किं भविष्यति?
उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता था= तस्मिन्नेव वृक्षे मधुमक्षिकाणाम् एको निकेत: आसीत्।
हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उड़ने लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं = गजेन वृक्षस्य कम्पयनेन मधुमक्षिका: उड्डयितुमारभन्त तथा मधुन: बिन्दव: स्रवितुमारभन्त।
एक बुंद उसके होठों पर आ गिरी =एको बिन्दु: तस्य ओष्ठयो: अपतत्।
उसने प्यास से सूख रही जीभों को ओठों पर फेरा,तो शहद की बूंद में गजब की मिठास थी = स पिपासया शुष्कायमानां जिह्वां ओष्ठयो: मार्जनं कृतवान्,चेत् मधुन: बिन्दौ अद्भुतं माधुर्यमासीत्।
कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुख में टपकी=क्षणात्परं पुनः मधुन: एक: इतोऽपि बिन्दु: तस्य मुखे अस्रवत्।
अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया= इदानीं स एतावान् मग्नोऽभवत् यत् स्वसङ्कटानि विस्मृतवान्।
तभी जंगल से भगवान् अपने वाहन से गुजर रहे थे= तदैव तस्माद् वनाद् भूत्वा भगवान् स्ववाहनेन अगच्छत् ।
भगवान ने उसके पास जाकर कहा - मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं।मेरा हाथ पकड़ लो = भगवान् तं निकषा गत्वा अवदत्- अहं तव रक्षां कर्तुमिच्छामि।मम हस्तं गृह्णीतात्।
उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूं = स मानव अवदत् यत् एकं बिन्दुं मधु इतोऽपि लीढ्वा पुनः चलामि।
एक बूंद,फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार = एक: बिन्दु: , पुनः एक: इतोऽपि बिन्दो: परं अग्रिमबिन्दो: प्रतीक्षा।
आखिर थक-हारकर भगवान् चले गए = अन्तत: खिन्नभूय भगवान् अचलत्।
मित्रों , वह जिस जंगल में जा रहा था,वह जंगल है दुनिया = मित्राणि! स यस्मिन् वने अगच्छत् , तद् वनमस्ति संसार:।
अंधेरा है अज्ञान = तिमिरोऽस्ति अज्ञानम्।
पेड़ की डाली है आयु = वृक्षस्य शाखा अस्ति आयु:।
दिन-रात नाम के दो चूहे उसे कुतर रहे हैं = अहर्निशं नाम्नोः मूषकौ तं रदतः।
घमंड नाम का मदमस्त हाथी पेड़ को उखाड़ने में लगा है = अहङ्कारनामक: उन्मतगजो वृक्षस्य उत्खनने लिप्तोऽस्ति।
शहद की बूंदें सांसारिक सुख हैं,जिनके कारण मनुष्य खतरे को अनदेखा कर देता है = मधुबिन्दव: सांसारिकानि सुखानि सन्ति येन मानव: सङ्कटानि नेक्षते।
यानि सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते हैं = अर्थात् सांसारिकसुखे लिप्तमनस: रक्षां भगवानपि कर्तुं न शक्नोति।
#vakyabhyas
=एको मानवो निबिडवने धावति स्म।
अंधेरे में कुंआ दिखाई नहीं दिया और वह उसमें गिर गया = तिमिरे कूपो न दृष्टः तथा स तस्मिन् अपतत्।
गिरते-गिरते कुएं पर झुके पेड़ की एक डाल उसके हाथ में आ गई = पतनकाले कूपं प्रति नमत: वृक्षस्य एका शाखा तस्य हस्ते आगता।
जब उसने नीचे झांका,तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले उसे देख रहे थे ।
=यदा स: अध: प्रति सूक्ष्मनिरीक्षणं कृतवान्,चेत् अपश्यत् यत् कूपे चत्वारो बाहसा: मुखम् उद्घाटिता: तं पश्यन्ति स्म।
वह घबरा गया और सोचने लगा कि हे भगवान्।अब क्या होगा? = स: अधीरभूय चिन्तयितुम् आरभत यत् भगवन्!इदानीं किं भविष्यति?
उसी पेड़ पर मधुमक्खियों का छत्ता था= तस्मिन्नेव वृक्षे मधुमक्षिकाणाम् एको निकेत: आसीत्।
हाथी के पेड़ को हिलाने से मधुमक्खियां उड़ने लगीं और शहद की बूंदें टपकने लगीं = गजेन वृक्षस्य कम्पयनेन मधुमक्षिका: उड्डयितुमारभन्त तथा मधुन: बिन्दव: स्रवितुमारभन्त।
एक बुंद उसके होठों पर आ गिरी =एको बिन्दु: तस्य ओष्ठयो: अपतत्।
उसने प्यास से सूख रही जीभों को ओठों पर फेरा,तो शहद की बूंद में गजब की मिठास थी = स पिपासया शुष्कायमानां जिह्वां ओष्ठयो: मार्जनं कृतवान्,चेत् मधुन: बिन्दौ अद्भुतं माधुर्यमासीत्।
कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूंद उसके मुख में टपकी=क्षणात्परं पुनः मधुन: एक: इतोऽपि बिन्दु: तस्य मुखे अस्रवत्।
अब वह इतना मगन हो गया कि अपनी मुश्किलों को भूल गया= इदानीं स एतावान् मग्नोऽभवत् यत् स्वसङ्कटानि विस्मृतवान्।
तभी जंगल से भगवान् अपने वाहन से गुजर रहे थे= तदैव तस्माद् वनाद् भूत्वा भगवान् स्ववाहनेन अगच्छत् ।
भगवान ने उसके पास जाकर कहा - मैं तुम्हें बचाना चाहता हूं।मेरा हाथ पकड़ लो = भगवान् तं निकषा गत्वा अवदत्- अहं तव रक्षां कर्तुमिच्छामि।मम हस्तं गृह्णीतात्।
उस इंसान ने कहा कि एक बूंद शहद और चाट लूं, फिर चलता हूं = स मानव अवदत् यत् एकं बिन्दुं मधु इतोऽपि लीढ्वा पुनः चलामि।
एक बूंद,फिर एक बूंद और हर एक बूंद के बाद अगली बूंद का इंतजार = एक: बिन्दु: , पुनः एक: इतोऽपि बिन्दो: परं अग्रिमबिन्दो: प्रतीक्षा।
आखिर थक-हारकर भगवान् चले गए = अन्तत: खिन्नभूय भगवान् अचलत्।
मित्रों , वह जिस जंगल में जा रहा था,वह जंगल है दुनिया = मित्राणि! स यस्मिन् वने अगच्छत् , तद् वनमस्ति संसार:।
अंधेरा है अज्ञान = तिमिरोऽस्ति अज्ञानम्।
पेड़ की डाली है आयु = वृक्षस्य शाखा अस्ति आयु:।
दिन-रात नाम के दो चूहे उसे कुतर रहे हैं = अहर्निशं नाम्नोः मूषकौ तं रदतः।
घमंड नाम का मदमस्त हाथी पेड़ को उखाड़ने में लगा है = अहङ्कारनामक: उन्मतगजो वृक्षस्य उत्खनने लिप्तोऽस्ति।
शहद की बूंदें सांसारिक सुख हैं,जिनके कारण मनुष्य खतरे को अनदेखा कर देता है = मधुबिन्दव: सांसारिकानि सुखानि सन्ति येन मानव: सङ्कटानि नेक्षते।
यानि सुख की माया में खोए मन को भगवान भी नहीं बचा सकते हैं = अर्थात् सांसारिकसुखे लिप्तमनस: रक्षां भगवानपि कर्तुं न शक्नोति।
#vakyabhyas
*स्वामिविवेकानन्देन सह प्रियनाथसिंहस्य कथोपकथनम्।*
प्रश्नः - हे स्वामिन्! अमेरिकादेशे भवतः कति शिष्याः अभवन्?
स्वामी - बहवः सन्ति।
प्रश्नः- द्वित्रसहस्रम् ?
स्वामी- ततोऽपि अधिकाः सन्ति।
प्रश्नः - किं ते सर्वे मन्त्रशिष्याः?
स्वामी - आम्।
प्रश्नः - तेभ्यः कान् मन्त्रान् अददात्? किं ते सर्वे मन्त्राः प्रणवयुक्ताः?
स्वामी - आम्। सर्वेभ्यः प्रणवयुक्तान् मन्त्रान् हि अददाम्।
प्रश्नः - श्रूयते यद् भारतम् अतिरिच्य इतराः सर्वे म्लेच्छदेशाः। प्रणवे तेषाम् अधिकारः नास्ति। तर्हि कथं भवान् तेभ्यः प्रणवयुक्तान् मन्त्रान् अददात्?
स्वामी - येभ्यः मन्त्रान् अददां ते ब्राह्मणाः न सन्ति इति भवान् कथं ज्ञातवान्?
प्रश्नः - भारतमतिरिच्य सर्वे तु म्लेच्छदेशाः सन्ति।
तेषु देशेषु च ब्राह्मणाः कुत्र?
स्वामी - अहं येभ्यः मन्त्रान् अददां ते सर्वे ब्राह्मणाः। तदपि सत्यं यत् प्रणवे केवलं ब्राह्मणानाम् अधिकारः भवति। परन्तु ब्राह्मणस्य पुत्रः ब्राह्मणः एव भवेत् इत्यस्य प्रत्याभूतिः नास्ति। भवितुमपि अर्हति।
बागबाजार इत्यस्य चक्रवर्तिनः भ्रातृजः मलाकर्षिणः कार्यं करोति।
सः मलस्य कण्डोलं शिरसि धृत्वा नयति। सः तु ब्राह्मणस्य पुत्रः।
प्रश्नः - अरे भ्रातः! इंलैण्ड-अमेरिकादिदेशेषु भवान् कुतः ब्राह्मणान् प्राप्तवान्?
स्वामी - ब्राह्मणजातिः ब्राह्मणस्य गुणः च इत्यनयोः भेदोऽस्ति।
अत्र सर्वे जात्या ब्राह्मणाः, तत्र सर्वे गुणेन ब्राह्मणाः।
सत्त्वम्, रजः, तमः च इत्यादयः त्रयः गुणाः भवन्ति, तथैव ब्राह्मणः, क्षत्रियः, वैश्यः शूद्रः च इत्येतेषां निर्दिष्टः गुणः भवति।
भारते तु क्षत्रियस्य गुणः लुप्तप्रायः। तथैव ब्राह्मणत्वगुणोऽपि लुप्तः अभवत्।
तेषु देशेषु अधुना सर्वे क्षत्रियत्वात् ब्राह्मणत्वं प्राप्नुवन्ति।
( अस्मिन् कथोपकथने प्रश्नकर्ता स्वामिनः बाल्यबन्धुः तस्य प्रतिवेशी च आसीत्। सः स्वामिनम् अत्यन्तं प्रीणाति स्म, श्रद्धामपि करोति स्म।)
संगृहीतः सन्देशः।
*-प्रदीपः!*
प्रश्नः - हे स्वामिन्! अमेरिकादेशे भवतः कति शिष्याः अभवन्?
स्वामी - बहवः सन्ति।
प्रश्नः- द्वित्रसहस्रम् ?
स्वामी- ततोऽपि अधिकाः सन्ति।
प्रश्नः - किं ते सर्वे मन्त्रशिष्याः?
स्वामी - आम्।
प्रश्नः - तेभ्यः कान् मन्त्रान् अददात्? किं ते सर्वे मन्त्राः प्रणवयुक्ताः?
स्वामी - आम्। सर्वेभ्यः प्रणवयुक्तान् मन्त्रान् हि अददाम्।
प्रश्नः - श्रूयते यद् भारतम् अतिरिच्य इतराः सर्वे म्लेच्छदेशाः। प्रणवे तेषाम् अधिकारः नास्ति। तर्हि कथं भवान् तेभ्यः प्रणवयुक्तान् मन्त्रान् अददात्?
स्वामी - येभ्यः मन्त्रान् अददां ते ब्राह्मणाः न सन्ति इति भवान् कथं ज्ञातवान्?
प्रश्नः - भारतमतिरिच्य सर्वे तु म्लेच्छदेशाः सन्ति।
तेषु देशेषु च ब्राह्मणाः कुत्र?
स्वामी - अहं येभ्यः मन्त्रान् अददां ते सर्वे ब्राह्मणाः। तदपि सत्यं यत् प्रणवे केवलं ब्राह्मणानाम् अधिकारः भवति। परन्तु ब्राह्मणस्य पुत्रः ब्राह्मणः एव भवेत् इत्यस्य प्रत्याभूतिः नास्ति। भवितुमपि अर्हति।
बागबाजार इत्यस्य चक्रवर्तिनः भ्रातृजः मलाकर्षिणः कार्यं करोति।
सः मलस्य कण्डोलं शिरसि धृत्वा नयति। सः तु ब्राह्मणस्य पुत्रः।
प्रश्नः - अरे भ्रातः! इंलैण्ड-अमेरिकादिदेशेषु भवान् कुतः ब्राह्मणान् प्राप्तवान्?
स्वामी - ब्राह्मणजातिः ब्राह्मणस्य गुणः च इत्यनयोः भेदोऽस्ति।
अत्र सर्वे जात्या ब्राह्मणाः, तत्र सर्वे गुणेन ब्राह्मणाः।
सत्त्वम्, रजः, तमः च इत्यादयः त्रयः गुणाः भवन्ति, तथैव ब्राह्मणः, क्षत्रियः, वैश्यः शूद्रः च इत्येतेषां निर्दिष्टः गुणः भवति।
भारते तु क्षत्रियस्य गुणः लुप्तप्रायः। तथैव ब्राह्मणत्वगुणोऽपि लुप्तः अभवत्।
तेषु देशेषु अधुना सर्वे क्षत्रियत्वात् ब्राह्मणत्वं प्राप्नुवन्ति।
( अस्मिन् कथोपकथने प्रश्नकर्ता स्वामिनः बाल्यबन्धुः तस्य प्रतिवेशी च आसीत्। सः स्वामिनम् अत्यन्तं प्रीणाति स्म, श्रद्धामपि करोति स्म।)
संगृहीतः सन्देशः।
*-प्रदीपः!*
सर्वेभ्यः सूचना :-
श्वः अपि संलापशाला भविष्यति।
कृपया ११वादने सर्वे आगच्छन्तु।
श्वः अपि संलापशाला भविष्यति।
कृपया ११वादने सर्वे आगच्छन्तु।
. ।। ॐ ।।
चिरन्तन-हासः ।
राहुलः समाजे काश्चन प्रतिष्ठित-व्यक्तिः अस्ति ।
कस्याश्चित पादकन्दुक-स्पर्धायाः ( football tournament ) समापन-समारोहे सः प्रमुखातिथि-रूपेण आहूतः अस्ति । अन्तिम-द्वन्द्वक्रीडाम् ( the final match ) पश्यति सः । तस्य शुभहस्तद्वयेन पारितोषिक-वितरणम् अपि भवति । तदनन्तरं सः भाषणं करोति ।
“अस्माकं देशे कियत् दारिद्र्यम् अस्ति तस्य दर्शनम् अस्यां स्पर्धायां साक्षात् अभवत् । एकं कन्दुकं प्राप्तुं तस्य पृष्ठतः बहवः क्रीडकाः धावन्ति । केवलम् एकस्य कन्दुकस्य प्राप्त्यर्थं तेषु तीव्रः कलहः भवति । एतत् सर्वं दृष्ट्वा अहम् अतीव दुःखम् अनुभवामि ।”
“एतस्मै नैव स्पृहणीयम् अस्माभिः । सद्यः यः सर्वकारः अस्ति तस्य एव अपयशः अस्ति एतत् । भ्रष्टनीतिः सर्वकारः एषः ।”
“भवतु नाम । यद् किमपि अभवत् तस्य विचारः मास्तु । अधुना निर्वाचनानि तु समीपम् एव सन्ति । तदा निश्चयेन सर्वकार-परिवर्तनं करिष्यामः । वयं विनाकलहं शान्ततया च जीवनं यापयितुम् इच्छामः ।”
“अतः एषः राहुलः भवद्भ्यः सर्वेभ्यः निश्चयेन वाग्दानं ( commitment ) करोति यद् अग्रिमायां स्पर्धायां नूतन-सर्वकारः प्रत्येकं क्रीडकाय एकैकं कन्दुकं दास्यति । अतः प्रत्येकः क्रीडकः स्वस्य भिन्नेन एव कन्दुकेन क्रीडिष्यति । कलहं विना शान्ततया च स्पर्धा सम्पन्ना भविष्यति । एषः न सामान्य-जनस्य शब्दः । प्रतिष्ठितस्य राहुलस्य शब्दः अस्ति एषः । "
भवतां समयः प्रसन्नतया गच्छेत् ।
------ संस्कृतानन्दः ।
#hasya
चिरन्तन-हासः ।
राहुलः समाजे काश्चन प्रतिष्ठित-व्यक्तिः अस्ति ।
कस्याश्चित पादकन्दुक-स्पर्धायाः ( football tournament ) समापन-समारोहे सः प्रमुखातिथि-रूपेण आहूतः अस्ति । अन्तिम-द्वन्द्वक्रीडाम् ( the final match ) पश्यति सः । तस्य शुभहस्तद्वयेन पारितोषिक-वितरणम् अपि भवति । तदनन्तरं सः भाषणं करोति ।
“अस्माकं देशे कियत् दारिद्र्यम् अस्ति तस्य दर्शनम् अस्यां स्पर्धायां साक्षात् अभवत् । एकं कन्दुकं प्राप्तुं तस्य पृष्ठतः बहवः क्रीडकाः धावन्ति । केवलम् एकस्य कन्दुकस्य प्राप्त्यर्थं तेषु तीव्रः कलहः भवति । एतत् सर्वं दृष्ट्वा अहम् अतीव दुःखम् अनुभवामि ।”
“एतस्मै नैव स्पृहणीयम् अस्माभिः । सद्यः यः सर्वकारः अस्ति तस्य एव अपयशः अस्ति एतत् । भ्रष्टनीतिः सर्वकारः एषः ।”
“भवतु नाम । यद् किमपि अभवत् तस्य विचारः मास्तु । अधुना निर्वाचनानि तु समीपम् एव सन्ति । तदा निश्चयेन सर्वकार-परिवर्तनं करिष्यामः । वयं विनाकलहं शान्ततया च जीवनं यापयितुम् इच्छामः ।”
“अतः एषः राहुलः भवद्भ्यः सर्वेभ्यः निश्चयेन वाग्दानं ( commitment ) करोति यद् अग्रिमायां स्पर्धायां नूतन-सर्वकारः प्रत्येकं क्रीडकाय एकैकं कन्दुकं दास्यति । अतः प्रत्येकः क्रीडकः स्वस्य भिन्नेन एव कन्दुकेन क्रीडिष्यति । कलहं विना शान्ततया च स्पर्धा सम्पन्ना भविष्यति । एषः न सामान्य-जनस्य शब्दः । प्रतिष्ठितस्य राहुलस्य शब्दः अस्ति एषः । "
भवतां समयः प्रसन्नतया गच्छेत् ।
------ संस्कृतानन्दः ।
#hasya
सङ्क्षेपरामायणम्
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः -20
ज्येष्ठं ज्येष्ठगुणैर्युक्तं प्रियं दशरथ: सुतम् ।
प्रकृतीनां हितैर्युक्तं प्रकृतिप्रियकाम्यया।। 20।।
श्लोकान्वयः -20
प्रकृतीनां हितै: युक्तं ज्येष्ठगुणै: युक्तं
ज्येष्ठं सुतं रामं प्रकृतिप्रियकाम्यया
हिन्दी - अनुवाद -20
ज्येष्ठ गुण से युक्त अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम को
English Meaning
प्रकृतीनाम् for his subjects, हितै: with good deeds, युक्तम् endowed with, ज्येष्ठम् eldest, सुतम् son, तं रामम् Sri Rama, प्रकृतिप्रियकाम्यया ever intent on the welfare of the people,
With a desire to promote the welfare of the people king Dasaratha decided to install Sri Rama, his eldest and affectionate son as heir (apparent) who was bestowed with all excellent qualities and true prowess, beloved of the people he was ever intent in the welfare of the people.
Note: As the shlokas from 19-21 is continuous, for a better understanding it is recommended that you go through the shloka anvayah and its English Meaning from Shloka 19
#SankshepaRamayanam
(महर्षिवाल्मीकिप्रणीत-रामायण-बालकाण्ड-प्रथमसर्ग-रूपम्)
मूलश्लोकः -20
ज्येष्ठं ज्येष्ठगुणैर्युक्तं प्रियं दशरथ: सुतम् ।
प्रकृतीनां हितैर्युक्तं प्रकृतिप्रियकाम्यया।। 20।।
श्लोकान्वयः -20
प्रकृतीनां हितै: युक्तं ज्येष्ठगुणै: युक्तं
ज्येष्ठं सुतं रामं प्रकृतिप्रियकाम्यया
हिन्दी - अनुवाद -20
ज्येष्ठ गुण से युक्त अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम को
English Meaning
प्रकृतीनाम् for his subjects, हितै: with good deeds, युक्तम् endowed with, ज्येष्ठम् eldest, सुतम् son, तं रामम् Sri Rama, प्रकृतिप्रियकाम्यया ever intent on the welfare of the people,
With a desire to promote the welfare of the people king Dasaratha decided to install Sri Rama, his eldest and affectionate son as heir (apparent) who was bestowed with all excellent qualities and true prowess, beloved of the people he was ever intent in the welfare of the people.
Note: As the shlokas from 19-21 is continuous, for a better understanding it is recommended that you go through the shloka anvayah and its English Meaning from Shloka 19
#SankshepaRamayanam
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Topic : Memories of school life.
(विद्यालयजीवनस्य स्मृतयः)
Date : 28th November 2021, Sunday
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Duration : 30 minutes only
Time : IST 11:00 AM 🕚
Topic : Memories of school life.
(विद्यालयजीवनस्य स्मृतयः)
Date : 28th November 2021, Sunday
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