संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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चाणक्य नीति⚔️
✒️ दशमः अध्याय

♦️श्लोक:-१३

विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं सन्ध्या, वेदाः पत्रम शास्त्रा धर्मकर्माणि।
तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं, छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ॥१३॥

♦️भावार्थ--ब्राह्मण वृक्ष है और सन्ध्या उपासना (प्रातः, दोपहर एवं सायं अर्थात् सन्धि कालों में की जाने वाली ईश्वर की आराधना) उस वृक्ष की जड़ है, चारों वेद उस वृक्ष की शाखाएँ हैं, धर्म-कर्म उसके पत्ते हैं, इसलिए मूल की प्रयत्नपूर्वक एवं सावधानी से रक्षा करनी चाहिए क्योंकि मूल के नष्ट हो जाने पर न शाखा ही रहेगी और न ही पत्ते शेष रहेंगे।

#chanakya
श्लोक:

रविनिशाकरयोर्ग्रहपीडनं
गजभुजङ्गविगङ्गमबन्धनम् ।।
मतिमतां च निरीक्ष्य दरिद्रतां
विधिरहो बलवानिति मे मतिः ।।

अर्थ:

सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहण के कष्ट, हाथी, सर्प, और पक्षियों की पकड़ और पंडितों की दरिद्रता को देखकर मेरी बुद्धि का यह निष्कर्ष है कि विधि अत्यंत बलशाली है।

व्याख्या:

इस श्लोक में कवि श्रीविष्णुशर्मा ने विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक और जीवजन्तु संबंधी बाधाओं का उल्लेख करते हुए विधि की ताकतवरता का संकेत किया है। सूर्य-चन्द्रमा का ग्रहण, हाथियों, सर्पों, और पक्षियों का बंधन, और पंडितों की गरीबी को देखकर यह साफ होता है कि विधि यानी किस्मत कितनी बलवान है। इन सभी कठिनाइयों और बाधाओं को नियंत्रित करने वाली विधि की शक्ति को कवि ने आदरपूर्वक स्वीकार किया है।

अनुवाद:

O poet, seeing the suffering caused by the eclipse of the Sun and Moon, the captivity of elephants, snakes, and birds, and the poverty of scholars, my mind concludes that fate is indeed very powerful.

स्रोत: पञ्चतन्त्र, 2/22
कवि: श्रीविष्णुशर्मा

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।

🍃गतेष्वथ द्विजाय्येषु मन्त्रिणस्तानराधिपः।
विसर्जयित्वा स्वं वेश्म प्रविवेश महाद्युतिः॥२१॥

👉🏻🚩इति द्वादशः सर्गः

⚜️ब्राह्मणों के चले जाने पर,महाद्युतिमान महाराज ने मंत्रियों की विदा किया और स्वैम भी अन्तःपुर में चले गये॥२१॥

#Ramayan
📙ऋग्वेद

सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०९ देवता-अश्विनीकुमार आदि

🍃अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप. त्वष्टारं सोमपीतये.. (९)

⚜️हे अग्नि देव! देवों की कामना करने वाली पत्नियों को इस यज्ञ में ले आओ. तुम सोमपान करने के लिए त्वष्टा को यहां ले आओ. (९)

#Rgveda
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📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

🔥बालकाण्ड:🔥
।।त्रयोदशः सर्गः।।

🍃पुनः प्प्ते बसन्ते तु पूर्णः संत्रत्सरोऽभवत्।
प्रसवार्थ गतो यप्टुं हुयमेधेन बीर्यवान् ॥१॥

⚜️एक वर्ष वाद पुनः वसन्त ऋतु आने पर, पुत्र प्राप्ति के लिये प्रतापी महाराज ने यज्ञ करने की इच्छा की॥१।।

🍃अभिवाय वसिष्ठं च न्यायतः मतिपूज्य च।।
अव्रचीत्मश्रितं वाक्यं प्रसवार्थ द्विजोत्तम्॥२॥

⚜️वशिष्ठ जी को प्रणाम कर और उनका यथाविधि पूजन कर पुत्रप्राप्ति के लिये नम्रता पूर्वक उनसे महाराज दशरथ बोले॥२॥

#Ramayan
सूक्त-२२, प्रथम मंडल ,
मंत्र-१० देवता-अश्विनीकुमार आदि

🍃आ ग्ना अग्न इहावसे होत्रां यविष्ठ भारतीम्. वरूत्री धिषणां वह.. (१०)

⚜️हे अग्नि! हमारी रक्षा के लिए देवपत्नियों को यहां ले आओ. हे अत्यंत युवा अग्नि! हमें ऐसी वाणी दो, जिससे हम देवों को बुला सकें एवं निष्ठापूर्वक सत्य भाषण कर सकें. (१०)

#Rgveda
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७७
🚩तिथि - प्रतिपदा शाम 05:06 तक तत्पश्चात द्वितीया


दिनांक 14 मार्च 2021
दिन - रविवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद 15 मार्च रात्रि 02:20 तक तत्पश्चात रेवती
योग - शुभ सुबह 07:40 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल - शाम 05:18 से शाम 06:48 तक
सूर्योदय - 06:49
सूर्यास्त - 18:46
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
व्रत पर्व विवरण - षडशीती संक्रांति (पुण्यकाल दोपहर 11:39 से शाम 06:04 तक), चन्द्र-दर्शन
सकलध्वान्तविनाशन परमानन्दसुधाहो ।
करुणारूर्ण वरप्रद चरितं ज्ञापय मे ते ॥


पदच्छेद: पदपरिचयशास्त्रं च ।

उपरिलिखितश्लोकस्य अधोलिखितानि सर्वाणि पदानि पुल्लिङ्गे, सम्बोधनाविभक्तौ तथा एकवचने सन्ति । अत: तेषां पदानां अन्त्यवर्णानि अत्र प्रस्तूयन्ते ।

- सकलध्वान्तविनाशन - अकारान्तपुल्लिङ्ग:
- सकला: च ते ध्वान्ता: च सकलध्वान्ता:।
- सकलध्वान्तान् विनाशयति इति सकलध्वान्तविनाशन:।
- तत्सम्बुद्धि:।

- परमानन्द - अकारान्तपुल्लिङ्ग:
- परम: आनन्द: यस्य स: परमानन्द:।
- तत्सम्बुद्धि:।

- सुध - अकारान्तपुल्लिङ्ग:
- शोभनं धारयते इति सुध:।
- तत्सम्बुद्धि:।

- करुणापूर्ण - अकारान्तपुल्लिङ्ग:
- करुणया पूर्ण: करुणापूर्ण:।
- तत्सम्बुद्धि:।

- वरप्रद - अकारान्तपुल्लिङ्ग:
- प्रकर्षेण ददाति इति प्रद:।
- वरान् प्रददाति इति वरप्रद:।
- तत्सम्बुद्धि:।

- अहो - आश्चर्यवाचक अव्यय:
- आश्चर्यजनक वाचकमिदम्।

- चरितम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य चरित शब्दस्य द्वितीयाविभक्तेः एकवचनान्तं पद:
- चरितम् (चरितस्य द्वितीयाविभक्तिः एकवचनम्)।

- ज्ञापय - ज्ञा अवबोधने इति धातोः सकर्मकरूपस्य कर्तरीप्रयोगस्य परस्मैपदिनः आज्ञार्थे लोट् लकारस्य मध्यमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्:
- ज्ञा अवबोधने इति धातोः।
- सकर्मक क्रियापदम्।
- कर्तरीप्रयोगः।
- लोट् लकारस्य मध्यमपुरुषस्य एकवचनम्।

- मे - त्रिषुलिङ्गेषुसमस्य दकारान्तस्य अस्मद् शब्दस्य षष्ठीविभक्तेः एकवचनान्तं पद:
- अस्मद् शब्दस्य षष्ठीविभक्तिः एकवचनम्।

- ते - त्रिषुलिङ्गेषुसमस्य जकारान्तस्य युष्मद् शब्दस्य षष्ठीविभक्तेः एकवचनान्तं पद:
- युष्मद् शब्दस्य षष्ठीविभक्तिः एकवचनम्।

अन्वय:

अहो सकलध्वान्तविनाशन परमानन्द सुध करुणापूर्ण वरप्रद ते चरितं मे ज्ञापय।

हिंदी में प्रतिपदार्थ और विवरण:

- अहो - हे
- सकलध्वान्तविनाशन - सब तरह के अंधकार को नाश करनेवाले
- परमानन्द - अत्यंत अलौकिक और श्रेष्ठ खुशी को पानेवाले
- सुध - सब अच्छे गुणों को धारण करनेवाले
- करुणापूर्ण - करुणा से भरे
- वरप्रद - वरों का प्रदान करनेवाले
- ते - आपके
- चरितं - चरित्र को
- मे - मुझे
- ज्ञापय - याद दिलाइए

विवरण:

हे समस्त पाप और अज्ञान के अंधकार या कठिनाइयों के अंधकार का नाशक, सर्वोच्च आनंद और खुशी का स्वरूप धारण करने वाले, सभी उत्तम गुणों के अवतार, अपने भक्तों में असीम करुणा रखने वाले, और भक्तों को उनकी सामर्थ्य के अनुसार सर्वोत्तम वर प्रदान करने वाले श्रीमन्महाविष्णु जी, कृपया मुझे आपके मत्स्य आदि अवतारों की कहानियाँ स्मरण कराएँ।

यह श्लोक आचार्य मध्व जी द्वारा विरचित "द्वादश स्तोत्र" नामक भक्तिपूर्ण काव्य के दसवें अध्याय का तीसरा श्लोक है। इस ग्रंथ के बारहों अध्यायों में श्रीमदाचार्य जी ने भगवान श्रीमन्महाविष्णु जी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है और साथ ही भगवान को निराकार और निर्गुण मानने वालों के तर्कों का खंडन भी किया है।

MEANING:

Oh Lord Shri Mahavishnu, you are the remover of the darkness of ignorance, poverty, and sins that envelops the lives of your devotees. You embody true happiness, which even the greatest of demi-gods, including Mahalakshmi, find difficult to bestow.

You are the source of all virtues—such as supreme knowledge, immense power, and heroic valor. Your boundless compassion is directed towards all who seek you with devotion. You grant blessings tailored to the capacity of your devotees.

Please, bestow upon us the remembrance of your divine incarnations, such as Matsya and Kurma.

This verse is respectfully borrowed from the "Dwadasha Stotrani," a revered work by the eminent sage Acharya Madhwa, known as Anandateertha. He, an incarnation of Lord Vayu, is celebrated for his writings that impart true joy to the soul of the reader.

ॐ नमो भगवते हयवदनाय।

©Sanju GN #Subhashitam
📒📒📒📒📒📒📒📒📒
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

🔥बालकाण्ड:🔥
।।त्रयोदशः सर्गः।।

🍃यज्ञो मे प्रीयतां. त्रह्मन्यथोक्तं मुनिपुङ्गच ।
यथा न विघ्नः क्रियते यज्ञाङ्गेषु विधीयताम्।।३॥

⚜️हे मुनिश्रेष्ठ ! प्रसन्नतापूर्वक और विधिपूर्वक यज्ञ प्रारम्भ कीजिये, जिससे यज्ञ के किसी भी कत्र में न हेो॥३॥

🍃भवान्स्निग्धः सुहृन्महां गुरुथ परमा महान्।

वोढव्यो भवता चैव भारो यज्ञस्य चाद्यत:॥४॥

⚜️क्योंकि आपका मेरे ऊपर अविच्छिन्न स्नेह है और आप मेरे केवल हितैषी ही नहीं प्रत्युत मेरे सबसे बड़े गुरु भी हैं। इस उपस्थित यज्ञ का जो बड़ा भारी बोझ है, उसे आप सम्हालिये अर्थात् इस महान् यज्ञ का सारा भार आपके ही ऊपर है॥४॥

#Ramayan
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७७
🚩तिथि - द्वितीया शाम 06:49 तक तत्पश्चात तृतीया

दिनांक 15 मार्च 2021
दिन - सोमवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - रेवती 16 मार्च प्रातः 04:44 तक तत्पश्चात अश्विनी
योग - शुक्ल सुबह 07:47 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहुकाल - सुबह 08:17 से सुबह 09:47 तक
सूर्योदय - 06:48
सूर्यास्त - 18:46
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
चाणक्य नीति⚔️

✒️ दशमः अध्याय

♦️श्लोक:-१६

बुद्धिर्यस्य बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम्।
ने सिंहो मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः ॥१६॥

♦️भावार्थ--जिसके पास बुद्धि है उसी के पास बल है। बुद्धिहीन के पास बल कहाँ? जंगल में बल के मद से उन्मत्त शेर बुद्धिमान खरगोश के द्वारा मारा गया।

#chanakya
हरिःॐ। इन्दुवासर-सुप्रभातम्।

आकाशवाण्या अद्यतनप्रातःकालवार्ताः।
(संस्कृतसंस्करणमिदं जालपुटादवारोप्य पुनर्विभाजयिष्यते।)

जयतु संस्कृतम्॥
प्रियो वा यदि वा द्वेष्यो
मूर्खो वा यदि पण्डितः ।
वैश्वदेवान्तमापन्नः
सोऽतिथिः स्वर्गसङ्क्रमः ॥


अर्थ:

प्रियजन हो या शत्रु, द्वेषी हो या मूर्ख, या पंडित हो, यदि कोई भी वैश्वदेवयज्ञ के समय घर पर आए, तो वह अतिथि स्वर्ग की सीढ़ी के समान होता है। इसलिए उसे भोजन कराना चाहिए।

मूल: पञ्चतन्त्रम् /लब्धप्रणाशम्/2
कवि: श्रीविष्णुशर्मा

Meaning:

A guest who may be a loved one or a foe, an illiterate or a learned person, if they appear during the time of Vaishwadevayajna, should be treated as a ladder to heaven. They should be honored with food.

© Sanjeev GN #Subhashitam