संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
5.1K subscribers
3.13K photos
297 videos
309 files
5.92K links
Largest Online Sanskrit Network

Network
https://t.me/samvadah/11287

Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Sanskrit Books @GranthaKutee
Download Telegram
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

प्रतिवाचमदत्त केशवः
शपमानाय न चेदिभूभुजे ।।
अनुहुंकुरुते घनध्वनिं
न हि गोमायुरुतानि केसरी ।। 330/083

अर्थः:

भगवान श्रीकृष्ण ने निंदा कर रहे चेदिराज्य के राजा शिशुपाल को प्रतिनिंदा नहीं की। अर्थात् श्रीकृष्ण ने उसके कटुवचन का उत्तर नहीं दिया, जैसे सिंह मेघों की गर्जना सुनकर ही गर्जन करता है, सियार की भौंक सुनकर नहीं।

MEANING:

Lord Krishna did not respond to the curses of Shishupala, the king of Chedi, in a derogatory manner. Just as a lion roars in response to the thunder of clouds, not to the cries of jackals, Krishna chose not to retaliate to Shishupala's insults.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
📙ऋग्वेद

सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०७ देवता-अश्विनीकुमार आदि


🍃विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः, सवितारं नृचक्षसम्.. (७ )

⚜️सूर्य धन में निवास करते हैं. वे सुवर्ण, रजतादि रूप धन यजमानों में उचित रूप से बांटते हैं. हम मनुष्यों को प्रकाश देने वाले सूर्य का आह्वान करते हैं. (७)

#Rgveda
📒📒📒📒📒📒📒📒📒
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।

🍃छिद्रं हि मृगयन्तेऽत्र विद्वासाि व्रह्मराक्षसाः।
विहतस्य हि यज्ञस्य सद्यः कर्ता विनश्यति॥१७॥

⚜️क्योंकि विद्वान् ब्रह्मराक्षस यज्ञकार्यों में छिद्रावेपण किया करते हैं और यज्ञ की विधि में अपचार होने से यज्ञ करने वाला तुरन्त नाश को प्राप्त होता है अर्थात् मर जाता है॥१७॥

तद्यथा विधिपूर्व मे क्रतुरेष समाप्यते।
तथा विधानं क्रियतां समर्थोः करणोष्विह।।१८॥

⚜️अतः अपनी शक्ति भर ऐसा उपाय कीजिए जिससे यह यज्ञ विधि पूर्वक सुसम्पन्न हो॥१८॥

#Ramayan
क्या आपको नित्य वेदाध्ययन और वाल्मीकि रामायण के अंश अच्छे लगते हैं?
Final Results
50%
हां, मैं सदैव पढ़ता हूं
50%
हां, मैं कभी-कभी पढ़ता हूं।
0%
नहीं ऐसी चीजों की आवश्यकता नहीं है
0%
I don't know Hindi.
श्रीराघवेंद्रास्तुति - SHRIRAGHAVENDRA STUTI

अम्भोजसम्भूतमुख्यामराराध्य
भूनाथभक्तेश भावज्ञ भो ।।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य
श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो ।। १५ ।।

अर्थः:

हे पानी में खिलने वाले कमल से उत्पन्न हुए श्रीचतुर्मुख ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा पूजित श्रीमन्महाविष्णु के भक्तों में श्रेष्ठ, सभी भक्तों के मन को जानने वाले श्रीराघवेन्द्रतीर्थस्वामी, मेरी रक्षा कीजिये।

MEANING:

O HH Shri Raghavendratirthaswamin, the eminent among the devotees of Lord Shrimanmahavishnu, who is worshipped by the prominent deities like Shri Chaturmukha Brahma and others, please protect me.

ॐ श्रीराघवेंद्राय नमः।

©Sanju GN #Subhashitam
वाल्मीकिगीतरघुपुङ्गवकीर्तिलेशैः
तृप्तिं करोमि कथमप्यधुना बुधानाम् ।
गङ्गाजलैर्भुवि भगीरथयत्नलब्धैः
किं तर्पणं न विदधाति नरः पितृणाम् ॥

पदच्छेदः पदपरिचयशास्त्रं च

- वाल्मीकिगीतरघुपुङ्गवकीर्तिलेशैः - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य वाल्मीकिगीतरघुपुङ्गवकीर्तिलेश शब्दस्य तृतियाविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।
- तृप्तिम् - इकारान्तस्त्रीलिङ्गस्य तृप्ति शब्दस्य द्वितियाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- करोमि - डुकृञ् करणे इति धातोः सकर्मकस्य कर्तरीप्रयोगस्य परस्मैपदिनः वर्तमानकालस्य लट् लकारस्य प्रथमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- कथम् - अव्ययमिदम्
- अपि - अव्ययमिदम्
- अधुना - अव्ययमिदम्
- बुधानाम् - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य बुध शब्दस्य षष्ठीविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।
- गङ्गाजलैः - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य गङ्गाजलशब्दस्य तृतियाविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।
- भुवि - ऊकारान्तस्त्रीलिङ्गस्य भू शब्दस्य सप्तमिविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- भगीरथयत्नलब्धैः - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य भगीरथयत्नलब्ध शब्दस्य तृतियाविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।
- किम् - मकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य किं शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- तर्पणम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य तर्पण शब्दस्य द्वितियाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- - अव्ययमिदम्।
- विदधाति - वि उपसर्गपूर्वकस्य डुधाञ् धारणपोषणयोः इति धातोः सकर्मकस्य कर्तरीप्रयोगस्य परस्मैपदिनः वर्तमानकालस्य लट् लकारस्य प्रथमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- नरः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य नर शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- पितृणाम् - ऋकारान्तपुल्लिङ्गस्य पितृशब्दस्य षष्ठीविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।

अन्वयः (संस्कृतवाक्यरचनापद्धतिः)

भुवि भगीरथयत्नलब्धैः गङ्गाजलैः नरः पितृणां तर्पणं विदधाति किं न। तथा हि अहमपि वाल्मीकिगीतरघुपुङ्गवकीर्तिलेशैः अधुना कथमपि बुधानां तृप्तिं करोमि ।
हिंदी में अनुवाद और विवरण:

- भुवि - भूलोक में
- भगीरथ - महाराज भगीरथ के
- यत्न - प्रयत्न से
- लब्धैः - पाई गयी
- गङ्गा - गंगानदी के
- जलैः - जल से
- नरः - भगीरथमहर्षी ने
- पितृणाम् - अपने पूर्वजों को
- तर्पणम् - तर्पण
- विदधाति किं न - किया है ना...?
- तथा हि - वैसे ही
- अहमपि - मैं भी
- वाल्मीकि - वाल्मीकि महर्षी जी की
- गीत - छंदों से युक्त गीत जो
- रघु - रघुवंश में
- पुङ्गव - श्रेष्ठ भगवान श्रीराम जी की
- कीर्ति - कीर्ति की
- लेशैः - लेश या कम मात्र से
- अधुना - अब
- कथमपि - किसी भी तरह से
- बुधानाम् - ज्ञानिजनों का
- तृप्तिम् - तृप्ति
- करोमि - करता हूँ

विवरण:

55 वर्षों, 7 महीनों, और 3 दिनों तक दक्षिणापथ की प्रसिद्ध धारानगरी में शासन करने वाले, 64 विद्याओं में निपुण, महाकवि, कवियों और कलाओं के संरक्षक, महाराजाधिराज श्री भोजराज द्वारा रचित चम्पूरामायण ग्रंथ के बालकाण्ड का यह चौथा श्लोक है।

अपने इष्टदेवताओं की प्रार्थना के बाद, कवि इस श्लोक में अपने ग्रंथ से ज्ञानियों की ज्ञानतृष्णा को तृप्त करने की प्रक्रिया का वर्णन कर रहे हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण, जिसमें भगवान श्रीराम जी के गुणों का महासागर छिपा हुआ है, से कुछ चयनित अंशों के माध्यम से ज्ञानियों की तृष्णा को तृप्त किया जाएगा। कवि इस कार्य के लिए एक दृष्टान्त प्रस्तुत करते हैं: जैसे प्राचीन काल में महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों को कपिलमहर्षि के शाप से मुक्त करने के लिए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर प्रवाहित किया, वैसे ही कवि वाल्मीकि की रामायण से ज्ञानियों को तृप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, जो ज्ञान का गंगाजल समान है।

यह श्लोक वसन्ततिलका छंद में लिखा गया है और दृष्टान्तालंकार (उदाहरण) से सजाया गया है, जो पाठकों को एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। दृष्टान्त के साथ ही, कवि भगवान श्रीराम के पूर्वजों की महानता का भी वर्णन करते हैं।

Explanation:

This is the 4th verse of the first canto of Champoo Ramayanam, written by King Bhoja, a renowned 11th-century poet and ruler of Dharanagar. King Bhoja, well-versed in 64 fields of education and a patron of poets, scholars, and artists, ruled for 55 years, 7 months, and 3 days, over a realm extending from Gouda country to the southern regions of India.

In this verse, the poet articulates his purpose with wisdom. After paying a beautiful tribute to his favorite deity, he explains the significance of his work. He compares his endeavor to the vast ocean of Valmiki's Ramayanam, which describes Lord Rama’s virtues in immense detail. The poet intends to distill and convey the essence of Lord Rama’s qualities from this epic, aiming to quench the thirst of those seeking to understand Rama's virtues.

To illustrate his goal, the poet draws an analogy with the ancient King Bhageeratha, who renounced his kingdom to perform penance and bring the river Ganges from heaven to earth. Bhageeratha’s aim was to liberate his ancestors cursed by sage Kapila. Similarly, the poet seeks to liberate the minds of scholars by sharing the profound knowledge of Lord Rama, likened to the Ganges, drawn from the vast ocean of the Ramayanam.

The verse is composed in the Vasantatilaka metre and employs the Drushtaanta alankara (figure of speech), incorporating Bimba-pratibimba bhaava (reflection and its mirror). Through this stylistic device, the poet also highlights the ancestral greatness of the Raghu lineage.

ॐ नमो भगवते हयाननाय

© Sanjeev GN  #Subhashitam
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

तृणानि नोन्मूलयति प्रभञ्जनो
मृदूनि नीचैः प्रणतानि सर्वशः ।।
समुच्छ्रितानेव तरून् प्रबाधते
महान् महत्येव करोति विक्रमम् ।। 331/084

अर्थः:

तूफान कभी भी कम ऊंचाई वाले झुके हुए तथा कोमल तृण या घास को मूलसहित नहीं उखाड़ता है, लेकिन मजबूती से खड़े हुए पेड़ों को उखाड़ता है। महान लोग अपने पराक्रम को महान लोगों के साथ ही दिखाते हैं।

MEANING:

A storm does not uproot soft, bent, and small grass but uproots the sturdy and tall trees. Similarly, powerful people display their valor only against those who are equally powerful.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
चाणक्य नीति⚔️
✒️ दशमः अध्याय

♦️श्लोक:-१३

विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं सन्ध्या, वेदाः पत्रम शास्त्रा धर्मकर्माणि।
तस्मान्मूलं यत्नतो रक्षणीयं, छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ॥१३॥

♦️भावार्थ--ब्राह्मण वृक्ष है और सन्ध्या उपासना (प्रातः, दोपहर एवं सायं अर्थात् सन्धि कालों में की जाने वाली ईश्वर की आराधना) उस वृक्ष की जड़ है, चारों वेद उस वृक्ष की शाखाएँ हैं, धर्म-कर्म उसके पत्ते हैं, इसलिए मूल की प्रयत्नपूर्वक एवं सावधानी से रक्षा करनी चाहिए क्योंकि मूल के नष्ट हो जाने पर न शाखा ही रहेगी और न ही पत्ते शेष रहेंगे।

#chanakya
श्लोक:

रविनिशाकरयोर्ग्रहपीडनं
गजभुजङ्गविगङ्गमबन्धनम् ।।
मतिमतां च निरीक्ष्य दरिद्रतां
विधिरहो बलवानिति मे मतिः ।।

अर्थ:

सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहण के कष्ट, हाथी, सर्प, और पक्षियों की पकड़ और पंडितों की दरिद्रता को देखकर मेरी बुद्धि का यह निष्कर्ष है कि विधि अत्यंत बलशाली है।

व्याख्या:

इस श्लोक में कवि श्रीविष्णुशर्मा ने विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक और जीवजन्तु संबंधी बाधाओं का उल्लेख करते हुए विधि की ताकतवरता का संकेत किया है। सूर्य-चन्द्रमा का ग्रहण, हाथियों, सर्पों, और पक्षियों का बंधन, और पंडितों की गरीबी को देखकर यह साफ होता है कि विधि यानी किस्मत कितनी बलवान है। इन सभी कठिनाइयों और बाधाओं को नियंत्रित करने वाली विधि की शक्ति को कवि ने आदरपूर्वक स्वीकार किया है।

अनुवाद:

O poet, seeing the suffering caused by the eclipse of the Sun and Moon, the captivity of elephants, snakes, and birds, and the poverty of scholars, my mind concludes that fate is indeed very powerful.

स्रोत: पञ्चतन्त्र, 2/22
कवि: श्रीविष्णुशर्मा

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।

🍃गतेष्वथ द्विजाय्येषु मन्त्रिणस्तानराधिपः।
विसर्जयित्वा स्वं वेश्म प्रविवेश महाद्युतिः॥२१॥

👉🏻🚩इति द्वादशः सर्गः

⚜️ब्राह्मणों के चले जाने पर,महाद्युतिमान महाराज ने मंत्रियों की विदा किया और स्वैम भी अन्तःपुर में चले गये॥२१॥

#Ramayan
📙ऋग्वेद

सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०९ देवता-अश्विनीकुमार आदि

🍃अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप. त्वष्टारं सोमपीतये.. (९)

⚜️हे अग्नि देव! देवों की कामना करने वाली पत्नियों को इस यज्ञ में ले आओ. तुम सोमपान करने के लिए त्वष्टा को यहां ले आओ. (९)

#Rgveda
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah pinned «क्या आपको नित्य वेदाध्ययन और वाल्मीकि रामायण के अंश अच्छे लगते हैं?»
*सम्पूर्ण वैदिक साहित्य की प्लेलिस्ट*👇💯
*https://www.youtube.com/playlist?list=PLIqxYcwxMIS46Ypj8sjbDfzWT68mHm6rR*

*चारों वेदों का अद्भुत तरीके से विवेचन - https://youtu.be/ci2Hg4Je1e4* 🙏🌹

*सभी वेदों के शिक्षाग्रंथ - https://youtu.be/hZbSbHhgfnU* 🙏🌹

*सभी वेदों के कल्पसूत्र- https://youtu.be/iTWZpbgBtXs* 🙏🌹

*वेदों के भाष्यकार (अद्भुत वीडियो/ अद्भुत तरीका) - https://youtu.be/tVvfdwocbUI* 🙏🌹

*वैदिक छन्द-- (७३ code) ( गायत्री,उष्णिक्,बृहती,पंक्ति,त्रिष्टुप्,जगती,अतिजगती,शक्वरी आदि सभी-----* 🙏🌹
*निचृद्गायत्री,विराटगायत्री,स्वराट् आदि---https://youtu.be/BZ0SpcaR6Vs* 🙏🌹

*वैदिक देवता ( बिल्कुल सबसे नया तरीका) अद्भुत वीडियो ---https://youtu.be/DuH8i-eY5Rg* 🙏🌹
🛑MUST VOTE🛑
Through Which Language You want to learn Samskrt.
आप किस भाषा के माध्यम से संस्कृत सीखना चाहते हैं?
Final Results
40%
हिंदी
27%
English
20%
Other (Comment)
13%
I know संस्कृत
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah pinned «🛑MUST VOTE🛑
Through Which Language You want to learn Samskrt.
आप किस भाषा के माध्यम से संस्कृत सीखना चाहते हैं?
»
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

🔥बालकाण्ड:🔥
।।त्रयोदशः सर्गः।।

🍃पुनः प्प्ते बसन्ते तु पूर्णः संत्रत्सरोऽभवत्।
प्रसवार्थ गतो यप्टुं हुयमेधेन बीर्यवान् ॥१॥

⚜️एक वर्ष वाद पुनः वसन्त ऋतु आने पर, पुत्र प्राप्ति के लिये प्रतापी महाराज ने यज्ञ करने की इच्छा की॥१।।

🍃अभिवाय वसिष्ठं च न्यायतः मतिपूज्य च।।
अव्रचीत्मश्रितं वाक्यं प्रसवार्थ द्विजोत्तम्॥२॥

⚜️वशिष्ठ जी को प्रणाम कर और उनका यथाविधि पूजन कर पुत्रप्राप्ति के लिये नम्रता पूर्वक उनसे महाराज दशरथ बोले॥२॥

#Ramayan
सूक्त-२२, प्रथम मंडल ,
मंत्र-१० देवता-अश्विनीकुमार आदि

🍃आ ग्ना अग्न इहावसे होत्रां यविष्ठ भारतीम्. वरूत्री धिषणां वह.. (१०)

⚜️हे अग्नि! हमारी रक्षा के लिए देवपत्नियों को यहां ले आओ. हे अत्यंत युवा अग्नि! हमें ऐसी वाणी दो, जिससे हम देवों को बुला सकें एवं निष्ठापूर्वक सत्य भाषण कर सकें. (१०)

#Rgveda