Forwarded from पुरुषोत्तमः॥ Purushothaman AJ (Bharatam).
हरिःॐ। भानुवासर-सुप्रभातम्।
आकाशवाण्या अद्यतनप्रातःकालवार्ताः।
जयतु संस्कृतम्॥
आकाशवाण्या अद्यतनप्रातःकालवार्ताः।
जयतु संस्कृतम्॥
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। एकादशः सर्गः ।।
🍃 ततः प्रमुदिताः सर्वे दृष्ट्वा तं नागरा द्विजम् ।
प्रवेश्यमानं सत्कृत्य नरेन्द्रणेन्द्रकर्मणा ।।२७।।
⚜️ ऋषि श्रृंग का धूमधाम से नगर में इन्द्र समान पराक्रमी महाराज दशरथ द्वारा आगत स्वागत हुआ देख, समस्त पुरवासी बहुत प्रसन्न हुए ॥२७॥
🍃 अन्तःपुरं प्रवेश्यनं पूजां कृत्वा च शास्त्रतः।
कृतकृत्यं तदात्मानं मेने तस्योपवाहनात्॥२८॥
⚜️ अन्तःपुर में उनके (ऋष्यशृङ्ग के ) जाने पर वहाँ भी शास्त्र विधि के अनुसार उनका पूजन किया गया और महाराज ने मुनि प्रवर के आगमन से अपने को कृतकृत्य माना ॥२८॥
#ramayan
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। एकादशः सर्गः ।।
🍃 ततः प्रमुदिताः सर्वे दृष्ट्वा तं नागरा द्विजम् ।
प्रवेश्यमानं सत्कृत्य नरेन्द्रणेन्द्रकर्मणा ।।२७।।
⚜️ ऋषि श्रृंग का धूमधाम से नगर में इन्द्र समान पराक्रमी महाराज दशरथ द्वारा आगत स्वागत हुआ देख, समस्त पुरवासी बहुत प्रसन्न हुए ॥२७॥
🍃 अन्तःपुरं प्रवेश्यनं पूजां कृत्वा च शास्त्रतः।
कृतकृत्यं तदात्मानं मेने तस्योपवाहनात्॥२८॥
⚜️ अन्तःपुर में उनके (ऋष्यशृङ्ग के ) जाने पर वहाँ भी शास्त्र विधि के अनुसार उनका पूजन किया गया और महाराज ने मुनि प्रवर के आगमन से अपने को कृतकृत्य माना ॥२८॥
#ramayan
📙 ऋग्वेद
सूक्त - २१ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०३, देवता - इन्द्र और अग्नि
👍 ता मित्रस्य प्रशस्तय इन्द्राग्नी ता हवामहे, सोमपा सोमपीतये.. (३)
⚜️ हम मित्र देव की प्रशंसा के लिए इंद्र और अग्नि को इस यज्ञ में बुला रहे हैं। वे दोनों सोमरस पीने वाले हैं। हम उन्हीं दोनों को सोमरस पीने के लिए बुला रहे हैं। (३)
#rgveda
सूक्त - २१ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०३, देवता - इन्द्र और अग्नि
👍 ता मित्रस्य प्रशस्तय इन्द्राग्नी ता हवामहे, सोमपा सोमपीतये.. (३)
⚜️ हम मित्र देव की प्रशंसा के लिए इंद्र और अग्नि को इस यज्ञ में बुला रहे हैं। वे दोनों सोमरस पीने वाले हैं। हम उन्हीं दोनों को सोमरस पीने के लिए बुला रहे हैं। (३)
#rgveda
✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️ दशमः अध्याय
♦️श्लोक :- २
दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।
शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनःपूतं समाचरेत् ॥२॥
♦️भावार्थ - आँखों से अच्छी तरह देखकर धरती पर पैर रखें, कपड़े से छानकर पानी पिएँ, शास्त्र से शुद्ध करके अर्थात् शास्त्र-सम्मत वाक्य ही बोलें और मन में सोच-विचारकर जो पवित्र काम हो, उसे ही भली प्रकार से करें।
#chanakya
✒️ दशमः अध्याय
♦️श्लोक :- २
दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिवेत्।
शास्त्रपूतं वदेद् वाक्यं मनःपूतं समाचरेत् ॥२॥
♦️भावार्थ - आँखों से अच्छी तरह देखकर धरती पर पैर रखें, कपड़े से छानकर पानी पिएँ, शास्त्र से शुद्ध करके अर्थात् शास्त्र-सम्मत वाक्य ही बोलें और मन में सोच-विचारकर जो पवित्र काम हो, उसे ही भली प्रकार से करें।
#chanakya
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। एकादशः सर्गः ।।
🍃 अन्तःपुराणि सर्वाणि शान्तां दृष्ट्वा तथागताम्।
सह भतत्रा विशालाक्षी प्रीत्यानन्दस्नुपागमन्॥२९॥
⚜️ ऋषिप्रवर के साथ उनकी पत्नी बड़े बड़े नेत्र वाली शान्ता को पायी देख, अन्तःपुरवासिनी सब रानियों ने बड़ा आनन्द मनाया॥२९॥
🍃 पूज्यामाना च ताभिः सा राज्ञा चैव विशेषतः।
उवास तत्र सुखिता कचित्कालं सहर्त्विजा॥३०॥
👉 🚩इति एकादशः सर्गः
⚜️ रानियों और विशेष कर महाराज दशरथ द्वारा पूजे जाकर शान्ता, अपने पति ऋषि श्रृंग सहित रनवास में कुछ दिनों तक सुख से रहे॥३०॥
#ramayan
।। एकादशः सर्गः ।।
🍃 अन्तःपुराणि सर्वाणि शान्तां दृष्ट्वा तथागताम्।
सह भतत्रा विशालाक्षी प्रीत्यानन्दस्नुपागमन्॥२९॥
⚜️ ऋषिप्रवर के साथ उनकी पत्नी बड़े बड़े नेत्र वाली शान्ता को पायी देख, अन्तःपुरवासिनी सब रानियों ने बड़ा आनन्द मनाया॥२९॥
🍃 पूज्यामाना च ताभिः सा राज्ञा चैव विशेषतः।
उवास तत्र सुखिता कचित्कालं सहर्त्विजा॥३०॥
👉 🚩इति एकादशः सर्गः
⚜️ रानियों और विशेष कर महाराज दशरथ द्वारा पूजे जाकर शान्ता, अपने पति ऋषि श्रृंग सहित रनवास में कुछ दिनों तक सुख से रहे॥३०॥
#ramayan
📙 ऋग्वेद
सूक्त - २१ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०४, देवता - इन्द्र और अग्नि
🍃 उग्रा सन्ता हवामह उपेदं सवनं सुतम् इन्द्राग्नी एह गच्छताम्.. (४)
⚜️ हम शत्रुनाशन में क्रूर उन्हीं दोनों को इस सोमरसपूर्ण यज्ञ में बुला रहे हैं। वे इंद्र और अग्नि इस यज्ञ में आवें (४)
#rgveda
सूक्त - २१ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०४, देवता - इन्द्र और अग्नि
🍃 उग्रा सन्ता हवामह उपेदं सवनं सुतम् इन्द्राग्नी एह गच्छताम्.. (४)
⚜️ हम शत्रुनाशन में क्रूर उन्हीं दोनों को इस सोमरसपूर्ण यज्ञ में बुला रहे हैं। वे इंद्र और अग्नि इस यज्ञ में आवें (४)
#rgveda
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
⛅ 🚩तिथि - नवमी शाम 04:47 तक तत्पश्चात दशमी
⛅ दिनांक - 07 मार्च 2021
⛅ दिन - रविवार
⛅ विक्रम संवत - 2077
⛅ शक संवत - 1942
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - फाल्गुन
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - मूल रात्रि 08:59 तक तत्पश्चात पूर्वाषाढा
⛅ योग - सिद्धि शाम 03:52 तक तत्पश्चात व्यतिपात
⛅ राहुकाल - शाम 05:16 से शाम 06:45 तक
⛅ सूर्योदय - 06:55
⛅ सूर्यास्त - 18:44
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
⛅ व्रत पर्व विवरण - समर्थ रामदासजी नवमी
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
⛅ 🚩तिथि - नवमी शाम 04:47 तक तत्पश्चात दशमी
⛅ दिनांक - 07 मार्च 2021
⛅ दिन - रविवार
⛅ विक्रम संवत - 2077
⛅ शक संवत - 1942
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - फाल्गुन
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - मूल रात्रि 08:59 तक तत्पश्चात पूर्वाषाढा
⛅ योग - सिद्धि शाम 03:52 तक तत्पश्चात व्यतिपात
⛅ राहुकाल - शाम 05:16 से शाम 06:45 तक
⛅ सूर्योदय - 06:55
⛅ सूर्यास्त - 18:44
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
⛅ व्रत पर्व विवरण - समर्थ रामदासजी नवमी
हितोपदेशः - HITOPADESHAH
बन्धुस्त्रीभृत्यवर्गस्य
बुद्धेः सत्त्वस्य चात्मनः ।।
आपन्निकषपाषाणे
नरो जानाति सारताम् ।। 324/077
अर्थः:
मनुष्य अपने बंधु, अपनी स्त्री, अपने सेवक, अपनी बुद्धि, अपना बल और आत्मा की सारता को संकट के समय ही जान पाता है। अर्थात् संकट आने पर ही इन चीजों की वास्तविक शक्ति का पता चलता है।
MEANING:
A person realizes the worth of his relatives, wife, servants, wisdom, strength, and soul only during a crisis.
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
बन्धुस्त्रीभृत्यवर्गस्य
बुद्धेः सत्त्वस्य चात्मनः ।।
आपन्निकषपाषाणे
नरो जानाति सारताम् ।। 324/077
अर्थः:
मनुष्य अपने बंधु, अपनी स्त्री, अपने सेवक, अपनी बुद्धि, अपना बल और आत्मा की सारता को संकट के समय ही जान पाता है। अर्थात् संकट आने पर ही इन चीजों की वास्तविक शक्ति का पता चलता है।
MEANING:
A person realizes the worth of his relatives, wife, servants, wisdom, strength, and soul only during a crisis.
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
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📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम
🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।
🍃ऋश्यभृङ्गपुरोगाश्च मत्यूचुतंपति तदा।
संभाराः संभ्रियन्तां ने तुरगश्च विमुच्यताम्।।११॥
⚜️ऋषि श्रृंग आदि ब्राह्मण दशरथ से कहने लगे कि, आप अब यज्ञ करने के लिये सब सामान एकत्र करवाइये और यज्ञ का घोड़ा वाड़िये॥११॥
🍃सर्वथा प्राप्स्यसे पुत्रांशतुरोऽमितविक्रमान्।
यस्य ते धार्मिकी शुद्धिरियं पुत्रार्थमागता॥१२॥
⚜️जब आपकी बुद्धि पुत्र प्राप्ति के लिये ऐसी धर्ममयी हो रही है, तब निश्चय ही आपके अमित पराक्रमी चार पुत्र उत्पन्न होंगे॥१२॥
#ramayan
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम
🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।
🍃ऋश्यभृङ्गपुरोगाश्च मत्यूचुतंपति तदा।
संभाराः संभ्रियन्तां ने तुरगश्च विमुच्यताम्।।११॥
⚜️ऋषि श्रृंग आदि ब्राह्मण दशरथ से कहने लगे कि, आप अब यज्ञ करने के लिये सब सामान एकत्र करवाइये और यज्ञ का घोड़ा वाड़िये॥११॥
🍃सर्वथा प्राप्स्यसे पुत्रांशतुरोऽमितविक्रमान्।
यस्य ते धार्मिकी शुद्धिरियं पुत्रार्थमागता॥१२॥
⚜️जब आपकी बुद्धि पुत्र प्राप्ति के लिये ऐसी धर्ममयी हो रही है, तब निश्चय ही आपके अमित पराक्रमी चार पुत्र उत्पन्न होंगे॥१२॥
#ramayan
📚आओ वेद पढें
📙ऋग्वेद
सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०४, देवता-अश्विनीकुमार आदि
🍃नहि वामस्ति दूरके यत्रा रथेन गच्छथः अश्विना सोमिनो गृहम्.. (४)
⚜️हे अश्विनीकुमारो! तुम अपने रथ में बैठकर सोमरस पीने के लिए यजमान के जिस घर की दिशा में जा रहे हो, वह घर दूर नहीं है. (४)
#rgveda
📙ऋग्वेद
सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०४, देवता-अश्विनीकुमार आदि
🍃नहि वामस्ति दूरके यत्रा रथेन गच्छथः अश्विना सोमिनो गृहम्.. (४)
⚜️हे अश्विनीकुमारो! तुम अपने रथ में बैठकर सोमरस पीने के लिए यजमान के जिस घर की दिशा में जा रहे हो, वह घर दूर नहीं है. (४)
#rgveda
धर्म-
🌷 धर्म से ही धन, सुख तथा सब कुछ प्राप्त होता है । इस संसार में धर्म ही सार वस्तु है ।
सत्य - सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः ।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥
🌷 सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भवविभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
उत्साह-
🌷 उत्साह बड़ा बलवान होता है; उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है । उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।
क्रोध -
🌷 क्रोध की दशा में मनुष्य को कहने और न कहने योग्य बातों का विवेक नहीं रहता । क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कह सकता है और कुछ भी बक सकता है । उसके लिए कुछ भी अकार्य और अवाच्य नहीं है ।
#Subhashitam
धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम्।
धर्मण लभते सर्वं धर्मप्रसारमिदं जगत् ॥
🌷 धर्म से ही धन, सुख तथा सब कुछ प्राप्त होता है । इस संसार में धर्म ही सार वस्तु है ।
सत्य - सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः ।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥
🌷 सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भवविभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
उत्साह-
उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम् ।
सोत्साहस्य हि लोकेषु न किञ्चदपि दुर्लभम् ॥
🌷 उत्साह बड़ा बलवान होता है; उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है । उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।
क्रोध -
वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित् ।
नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नवाच्यं विद्यते क्वचित् ॥
🌷 क्रोध की दशा में मनुष्य को कहने और न कहने योग्य बातों का विवेक नहीं रहता । क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कह सकता है और कुछ भी बक सकता है । उसके लिए कुछ भी अकार्य और अवाच्य नहीं है ।
#Subhashitam
हितोपदेशः - HITOPADESHAH
यस्य प्रसादे पद्मास्ते
विजयश्च पराक्रमे ।।
मृत्युश्च वसति क्रोधे
सर्वतेजोमयो हि सः ।। 325/078
अर्थः:
जिसके प्रसन्नता में लक्ष्मी निवास करती हैं, जिसकी वीरता में विजय रहती है, और जिसका क्रोध मृत्यु का कारण बनता है, वह राजा सब से तेजस्वी होता है।
MEANING:
The king is the most radiant when his favor brings wealth, his valor brings victory, and his anger brings death.
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
यस्य प्रसादे पद्मास्ते
विजयश्च पराक्रमे ।।
मृत्युश्च वसति क्रोधे
सर्वतेजोमयो हि सः ।। 325/078
अर्थः:
जिसके प्रसन्नता में लक्ष्मी निवास करती हैं, जिसकी वीरता में विजय रहती है, और जिसका क्रोध मृत्यु का कारण बनता है, वह राजा सब से तेजस्वी होता है।
MEANING:
The king is the most radiant when his favor brings wealth, his valor brings victory, and his anger brings death.
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
*न्यायार्जितस्य द्रव्यस्य*
*बोद्धव्यौ द्वावति क्रमौ l*
*अपात्रे प्रतिपत्तिश्च*
*पात्रे चाप्रतिपादनम् ll*
भावार्थ - *न्याय और परिश्रम से अर्जित किये गये धन के ये दो दुरुपयोग कहे गए हैं - पहला "कुपात्र" को दान देना और दूसरा "सुपात्र" को आवश्यकता पड़ने पर भी दान न देना l*
🙏🌹#Subhashitam 🌹🙏
*बोद्धव्यौ द्वावति क्रमौ l*
*अपात्रे प्रतिपत्तिश्च*
*पात्रे चाप्रतिपादनम् ll*
भावार्थ - *न्याय और परिश्रम से अर्जित किये गये धन के ये दो दुरुपयोग कहे गए हैं - पहला "कुपात्र" को दान देना और दूसरा "सुपात्र" को आवश्यकता पड़ने पर भी दान न देना l*
🙏🌹#Subhashitam 🌹🙏
✊चाणक्य नीति⚔️
✒️ दशमः अध्याय
♦️श्लोक:-१०
दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत् ॥१०॥
♦️भावर्थ--दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बनाने के लिए भूमि पर निश्चय ही कोई उपाय नहीं है, जैसे मल त्याग करने वाली इन्द्रिय (गुदा) को सौ प्रकार से धोने पर भी वह श्रेष्ठ इन्द्रिय नहीं बनती।
#chanakya
✒️ दशमः अध्याय
♦️श्लोक:-१०
दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत् ॥१०॥
♦️भावर्थ--दुष्ट व्यक्ति को सज्जन बनाने के लिए भूमि पर निश्चय ही कोई उपाय नहीं है, जैसे मल त्याग करने वाली इन्द्रिय (गुदा) को सौ प्रकार से धोने पर भी वह श्रेष्ठ इन्द्रिय नहीं बनती।
#chanakya
📒📒📒📒📒📒📒📒📒
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम
🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।
🍃सर्वाश्रोत्तरे तीरे यज्ञभूमिर्विधीयताम्।
शान्तयश्चापि बर्तन्तां यथाकल्पं यथाविधि ॥१५॥
⚜️सरयू के उत्तर तट पर यज्ञशाला बनवाई जाय और विघ्न प्रश्नार्थ शास्त्रा नुमादित यथाक्रम शान्ति कर्म करवाया जायँ॥१५॥
🍃शक्यः कर्तुमयं यज्ञः सर्वेणापि महीक्षिता।
नापराधा भवेत्कष्टो यद्यस्मिन्क्रतुसत्तमे ॥१६॥
⚜️यह यज्ञ कर तो सभी राजा सकते हैं, किन्तु इस उत्कृष्ट यज्ञ कार्य में किसी प्रकार का अपचार या किसी को कष्ट न होना चाहिये ॥ १६ ॥
#Ramayan
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम
🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।
🍃सर्वाश्रोत्तरे तीरे यज्ञभूमिर्विधीयताम्।
शान्तयश्चापि बर्तन्तां यथाकल्पं यथाविधि ॥१५॥
⚜️सरयू के उत्तर तट पर यज्ञशाला बनवाई जाय और विघ्न प्रश्नार्थ शास्त्रा नुमादित यथाक्रम शान्ति कर्म करवाया जायँ॥१५॥
🍃शक्यः कर्तुमयं यज्ञः सर्वेणापि महीक्षिता।
नापराधा भवेत्कष्टो यद्यस्मिन्क्रतुसत्तमे ॥१६॥
⚜️यह यज्ञ कर तो सभी राजा सकते हैं, किन्तु इस उत्कृष्ट यज्ञ कार्य में किसी प्रकार का अपचार या किसी को कष्ट न होना चाहिये ॥ १६ ॥
#Ramayan
📚आओ वेद पढें
📙ऋग्वेद
सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०६ देवता-अश्विनीकुमार आदि
🍃अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि. तस्य व्रतान्युश्मसि.. (६)
⚜️सूर्य जल को सुखा देता है. अपनी रक्षा के लिए उस सूर्य की स्तुति करो. हम सूर्य के लिए यज्ञ करना चाहते हैं. (६)
#Rgveda
📙ऋग्वेद
सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०६ देवता-अश्विनीकुमार आदि
🍃अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि. तस्य व्रतान्युश्मसि.. (६)
⚜️सूर्य जल को सुखा देता है. अपनी रक्षा के लिए उस सूर्य की स्तुति करो. हम सूर्य के लिए यज्ञ करना चाहते हैं. (६)
#Rgveda
हितोपदेशः - HITOPADESHAH
प्रतिवाचमदत्त केशवः
शपमानाय न चेदिभूभुजे ।।
अनुहुंकुरुते घनध्वनिं
न हि गोमायुरुतानि केसरी ।। 330/083
अर्थः:
भगवान श्रीकृष्ण ने निंदा कर रहे चेदिराज्य के राजा शिशुपाल को प्रतिनिंदा नहीं की। अर्थात् श्रीकृष्ण ने उसके कटुवचन का उत्तर नहीं दिया, जैसे सिंह मेघों की गर्जना सुनकर ही गर्जन करता है, सियार की भौंक सुनकर नहीं।
MEANING:
Lord Krishna did not respond to the curses of Shishupala, the king of Chedi, in a derogatory manner. Just as a lion roars in response to the thunder of clouds, not to the cries of jackals, Krishna chose not to retaliate to Shishupala's insults.
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
प्रतिवाचमदत्त केशवः
शपमानाय न चेदिभूभुजे ।।
अनुहुंकुरुते घनध्वनिं
न हि गोमायुरुतानि केसरी ।। 330/083
अर्थः:
भगवान श्रीकृष्ण ने निंदा कर रहे चेदिराज्य के राजा शिशुपाल को प्रतिनिंदा नहीं की। अर्थात् श्रीकृष्ण ने उसके कटुवचन का उत्तर नहीं दिया, जैसे सिंह मेघों की गर्जना सुनकर ही गर्जन करता है, सियार की भौंक सुनकर नहीं।
MEANING:
Lord Krishna did not respond to the curses of Shishupala, the king of Chedi, in a derogatory manner. Just as a lion roars in response to the thunder of clouds, not to the cries of jackals, Krishna chose not to retaliate to Shishupala's insults.
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
📙ऋग्वेद
सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०७ देवता-अश्विनीकुमार आदि
🍃विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः, सवितारं नृचक्षसम्.. (७ )
⚜️सूर्य धन में निवास करते हैं. वे सुवर्ण, रजतादि रूप धन यजमानों में उचित रूप से बांटते हैं. हम मनुष्यों को प्रकाश देने वाले सूर्य का आह्वान करते हैं. (७)
#Rgveda
सूक्त-२२, प्रथम मंडल,
मंत्र-०७ देवता-अश्विनीकुमार आदि
🍃विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः, सवितारं नृचक्षसम्.. (७ )
⚜️सूर्य धन में निवास करते हैं. वे सुवर्ण, रजतादि रूप धन यजमानों में उचित रूप से बांटते हैं. हम मनुष्यों को प्रकाश देने वाले सूर्य का आह्वान करते हैं. (७)
#Rgveda
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📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम
🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।
🍃छिद्रं हि मृगयन्तेऽत्र विद्वासाि व्रह्मराक्षसाः।
विहतस्य हि यज्ञस्य सद्यः कर्ता विनश्यति॥१७॥
⚜️क्योंकि विद्वान् ब्रह्मराक्षस यज्ञकार्यों में छिद्रावेपण किया करते हैं और यज्ञ की विधि में अपचार होने से यज्ञ करने वाला तुरन्त नाश को प्राप्त होता है अर्थात् मर जाता है॥१७॥
तद्यथा विधिपूर्व मे क्रतुरेष समाप्यते।
तथा विधानं क्रियतां समर्थोः करणोष्विह।।१८॥
⚜️अतः अपनी शक्ति भर ऐसा उपाय कीजिए जिससे यह यज्ञ विधि पूर्वक सुसम्पन्न हो॥१८॥
#Ramayan
📚श्रीमद बाल्मीकि रामायणम
🔥बालकाण्ड:🔥
।।द्वादश सर्ग:।।
🍃छिद्रं हि मृगयन्तेऽत्र विद्वासाि व्रह्मराक्षसाः।
विहतस्य हि यज्ञस्य सद्यः कर्ता विनश्यति॥१७॥
⚜️क्योंकि विद्वान् ब्रह्मराक्षस यज्ञकार्यों में छिद्रावेपण किया करते हैं और यज्ञ की विधि में अपचार होने से यज्ञ करने वाला तुरन्त नाश को प्राप्त होता है अर्थात् मर जाता है॥१७॥
तद्यथा विधिपूर्व मे क्रतुरेष समाप्यते।
तथा विधानं क्रियतां समर्थोः करणोष्विह।।१८॥
⚜️अतः अपनी शक्ति भर ऐसा उपाय कीजिए जिससे यह यज्ञ विधि पूर्वक सुसम्पन्न हो॥१८॥
#Ramayan