संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🍃अर्जुन उवाच
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत
।।1.21।।

♦️arjuna uvaacha
hRRiShiikeshaM tadaa vaakyamidamaaha mahiipate|
senayorubhayormadhye rathaM sthaapaya me'chyuta||1.21||

1.21 Arjuna said --
In the middle between the two armies, place my chariot, O krishna, so that I may behold those who stand here desirous to fight, and know with whom I must fight, when the battle is about to commence.

।।1.21।।अर्जुन ने कहा--
हे अच्युत मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य खड़ा कीजिये।

#Geeta
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🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩युगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - अष्टमी दोपहर ०१:०९ तक तत्पश्चात नवमी

⛅️ दिनांक - १४ सितम्बर २०२१
⛅️ दिन - मंगलवार
⛅️ शक संवत -१९४३
⛅️ अयन - दक्षिणायन
⛅️ ऋतु - शरद
⛅️ मास-भाद्रपद
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - जेष्ठा सुबह ०७:०५ तक तत्पश्चात मूल
⛅️ योग - आयुष्मान १५ सितम्बर रात्रि ०३:२५ तक तत्पश्चात सौभाग्य
⛅️ राहुकाल - दोपहर ०३:३८ से शाम ०५:५० तक
⛅️ सर्योदय - ०६:२६
⛅️ सर्यास्त - १८:४१
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

Duration : 30 minutes
Time : 11:00 AM 🕚
Topic :Yoga - The queen of stress relief
Date : 14th September 2021 ; Tuesday

Please Join the voicechat on time.
Please come prepared for a lively chat in Sanskrit on Yoga/prayer/slokas/Music/Food or any self-care techniques to fight out stress, if possible. We are waiting for you.😇
Set a reminder.

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सम्पूर्णकुम्भो न करोति शब्दमर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्।
विद्वान् कुलीनो न करोति गर्वं जल्पन्ति मूढास्तु गुणैर्विहीनाः।।

पूर्णः कुम्भः अधिकं शब्दं न करोति। परन्तु अर्धः घटः बहु शब्दं करोति। एवमेव पण्डिताः ज्ञानिनः जनाः न गर्वम् अहंकारं कुर्वन्ति परन्तु मूढाः अगुणिनः जनाः बहु अधिकं जल्पन्ति बहु अधिकं गर्वं कुर्वन्ति।
इति भावः।
ओ३म्

712. संस्कृत वाक्याभ्यासः

संदिग्धायाम् अवस्थायां सः प्राप्तः ।
= संदिग्ध अवस्था में वह मिला।

रक्षकः तम् अवरोधितवान् ( अवारोधयत् )
= रक्षक ने उसे रोका।

रक्षकः – तिष्ठ …. यानपेटिकाम् उद्घाटय
= रुको …. बैग खोलो।

– किम् अस्ति अन्तः ?
= अन्दर क्या है ?

* अहं न जानामि।
= मैं नहीं जानता हूँ।

रक्षकः – सशङ्कितायाम् अवस्थायाम् अत्र भ्रमति।
= सशंकित अवस्था में यहाँ घूम रहे हो।

– गृहं किमर्थं न गच्छसि त्वम् ?
= तुम घर क्यों नहीं जाते हो ?

– कुत्र निवससि त्वम् ?
= तुम कहाँ रहते हो ?

* रक्षक महोदय ! अहं छात्रः अस्मि।
= रक्षक जी ! मैं तो विद्यार्थी हूँ।

* एकः जनः मम हस्ते यानपेटिकां दत्वा अवदत् ” अह आगच्छामि”
= एक व्यक्ति ने मेरे हाथ में बैग देकर कहा ” मैं आ रहा हूँ”

* अधुना पर्यन्तं सः न आगतवान्।
= वो अभी तक नहीं आया।

* अहं किं करवाणि ?
= मैं क्या करूँ ?

रक्षकः – तव परिचयपत्रं दर्शय ।
= तुम्हारा परिचयपत्र दिखाओ।

* आं पश्यतु , अहम् आदर्श पाठशालायाः छात्रः अस्मि।
= हाँ देखिये , मैं आदर्श पाठशाला का छात्र हूँ।

रक्षकः – त्वं तु सत्यमेव छात्रः असि।
= तुम तो सच में छात्र हो।

– श्रृणु , कोsपि अपरिचितः जनः किमपि ददाति तद् न स्वीकरणीयम् ।
= सुनो , कोई भी अपरिचित व्यक्ति कुछ भी देता है वो नहीं लेना चाहिये ।

– सः किमपि ददाति तद् न खादनीयम्।
= वह कुछ भी दे वो नहीं खाना चाहिये।

– अवगतम् ?
= समझ में आ गया ?

* आम् अवगतम् ।
= हाँ समझ में आ गया।

ओ३म्

713. संस्कृत वाक्याभ्यासः

प्रेरणा सख्या सह आपणं गच्छति।
= प्रेरणा सखी के साथ बाजार जाती है।

प्रेरणायाः सखी श्रृङ्गारापणे श्रृङ्गारसाधनानि पश्यति।
= प्रेरणा की सखी श्रृंगार की दूकान में श्रृंगार साधन देखती है।

सा सुवासकं क्रीणाति।
= वह पॉवडर खरीदती है

सा सखी ओष्ठरागं पश्यति
= वो सखी लिपिस्टिक देखती है।

आपणे अनेकाः महिलाः युवत्यः च आसन् ।
= दूकान में अनेक महिलाएँ और युवतियाँ थीं।

सर्वाः महिलाः युवत्यः प्रेरणां जानन्ति।
= सभी महिलाएँ युवतियाँ प्रेरणा को जानती हैं।

प्रेरणा अपि सर्वैः सह प्रेम्णा मिलति।
= प्रेरणा भी सबके साथ प्रेम से मिलती है।

प्रेरणायाः सखी श्रृङ्गारप्रसाधनानि क्रीत्वा आपणात् बहिः आगच्छति।
= प्रेरणा की सखी श्रृंगार प्रसाधन खरीद कर दूकान से बाहर आती है।

तदा जनाः प्रेरणां वन्दन्ते।
= तब लोग प्रेरणा को वन्दन करते हैं।

प्रेरणायाः सखी पृच्छति…..
= प्रेरणा की सहेली पूछती है ….

त्वं श्रृङ्गारं न करोति तथापि भवती जनेभ्यः रोचते।
= तुम श्रृंगार नहीं करती हो फिर भी लोगों को तुम अच्छी लगती हो।

प्रेरणा हसित्वा अग्रे वर्धते।
= प्रेरणा हँसते हुए आगे बढ़ जाती है।

ओ३म्

714. संस्कृत वाक्याभ्यासः

यदा कोsपि जायते…..
= जब कोई पैदा होता है

तदा सः भाषां न जानाति।
= तब वह भाषा नहीं जानता है।

मातुः अङ्के उपविश्य बालकः भाषां श्रृणोति।
= माँ की गोदी में बैठकर बालक भाषा सुनता है।

माता यद् वदति तद् सः श्रृणोति।
= माँ जो बोलती है वही वह सुनता है।

माता यथा वदति तथैव सः श्रृणोति।
= माँ जैसे बोलती है वही वैसा ही सुनता है।

यदा बालकः सम्भाषणम् आरभते तदा सः मातृभाषायाः अनुकरणं करोति।
= जब बालक बोलना शुरू करता है तब वह मातृभाषा का अनुकरण करता है।

आजीवनं सर्वेभ्यः मातृभाषा रोचते एव।
= आजीवन सबको मातृभाषा पसन्द आती है।

कोsपि मातृभाषां न त्यजति।
= कोई भी मातृभाषा नहीं छोड़ता है।

अस्माकं पूर्वजानां मातृभाषा संस्कृतम् आसीत्।
= हमारे पूर्वजों की मातृभाषा संस्कृत थी।

अतएव सर्वेषां प्रथमा मातृभाषा संस्कृतमेव अस्ति।
= अतः सबकी पहली मातृभाषा संस्कृत ही है।

अद्य मातृभाषादिनम् अस्ति।
= आज मातृभाषा दिन है।

आगच्छन्तु वयम् अद्य संस्कृते एव वदाम।
= आईये आज हम संस्कृत में ही बात करें।

संस्कृत गीतानि गायाम।
= संस्कृत गीत गाएँ।


#vakyabhyas
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
आदिकाल से महिलाओं के वाचाल होने की प्रवृति, और वाक चातुर्य की सारी दुनिया  प्रशंसक रही है। ऐसा ही एक मनोहारी वर्णन इस श्लोक में किया गया है जो बड़ा ही आनंददायक है। भगवान् शिव और माता पार्वती का ये संवाद  मन को गुदगुदाता है कस्त्वं?शूली, मृगय भिषजं, नीलकंठ:…
|| *ॐ* ||
सुभाषितरसास्वादः
प्रहेलिका (२७१ )
श्लोक---
" अंगुल्या कः कपाटं प्रहरति ? "
" अंगुल्या कः कपाटं प्रहरति ? कुटिलो माधवः , किं वसन्तो ?
नो चक्री , किं कुलालो ? न हि धरणीधरः किं द्विजिह्वः फणीन्द्रः ?
नाहं घोराहिमर्दी , त्वमसि खगपतिर्नो हरिः किं कपीन्द्रः ?
इत्येव गोपकन्याप्रतिवचनजितः पातु वश्चक्रपाणिः " ।।
-----------------------------------------------------------------------------
*अर्थ*----
यह प्रहेलिका गोपांगना और श्रीकृष्ण इन दोनों में का मजेदार संवाद है । श्रीकृष्ण गोपीका का द्वार खटखटा रहा है । गोपीका अंदर से पूछतीं है --द्वार कौन खटखटा रहा है ?
श्रीकृष्ण उत्तर देता है --' मैं वह खोडकर माधव '!
गोपी---'क्या वसन्त '?
श्रीकृष्ण--'नही नही वह मैं चक्रधारी '!
गोपी-- ' मतलब कुम्हार क्या ' ?
श्रीकृष्ण---' नही नही मैं धरणीधर हूँ ' !
गोपी-- ' मतलब शेषनाग तो नही ' ?
श्रीकृष्ण--- ' नही नही मैं वह भयंकर सर्प का नाश करने वाला हूँ '!
गोपी--- ' कहीं पक्षीराज गरूड़ तो नही ' ?
श्रीकृष्ण--- ' नही नही मैं हरि हूँ '!
गोपी--- ' मतलब वानरश्रेष्ठ तो नही '?
इस तरह से वह गोपकन्या ने जिसको अपने प्रत्युत्तर से निरुत्तर किया वह चक्रपाणी आप सबकी रक्षा करे !
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*गूढार्थ*---
श्रीकृष्ण ने जो अपने अलग-अलग नाम बताएं जैसे-- माधव , चक्री , धरणीधर , घोराहिमर्दी , हरि इन सब नामों पर सुभाषितकार ने श्लेष साधा है ।
माधव= मधुकुल में जन्मा यादव । और वसन्त ऋतु = मधु--माधव ये दो मांसो में से एक !
चक्री= सुदर्शन चक्र धारण करने वाला । और चक्र घुमाकर मटकी बनाने वाला कुम्हार !
धरणीधर= नृपती । और पृथ्वी का भार पेलनेवाला शेषनाग !
घोराहिमर्दी = कालियामर्दन करने वाला और पक्षिराज गरूड़ !
हरि = श्रीकृष्ण और वानर !
इस तरह से दरवाजे के बाहर से श्रीकृष्ण ने जो --जो अपने विशेष नाम बताये वह सब को गोपकन्या ने भी किसी और को वह विशेषण लगाकर श्रीकृष्ण को निरुत्तर किया ।
ऐसा यह भक्तवत्सल श्रीकृष्ण हरी हमारा रक्षण करे !
श्रीकृष्ण की फजीहत करने वाला यह श्लोक उसका सह्रदयत्व और सुभाषितकार का शब्द ज्ञान प्रकट कर जाता है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
Namaste🙏🙏
Veda shiva
Sanskrit Teacher
ಬೆಂಗಳೂರು - 56

Presents

Samskrita sambhashana Vargah

Free online Samskrira conversational course 15th September 2021.

classes are starts from this month of 15/9/2021 to 30/9/2021 at 7-00 pm to 8-30 pm there is no age limite to participate in the classs ..

To join the meeting on Google Meet, click this link:
https://meet.google.com/iro-obay-qum
Or open Meet and enter this code: iro-obay-qum
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah pinned «Namaste🙏🙏 Veda shiva Sanskrit Teacher ಬೆಂಗಳೂರು - 56 Presents Samskrita sambhashana Vargah Free online Samskrira conversational course 15th September 2021. classes are starts from this month of 15/9/2021 to 30/9/2021 at 7-00 pm to 8-30 pm there…»