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Topic: Abhyasa
Time: This is a regular meeting meet anytime
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Meeting ID: 879 9650 1401
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🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - षष्ठी 30 जुलाई प्रातः 03:54 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅️ दिनांक - 29 जुलाई 2021
⛅️ दिन - गुरुवार
⛅️ शक संवत - 1943
⛅️ अयन - दक्षिणायन
⛅️ ऋतु - वर्षा
⛅️ मास - श्रावण
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद दोपहर 12:03 तक तत्पश्चात रेवती
⛅️ योग - सुकर्मा रात्रि 08:03 तक तत्पश्चात धृति
⛅️ राहुकाल - दोपहर 02:24 से शाम 04:02 तक
⛅️ सर्योदय - 06:12
⛅️ सर्यास्त - 19:17
⛅️ दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - षष्ठी 30 जुलाई प्रातः 03:54 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅️ दिनांक - 29 जुलाई 2021
⛅️ दिन - गुरुवार
⛅️ शक संवत - 1943
⛅️ अयन - दक्षिणायन
⛅️ ऋतु - वर्षा
⛅️ मास - श्रावण
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद दोपहर 12:03 तक तत्पश्चात रेवती
⛅️ योग - सुकर्मा रात्रि 08:03 तक तत्पश्चात धृति
⛅️ राहुकाल - दोपहर 02:24 से शाम 04:02 तक
⛅️ सर्योदय - 06:12
⛅️ सर्यास्त - 19:17
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वार्ता: संस्कृत में समाचार | 29/7/2021
@samskrt_samvadah is starting संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
Type : 15 minutes trial.
Time : 11:00 AM 🕚
Topic : Posts in @samskrt_samvadah
Date : 30th July 2021 ; Friday
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We are waiting for you.😇
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✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️ षोडशः अध्याय
♦️श्लोक :- ११
अतिक्लेशेन ये चार्थाः धर्मस्यातिक्रमेण तु।
शत्रुणां प्रणिपातेन ते ह्यर्थाः न भवन्तु मे ।।११।।
♦️भावार्थ - जो धन अन्यों को हानि तथा पीड़ा पहुँचाकर, धर्म का उल्लंघन करके और शत्रु के सामने झुकने से प्राप्त होता है, ऐसा धन मुझे नही चाहिए।
♦️श्लोक :- १२
किं तया क्रियते लक्षम्या या वधूरिव केवला।
या तु वेश्यैव सामान्यपथिकैरपि भुज्यते।।१२।।
♦️भावार्थ -- उस धन-सम्पत्ति से क्या लाभ है जो घर की वधू के समान एक के उपयोग के लिए है। जो सम्पत्ति वेश्या के समान न केवल नागरिकों बल्कि पथिकों द्वारा भी भोगी जाती है, उसी धन-सम्पत्ति को श्रेष्ठ माना गया है।
♦️श्लोक :- १३
धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मषु।
अतृप्ता प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च।।13।।
♦️भावार्थ - आचार्य चाणक्य कहते हैं, इस संसार में मनुष्य की धन, जीवन, भोजन और स्त्री की चाह कभी ख़त्म नहीं होती। कितने ही प्राणी आये और इस संसार को भोगे लेकिन अतृप्त होकर ही मरे कभी संतुष्ट नहीं हुए।
#chanakya
✒️ षोडशः अध्याय
♦️श्लोक :- ११
अतिक्लेशेन ये चार्थाः धर्मस्यातिक्रमेण तु।
शत्रुणां प्रणिपातेन ते ह्यर्थाः न भवन्तु मे ।।११।।
♦️भावार्थ - जो धन अन्यों को हानि तथा पीड़ा पहुँचाकर, धर्म का उल्लंघन करके और शत्रु के सामने झुकने से प्राप्त होता है, ऐसा धन मुझे नही चाहिए।
♦️श्लोक :- १२
किं तया क्रियते लक्षम्या या वधूरिव केवला।
या तु वेश्यैव सामान्यपथिकैरपि भुज्यते।।१२।।
♦️भावार्थ -- उस धन-सम्पत्ति से क्या लाभ है जो घर की वधू के समान एक के उपयोग के लिए है। जो सम्पत्ति वेश्या के समान न केवल नागरिकों बल्कि पथिकों द्वारा भी भोगी जाती है, उसी धन-सम्पत्ति को श्रेष्ठ माना गया है।
♦️श्लोक :- १३
धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मषु।
अतृप्ता प्राणिनः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च।।13।।
♦️भावार्थ - आचार्य चाणक्य कहते हैं, इस संसार में मनुष्य की धन, जीवन, भोजन और स्त्री की चाह कभी ख़त्म नहीं होती। कितने ही प्राणी आये और इस संसार को भोगे लेकिन अतृप्त होकर ही मरे कभी संतुष्ट नहीं हुए।
#chanakya
ओ३म्
553. संस्कृत वाक्याभ्यासः
बदलूरामस्य नाम भवन्तः न श्रुतवन्तः स्युः।
= बदलूराम का नाम आपने नहीं सुना होगा।
द्वितीयविश्वयुद्धे असमसैन्यदलस्य सैनिकाः ब्रिटिश पक्षतः युद्धयन्ते स्म।
= द्वितीय विश्वयुद्ध में असम रेजिमेंट के सैनिक ब्रिटिश की तरफ से लड़ रहे थे।
जापानस्य सैनिकैः सह युद्धं कुर्वन्तः आसन्।
= जापान के सैनिकों के साथ युद्ध कर रहे थे।
तस्मिन् युद्धे बदलूराम नामकः एकः सैनिकः वीरगतिं प्राप्तवान्।
= उस युद्ध में बदलूराम नाम का एक सैनिक वीरगति को प्राप्त हुआ।
बदलूरामस्य शवं ते भूम्याः अधः निखनितवन्तः।
= बदलूराम का शव उन्होंने भूमि के नीचे दफना दिया।
तथापि ते बदलूरामस्य नाम आवलितः न निष्कासितवन्तः।
= फिर भी उन्होंने बदलूराम का नाम सूचि से नहीं निकाला।
अतएव ब्रिटिशसैनिकाः बदलूरामस्य कृते अपि अन्नं प्रेषयन्ति स्म।
= अतः ब्रिटिश सैनिक बदलूराम के लिये भी राशन भेजते थे।
जापानेन सह युद्धम् अवर्धत।
= जापान के साथ युद्ध बढ़ गया।
अतः अन्नस्य आपूर्तिः न भवति स्म।
= अतः अन्न की आपूर्ति नहीं हो रही थी।
अतएव असमसैनिकाः बदलूरामस्य अन्नं खादित्वा युद्धं कृतवन्तः।
= अतः असम सैनिकों ने बदलूराम का राशन खा कर युद्ध किया।
जापानस्य पराजयः अभवत्।
= जापान की पराजय हुई।
यदा ब्रिटिश जनाः तान् पृष्टवन्तः – ” कुतः अन्नं लभन्ते स्म?”
= जब ब्रिटीशरों ने उनसे पूछा – ” कहाँ से अन्न पाते थे ?
तदा ते सर्वे बदलूरामस्य नाम उक्तवन्तः।
= तब उन सबने बदलूराम का नाम लिया।
बदलूरामस्य सम्पूर्णां वार्ताम् उक्तवन्तः।
= बदलूराम की सारी कहानी कही।
अधुना असमसैनिकानां प्रयाणगीतं बदलूरामस्य नाम्ना अस्ति।
= अब असम सैनिकों का प्रयाणगीत बदलूराम के नाम पर है।
“बदलूरामस्य देहः भूम्याः अधः अस्ति।
वयं तस्मात् कारणात् भोजनं प्राप्नुमः।”
= बदलूराम का बदन जमीन के नीचे है .. हम उसके कारण भोजन को पाते हैं।
तद् गीतं भवन्तः अपि श्रृण्वन्तु।
= वो गीत आप भी सुनिये।
ओ३म्
554. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अधुना = अभी
गच्छामि = जाता हूँ
अधुना अहं नागपुरं गच्छामि।
अभी मैं नागपुर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं भुजं गच्छामि।
अभी मैं भुजं जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं मन्दिरं गच्छामि।
अभी मैं मंदिर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं विद्यालयं गच्छामि।
अभी मैं विद्यालय जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं उद्यानं गच्छामि।
अभी मैं बगीचे में जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं काशीं गच्छामि।
अभी मैं काशी जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं बद्रीनाथं गच्छामि।
अभी मैं बद्रीनाथ जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं न गच्छामि।
अब मैं नहीं जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं गृहं गच्छामि।
अब मैं घर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
रविवार को और कुछ नहीं इतना तो बोलने का अभ्यास करें
ओ३म्
555. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सरोवरे सिंहः जलं पिबति।
= सरोवर में शेर पानी पीता है।
सिंहः लपलप कृत्वा जलं पिबति।
= शेर लपलप करके पानी पीता है।
सिंहः जिह्वया जलं पिबति।
= शेर जीभ से पानी पीता है।
जिह्वां मुखात् बहिः निष्कासयति।
= जीभ को मुँह से बाहर निकालता है।
जिह्वायां जलं गृह्णाति।
= जीभ में पानी लेता है।
यदा जिह्वा मुखस्य अन्तः गच्छति तदा जलमपि मुखस्य अन्तः गच्छति।
= जब जीभ मुँह के अंदर जाती है तब पानी भी मुँह के अंदर जाता है।
जलपानसमये सिंहः अत्र तत्र पश्यति।
= पानी पीते समय शेर यहाँ वहाँ देखता है।
सिंहेन सह तस्य शावकाः अपि सन्ति।
= शेर के साथ उसके बच्चे भी हैं।
सिंहिनी अपि जलम् पातुम् आगच्छति।
= शेरनी भी पानी पीने आती है।
जलं पीत्वा ते वनं प्रति गच्छन्ति।
= पानी पीकर वे वन को जाते हैं।
ओ३म्
556. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सर्वे वाहनस्वामिनः भयभीताः सन्ति।
= सभी वाहन मालिक भयभीत हैं
१) मम पार्श्वे यानचालनस्य अनुज्ञप्तिः नास्ति
= मेरे पास वाहन चलाने का लाइसेंस नहीं है
२) मम पार्श्वे यानस्य पंजीकरण पुस्तकं नास्ति।
= मेरे पास वाहन की आर सी बुक नहीं है
३) मम यानस्य प्रदूषण परीक्षणपत्रं नास्ति।
= मेरे पास पॉल्यूशन जाँच पत्र नहीं है
४) मम यानस्य बीमा नास्ति।
= मेरे वाहन का बीमा नहीं है।
५) मम पार्श्वे शिरस्त्राणं नास्ति।
= मेरे पास हेलमेट नहीं है
ओह , सर्वे अधुना धावन्ति
= ओह , अभी सब दौड़ रहे हैं
#vakyabhyas
553. संस्कृत वाक्याभ्यासः
बदलूरामस्य नाम भवन्तः न श्रुतवन्तः स्युः।
= बदलूराम का नाम आपने नहीं सुना होगा।
द्वितीयविश्वयुद्धे असमसैन्यदलस्य सैनिकाः ब्रिटिश पक्षतः युद्धयन्ते स्म।
= द्वितीय विश्वयुद्ध में असम रेजिमेंट के सैनिक ब्रिटिश की तरफ से लड़ रहे थे।
जापानस्य सैनिकैः सह युद्धं कुर्वन्तः आसन्।
= जापान के सैनिकों के साथ युद्ध कर रहे थे।
तस्मिन् युद्धे बदलूराम नामकः एकः सैनिकः वीरगतिं प्राप्तवान्।
= उस युद्ध में बदलूराम नाम का एक सैनिक वीरगति को प्राप्त हुआ।
बदलूरामस्य शवं ते भूम्याः अधः निखनितवन्तः।
= बदलूराम का शव उन्होंने भूमि के नीचे दफना दिया।
तथापि ते बदलूरामस्य नाम आवलितः न निष्कासितवन्तः।
= फिर भी उन्होंने बदलूराम का नाम सूचि से नहीं निकाला।
अतएव ब्रिटिशसैनिकाः बदलूरामस्य कृते अपि अन्नं प्रेषयन्ति स्म।
= अतः ब्रिटिश सैनिक बदलूराम के लिये भी राशन भेजते थे।
जापानेन सह युद्धम् अवर्धत।
= जापान के साथ युद्ध बढ़ गया।
अतः अन्नस्य आपूर्तिः न भवति स्म।
= अतः अन्न की आपूर्ति नहीं हो रही थी।
अतएव असमसैनिकाः बदलूरामस्य अन्नं खादित्वा युद्धं कृतवन्तः।
= अतः असम सैनिकों ने बदलूराम का राशन खा कर युद्ध किया।
जापानस्य पराजयः अभवत्।
= जापान की पराजय हुई।
यदा ब्रिटिश जनाः तान् पृष्टवन्तः – ” कुतः अन्नं लभन्ते स्म?”
= जब ब्रिटीशरों ने उनसे पूछा – ” कहाँ से अन्न पाते थे ?
तदा ते सर्वे बदलूरामस्य नाम उक्तवन्तः।
= तब उन सबने बदलूराम का नाम लिया।
बदलूरामस्य सम्पूर्णां वार्ताम् उक्तवन्तः।
= बदलूराम की सारी कहानी कही।
अधुना असमसैनिकानां प्रयाणगीतं बदलूरामस्य नाम्ना अस्ति।
= अब असम सैनिकों का प्रयाणगीत बदलूराम के नाम पर है।
“बदलूरामस्य देहः भूम्याः अधः अस्ति।
वयं तस्मात् कारणात् भोजनं प्राप्नुमः।”
= बदलूराम का बदन जमीन के नीचे है .. हम उसके कारण भोजन को पाते हैं।
तद् गीतं भवन्तः अपि श्रृण्वन्तु।
= वो गीत आप भी सुनिये।
ओ३म्
554. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अधुना = अभी
गच्छामि = जाता हूँ
अधुना अहं नागपुरं गच्छामि।
अभी मैं नागपुर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं भुजं गच्छामि।
अभी मैं भुजं जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं मन्दिरं गच्छामि।
अभी मैं मंदिर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं विद्यालयं गच्छामि।
अभी मैं विद्यालय जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं उद्यानं गच्छामि।
अभी मैं बगीचे में जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं काशीं गच्छामि।
अभी मैं काशी जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं बद्रीनाथं गच्छामि।
अभी मैं बद्रीनाथ जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं न गच्छामि।
अब मैं नहीं जाता हूँ / जा रहा हूँ।
अधुना अहं गृहं गच्छामि।
अब मैं घर जाता हूँ / जा रहा हूँ।
रविवार को और कुछ नहीं इतना तो बोलने का अभ्यास करें
ओ३म्
555. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सरोवरे सिंहः जलं पिबति।
= सरोवर में शेर पानी पीता है।
सिंहः लपलप कृत्वा जलं पिबति।
= शेर लपलप करके पानी पीता है।
सिंहः जिह्वया जलं पिबति।
= शेर जीभ से पानी पीता है।
जिह्वां मुखात् बहिः निष्कासयति।
= जीभ को मुँह से बाहर निकालता है।
जिह्वायां जलं गृह्णाति।
= जीभ में पानी लेता है।
यदा जिह्वा मुखस्य अन्तः गच्छति तदा जलमपि मुखस्य अन्तः गच्छति।
= जब जीभ मुँह के अंदर जाती है तब पानी भी मुँह के अंदर जाता है।
जलपानसमये सिंहः अत्र तत्र पश्यति।
= पानी पीते समय शेर यहाँ वहाँ देखता है।
सिंहेन सह तस्य शावकाः अपि सन्ति।
= शेर के साथ उसके बच्चे भी हैं।
सिंहिनी अपि जलम् पातुम् आगच्छति।
= शेरनी भी पानी पीने आती है।
जलं पीत्वा ते वनं प्रति गच्छन्ति।
= पानी पीकर वे वन को जाते हैं।
ओ३म्
556. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सर्वे वाहनस्वामिनः भयभीताः सन्ति।
= सभी वाहन मालिक भयभीत हैं
१) मम पार्श्वे यानचालनस्य अनुज्ञप्तिः नास्ति
= मेरे पास वाहन चलाने का लाइसेंस नहीं है
२) मम पार्श्वे यानस्य पंजीकरण पुस्तकं नास्ति।
= मेरे पास वाहन की आर सी बुक नहीं है
३) मम यानस्य प्रदूषण परीक्षणपत्रं नास्ति।
= मेरे पास पॉल्यूशन जाँच पत्र नहीं है
४) मम यानस्य बीमा नास्ति।
= मेरे वाहन का बीमा नहीं है।
५) मम पार्श्वे शिरस्त्राणं नास्ति।
= मेरे पास हेलमेट नहीं है
ओह , सर्वे अधुना धावन्ति
= ओह , अभी सब दौड़ रहे हैं
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Forwarded from Markdown
अद्य तस्य जन्मजयंती🙏🏼🥀
जहाङ्गीर् रतन्जि दादाभायी टाटा (जीवितकालः क्रि.श. १९०४तमवर्षस्य जुलै मासस्य २९दिनाङ्कतः क्रि.श. १९९३तमवर्षस्य नवेम्बर् २९दिनाङ्कपर्यन्तम्) दीर्घं नामाङ्कितः दीर्घकीर्तिमान् जे.आर्.डि.टाटा इत्येव प्रथितः भारतस्य प्रसिद्धः यन्त्रोद्यमपतिः, भारतीयविमानयानस्य श्रीकारकर्ता, बृहत्तमं टाटासमवायं ५३वर्षाणि सञ्चाल्य भारतस्य यन्त्रोद्यमक्षेत्रे त्रिविक्रमपदन्यासयिता भारतमतुः सुपुत्रः । टाटा उद्यमस्य उत्पादनानि इत्युक्ते सारलोहः,विद्युच्छक्तिः, कार्यनम्, संवृतयानम्, अश्मचूर्णम्, रासायनिकवस्तूनि,वस्त्राणि, कागदानि, व्यपदेशविज्ञानम्, नित्योपयोगिवस्तूनि, महिलानां रूपसज्जनवस्तूनि, इत्यादीनि । अस्य समवायस्य उद्यमः इतोपि वर्धमानः इतोप्यतिशयेन शतशः वस्तूनि उत्पानपथे सन्ति । जे.आर्.डि.टाटा वर्यः आर्.डि.टाटा वर्यस्य पुत्रः । अस्य पिता जम् सेट् जि नुझर्वान् जि टाटा इत्याख्यः सर् दोराब् टाटा, सर् रतन् टाटा, इत्यादिभ्यः पुत्रेभ्यः यत् महत्त्वं ददाति स्म तथैव आर्.डि.टाटा महोदयाय अपि दत्तवान् । किन्तु आर्.डि.टाट तु व्यवहारकुशलः नेतृत्वयुतः उद्यममं प्रगतौ नेतुं कार्यदक्षः आसीत् । पितुः साक्षात् उत्ताराधीकारी इति लक्षणं प्रदर्शयति स्म । जे.आर्.डि. टाटा पितुः सर्वगुणान् आत्मसात्कृतवान् ।
अद्य तस्यापि जन्मजयंती
सिंगिरेड्डी नारयणरेड्डि (२९ जुलाई १९३१ - १२ जून २०१७) एषः पुरुस्कारविजेता भारतीय तेलुगु कवि लेखक च अस्ति।
अद्य तस्य पुण्यतिथि🙏🏼🥀
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरः ( २६ सेप्टेम्बर् १८२०-२९ जुलै १८९१) एकः विशिष्टबाङ्गाली-शिक्षाविद् समाजसंस्कारकः गद्यकारश्च आसीत् । तस्य प्रकृतनाम ईश्वरचन्द्र बन्द्योपाध्याय इति आसीत् । संस्कृतभाषायाः तथा साहित्यस्य अगाधपाण्डित्यनिमित्तं विद्यासागरः इति उपाधिं प्राप्तवान् आसीत् । संस्कृतं व्यतिरिच्य बाङ्गला-आङ्ग्लभाषयोः अपि विशेषवुत्पत्तिः आसीत् तस्य । ईश्वरचन्द्रः एव प्रथमबाङ्गलालिपेः संस्कारकः आसीत् । सः महान् समाजसेवी अपि आसीत् । विधवायाः विवाहः, स्त्रीशिक्षायाः प्रचलनेद्यादि समाजसंस्कारकानि कार्याणि तेन कृतानि । बहुविवाहः, बाल्यविवाहसदृशस्य सामाजिकाभिशापस्य दूरीकरणेऽपि कृतभूरिपरिश्रमः ईश्वरचन्द्रः । बङ्गनवजागरणस्य अयं अग्रणी महापुरुषः दयासागरः नाम्नाऽपि ख्यातः । दरिद्रार्तपीडितजनानां साहाय्यं कर्तुं सः सर्वदा तत्परः आसीत् । तस्य आर्थिकसङ्कटसमयेऽपि ऋणं स्वीकृत्य परोपकारम् अकरोत् । ईश्वरचन्द्रस्य वज्रकठिनं चरित्रम् समग्रदेशे विख्यातम् आसीत् । मधुसुदन दत्त महोदयस्य मतानुसारं ईश्वरचन्द्रस्य ऋषिणां सदृशी प्रज्ञा, आङ्ग्लजनानां सदृशी कार्यशक्तिः, एवञ्च वङ्गमातुः सदृशी हृदयवृत्तिः आसीत् ।
शैशवकालः
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरः १८२० वर्षस्य सेप्टेम्बर्-मासस्य २६ तमे दिनाङ्के (वङ्गाब्दः-१२२७; १२ आश्विनमासः) जनिमलभवत । पश्चिमवङ्गराज्ये वर्तमानस्य पश्चिममेदिनीपुर-मण्डलस्य वीरसिंहग्रामे तस्य जन्म अभवत् । पूर्वं अयं ग्रामः हुगलिमण्डलस्य अंशः आसीत् । ईश्वरचन्द्रस्य पितामहः रामजय तर्कभूषण दृढचेता व्यक्तिः आसीत् । तेनैव ईश्वचन्द्रस्य नामकरणं कृतम् आसीत् । कोलकातायां ईश्वरचन्द्रस्य पिता ठाकुरदास कार्यं करोति स्म । सपरिवारं कोलकातायां निवासः तस्य साध्यस्यः अतीतः आसीत् । एतस्मात् बालकः ईश्वरचन्द्रः वीरसिंहग्रामेव माता भगवती देव्या सह वसति स्म ।
जहाङ्गीर् रतन्जि दादाभायी टाटा (जीवितकालः क्रि.श. १९०४तमवर्षस्य जुलै मासस्य २९दिनाङ्कतः क्रि.श. १९९३तमवर्षस्य नवेम्बर् २९दिनाङ्कपर्यन्तम्) दीर्घं नामाङ्कितः दीर्घकीर्तिमान् जे.आर्.डि.टाटा इत्येव प्रथितः भारतस्य प्रसिद्धः यन्त्रोद्यमपतिः, भारतीयविमानयानस्य श्रीकारकर्ता, बृहत्तमं टाटासमवायं ५३वर्षाणि सञ्चाल्य भारतस्य यन्त्रोद्यमक्षेत्रे त्रिविक्रमपदन्यासयिता भारतमतुः सुपुत्रः । टाटा उद्यमस्य उत्पादनानि इत्युक्ते सारलोहः,विद्युच्छक्तिः, कार्यनम्, संवृतयानम्, अश्मचूर्णम्, रासायनिकवस्तूनि,वस्त्राणि, कागदानि, व्यपदेशविज्ञानम्, नित्योपयोगिवस्तूनि, महिलानां रूपसज्जनवस्तूनि, इत्यादीनि । अस्य समवायस्य उद्यमः इतोपि वर्धमानः इतोप्यतिशयेन शतशः वस्तूनि उत्पानपथे सन्ति । जे.आर्.डि.टाटा वर्यः आर्.डि.टाटा वर्यस्य पुत्रः । अस्य पिता जम् सेट् जि नुझर्वान् जि टाटा इत्याख्यः सर् दोराब् टाटा, सर् रतन् टाटा, इत्यादिभ्यः पुत्रेभ्यः यत् महत्त्वं ददाति स्म तथैव आर्.डि.टाटा महोदयाय अपि दत्तवान् । किन्तु आर्.डि.टाट तु व्यवहारकुशलः नेतृत्वयुतः उद्यममं प्रगतौ नेतुं कार्यदक्षः आसीत् । पितुः साक्षात् उत्ताराधीकारी इति लक्षणं प्रदर्शयति स्म । जे.आर्.डि. टाटा पितुः सर्वगुणान् आत्मसात्कृतवान् ।
अद्य तस्यापि जन्मजयंती
सिंगिरेड्डी नारयणरेड्डि (२९ जुलाई १९३१ - १२ जून २०१७) एषः पुरुस्कारविजेता भारतीय तेलुगु कवि लेखक च अस्ति।
अद्य तस्य पुण्यतिथि🙏🏼🥀
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरः ( २६ सेप्टेम्बर् १८२०-२९ जुलै १८९१) एकः विशिष्टबाङ्गाली-शिक्षाविद् समाजसंस्कारकः गद्यकारश्च आसीत् । तस्य प्रकृतनाम ईश्वरचन्द्र बन्द्योपाध्याय इति आसीत् । संस्कृतभाषायाः तथा साहित्यस्य अगाधपाण्डित्यनिमित्तं विद्यासागरः इति उपाधिं प्राप्तवान् आसीत् । संस्कृतं व्यतिरिच्य बाङ्गला-आङ्ग्लभाषयोः अपि विशेषवुत्पत्तिः आसीत् तस्य । ईश्वरचन्द्रः एव प्रथमबाङ्गलालिपेः संस्कारकः आसीत् । सः महान् समाजसेवी अपि आसीत् । विधवायाः विवाहः, स्त्रीशिक्षायाः प्रचलनेद्यादि समाजसंस्कारकानि कार्याणि तेन कृतानि । बहुविवाहः, बाल्यविवाहसदृशस्य सामाजिकाभिशापस्य दूरीकरणेऽपि कृतभूरिपरिश्रमः ईश्वरचन्द्रः । बङ्गनवजागरणस्य अयं अग्रणी महापुरुषः दयासागरः नाम्नाऽपि ख्यातः । दरिद्रार्तपीडितजनानां साहाय्यं कर्तुं सः सर्वदा तत्परः आसीत् । तस्य आर्थिकसङ्कटसमयेऽपि ऋणं स्वीकृत्य परोपकारम् अकरोत् । ईश्वरचन्द्रस्य वज्रकठिनं चरित्रम् समग्रदेशे विख्यातम् आसीत् । मधुसुदन दत्त महोदयस्य मतानुसारं ईश्वरचन्द्रस्य ऋषिणां सदृशी प्रज्ञा, आङ्ग्लजनानां सदृशी कार्यशक्तिः, एवञ्च वङ्गमातुः सदृशी हृदयवृत्तिः आसीत् ।
शैशवकालः
ईश्वरचन्द्र विद्यासागरः १८२० वर्षस्य सेप्टेम्बर्-मासस्य २६ तमे दिनाङ्के (वङ्गाब्दः-१२२७; १२ आश्विनमासः) जनिमलभवत । पश्चिमवङ्गराज्ये वर्तमानस्य पश्चिममेदिनीपुर-मण्डलस्य वीरसिंहग्रामे तस्य जन्म अभवत् । पूर्वं अयं ग्रामः हुगलिमण्डलस्य अंशः आसीत् । ईश्वरचन्द्रस्य पितामहः रामजय तर्कभूषण दृढचेता व्यक्तिः आसीत् । तेनैव ईश्वचन्द्रस्य नामकरणं कृतम् आसीत् । कोलकातायां ईश्वरचन्द्रस्य पिता ठाकुरदास कार्यं करोति स्म । सपरिवारं कोलकातायां निवासः तस्य साध्यस्यः अतीतः आसीत् । एतस्मात् बालकः ईश्वरचन्द्रः वीरसिंहग्रामेव माता भगवती देव्या सह वसति स्म ।
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जे आर् डि टाटा
जहाङ्गीर् रतन्जि दादाभायी टाटा (जीवितकालः क्रि.श. १९०४तमवर्षस्य जुलै मासस्य २९दिनाङ्कतः क्रि.श. १९९३तमवर्षस्य नवेम्बर् २९दिनाङ्कपर्यन्तम्) दीर्घं नामाङ्कितः दीर्घकीर्तिमान् जे.आर्.डि.टाटा इत्येव प्रथितः भारतस्य प्रसिद्धः यन्त्रोद्यमपतिः, भारतीयविमानयानस्य…
अद्य अंतरराष्ट्रीयव्याघ्रदिवसम् 🐅
प्राणी साम्राज्ये सस्तनीवर्गे अन्तर्भूतः 'फेलिडे'कुटुम्बः एव मार्जालकुटुम्बः । सिप्राव्याघ्रः चित्रोष्ट्रः मार्जालादयश्च फेलिडेकुटुम्बस्य प्रभेदाः एव । एतेषाम् उगमः 'आलिगोसिन्'युगे प्रायशः त्रिकोटिवर्षेभ्यः पूर्वम् । एते ३७ प्रधानप्रभेदेषु विभक्ताः दृश्यन्ते ।
पुराणेषु
भारते पुराणकथासु विग्रहेषु च व्याघ्रो विशेषगौरवभाक् दृश्यते । कालीदेव्याः वाहनरूपः अस्ति व्याघ्रः । महाभारते नलदमयन्त्योः कथायां गोमुखव्याघ्रः इत्येषः शब्दप्रयोगः दृश्यते । बौद्धग्रन्थेषु च व्याघ्रस्य उल्लेखः दृश्यते ।
इतिहासे
मलयन्-प्रदेशीयः व्याघ्रः
प्राचीनभारते केषाञ्चन राजवंशानां लाञ्छनरूपेण व्याघ्रः विद्यते । कर्णाटकस्य होय्सलवंशस्य लाञ्छनरूपेण विद्यमानं व्याघ्राणां दुण्डुशिल्पम् अत्यन्तं वैशिष्ट्यपूर्णमस्ति । चोळराजाः नाणकेषु व्याघ्रचिह्नम् उपयुक्तवन्तः सन्ति । प्रपञ्चस्य बहुषु देशेषु व्याघ्रः राष्ट्रस्य प्रमुखप्राणित्वेन परिगण्यते । कोरियाजनैः व्याघ्रः मृगराजः इत्युच्यते । चीनादेशे गृहाणां भित्तेः उपरि व्याघ्रचित्राणि दृश्यन्ते । ते तान् 'सांस्कृतिकसम्पत्तिः' इति मन्यन्ते ।
गुणाः
भारतस्य राष्ट्रियप्राणी व्याघ्रः अरण्यस्य अनभिषिक्तः सम्राट् वर्तते । दर्प-धैर्य-गाम्भीर्याणां प्रतिनिधिः अस्ति व्याघ्रः । दृढकायः, भीमबलः, अनुशासनयुक्तः, सङ्कोचस्वभावी एकाकी अस्ति अयं व्याघ्रः । उत्तमतरणपटुः, सहनाशीलः, अद्भुतदृष्टिशक्ति-घ्राणशक्तियुक्तः, तीक्ष्णजिह्वायुक्तः, दीर्घश्मश्रुमान् भीरुः अस्ति व्याघ्रः ।
रूपदर्शी
अत्युत्तमं शरीरदार्ढ्यं, लघु कण्ठः, सुन्दरौ कपोलौ, वृत्ताकारकं मुखं शिरश्च, तन्वाकारकौ कृष्णवर्णीयौ ओष्ठौ, दृढः मांसखण्डः, प्रकाशयतः नेत्रे, स्थूलरेखाभिः युक्तः सुवर्णवर्णः कायः, दीर्घाः श्वेताः श्मश्रवः, शरीरस्य अन्तर्भागे उदरे पादयोः च श्वेतकेशाः, नेत्रयोः उपरितने भागे श्वेतवर्णीयाः कालकाः दृश्यन्ते । आरोग्यवतः दृढकायस्य व्याघ्रस्य औन्नत्यं १२ पादमिताः, भारश्च २७५ किलोग्राम्-युतश्च भवति । तस्य शरीरस्य वर्णः आकारश्च तस्य प्रदेशस्य वातावरणं, जलं, मृत्तिका, सस्यसम्पत्तिः, आहारादिकञ्च अनुसरति ।
प्राणी साम्राज्ये सस्तनीवर्गे अन्तर्भूतः 'फेलिडे'कुटुम्बः एव मार्जालकुटुम्बः । सिप्राव्याघ्रः चित्रोष्ट्रः मार्जालादयश्च फेलिडेकुटुम्बस्य प्रभेदाः एव । एतेषाम् उगमः 'आलिगोसिन्'युगे प्रायशः त्रिकोटिवर्षेभ्यः पूर्वम् । एते ३७ प्रधानप्रभेदेषु विभक्ताः दृश्यन्ते ।
पुराणेषु
भारते पुराणकथासु विग्रहेषु च व्याघ्रो विशेषगौरवभाक् दृश्यते । कालीदेव्याः वाहनरूपः अस्ति व्याघ्रः । महाभारते नलदमयन्त्योः कथायां गोमुखव्याघ्रः इत्येषः शब्दप्रयोगः दृश्यते । बौद्धग्रन्थेषु च व्याघ्रस्य उल्लेखः दृश्यते ।
इतिहासे
मलयन्-प्रदेशीयः व्याघ्रः
प्राचीनभारते केषाञ्चन राजवंशानां लाञ्छनरूपेण व्याघ्रः विद्यते । कर्णाटकस्य होय्सलवंशस्य लाञ्छनरूपेण विद्यमानं व्याघ्राणां दुण्डुशिल्पम् अत्यन्तं वैशिष्ट्यपूर्णमस्ति । चोळराजाः नाणकेषु व्याघ्रचिह्नम् उपयुक्तवन्तः सन्ति । प्रपञ्चस्य बहुषु देशेषु व्याघ्रः राष्ट्रस्य प्रमुखप्राणित्वेन परिगण्यते । कोरियाजनैः व्याघ्रः मृगराजः इत्युच्यते । चीनादेशे गृहाणां भित्तेः उपरि व्याघ्रचित्राणि दृश्यन्ते । ते तान् 'सांस्कृतिकसम्पत्तिः' इति मन्यन्ते ।
गुणाः
भारतस्य राष्ट्रियप्राणी व्याघ्रः अरण्यस्य अनभिषिक्तः सम्राट् वर्तते । दर्प-धैर्य-गाम्भीर्याणां प्रतिनिधिः अस्ति व्याघ्रः । दृढकायः, भीमबलः, अनुशासनयुक्तः, सङ्कोचस्वभावी एकाकी अस्ति अयं व्याघ्रः । उत्तमतरणपटुः, सहनाशीलः, अद्भुतदृष्टिशक्ति-घ्राणशक्तियुक्तः, तीक्ष्णजिह्वायुक्तः, दीर्घश्मश्रुमान् भीरुः अस्ति व्याघ्रः ।
रूपदर्शी
अत्युत्तमं शरीरदार्ढ्यं, लघु कण्ठः, सुन्दरौ कपोलौ, वृत्ताकारकं मुखं शिरश्च, तन्वाकारकौ कृष्णवर्णीयौ ओष्ठौ, दृढः मांसखण्डः, प्रकाशयतः नेत्रे, स्थूलरेखाभिः युक्तः सुवर्णवर्णः कायः, दीर्घाः श्वेताः श्मश्रवः, शरीरस्य अन्तर्भागे उदरे पादयोः च श्वेतकेशाः, नेत्रयोः उपरितने भागे श्वेतवर्णीयाः कालकाः दृश्यन्ते । आरोग्यवतः दृढकायस्य व्याघ्रस्य औन्नत्यं १२ पादमिताः, भारश्च २७५ किलोग्राम्-युतश्च भवति । तस्य शरीरस्य वर्णः आकारश्च तस्य प्रदेशस्य वातावरणं, जलं, मृत्तिका, सस्यसम्पत्तिः, आहारादिकञ्च अनुसरति ।
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