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🌞 न मां परमेश्वरं नारायणं दुष्कृतिनः पापकारिणः मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः नराणां मध्ये अधमाः निकृष्टाः। ते च मायया अपहृतज्ञानाः संमुषितज्ञानाः आसुरं भावं हिंसानृतादिलक्षणम् आश्रिताः॥
🌷 दुष्कृत्य करने वाले, मूढ, नराधम पुरुष मुझे नहीं भजते हैं; माया के द्वारा जिनका ज्ञान हर लिया गया है, वे आसुरी भाव को धारण किये रहते हैं।
🌹 The foolish evildoers, who are the most depraved among men, who are deprived of (their) wisdom by Maya, and who resort to demoniacal ways, do not take refuge in Me.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता ७।१५॥ #Subhashitam
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः॥
🌞 न मां परमेश्वरं नारायणं दुष्कृतिनः पापकारिणः मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः नराणां मध्ये अधमाः निकृष्टाः। ते च मायया अपहृतज्ञानाः संमुषितज्ञानाः आसुरं भावं हिंसानृतादिलक्षणम् आश्रिताः॥
🌷 दुष्कृत्य करने वाले, मूढ, नराधम पुरुष मुझे नहीं भजते हैं; माया के द्वारा जिनका ज्ञान हर लिया गया है, वे आसुरी भाव को धारण किये रहते हैं।
🌹 The foolish evildoers, who are the most depraved among men, who are deprived of (their) wisdom by Maya, and who resort to demoniacal ways, do not take refuge in Me.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता ७।१५॥ #Subhashitam
संलापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
सुभाषचन्द्रबोसः
#samlapshala
#samlapshala
षण्णां मातॄणाम् अपत्यम् इति किं समस्यते।
Anonymous Quiz
18%
षण्मात्रः
46%
षाण्मातुरः
27%
षाण्मातरः
8%
षाण्मात्रः
एक गरुड़ शिकार की खोज में किसी पर्वत के शिखर पर बैठा था।
•• एको गरुडः भोजनान्वेषणे कस्यचित् पर्वतस्य शिखरस्य उपरि उपविष्टः आसीत्।
वहीं बैठे हुए एक शिकारी ने उसपर बाण चलाकर घायल कर दिया।
••तत्रैव उपविष्टः सन् एकः व्याध: तं प्रति सायकं चालयित्वा व्रणितवान्।
मरते समय गरुड ने उस बाण के पंख देखे।
•• मृत्युकाले गरुड: तस्य सायकस्य पक्षान् अपश्यत्।
तब उसने कहा - इस बाण मे तीव्र गति हमारे ही पंखों के कारण आयी है।
•• तदा स: अवदत् - " अस्मिन् सायके तीव्रगति: अस्माकमेव पक्षेभ्य: आगत: ।"
इस का मुझे मृत्यु से अधिक दुःख हो रहा है।
•• एतेन मम मृत्युतः अधिकं दुःखस्य अनुभूति: भवति।
सीख - " अपने ही जब पीठ में खंजर घोंपते है तब वह क्षण बडा ही दुःखदायक होता है" ।
•• शिक्षा - "यदा स्वजन: एव पृष्ठे छुरिकां गाहते तदा तत्क्षण: अतीव दुःखितो भवति।"
मैं कोई बेल नहीं जिसे ऊपर चढ़ने को सहारा चाहिए
मैं छोटा ही सही एक पौधा हूं , एक सदाबहार पौधा।
•• अहं काचित् न लतास्मि यस्यै उपरि आरोहणार्थं समर्थनस्य आवश्यकता वर्तते।
अहं लघ्वाकार: अवश्यम्,परन्तु एक: पादपोऽस्मि, एको नित्यहरित: पादप:।
जो सर्दी ,गर्मी,बरसात,ऑंधी,तुफान सब झेलता हुआ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है
•• य: शिशिरम्,ग्रीष्मम्,वर्षणम् ,प्रकम्पनम् ,
वर्षणयुक्तप्रकम्पनं इत्यादीन् सर्वान् ऋतून् सहमानः स्वस्य उपस्थितिं कुर्वन् एव तिष्ठति।
नहीं चाहिए मुझे जीने के लिए और के पोषक तत्त्व मैं खूद ही खूद के लिए पर्याप्त हूं
•• मम कृते जीवितुम् अन्येषां पोषकतत्त्वानाम् आवश्यकता नास्ति तथा च अहं स्वस्य कृते स्वयमेव पर्याप्तोऽस्मि।
बस कायम रखनी है मुझे अपनी जीने की इच्छा और झेल जाने हैं, हंसते हुए सारे झंझावत
•• केवलं मया स्वस्य जिजीविषा अक्षुण्णा स्थापनीया अस्ति
तथा च मया हसन् सर्वप्रकम्पन: सहनीय: अस्ति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
•• एको गरुडः भोजनान्वेषणे कस्यचित् पर्वतस्य शिखरस्य उपरि उपविष्टः आसीत्।
वहीं बैठे हुए एक शिकारी ने उसपर बाण चलाकर घायल कर दिया।
••तत्रैव उपविष्टः सन् एकः व्याध: तं प्रति सायकं चालयित्वा व्रणितवान्।
मरते समय गरुड ने उस बाण के पंख देखे।
•• मृत्युकाले गरुड: तस्य सायकस्य पक्षान् अपश्यत्।
तब उसने कहा - इस बाण मे तीव्र गति हमारे ही पंखों के कारण आयी है।
•• तदा स: अवदत् - " अस्मिन् सायके तीव्रगति: अस्माकमेव पक्षेभ्य: आगत: ।"
इस का मुझे मृत्यु से अधिक दुःख हो रहा है।
•• एतेन मम मृत्युतः अधिकं दुःखस्य अनुभूति: भवति।
सीख - " अपने ही जब पीठ में खंजर घोंपते है तब वह क्षण बडा ही दुःखदायक होता है" ।
•• शिक्षा - "यदा स्वजन: एव पृष्ठे छुरिकां गाहते तदा तत्क्षण: अतीव दुःखितो भवति।"
मैं कोई बेल नहीं जिसे ऊपर चढ़ने को सहारा चाहिए
मैं छोटा ही सही एक पौधा हूं , एक सदाबहार पौधा।
•• अहं काचित् न लतास्मि यस्यै उपरि आरोहणार्थं समर्थनस्य आवश्यकता वर्तते।
अहं लघ्वाकार: अवश्यम्,परन्तु एक: पादपोऽस्मि, एको नित्यहरित: पादप:।
जो सर्दी ,गर्मी,बरसात,ऑंधी,तुफान सब झेलता हुआ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है
•• य: शिशिरम्,ग्रीष्मम्,वर्षणम् ,प्रकम्पनम् ,
वर्षणयुक्तप्रकम्पनं इत्यादीन् सर्वान् ऋतून् सहमानः स्वस्य उपस्थितिं कुर्वन् एव तिष्ठति।
नहीं चाहिए मुझे जीने के लिए और के पोषक तत्त्व मैं खूद ही खूद के लिए पर्याप्त हूं
•• मम कृते जीवितुम् अन्येषां पोषकतत्त्वानाम् आवश्यकता नास्ति तथा च अहं स्वस्य कृते स्वयमेव पर्याप्तोऽस्मि।
बस कायम रखनी है मुझे अपनी जीने की इच्छा और झेल जाने हैं, हंसते हुए सारे झंझावत
•• केवलं मया स्वस्य जिजीविषा अक्षुण्णा स्थापनीया अस्ति
तथा च मया हसन् सर्वप्रकम्पन: सहनीय: अस्ति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - पूर्णिमा रात्रि 11:23 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक - 25 जनवरी 2024
⛅ दिन - गुरुवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - पुनर्वसु सुबह 08:16 तक तत्पश्चात पुष्य
⛅ योग - विष्कम्भ सुबह 07:32 तक तत्पश्चात प्रीति
⛅ राहु काल - दोपहर 02:14 से 03:37 तक
⛅ सूर्योदय - 07:22
⛅ सूर्यास्त - 06:21
⛅ दिशा शूल - दक्षिण
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
#panchang
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩 तिथि - पूर्णिमा रात्रि 11:23 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक - 25 जनवरी 2024
⛅ दिन - गुरुवार
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - पुनर्वसु सुबह 08:16 तक तत्पश्चात पुष्य
⛅ योग - विष्कम्भ सुबह 07:32 तक तत्पश्चात प्रीति
⛅ राहु काल - दोपहर 02:14 से 03:37 तक
⛅ सूर्योदय - 07:22
⛅ सूर्यास्त - 06:21
⛅ दिशा शूल - दक्षिण
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक
#panchang
संलापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
#samlapshala
राष्ट्रियबालपुरस्कारः
राष्ट्रियबालपुरस्कारः
@samvadah organises संलापशाला - A Sanskrit Voicechat Room
🔰विषयः - सुभाषितादिनी
🗓२६/११/२०२३ ॥ IST ११:०० AM
🔴 It's recording would be shared on our channel.
📑कृपया दैववाचा चर्चार्थं एतद्विषयम् अभिक्रम्य आगच्छत।
https://t.me/samvadah?livestream
पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
https://archive.org/details/samlapshala_
🔰विषयः - सुभाषितादिनी
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🌞 मूढग्राहेण अविवेकनिश्चयेन आत्मनः पीडया यत् क्रियते तपः परस्य उत्सादनार्थं विनाशार्थं वा तत् तामसं तपः उदाहृतम्।
🌷 जो तप मूढ़तापूर्वक स्वयं को पीड़ित करते हुए अथवा अन्य लोगों के नाश के लिए किया जाता है, वह तप तामस कहा गया है।
🌹 That austerity which is practised from deluded notions by means of self-torture or in order to injure another is said to be Tamasika.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता १७।१९॥ #Subhashitam
मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्॥
🌞 मूढग्राहेण अविवेकनिश्चयेन आत्मनः पीडया यत् क्रियते तपः परस्य उत्सादनार्थं विनाशार्थं वा तत् तामसं तपः उदाहृतम्।
🌷 जो तप मूढ़तापूर्वक स्वयं को पीड़ित करते हुए अथवा अन्य लोगों के नाश के लिए किया जाता है, वह तप तामस कहा गया है।
🌹 That austerity which is practised from deluded notions by means of self-torture or in order to injure another is said to be Tamasika.
📍 श्रीमद्भगवद्गीता १७।१९॥ #Subhashitam
प्रेमशब्दस्य सप्तम्यां विभक्त्यां को रूपः।
Anonymous Quiz
8%
प्रेमिणि
36%
प्रेमे
19%
प्रेम्नि
36%
प्रेम्णि
दांतों में कीड़ा लग जाने पर रात्रि को दांत में हींग दबाकर सोएं। कीड़े खुद-ब-खुद निकल जाएंगे।
••दन्तेषु दन्तकृमि: भवेत् तर्हि रात्रौ दन्तयो: मध्ये रामठं निष्पीड्य शयनं कुर्यात्।दन्तकृमि: स्वयमेव निस्सृतो भविष्यति।
यदि शरीर के किसी हिस्से में कांटा चुभ गया हो तो उस स्थान पर हींग का घोल भर दें।कुछ समय में कांटा स्वतः निकल आएगा।
••यदि कण्टकेन शरीरस्य कश्चन भागो निष्तुन्न: स्यात् तर्हि तत् क्षेत्रं रमठविलयनेन पूर्यात्।कण्टकः किञ्चित्कालानन्तरं स्वयमेव बहिरागमिष्यति।
हींग में रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है। दाद, खाज, खुजली व अन्य चर्म रोगों में इसको पानी में घिसकर उन स्थानों पर लगाने से लाभ होता है।
••हिङ्गौ रोगप्रतिरोधकक्षमता भवति।दद्रू-कण्ड्वादि-त्वक्-रोगेषु जले घर्षित्वा तेषु स्थानेषु लेपनं हितकरं भवति।
हिंग का लेप बवासीर,तिल्ली और उदरशोथ में लाभप्रद है।
••रमठलेपनं अर्श-गुल्म-उदरशोथादिषु रोगेषु लाभकरं भवति।
कब्जियत की शिकायत होने पर हींग के चूर्ण में थोड़ा सा मीठा सोड़ा मिलाकर रात्रि को फांक लें, सबेरे शौच साफ होगा।
••मलबन्धत्वस्य/कोष्ठबद्धताया: आक्षेपे जाते रमठचूर्णेन सह किञ्चित्मधुरसूर्यक्षारस्य मिश्रणं कृत्वा रात्रौ सेवनं कुर्यात्।प्रात: शौचं सुकरं भविता।
पेट के दर्द, अफारे, ऐंठन आदि में अजवाइन और नमक के साथ हींग का सेवन करें तो लाभ होगा।
••यदि उदरवेदना,आध्मानम्,उदरमोटनम् इत्यादय: रोगा: भवेयु: तर्हि यवान्या लवणेन च सह हिङ्गुसेवनं लाभकरं भवेत्।
पेट में कीड़े हो जाने पर हींग को पानी में घोलकर एनीमा लेने से पेट के कीड़े शीघ्र निकल आते हैं।
••यदि उदरे कृमय: भवेयु: तर्हि रमठं जले निमज्ज्य वस्त्यौषधसेवनेन उदरकृमिणां शीघ्रं निष्कासनं भवति।
जख्म यदि कुछ समय तक खुला रहे तो उसमें छोटे-छोटे रोगाणु पनप जाते हैं। जख्म पर हींग का चूर्ण डालने से रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
••व्रणोपचारः यदि शीघ्रं न क्रियेत तर्हि तस्मिन् लघवः रोगाणवः जायन्ते।व्रणे हिङ्गुचूर्णनिक्षेपणेन रोगाणवः नश्यन्ति।
प्रतिदिन के भोजन में दाल, कढ़ी व कुछ सब्जियों में हींग का उपयोग करने से भोजन को पचाने में सहायक होती है।
••सूपे, तेमने, केषुचित् शाकेषु च नित्यभोजने हिङ्गो: उपयोगः पाचनक्रियायां सहायको भवति।
~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
••दन्तेषु दन्तकृमि: भवेत् तर्हि रात्रौ दन्तयो: मध्ये रामठं निष्पीड्य शयनं कुर्यात्।दन्तकृमि: स्वयमेव निस्सृतो भविष्यति।
यदि शरीर के किसी हिस्से में कांटा चुभ गया हो तो उस स्थान पर हींग का घोल भर दें।कुछ समय में कांटा स्वतः निकल आएगा।
••यदि कण्टकेन शरीरस्य कश्चन भागो निष्तुन्न: स्यात् तर्हि तत् क्षेत्रं रमठविलयनेन पूर्यात्।कण्टकः किञ्चित्कालानन्तरं स्वयमेव बहिरागमिष्यति।
हींग में रोग-प्रतिरोधक क्षमता होती है। दाद, खाज, खुजली व अन्य चर्म रोगों में इसको पानी में घिसकर उन स्थानों पर लगाने से लाभ होता है।
••हिङ्गौ रोगप्रतिरोधकक्षमता भवति।दद्रू-कण्ड्वादि-त्वक्-रोगेषु जले घर्षित्वा तेषु स्थानेषु लेपनं हितकरं भवति।
हिंग का लेप बवासीर,तिल्ली और उदरशोथ में लाभप्रद है।
••रमठलेपनं अर्श-गुल्म-उदरशोथादिषु रोगेषु लाभकरं भवति।
कब्जियत की शिकायत होने पर हींग के चूर्ण में थोड़ा सा मीठा सोड़ा मिलाकर रात्रि को फांक लें, सबेरे शौच साफ होगा।
••मलबन्धत्वस्य/कोष्ठबद्धताया: आक्षेपे जाते रमठचूर्णेन सह किञ्चित्मधुरसूर्यक्षारस्य मिश्रणं कृत्वा रात्रौ सेवनं कुर्यात्।प्रात: शौचं सुकरं भविता।
पेट के दर्द, अफारे, ऐंठन आदि में अजवाइन और नमक के साथ हींग का सेवन करें तो लाभ होगा।
••यदि उदरवेदना,आध्मानम्,उदरमोटनम् इत्यादय: रोगा: भवेयु: तर्हि यवान्या लवणेन च सह हिङ्गुसेवनं लाभकरं भवेत्।
पेट में कीड़े हो जाने पर हींग को पानी में घोलकर एनीमा लेने से पेट के कीड़े शीघ्र निकल आते हैं।
••यदि उदरे कृमय: भवेयु: तर्हि रमठं जले निमज्ज्य वस्त्यौषधसेवनेन उदरकृमिणां शीघ्रं निष्कासनं भवति।
जख्म यदि कुछ समय तक खुला रहे तो उसमें छोटे-छोटे रोगाणु पनप जाते हैं। जख्म पर हींग का चूर्ण डालने से रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।
••व्रणोपचारः यदि शीघ्रं न क्रियेत तर्हि तस्मिन् लघवः रोगाणवः जायन्ते।व्रणे हिङ्गुचूर्णनिक्षेपणेन रोगाणवः नश्यन्ति।
प्रतिदिन के भोजन में दाल, कढ़ी व कुछ सब्जियों में हींग का उपयोग करने से भोजन को पचाने में सहायक होती है।
••सूपे, तेमने, केषुचित् शाकेषु च नित्यभोजने हिङ्गो: उपयोगः पाचनक्रियायां सहायको भवति।
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