संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🌿 त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी।
त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः॥


🌞 त्वं स्त्री त्वं पुमान् त्वं कुमारः त्वं कुमारी उत। त्वं जीर्णः दण्डेन वञ्चसि। त्वं विशतोमुखः जातः॥

♣️ 'तुम' ही स्त्री हो तथा 'तुम' ही पुरुष हो; 'तुम' ही कुमार हो एवं 'तुम' ही पुनः कुमारी कन्या हो; 'तुम' ही तो जरा-जीर्ण वृद्ध पुरुष हो जो अपने दण्ड के सहारे झुककर चलता है। अहो, 'तुम' ही तो जन्म लेते हो तथा सम्पूर्ण विश्व तुम्हारे ही नाना रूपों से परिपूर्ण है।

♣️ Thou art the woman and Thou the man; Thou art a boy and again a young virgin; Thou art yonder worn and aged man that walkest bent with thy staff. Lo, Thou becomest born and the world is full of thy faces.

📍श्वेताश्वतरोपनिषदि ४।३ #Subhashitam
भवनम् इत्यस्य विच्छेदं कथम्।
Anonymous Quiz
11%
भव। अनम्।
17%
भौ। अनम्।
38%
भू। अनम्।
34%
भो। अनम्‌।
कभी सोचा है भगवान कृष्ण का स्वरूप हमें क्या सिखाता है।
••किं भवता कदापि चिन्तितम् यत् भगवतः श्रीकृष्णस्य रूपम् अस्मान् किं पाठयति?

क्यों भगवान जंगल में पेड़ के नीचे खड़े बांसुरी बजा रहे हैं, मोरमुकुट पहने,शरीर पर पीला वस्त्र, गले में वैजयंती की माला, साथ में राधा, पीछे गाय।
••किमर्थं भगवान् वने वृक्षस्य अध: स्थितो भूत्वा वेणीवादनं करोति?मयुरमुकुटं धृतवानस्ति।शरीरे पीतवस्त्रं धृतवानस्ति।ग्रीवायां वैजयन्तीमाला अस्ति।तस्य पार्श्वे राधा पृष्ठतश्च धेनु:।

कृष्ण की यह छवि हमें क्या प्रेरणा देती है?
••इयं कृष्णप्रतिमा अस्मेभ्य: कां प्रेरणाम् अयच्छति?

क्यों कृष्ण का रूप इतना मनोहर लगता है?
••कृष्णस्य रूपं किमर्थम् एतावत् सुन्दरं दृश्यते?

दरअसल कृष्ण हमें जीवन जीना सिखाते हैं।
••वस्तुतः कृष्णः अस्मभ्यं जीवनं कथं जीवितुं शक्यते इति शिक्षयति।

उनका यह स्वरूप अगर गहराई से समझा जाए तो इसमें हमें सफल जीवन के कई सूत्र मिलते हैं।
••तस्य अयं स्वरूप: यदि गभीरतया अवगम्येत तर्हि एतस्मिन् अस्माभि: सफलजीवनस्य अनेकानि सूत्राणि लभ्यन्ते।

विद्वानों का मत है कि भगवान विरोधाभास में दिखता है।
••भगवान् विरोधाभासरूपेण दृश्यते इति विद्वांसः मन्यन्ते।

आइए जानते हैं कृष्ण की छवि के क्या मायने हैं।
••कृष्णप्रतिबिम्बस्य कः अर्थः इति ज्ञास्याम:।

भगवान के मुकुट में मोर का पंख है। यह बताता है कि जीवन में विभिन्न रंग हैं। ये रंग हमारे जीवन के भाव हैं। सुख है तो दुख भी है, सफलता है तो असफलता भी, मिलन है तो बिछोह भी। जीवन इन्हीं रंगों से मिलकर बना है।जीवन से जो मिले उसे माथे लगाकर अंगीकार कर लो। इसलिए मोर मुकुट भगवान के सिर पर है।
••भगवतो मुकुटे मयूरपक्षोऽस्ति।अयं ज्ञापयति यत् जीवनस्य विविधा: वर्णाः सन्ति।एते वर्णा: अस्माकं जीवनस्य अङ्गभूता: सन्ति।यदि सुखं स्यात् तर्हि दुःखमपि स्यात्,यदि साफल्यं स्यात् तर्हि असाफल्यमपि स्यात् , यदि मेलनं स्यात् तर्हि विरहोऽपि स्यात्।जीवनं एतैः वर्णैः निर्मितमस्ति।जीवनात् यत् किमपि लभ्यते तत् स्वकीयेण हृदयेण स्वीकुरोतु।अत एव मयूरमुकुटो भगवत: शिरसि राजते।

~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
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#sanskriteducation
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🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
🚩 तिथि - तृतीया सुबह 07:59 तक तत्पश्चात चतुर्थी


दिनांक - 14 जनवरी 2024
दिन - रविवार
विक्रम संवत् - 2080
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - पौष
पक्ष - शुक्ल
तिथि - तृतीया सुबह 07:59 तक तत्पश्चात चतुर्थी
नक्षत्र - धनिष्ठा सुबह 10:22 तक तत्पश्चात शतभिषा
योग - व्यतीपात सुबह 06:23 से मध्यरात्रि 02:40 तक
राहु काल - शाम 04:53 से 06:14 तक
सूर्योदय - 07:23
सूर्यास्त - 06:14
दिशा शूल - पश्चिम
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक

#panchang
🌿 न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति॥


🌞 तत्र सूर्यः न भाति न चन्द्रतारकम् इमाः विद्युतः न भान्ति अयम् अग्निः कुतः। भान्तं तम् एव सर्वंम् अनुभाति। तस्य भासा इदं सर्वं विभाति॥

🌷 वहाँ न सूर्य प्रकाशित होता है न चन्द्र ही भासमान् है; तारे वही अन्धवत् हो जाते हैं; वही यह विद्युत् की चमक भी 'उसे' उद्भासित नहीं करती, किसी पार्थिव अग्नि का तो प्रश्न ही नहीं है; जो कुछ भी भास्वर है वह 'उसकी' ज्योति की ही प्रतिच्छाया है तथा 'उसी' की दीप्ति से यह सम्पूर्ण जगत् देदीप्यमान् हो रहा है।

🌹 There the sun cannot shine and the moon has no splendour; the stars are blind; there our lightnings flash not neither any earthly fire; all that is bright is but the shadow of His brightness and by His shining all this shineth.

📍श्वेताश्वतरोपनिषदि ६।१४ #Subhashitam
मम जनकस्तु प्रतिदिनं वेदान् पठति। जनकस्तु इत्यस्य शब्दस्य विच्छेदनं कथम्।
Anonymous Quiz
62%
जनकः। तु।
30%
जनकः‌। अस्तु।
7%
जनक। अस्तु।
1%
जन। कस्तु।
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
कभी सोचा है भगवान कृष्ण का स्वरूप हमें क्या सिखाता है। ••किं भवता कदापि चिन्तितम् यत् भगवतः श्रीकृष्णस्य रूपम् अस्मान् किं पाठयति? क्यों भगवान जंगल में पेड़ के नीचे खड़े बांसुरी बजा रहे हैं, मोरमुकुट पहने,शरीर पर पीला वस्त्र, गले में वैजयंती की माला, साथ…
भगवान बांसुरी बजा रहे हैं, मतलब जीवन में कैसी भी घडी आए हमें घबराना नहीं चाहिए। भीतर से शांति हो तो संगीत जीवन में उतरता है। ऐसे ही अगर भक्ति पानी है तो अपने भीतर शांति कायम करने का प्रयास करें।
••भगवान् मुरलीं वादयति अर्थात् जीवने यादृशोऽपि समय: आगच्छेत् चेदपि अस्माभि: आतङ्कितेन न भवितव्यम्।यदि अन्त:करणे शान्ति: स्यात् तर्हि जीवने सङ्गीतवत् माधुर्यं जायेत। एवमेव यदि भक्तिं लब्धुमिच्छेत् तर्हि स्वकीयस्य अन्त:करणे शान्तिं स्थापयितुं प्रयतताम्।

भगवान के गले में वैजयंती माला है।यह कमल के बीजों से बनती है।इसके दो मतलब हैं कमल के बीज सख्त होते हैं, कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं, हमेशा चमकदार बने रहते हैं।भगवान कह रहे हैं जब तक जीवन है तब तक ऐसे रहो जिससे तुम्हें देखकर कोई दुखी न हो।दूसरा यह माला बीज की है और बीज ही है जिसकी मंजिल होती है भूमि।भगवान कहते हैं जमीन से जुड़े रहो, कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ, हमेशा अपने अस्तित्व की असलियत के नजदीक रहो।
••भगवतो ग्रीवायां वैजयंतीमाला अस्ति।एषा पद्मबीजै: निर्मीयते।अस्य द्वौ अर्थौ स्त: - कमलबीजानि कठोराणि भवन्ति,कदापि भग्नानि न भवन्ति, पर्युषितानि न भवन्ति,सदैव दीप्तिमानानि भवन्ति। भगवान् कथयति यत् यावज्जीवनमस्ति तावत् एवं तिष्ठ येन त्वां दृष्ट्वा कोऽपि दुःखी न भवेत्।द्वितीयत: एषा मालिकाबीजै: निर्मिता अस्ति बीजमेव चास्ति यस्य लक्ष्यं भूमिरेव भवति।भगवान् कथयति प्रकृतिसम्बद्धो भव, कियान् अपि महान् भव सदैव स्वास्तित्वस्य वास्तविकतायाः निकटे भव।

पीतांबर - पीला रंग सम्पन्नता का प्रतीक है। भगवान कहते हैं ऐसा पुरुषार्थ करो कि सम्पन्नता खुद आप तक चल कर आए। इससे जीवन में शांति का मार्ग खुलेगा।
••पीतवर्ण: सम्पन्नताया: प्रतीकोऽस्ति।भगवत: कथयति यत् एतादृशं पुरुषार्थं करोतु येन सम्पन्नता भवत: पार्श्वे स्वयं समृद्धिः आगच्छेत्।एतेन जीवने शान्तिमार्गः उद्घटिष्यति।

भगवान ने पीतांबर को ही कमरबंद बना रखा है।इसका अर्थ है हमेशा चुनौतियों के लिए तैयार रहें।धर्म के पक्ष में जब भी कोई कर्म करना पड़े हमेशा तैयार रहें।
••भगवान् पीताम्बरमेव कटिसूत्ररूपेण स्थापितवानस्ति।अस्य अर्थ: अस्ति-आह्वानानां कृते सर्वदा सज्जाः भवत।यदि धर्मपक्षे यत्किमपि कर्म करणीयं भवेत् तर्हि तदर्थं यूयं सज्जाः भवत।

कृष्ण के साथ राधा भी है। इसका अर्थ है जीवन में स्त्रीयों का महत्व भी है। उन्हें पूर्ण सम्मान दें। वे हमारी बराबरी में रहें, हमसे नीचे नहीं।
••कृष्णेन सह राधा अस्ति।एतस्य अर्थ: अस्ति-जीवने नारीणां महत्त्वमस्ति।ताभ्य: पूर्णसम्मानं ददध्वम्।ता: अस्माकं समतुल्याः भवेयुः,न तु अस्मत्त: निकृष्टा:।


हिंदू धर्म में 16 श्रृंगार के महत्व के बारे में बताया गया है।
••हिन्दूधर्मे षोडशालङ्काराणां महत्त्वस्य विषये बोधितमस्ति।

मांग के सिंदूर से लेकर पैरों के बिछिया तक ये सभी श्रृंगार विवाहित महिला की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
••सीमन्तस्य सिंदूरादाराभ्य पादयो: मञ्जीरं यावत् एते सर्वे शृंगारा: विवाहिताया: महिलाया: सौन्दर्यं वर्धयन्ति।

साथ ही ये श्रृंगार विवाह के बाद किसी स्त्री के जीवन में आए परिवर्तन और समाज में उसके रूप को नई पहचान भी देते हैं।
••एतदतिरिच्य एते अलङ्कारा: विवाहानन्तरं कस्याश्चित् नार्या: आगते परिवर्तने समाजे च तस्या: रूपं नूतनाभिज्ञानमपि ददति।

इसलिए 16 श्रृंगार का संबंध केवल खूबसूरती नहीं भाग्य से भी जुड़ा होता है।
••अतः षोडशशृंङ्गारा: न केवलं सौन्दर्येण सह सम्बद्धा: अपितु भाग्येन अपि सम्बन्धिता: सन्ति।

शृंगार क्या-क्या होते हैं?
••शृंगार: के के स्यु:?

सिंदूरं ललाटभरणं कज्जलं मङ्गलसूत्रं नूपुरं काचवलयं नासाभरणं मेन्धिका कर्णलोलकं सीमान्तालङ्कारः वेणीमाला रक्तवर्णवस्त्रम् अङ्गदं रशना ऊर्मिका च।

~उमेशगुप्तः #vakyabhyas
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॥परम्परा॥
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
इस तालिका के मदद से वर्णों के उच्चारण स्थान समझने में आसानी हो सकती है। इस कोष्ठक में वर्णों के उच्चारस्थानों के साथ साथ वर्णों का मृदु-कठोरभेद भी दिखाया गया है। सन्धिप्रकरण पढने के लिए यह कोष्ठक बहुत उपयोगी है। अतः छात्रों को इस कोष्ठक को कण्ठस्थ करना चाहिए।…
उच्चारण स्थान और संज्ञा में अंतर

उच्चारण स्थान एक मुख में स्थित एक अवयव का नाम है। जहां से वर्णों का उच्चारण होता है। तथा संज्ञा वर्ण की होती है। उच्चारण स्थान के अनुसार यह संज्ञा वर्ण को मिलती है। जैसे – अ। अ इस स्वर का उच्चारण स्थान है – कण्ठ। इसीलिए अ कण्ठ्य वर्ण है।

कण्ठ – मुख में स्थित एक शारीरिक अवयव। यानी गला।
कण्ठ्य – जिसका उच्चारण कण्ठ से होता है। जैसे – अ और कवर्ग के व्यंजन।

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🚩 जय सत्य सनातन 🚩
🚩 आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०८०
🚩 तिथि - पंचमी मध्य रात्रि 02:16 तक तत्पश्चात षष्ठी


दिनांक - 15 जनवरी 2024
दिन - सोमवार
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - पौष
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - शतभिषा सुबह 08:07 तक तत्पश्चात पूर्वभाद्रपद
योग - वरियान् रात्रि 11 :11 तक तत्पश्चात परिघ
राहु काल - सुबह 08:44 से 10:06 तक
सूर्योदय - 07:23
सूर्यास्त - 06:15
दिशा शूल - पूर्व
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:38 से 06:30 तक

#panchang