संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
स्वर्ग में इंद्र का राज्य था। •• नाके इन्द्रस्य राज्यं बभूव। एक बार दुर्वासा ऋषि के अपमान के कारण इंद्र को उनके शाप का भागी बना पड़ा। ••कस्मिंश्चित् दिने ऋषे: दुर्वासस: अपमानात्वात् इन्द्रेण तस्य शाप: भोक्तव्य: बभूव। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण इंद्र…
लेकिन, स्वर्ग का राजपद और इंद्र का आसन मिलने के कुछ ही दिनों में नहुष पर सत्ता और शक्ति का नशा छाने लगा।
•• परन्तु , नाकस्य राजपदस्य इन्द्रासनस्य च प्राप्तेः अनन्तरं किञ्चिद्दिनेषु हि नहुषः प्रशासनशक्त्योः मदान्धः भवितुमारेभे।
वो अपनी मनमानियों पर उतर आया।
•• स स्वेच्छारे संलग्नो जज्ञे।
इंद्र का पद मिलने के बाद उसने इंद्र की पत्नी शचि को भी अपने सामने पेश होने का फरमान सुना दिया।
•• इन्द्रपदस्य प्राप्ते: अनन्तरं स इन्द्रपत्नीं शचिमपि आत्मन: समक्षं उपस्थातुम् आदेशं श्रावयञ्चकार।
नहुष ने इंद्र की पत्नी शचि से कहा कि जब इंद्र का आसन और उसकी शक्तियां मेरे पास हैं, तो तुम भी मुझे अपना पति स्वीकार कर लो।
•• नहुष: इन्द्रपत्नीं शचिम् कथयाञ्चकार यत् यदा इन्द्रासन: तस्य च शक्तय: मम पार्श्वे सन्ति चेत् त्वमपि माम् आत्मानं स्वपतिं स्वीकुरु।
शचि ने मना किया।
•• शचि: अस्वीञ्चकार।
नहुष उसे तरह-तरह से परेशान करने लगा।
•• नहुष: तां बहुविधिना दोतुमारेभे।
तब परेशान होकर शचि देवगुरु बृहस्पति के पास गईं, उन्हें सारी बातें बताईं।
•• तदा उद्विग्नोभूय शचि: देवगुरुं बृहस्पतिं निकषा आगत्य तं सर्ववृत्तान्तं ज्ञापयञ्चकार।
नहुष की मनमानियों से सभी ऋषि भी परेशान थे।
•• नहुषस्य स्वेच्छाचारीत्वात् सर्वे ऋषय: अपि चिन्तिता: बभूवु।
तब देवगुरु ने शचि को एक युक्ति सुझाई।
•• तदा देवगुरु: शचे एकां युक्तिं परामर्शयञ्चकार।
उन्होंने शचि से कहा कि तुम नहुष का प्रस्ताव मान लो और उससे कहो कि अगर वो सप्त ऋषियों को कहार बनाकर खुद उनकी डोली में बैठकर आए तो तुम उसको अपना पति स्वीकार कर लोगी।
•• स शचिं कथयञ्चकार यत् त्वं नहुषस्य प्रस्तावं स्वीकृत्य तं कथय यत् यदि स सप्तर्षीन् कहारान् भावयित्वा तस्या: शिविकायाम् उपविश्य आगच्छेत् तर्हि त्वं तं स्वपतिं स्वीकुर्या:
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
•• परन्तु , नाकस्य राजपदस्य इन्द्रासनस्य च प्राप्तेः अनन्तरं किञ्चिद्दिनेषु हि नहुषः प्रशासनशक्त्योः मदान्धः भवितुमारेभे।
वो अपनी मनमानियों पर उतर आया।
•• स स्वेच्छारे संलग्नो जज्ञे।
इंद्र का पद मिलने के बाद उसने इंद्र की पत्नी शचि को भी अपने सामने पेश होने का फरमान सुना दिया।
•• इन्द्रपदस्य प्राप्ते: अनन्तरं स इन्द्रपत्नीं शचिमपि आत्मन: समक्षं उपस्थातुम् आदेशं श्रावयञ्चकार।
नहुष ने इंद्र की पत्नी शचि से कहा कि जब इंद्र का आसन और उसकी शक्तियां मेरे पास हैं, तो तुम भी मुझे अपना पति स्वीकार कर लो।
•• नहुष: इन्द्रपत्नीं शचिम् कथयाञ्चकार यत् यदा इन्द्रासन: तस्य च शक्तय: मम पार्श्वे सन्ति चेत् त्वमपि माम् आत्मानं स्वपतिं स्वीकुरु।
शचि ने मना किया।
•• शचि: अस्वीञ्चकार।
नहुष उसे तरह-तरह से परेशान करने लगा।
•• नहुष: तां बहुविधिना दोतुमारेभे।
तब परेशान होकर शचि देवगुरु बृहस्पति के पास गईं, उन्हें सारी बातें बताईं।
•• तदा उद्विग्नोभूय शचि: देवगुरुं बृहस्पतिं निकषा आगत्य तं सर्ववृत्तान्तं ज्ञापयञ्चकार।
नहुष की मनमानियों से सभी ऋषि भी परेशान थे।
•• नहुषस्य स्वेच्छाचारीत्वात् सर्वे ऋषय: अपि चिन्तिता: बभूवु।
तब देवगुरु ने शचि को एक युक्ति सुझाई।
•• तदा देवगुरु: शचे एकां युक्तिं परामर्शयञ्चकार।
उन्होंने शचि से कहा कि तुम नहुष का प्रस्ताव मान लो और उससे कहो कि अगर वो सप्त ऋषियों को कहार बनाकर खुद उनकी डोली में बैठकर आए तो तुम उसको अपना पति स्वीकार कर लोगी।
•• स शचिं कथयञ्चकार यत् त्वं नहुषस्य प्रस्तावं स्वीकृत्य तं कथय यत् यदि स सप्तर्षीन् कहारान् भावयित्वा तस्या: शिविकायाम् उपविश्य आगच्छेत् तर्हि त्वं तं स्वपतिं स्वीकुर्या:
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
This media is not supported in your browser
VIEW IN TELEGRAM
उपशीर्षके दोषाः क्षन्तव्याः।
सर्वनामपदानि (sarvanāmapadāni) means pronouns in Sanskrit. These are used to replace nouns when excessive repetition in the sentence is unwieldy.
The pronouns in Sanskrit follow the noun to be replaced in all aspects, i.e. to use a pronoun in place of a noun, we would use the same grammatical gender, grammatical case and grammatical number as we would have done for the noun.
Note: Pronouns generally have no सम्बोधनम् as their कारकम्, since we can not actually call someone using a pronoun, and सम्बोधनम् is the case used to call someone directly.
You should check शब्दरूपमाला for finding the words forms of pronouns.
🌐 Sanskritwisdom.com
#sanskritlessons
The pronouns in Sanskrit follow the noun to be replaced in all aspects, i.e. to use a pronoun in place of a noun, we would use the same grammatical gender, grammatical case and grammatical number as we would have done for the noun.
Note: Pronouns generally have no सम्बोधनम् as their कारकम्, since we can not actually call someone using a pronoun, and सम्बोधनम् is the case used to call someone directly.
You should check शब्दरूपमाला for finding the words forms of pronouns.
🌐 Sanskritwisdom.com
#sanskritlessons
एकदा अहं केनचित् मित्रैः सह समुद्रतटे चरामि आसं यदा कश्चन उच्चैः अवदत्।"पश्यतु तत् मृतं पक्षिम् !"
कश्चित् आकाशं पश्यन् अवदत् "कुत्र?"
#hasya
कश्चित् आकाशं पश्यन् अवदत् "कुत्र?"
#hasya
@samvadah organises संलापशाला - A Sanskrit Voicechat Room
🔰 विषयः - दिपावलिसिद्धता।
🗓३१/१०/२०२३ ॥ IST ११:०० AM
🔴 It's recording would be shared on our channel.
📑कृपया दैववाचा चर्चार्थं दिपावलिसिद्धता एतद्विषयम् अभिक्रम्य आगच्छत।
https://t.me/samvadah?livestream
पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
https://archive.org/details/samlapshala_
🔰 विषयः - दिपावलिसिद्धता।
🗓३१/१०/२०२३ ॥ IST ११:०० AM
🔴 It's recording would be shared on our channel.
📑कृपया दैववाचा चर्चार्थं दिपावलिसिद्धता एतद्विषयम् अभिक्रम्य आगच्छत।
https://t.me/samvadah?livestream
पूर्वचर्चाणां सङ्ग्रहः अधोदत्तः
https://archive.org/details/samlapshala_
Telegram
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
Largest Online Sanskrit Network
Network
https://t.me/samvadah/11287
Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Sanskrit Books @GranthaKutee
Network
https://t.me/samvadah/11287
Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Sanskrit Books @GranthaKutee
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - तृतीया रात्रि 09:30 तक तत्पश्चात चतुर्थी
⛅ दिनांक - 31 अक्टूबर 2023
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ शक संवत् - 1945
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - कार्तिक
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - रोहिणी 01 नवम्बर प्रातः 03:58 तक तत्पश्चात मृगशिरा
⛅ योग - वरियान दोपहर 03:34 तक तत्पश्चात परिघ
⛅ राहु काल - दोपहर 03:13 से 04:38 तक
⛅ सूर्योदय - 06:43
⛅ सूर्यास्त - 06:03
⛅ दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:02 से 05:53 तक
⛅ निशिता मुहूर्त - रात्रि 11:58 से 12:49 तक
⛅ व्रत पर्व विवरण - सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती (दि.अ. )
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - तृतीया रात्रि 09:30 तक तत्पश्चात चतुर्थी
⛅ दिनांक - 31 अक्टूबर 2023
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ शक संवत् - 1945
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - हेमंत
⛅ मास - कार्तिक
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - रोहिणी 01 नवम्बर प्रातः 03:58 तक तत्पश्चात मृगशिरा
⛅ योग - वरियान दोपहर 03:34 तक तत्पश्चात परिघ
⛅ राहु काल - दोपहर 03:13 से 04:38 तक
⛅ सूर्योदय - 06:43
⛅ सूर्यास्त - 06:03
⛅ दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅ ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:02 से 05:53 तक
⛅ निशिता मुहूर्त - रात्रि 11:58 से 12:49 तक
⛅ व्रत पर्व विवरण - सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती (दि.अ. )
संलापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
#samlapshala
दिपावलिसिद्धता
दिपावलिसिद्धता
🍃अज्ञानोपहतो बाल्ये यौवने मदनाहत:।
शेषे कलत्रचिन्तार्तः किं करोतु कदा जनः।।
🔆 बाल्यकाले मनुजः अज्ञानकारणेन आहतः भवति यौवनकाले कामभावनया तथैव वार्धक्यकाले परिवारचिन्तया च अतः मनुष्यः कुर्यादपि चेत् किम्।
⚜मनुष्य बाल्यकाल में अज्ञानता से अभिभूत होता है, युवावस्था में काम का शिकार होता है और शेष काल (वृद्धावस्था) में परिवार के भविष्य के बारे में चिन्तित रहता है। अब वह कब क्या कर सकता है?
⚜Man is overwhelmed by ignorance in childhood, in youth he is the victim of cupid and in the remaining period (old age) is worried thinking of the future of the family. When and what is one to do?
#Subhashitam
शेषे कलत्रचिन्तार्तः किं करोतु कदा जनः।।
🔆 बाल्यकाले मनुजः अज्ञानकारणेन आहतः भवति यौवनकाले कामभावनया तथैव वार्धक्यकाले परिवारचिन्तया च अतः मनुष्यः कुर्यादपि चेत् किम्।
⚜मनुष्य बाल्यकाल में अज्ञानता से अभिभूत होता है, युवावस्था में काम का शिकार होता है और शेष काल (वृद्धावस्था) में परिवार के भविष्य के बारे में चिन्तित रहता है। अब वह कब क्या कर सकता है?
⚜Man is overwhelmed by ignorance in childhood, in youth he is the victim of cupid and in the remaining period (old age) is worried thinking of the future of the family. When and what is one to do?
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
लेकिन, स्वर्ग का राजपद और इंद्र का आसन मिलने के कुछ ही दिनों में नहुष पर सत्ता और शक्ति का नशा छाने लगा। •• परन्तु , नाकस्य राजपदस्य इन्द्रासनस्य च प्राप्तेः अनन्तरं किञ्चिद्दिनेषु हि नहुषः प्रशासनशक्त्योः मदान्धः भवितुमारेभे। वो अपनी मनमानियों पर उतर आया।…
शचि ने ये सुझाव मान लिया।
•• शचि: एनां युक्तिं स्वीचकार।
उसने नहुष तक अपनी इस शर्त का संदेश भिजवा दिया।
•• सा नहुषं आत्मन: एतस्य समयस्य संदेशं प्रेषयञ्चकार।
शचि का संदेश पाकर नहुष खुश हो गया और उसने सप्तऋषियों को डोली उठाने का आदेश दिया।
•• शचे: सन्देशं श्रुत्वा नहुष: प्रसन्नोभूयो सप्तर्षीन् शिविकाम् उत्थापयितुम् आदिदेश।
मजबूरी में ऋषियों को नहुष की बात माननी पड़ी लेकिन वृद्ध होने के कारण वे तेज नहीं चल पा रहे थे।
•• बाध्योभूय ऋषिभि: नहुषस्य आदेश: स्वीकरणीय: बभूव परन्तु वृद्धावस्थाभि: ते तीव्रगत्या चलितुं न सक्षमा: बभूवु ।
तो नहुष ने डोली उठाकर आगे चल रहे अगस्त ऋषि को लात मारते हुए तेज चलने को कहा।
•• तदनन्तरं नहुष: शिविकाम् उत्थाप्य अग्रे चलितारं अगस्त्यम् ऋषिं पादप्रहारन् तीव्रगत्या चलितुम् आदिदेश।
इस पर ऋषियों के सब्र का बांध टूट गया।
••ऋषय: एतस्य कुकृत्यस्य सहनं कर्तुं न शेकु:।
उन्होंने नहुष को डोली से गिराते हुए तुरंत अजगर बन जाने का शाप दे दिया।
•• ते नहुषं शिविकात् पातयन् अविलम्बेन सर्पं भवितुं शशासु:।
धरती पर गिरा नहुष अजगर बन गया और अपने किए पर उसे पछतावा होने लगा।
••भूमौ पतित: नहुष: अजगर: बभूव तेन च पश्चात्ताप: अनुभूत:।
स्वर्ग का राजा बनने के योग्य व्यक्ति अपने अहंकार और गलतियों के कारण अजगर बन गया।
•• •• नाकराजो भवितुं योग्यपुरुष: आत्मन: अहङ्कारात् त्रुटिभ्यश्च अजगर: बभूव।
नहुष का उद्धार तब हुआ जब हज़ारों वर्षों बाद पांडवों ने उसे इस श्राप से मुक्त करवाया |
••नहुषस्य विमोचनं तदा बभूव
यदा सहस्रवर्षानन्तरं पाण्डवैः स शापमुक्तो बभूव।
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
•• शचि: एनां युक्तिं स्वीचकार।
उसने नहुष तक अपनी इस शर्त का संदेश भिजवा दिया।
•• सा नहुषं आत्मन: एतस्य समयस्य संदेशं प्रेषयञ्चकार।
शचि का संदेश पाकर नहुष खुश हो गया और उसने सप्तऋषियों को डोली उठाने का आदेश दिया।
•• शचे: सन्देशं श्रुत्वा नहुष: प्रसन्नोभूयो सप्तर्षीन् शिविकाम् उत्थापयितुम् आदिदेश।
मजबूरी में ऋषियों को नहुष की बात माननी पड़ी लेकिन वृद्ध होने के कारण वे तेज नहीं चल पा रहे थे।
•• बाध्योभूय ऋषिभि: नहुषस्य आदेश: स्वीकरणीय: बभूव परन्तु वृद्धावस्थाभि: ते तीव्रगत्या चलितुं न सक्षमा: बभूवु ।
तो नहुष ने डोली उठाकर आगे चल रहे अगस्त ऋषि को लात मारते हुए तेज चलने को कहा।
•• तदनन्तरं नहुष: शिविकाम् उत्थाप्य अग्रे चलितारं अगस्त्यम् ऋषिं पादप्रहारन् तीव्रगत्या चलितुम् आदिदेश।
इस पर ऋषियों के सब्र का बांध टूट गया।
••ऋषय: एतस्य कुकृत्यस्य सहनं कर्तुं न शेकु:।
उन्होंने नहुष को डोली से गिराते हुए तुरंत अजगर बन जाने का शाप दे दिया।
•• ते नहुषं शिविकात् पातयन् अविलम्बेन सर्पं भवितुं शशासु:।
धरती पर गिरा नहुष अजगर बन गया और अपने किए पर उसे पछतावा होने लगा।
••भूमौ पतित: नहुष: अजगर: बभूव तेन च पश्चात्ताप: अनुभूत:।
स्वर्ग का राजा बनने के योग्य व्यक्ति अपने अहंकार और गलतियों के कारण अजगर बन गया।
•• •• नाकराजो भवितुं योग्यपुरुष: आत्मन: अहङ्कारात् त्रुटिभ्यश्च अजगर: बभूव।
नहुष का उद्धार तब हुआ जब हज़ारों वर्षों बाद पांडवों ने उसे इस श्राप से मुक्त करवाया |
••नहुषस्य विमोचनं तदा बभूव
यदा सहस्रवर्षानन्तरं पाण्डवैः स शापमुक्तो बभूव।
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
हिमसंस्कृतवार्ता अद्यपर्यन्तं सर्वेभ्यो निश्शुल्कं प्रदीयते। Himsanskritam.com इत्यत्र प्रतिदिनं वार्तापत्राणि आयान्ति। वयं पठकेभ्यः कृतकृत्याः स्मः।
अग्रे अपि सततं हिमसंस्कृतवार्तायाः सञ्चालनाय धनम् अनिवार्यम्। अतः भवान् स्वकोषम् उद्घाट्य अस्मै पुण्यकर्मणे अपि धनम् अर्पय। वार्षिकसहयोगराशिः ₹५०१ निश्चितम्।
यु॰पी॰आय् 9418927271
अग्रे अपि सततं हिमसंस्कृतवार्तायाः सञ्चालनाय धनम् अनिवार्यम्। अतः भवान् स्वकोषम् उद्घाट्य अस्मै पुण्यकर्मणे अपि धनम् अर्पय। वार्षिकसहयोगराशिः ₹५०१ निश्चितम्।
यु॰पी॰आय् 9418927271