संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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ओ३म्
२५९ संस्कृत वाक्याभ्यासः

एकस्य विवाहसमारोहः चलति।
= एक का विवाह समारोह चल रहा है

वरयात्रा निर्गच्छति ।
= बारात निकल रही है।

वादित्राः वाद्यानि वादयन्ति।
= बैंड वाले वाद्य बजा रहे हैं ।

केवलम् एकः एव युवकः नृत्यति।
= केवल एक ही युवक नाच रहा है।

वरस्य पिता अवदत्।
= वर का पिता बोला

किमर्थं सर्वे न नृत्यन्ति ?
= सभी क्यों नहीं नाच रहे हैं ?

मातुल! आगच्छतु ।
= मामाजी आईये।

मातुलानि ! आगच्छतु।
= मामीजी आईये।

मातृस्वसा ! आगच्छतु।
= मौसीजी आईये।

भ्रातः ! आगच्छतु।
= भैया ! आईये

भ्रातृजाया ! आगच्छतु।
= भाभीजी आईये।

आहा , अधुना तु सर्वे नृत्यन्ति।
आहा , अब तो सब नाच रहे हैं।

ओ३म्
२६० संस्कृत वाक्याभ्यासः

मम माता विविधप्रकाराणां संधानं निर्माति स्म।
= मेरी माँ विविध प्रकार के अचार बनाती थीं

अपक्वाम्रस्य अम्लीयं संधानम्
= कच्चे आम का खट्टा अचार

अपक्वाम्रस्य मधुरं संधानम्
= कच्चे आम का मीठा अचार।

अपक्वाम्रस्य संमृदम् ( छिन्नकम् )अपि निर्माति स्म।
= कच्चे आम का छुन्ना भी बनाती थीं

केचन जनाः श्लेष्मातकस्य संधानं निर्मान्ति।
= कुछ लोग लसोड़े का अचार बनाते हैं

मम भगिनी शाकानां संधानं निर्माति।
= मेरी जीजी सब्जियों का अचार बनाती हैं।

लशुनस्य अपि संधानं भवति।
= लहसुन का भी अचार होता है।

एकदा हिंगोः संधानं खादितवान् अहम्
= एक बार मैंने हींग का अचार खाया।

अपक्वे आम्रे हिंगू स्थाप्यते।
= कच्ची केरी में हींग डाली जाती है।

सिंधी जनाः पलाण्डोः संधानं निर्मान्ति।
= सिंधी लोग प्याज का अचार बनाते हैं

मह्यं संधानं रोचते।
= मुझे अचार पसंद है।

ओ३म्

२६१ संस्कृत वाक्याभ्यासः

सः बहु चिन्तामग्नः अस्ति।
= वह बहुत चिन्ता में है।

सः बहु स्थानतः ऋणं स्वीकृतवान्।
= उसने बहुत जगहों से ऋण लिया है।

सः चिन्तयति।
= वह विचारता है।

कदा ऋणमुक्तः भविष्यामि।
= कब ऋण से मुक्त होऊँगा ।

सुरेशाय पञ्चाशत्सहस्र रुप्यकाणि देयानि सन्ति।
= सुरेश को पचास हजार देने हैं

विक्रमसिंहाय नवतिसहस्र रुप्यकाणि देयानि सन्ति।
= विक्रमसिंह को नब्बे हजार देने हैं ।

वित्तकोषतः अपि एकलक्षं स्वीकृतवान्।
= बैंक से एक लाख लिया है।

प्रतिमासं ऋणभागं ददामि।
= हरमहिने हप्ता भरता हूँ।

सत्यं वदानि , ऋणं कदापि न स्वीकरणीयम् ।
= सच कहूँ , ऋण कभी नहीं लेना चाहिये।

धनम् आगच्छति तदा बहु सुखमयं भासते।
= धन आता है तब बहुत सुखमय लगता है

यदा प्रत्यर्पणीयं भवति तदा कष्टम् अनुभूयते।
= जब लौटाना होता है तब कष्ट अनुभव होता है।

ओ३म्

२६२ संस्कृत वाक्याभ्यासः

सा मयि कियत् स्निह्यति स्म।
= वह मुझे कितना प्यार करती थी।

सा मम विषये सर्वं जानाति स्म।
= वह मेरे बारे में सब कुछ जानती थी

अहं कदा उत्तिष्ठामि?
= मैं कब उठता हूँ

अहं कदा कार्यालयं गच्छामि?
= मैं कब कार्यालय जाता हूँ।

मम मित्राणि कानि सन्ति ?
= मेरे मित्र कौन हैं

अहं किं पठामि ?
= मैं क्या पढ़ता हूँ

अहं कदा भोजनम् इच्छामि ?
= मैं कब भोजन चाहता हूँ

सा मम रुचिं जानाति स्म
= वह मेरी रुचि जानती थी

सा मम माता अस्ति
= वह मेरी माँ है

अद्य मम मातुः पुण्यतिथिः अस्ति।
= आज मेरी अम्माजी की पुण्यतिथि है

मम मातृचरणयोः सादरं प्रणमामि अहम्
= मैं माँ के चरणों में सादर नमन करता हूँ।

ओ३म्

२६३ संस्कृत वाक्याभ्यासः

अहं हरिद्वारं गच्छामि।
= मैं हरिद्वार जा रहा हूँ।

कः कः चलितुम् इच्छति ?
= कौन कौन चलना चाहता है ?

का का चलितुम् इच्छति ?
= कौन कौन चलना चाहती हैं ?

कः कः चलिष्यति ?
= कौन कौन चलेगा ?

का का चलिष्यति ?
= कौन कौन चलेंगी ?

प्रीतिः – अहं चलिष्यामि ।
= मैं चलूँगी ।

प्रद्युम्नः – अहं चलिष्यामि
= मैं चलूँगा।

प्रियंका चलिष्यति।
= प्रियंका चलेगी ।

भार्गवः चलिष्यति।
= भार्गव चलेगा।

जगदीशः अपि चलिष्यति।
= जगदीश भी चलेगा।

सुमित्रा अपि चलिष्यति।
= सुमित्रा भी चलेगी ।

नन्दिनी न चलिष्यति।
= नन्दिनी नहीं चलेगी।

नन्दिनी मीनाक्षीपुरं गमिष्यति।
= नन्दिनी मीनाक्षीपुर जाएगी।

अस्तु , ये चलिष्यन्ति तेषाम् आरक्षणं कारयामि।
= ठीक है , जो चलेंगे उनका आरक्षण करवाता हूँ।


#Vakyabhyas
शिक्षकः—-यः श्रोतुं न शक्नोति तं वयं किं वदामः diflucan cena??🤔

एकः छात्रः—किमपि वदन्तु

सः न श्रोष्यति।
😁😆😂🤣😆😁🤣😂

#hasya
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

श्लोकः:

कोऽर्थान्प्राप्य न गर्वितो विषयिणः कस्यापदोऽस्तं गताः।
स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः को वास्ति राज्ञां प्रियः।
कः कालस्य भुजान्तरं न च गतः कोऽर्थी गतो गौरवं।
को वा दुर्जनवागुरासु पतितः क्षेमेण यातः पुमान्। 388/141।

अर्थः:

कौन ऐसा है जिसने संपत्ति पाकर गर्व नहीं किया? किस विषयासक्त व्यक्ति की समस्याएँ समाप्त हुईं हैं? इस धरती पर किसका मन स्त्रियों द्वारा विचलित नहीं हुआ है? राजा का प्रिय कौन नहीं है? काल के हाथों से कौन नहीं गुजरा? कौन भिखारी सम्मान प्राप्त कर सकता है? और कौन व्यक्ति दुर्जनों के कपट में फंसकर सुरक्षित लौटा है?

MEANING:

Who hasn’t become arrogant after acquiring wealth? Whose troubles have been diminished despite being lustful? Whose mind has not been disturbed by women in this world? Who is not beloved to kings? Who has not been seized by the grasp of time? Who among beggars receives respect? And who has returned safely after falling into the deceit of the wicked?

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
June 1, 2021

 ब्रिट्टने कोविडस्य तृतीयतरङ्गः उद्भूतः इति विदग्धाः। 

  लण्टन्> ब्रिट्टनराष्ट्रे कोविड्रोगस्य तृतीयतरङ्गः आरब्ध इति तत्रस्थः गवेषकः सर्वकारस्य उपदेशकः प्रोफ.रविगुप्तः अब्रवीत्। भारते अधिगतस्य कोरोणावैराणोः रूपान्तरमेव इदानीं यू केमध्ये तृतीयतरङ्गाय कारणभूतमिति तेनोक्तम्। पिधानमभिव्याप्य तीव्रनियन्त्रणानि आवश्यकानि। नोचेत् अवस्था आशङ्काजनका भविष्यति इति पर्यावरणसचिवेन जोर्ज् यूस्टिस् इत्यनेनापि निगदितम्।

    गतदिने अनुस्यूततया षष्ठदिनेऽपि त्रिसहस्राधिकानि कोविड्प्रकरणानि प्रतिदिनमावेदितानि। किन्तु मरणानि नावेदितानि।

~ संप्रति वार्ता
Magha was a renowned Sanskrit poet and author, celebrated for his skill in composing entire verses using just one, two, three, or four consonants. Here is an example from his work, Shishupala Vadha:

In the 144th stanza, he crafts a complete sloka using only one consonant:

दाददो दुद्ददुद्दादी दाददो दूददीददोः । 
दुद्दादं दददे दुद्दे दादाददददोऽददः ॥


Sri Krishna, the giver of every boon, the scourge of the evil-minded, the purifier, the one whose arms can annihilate the wicked who cause suffering to others, shot his pain-causing arrow at the enemy.

Additionally, he was a master of writing palindromes. In the 44th stanza, he writes:

वारणागगभीरा सा साराभीगगणारवा । 
कारितारिवधा सेना नासेधा वारितारिका ॥


It is very difficult to face this army which is endowed with elephants as big as mountains. This is a very great army, and the shouting of frightened people is heard. It has slain its enemies.

#celebrating_sanskrit
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - अष्टमी 03 जून रात्रि 01:13 तक तत्पश्चात नवमी

दिनांक - 02 जून 2021
दिन - बुधवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - ज्येष्ठ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - शतभिषा शाम 05:00 तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
योग - विष्कम्भ 03 जून रात्रि 02:27 तक तत्पश्चात प्रीति
राहुकाल - दोपहर 12:37 से दोपहर 02:17 तक
सूर्योदय - 05:57
सूर्यास्त - 19:15
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

श्लोकः:

मांसमूत्रपुरीषास्थि-
निर्मितेऽस्मिन् कलेवरे।
विनश्वरे विहायास्थां
यशः पालय मित्र मे। 89/042।

अर्थः:

हे मित्र, मांस, मूत्र, मल तथा अस्थियों से निर्मित इस नाशवान शरीर में आस्था रखना छोड़ दो और यश प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करो। अर्थात्, शरीर नाशवान है, इसे जानकर भी यदि हम उसी नश्वर शरीर के प्रति प्रेम रखें, तो हम यश प्राप्त नहीं कर सकते। इसलिये, शरीर के मोह को त्याग कर उसे यश प्राप्ति के कार्य में लगाना चाहिए।

MEANING:

O my friend, do not keep affection in the body which will eventually perish and is made of flesh, urine, stool, and bones. Instead, focus on actions that can help you earn lasting fame.

EXPLANATION:

The verse advises abandoning attachment to the perishable body, composed of flesh, urine, stool, and bones, and instead dedicating efforts to achieving fame and glory. Recognizing the transient nature of the body, one should use it in ways that contribute to lasting reputation rather than being attached to its fleeting existence.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
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२.६ आकाशवाणी संस्कृत
🍃 रामनामा सदा खेदभावे दयावान् अतापीनतेजाः रिपौ आनते।
कादिमोदासहाता स्वभासा रसामे सुगः रेणुकागात्रजे भूरुमे ॥ ७॥


🔸श्री राम - दुःखियों के प्रति सदैव दयालु, सूर्य की तरह तेजस्वी मगर सहज प्राप्य, देवताओं के सुख में विघ्न डालने वाले राक्षसों के विनाशक - अपने बैरी - समस्त भूमि के विजेता, भ्रमणशील रेणुका-पुत्र परशुराम - को पराजित कर अपने तेज-प्रताप से शीतल शांत किया था।


विलोम श्लोक :—

🍃 मेरुभूजेत्रगा काणुरे गोसुमे सा अरसा भास्वता हा सदा मोदिका।
तेन वा पारिजातेन पीता नवा यादवे अभात् अखेदा समानामर ॥ ७॥


🔸अपराजेय मेरु (सुमेरु) पर्वत से भी सुन्दर रैवतक पर्वत पर निवास करते समय रुक्मिणी को स्वर्णिम चमकीले पारिजात पुष्पों की प्राप्ति उपरांत धरती के अन्य पुष्प कम सुगन्धित, अप्रिय लगने लगे। उन्हें कृष्ण की संगत में ओजस्वी, नवकलेवर, दैवीय रूप प्राप्त करने की अनुभूति होने लगी।

#Viloma_Kavya
चाणक्य नीति ⚔️
✒️ चतुर्दशः अध्याय

♦️श्लोक :- १९

धर्मं धनं च धान्यं गुरोर्वचनमौषधम्।
संगृहीतं च कर्तव्यमन्यथा न तु जीवति।।१९।।

♦️भावार्थ - धर्म का आचरण, धन का उपार्जन, नाना प्रकार के अन्नों का संचय, गुरु के वचनों का तथा विविध प्रकार की औषधियों का सेवन विधि-विधान से तथा प्रयत्न पूर्वक करना चाहिए। ऐसा न करने पर निश्चय ही व्यक्ति ठीक प्रकार से जी नहीं सकता।

#Chanakya