🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩युगाब्द-५१२५
🌥 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅️ 🚩तिथि - त्रयोदशी दोपहर 01:27 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
⛅️दिनांक - 18 अप्रैल 2023
⛅️दिन - मंगलवार
⛅️शक संवत् - 1945
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - वैशाख
⛅️पक्ष - कृष्ण
⛅️नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद रात्रि 01:01 तक तत्पश्चात रेवत
⛅️योग - इन्द्र शाम 06:10 तक तत्पश्चात वैधृति
⛅️राहु काल - शाम 03:50 से 05:26 तक
⛅️सूर्योदय - 06:17
⛅️सूर्यास्त - 07:01
⛅️दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅️ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:47 से 05:32 तक*
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩युगाब्द-५१२५
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⛅️दिनांक - 18 अप्रैल 2023
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⛅️योग - इन्द्र शाम 06:10 तक तत्पश्चात वैधृति
⛅️राहु काल - शाम 03:50 से 05:26 तक
⛅️सूर्योदय - 06:17
⛅️सूर्यास्त - 07:01
⛅️दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅️ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:47 से 05:32 तक*
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
https://youtu.be/GOfNLQMS8Ak
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
YouTube
वार्ता: संस्कृत में समाचार | News in Sanskrit
🍃
🔆शिलां पर्वतस्य उपरि नेतुं कष्टास्पदं अस्ति परं ता शिला ततः क्षणे एव अधः पतति
तथैव आत्मानं सद्गुणी भवितुं तु कष्टास्पदं एव परं क्षणार्धे दुर्गुणी भवति|
⚜"शिला को पर्वत के उपर ले जाना कठिन कार्य है परन्तु उपर से नीचे धकेलना अत्यंत सरल है । ऐसे ही मनुष्य को सद्गुणों से युक्त करना कठिन है परंतु दुर्गुणों से भरना अत्यंत सुलभ है।"
#Subhashitam
आरोप्यते शिला शैले यत्नेन महता यथा।
पात्यते तु क्षणेनाधस्तथात्मा गुणदोषयो:
||🔆शिलां पर्वतस्य उपरि नेतुं कष्टास्पदं अस्ति परं ता शिला ततः क्षणे एव अधः पतति
तथैव आत्मानं सद्गुणी भवितुं तु कष्टास्पदं एव परं क्षणार्धे दुर्गुणी भवति|
⚜"शिला को पर्वत के उपर ले जाना कठिन कार्य है परन्तु उपर से नीचे धकेलना अत्यंत सरल है । ऐसे ही मनुष्य को सद्गुणों से युक्त करना कठिन है परंतु दुर्गुणों से भरना अत्यंत सुलभ है।"
#Subhashitam
बहुत सुंदर कहानी है।
••अतीव सुन्दरी कथा अस्ति।
एक बार एक संत से एक व्यक्ति ने पूछा- गुरु जी!जब मेरी शादी हुई तो मुझे अपनी पत्नी दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री लगती थी।
••एकदा एकं साधुम् एक: जन: पृष्टवान् -
गुरुवर्य!यदा मम विवाह: अभवत् तदा मया स्वभार्या विश्वस्य सुन्दरतमा पत्नी प्रतीयते स्म।
लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया मुझे अपनी पत्नी के स्थान पर दुनिया की हर स्त्री सुंदर लगने लगी।
••परन्तु यथा यथा काल: व्यतीत: अभवत् तथा तथा मम भार्यायाः स्थाने अहं जगति प्रत्येकं स्त्रियं सुन्दरीम् अवाप्तवान्।
मैं क्या करूं?मेरे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है?
••अहं किं करवाणि?मया सह एवं किमर्थं भवति?
इस पर संत ने मुस्कुरा कर ज़वाब दिया-
••एतस्मिन् कथने साधु: मन्दहासं कृत्वा प्रत्युवाच-
अगर आपकी शादी मैं दुनिया की तमाम स्त्रियों से करा दूँ और वो सभी आपको उपलब्ध हो जाए तो आपको गली में खड़ी एक कुतिया प्रिय लगने लगेगी।
••यदि अहं भवतो विवाहो विश्वस्य सर्वा: नार्या: कुर्यां ता: च सर्वा: उपलब्धा: भवेयु: तर्हि वीथिकायां स्थिता एका कुक्कुरी भवते रोचेत।
क्योंकि कमियां आपकी पत्नी में नहीं आपकी सोच में है।
••यतोहि दोषाः भवतः भार्यायां न अपितु भवतः चिन्तने एव सन्ति।
आपके पास जो कुछ है आपको उसी में संतुष्ट होना चाहिए क्योंकि अधिक पाने की लालसा आपको कभी संतुष्ट नहीं होने देगी।
••भवतः समीपे यत् किमपि वर्तते तेनैव सन्तुष्टिः प्रापणीया यतोहि अधिकं प्राप्तुमिच्छा भवते कदापि सन्तोषं न दास्याति|
यदि आप अपने लालच से ऊपर उठकर देखेंगे तो आपको अपनी पत्नी में अप्सरा दिखाई देगी और आप आनन्द से भरे रहेगे।
••यदि भवान् लोभात् मुक्त्वा अनुभवेत् तर्हि भवान् स्वभार्यायाम् अप्सरसः दर्शनं करिष्यति भवान् च सानन्दमयः भविष्यति।
मनुष्य और देवताओं में अन्तर सिर्फ उनकी सोच का है।
••मनुष्याणां देवानां च भेदः केवलं तेषां चिन्तनस्य एव भवति।
अगर देवता चाहे तो वो हजारों पत्नी रख सकते हैं किन्तु प्रत्येक देवताओं के पास युगों युगों से एक ही पत्नी हैं और वो आनन्द से जी रहे हैं।
••यदि देवा इच्छेयु: तर्हि तेषां सहस्रा: भार्याः भवितुमर्हेयु:,परन्तु प्रत्येकं देवस्य युग-युगेभ्यः पत्नी एका एव भवति ते च सुखेन जीवन्ति।
मनुष्य की घटिया सोच ही उसे जीवन भर परेशान करती हैं।
••मनुष्यस्य दुश्चिन्तनमेव तम् जीवनपर्यन्तं बाधते।
अगर आनन्दित रहना है तो अपनी सोच को बदलना होगा।
••यदि भवान् सुखी भवितुमिच्छेत् तर्हि भवता स्वचिन्तनस्य परिवर्तनं कर्त्तव्यम्।
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
••अतीव सुन्दरी कथा अस्ति।
एक बार एक संत से एक व्यक्ति ने पूछा- गुरु जी!जब मेरी शादी हुई तो मुझे अपनी पत्नी दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री लगती थी।
••एकदा एकं साधुम् एक: जन: पृष्टवान् -
गुरुवर्य!यदा मम विवाह: अभवत् तदा मया स्वभार्या विश्वस्य सुन्दरतमा पत्नी प्रतीयते स्म।
लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया मुझे अपनी पत्नी के स्थान पर दुनिया की हर स्त्री सुंदर लगने लगी।
••परन्तु यथा यथा काल: व्यतीत: अभवत् तथा तथा मम भार्यायाः स्थाने अहं जगति प्रत्येकं स्त्रियं सुन्दरीम् अवाप्तवान्।
मैं क्या करूं?मेरे साथ ऐसा क्यूँ हो रहा है?
••अहं किं करवाणि?मया सह एवं किमर्थं भवति?
इस पर संत ने मुस्कुरा कर ज़वाब दिया-
••एतस्मिन् कथने साधु: मन्दहासं कृत्वा प्रत्युवाच-
अगर आपकी शादी मैं दुनिया की तमाम स्त्रियों से करा दूँ और वो सभी आपको उपलब्ध हो जाए तो आपको गली में खड़ी एक कुतिया प्रिय लगने लगेगी।
••यदि अहं भवतो विवाहो विश्वस्य सर्वा: नार्या: कुर्यां ता: च सर्वा: उपलब्धा: भवेयु: तर्हि वीथिकायां स्थिता एका कुक्कुरी भवते रोचेत।
क्योंकि कमियां आपकी पत्नी में नहीं आपकी सोच में है।
••यतोहि दोषाः भवतः भार्यायां न अपितु भवतः चिन्तने एव सन्ति।
आपके पास जो कुछ है आपको उसी में संतुष्ट होना चाहिए क्योंकि अधिक पाने की लालसा आपको कभी संतुष्ट नहीं होने देगी।
••भवतः समीपे यत् किमपि वर्तते तेनैव सन्तुष्टिः प्रापणीया यतोहि अधिकं प्राप्तुमिच्छा भवते कदापि सन्तोषं न दास्याति|
यदि आप अपने लालच से ऊपर उठकर देखेंगे तो आपको अपनी पत्नी में अप्सरा दिखाई देगी और आप आनन्द से भरे रहेगे।
••यदि भवान् लोभात् मुक्त्वा अनुभवेत् तर्हि भवान् स्वभार्यायाम् अप्सरसः दर्शनं करिष्यति भवान् च सानन्दमयः भविष्यति।
मनुष्य और देवताओं में अन्तर सिर्फ उनकी सोच का है।
••मनुष्याणां देवानां च भेदः केवलं तेषां चिन्तनस्य एव भवति।
अगर देवता चाहे तो वो हजारों पत्नी रख सकते हैं किन्तु प्रत्येक देवताओं के पास युगों युगों से एक ही पत्नी हैं और वो आनन्द से जी रहे हैं।
••यदि देवा इच्छेयु: तर्हि तेषां सहस्रा: भार्याः भवितुमर्हेयु:,परन्तु प्रत्येकं देवस्य युग-युगेभ्यः पत्नी एका एव भवति ते च सुखेन जीवन्ति।
मनुष्य की घटिया सोच ही उसे जीवन भर परेशान करती हैं।
••मनुष्यस्य दुश्चिन्तनमेव तम् जीवनपर्यन्तं बाधते।
अगर आनन्दित रहना है तो अपनी सोच को बदलना होगा।
••यदि भवान् सुखी भवितुमिच्छेत् तर्हि भवता स्वचिन्तनस्य परिवर्तनं कर्त्तव्यम्।
~उमेशगुप्तः
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अभिमानी :- भवान् इतःपूर्वं प्रणयकविताः गीतानि लिखन्नासीत् खलु..
परं इदानीं किमर्थम् न रचयति ?
कविः :- तस्याः इदानीं विवाहः अभवत्
अभिमानी :- तर्हि विरहगीतानि लिखतु !
कविः :- किम् नु प्रयोजनम् ।
तस्याः विवाहः मया सह एव जातः।
#hasya
परं इदानीं किमर्थम् न रचयति ?
कविः :- तस्याः इदानीं विवाहः अभवत्
अभिमानी :- तर्हि विरहगीतानि लिखतु !
कविः :- किम् नु प्रयोजनम् ।
तस्याः विवाहः मया सह एव जातः।
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Topic - अध्यारोप - अपवाद: , लिङ्गशरीरोत्पत्तिः
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🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩युगाब्द-५१२५
🌥 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅️ 🚩तिथि - चतुर्दशी सुबह 11:23 तक तत्पश्चात अमावस्या
⛅️दिनांक - 19 अप्रैल 2023
⛅️दिन - बुधवार
⛅️शक संवत् - 1945
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - वैशाख
⛅️पक्ष - कृष्ण
⛅️नक्षत्र - रेवती रात्रि 11:53 तक तत्पश्चात अश्विनी
⛅️योग - वैधृति दोपहर 03:26 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
⛅️राहु काल - दोपहर 12:39 से 02:15 तक
⛅️सूर्योदय - 06:16
⛅️सूर्यास्त - 07:02
⛅️दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅️ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:46 से 05:31 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩युगाब्द-५१२५
🌥 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅️ 🚩तिथि - चतुर्दशी सुबह 11:23 तक तत्पश्चात अमावस्या
⛅️दिनांक - 19 अप्रैल 2023
⛅️दिन - बुधवार
⛅️शक संवत् - 1945
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - वैशाख
⛅️पक्ष - कृष्ण
⛅️नक्षत्र - रेवती रात्रि 11:53 तक तत्पश्चात अश्विनी
⛅️योग - वैधृति दोपहर 03:26 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
⛅️राहु काल - दोपहर 12:39 से 02:15 तक
⛅️सूर्योदय - 06:16
⛅️सूर्यास्त - 07:02
⛅️दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅️ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:46 से 05:31 तक
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (डोकानियोपनामको मोहितः)
https://youtu.be/XsR4XRdkJe8
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
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वार्ता: संस्कृत में समाचार | News in Sanskrit
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🔆 अस्मिन् संसारे जलदस्य जलेन सदृशं उत्तमम् अन्यत् जलं नास्ति आत्मनः बलस्य समम् उत्तमं अन्यत् बलं नास्ति नेत्रयोः तेजसा सदृशं उत्तमम् अन्यत् तेजः नास्ति अन्नस्य सदृशं अन्यत् किमपि प्रियम् नास्ति|
⚜मेघ के जल के समान दूसरा जल उत्तम नहीं, आत्मबल के समान और दूसरा बल नहीं। नेत्र तेज के समान दूसरा तेज नहीं और अन्न के समान दूसरी कोई वस्तु प्यारी इस संसार में नहीं है।
#Subhashitam
नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति आत्मसमं बलम्। नास्ति चक्षुः समं तेजो नास्ति चान्नसमं प्रियम्
।।🔆 अस्मिन् संसारे जलदस्य जलेन सदृशं उत्तमम् अन्यत् जलं नास्ति आत्मनः बलस्य समम् उत्तमं अन्यत् बलं नास्ति नेत्रयोः तेजसा सदृशं उत्तमम् अन्यत् तेजः नास्ति अन्नस्य सदृशं अन्यत् किमपि प्रियम् नास्ति|
⚜मेघ के जल के समान दूसरा जल उत्तम नहीं, आत्मबल के समान और दूसरा बल नहीं। नेत्र तेज के समान दूसरा तेज नहीं और अन्न के समान दूसरी कोई वस्तु प्यारी इस संसार में नहीं है।
#Subhashitam
योषिद्भिः अपि आत्मरक्षणम् ज्ञातव्यमेव।
कति कृदन्तप्रत्ययाः प्रयुक्ताः वाक्ये।
कति कृदन्तप्रत्ययाः प्रयुक्ताः वाक्ये।
Anonymous Quiz
36%
एकम्
36%
द्वे
24%
त्रीणि
3%
एकोऽपि न
कौआ एकमात्र पक्षी है जो बाज पर चोंच मारने की हिम्मत करता है।
••वायस: एव केवलम् एतादृश: पक्षी अस्ति य: श्येनस्य उपरि चञ्चुप्रहारं कर्तुं साहसं करोति।
वह बाज की पीठ पर बैठता है और उसकी गर्दन पर काटता है।
••स श्येनस्य पृष्ठे उपविश्य तस्य ग्रीवां दशति।
परन्तु बाज जवाब नहीं देता और न ही कौवे से लड़ता है।
••परन्तु श्येन: न प्रतिवदति न च काकेन सह युध्यति।
वह कौआ पर समय बर्बाद नहीं करता।
••सः वायसस्य उपरि समयस्य अपव्ययं न करोति।
बस वह अपने पंख खोलता है और आसमान की ओर ऊँचा उठना शुरू कर देता है।
••सः केवलं पक्षौ प्रसार्य आकाशदिशि आत्मानम् उन्नीय उड्डयितुमारभते।
बाज की उड़ान जितनी ऊँची होती जाती है कौआ के लिए उतना ही मुश्किल बढ़ता जाता है।
••श्येनस्य उड्डयनं यथा यथा उच्चतरं भवति तथा तथा वायसस्य कृते तावदेव काठिन्यं भवति।
ऊपर साँस लेना और फिर ऑक्सीजन की कमी के कारण कौआ गिर जाता है।
•• आकाशे प्राणवायो: अभावात् श्वसनबाधाकारणात् वायस: पतति।
कौवे के साथ अपना समय बर्बाद करना बंद कीजिए।बस आप स्वयं ऊँचाइयों पर चले जाइए।कौवे ऐसे ही मिट जाएँगे।
••वायसै: सह स्वसमयस्य अपव्ययं मा करोतु।केवलं भवान् स्वयमेव ऊर्ध्वतां गच्छतु।वायसा: एवमेव नष्टा: भविष्यन्ति।
~उमेशगुप्तः
#vakyabhyas
••वायस: एव केवलम् एतादृश: पक्षी अस्ति य: श्येनस्य उपरि चञ्चुप्रहारं कर्तुं साहसं करोति।
वह बाज की पीठ पर बैठता है और उसकी गर्दन पर काटता है।
••स श्येनस्य पृष्ठे उपविश्य तस्य ग्रीवां दशति।
परन्तु बाज जवाब नहीं देता और न ही कौवे से लड़ता है।
••परन्तु श्येन: न प्रतिवदति न च काकेन सह युध्यति।
वह कौआ पर समय बर्बाद नहीं करता।
••सः वायसस्य उपरि समयस्य अपव्ययं न करोति।
बस वह अपने पंख खोलता है और आसमान की ओर ऊँचा उठना शुरू कर देता है।
••सः केवलं पक्षौ प्रसार्य आकाशदिशि आत्मानम् उन्नीय उड्डयितुमारभते।
बाज की उड़ान जितनी ऊँची होती जाती है कौआ के लिए उतना ही मुश्किल बढ़ता जाता है।
••श्येनस्य उड्डयनं यथा यथा उच्चतरं भवति तथा तथा वायसस्य कृते तावदेव काठिन्यं भवति।
ऊपर साँस लेना और फिर ऑक्सीजन की कमी के कारण कौआ गिर जाता है।
•• आकाशे प्राणवायो: अभावात् श्वसनबाधाकारणात् वायस: पतति।
कौवे के साथ अपना समय बर्बाद करना बंद कीजिए।बस आप स्वयं ऊँचाइयों पर चले जाइए।कौवे ऐसे ही मिट जाएँगे।
••वायसै: सह स्वसमयस्य अपव्ययं मा करोतु।केवलं भवान् स्वयमेव ऊर्ध्वतां गच्छतु।वायसा: एवमेव नष्टा: भविष्यन्ति।
~उमेशगुप्तः
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Time - 7.30 - 8.30 pm
Topic - अपवाद: , लिङ्गशरीरोत्पत्तिः
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