संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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Sanskrit-1820-1830
१४.५ सांयकाल आकाशवाणी
🙏 14.5.21 वेदवाणी 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌻

*अहमपो अपिन्वमुक्षमाणा धारयं दिवं सदन ऋतस्य।*
*ऋतेन पुत्रो अदितेर्ऋतावोत त्रिधातु प्रथयद्वि भूम॥ ऋग्वेद ४-४२-४॥*🙏🌻

मैं (ईश्वर) जल ऊर्जा आदि की रचना करता हूं। मैंने ही सूर्य आदि को स्थापित किया है। मैंने ही नियमों के अनुसार सृष्टि की रचना सत्, रज् और तम् (मूल प्रकृति) द्वारा की है। मैंने ही इस सृष्टि को धारण किया हुआ है। मैं ही सृष्टि को नियमों के अनुसार चलाता हूं।🙏🌻

I (God) have created water energy, etc. I have established the sun, etc. According to the eternal law, I have created the universe by Sattva, Rajas and Tamas (MOOL PRAKIRITI). I uphold this creation. I run the universe according to the eternal law. (Rig Veda 4-42–4)🙏🌻 #vedgsawan 🙏🌻
Friday, May 14, 2021

 केरले अतिवृष्टिः, समुद्रविक्षोभः।

   कोच्ची> लक्षद्वीपसमुद्रे आविर्भूतस्य न्यूनमर्दस्य प्रभावात् केरले अतिवृष्टिरारब्धा। समुद्रतीरजनपदेषु समुद्रविक्षोभेन शतशः गृहाणि जलोपप्लावितानि भूतानि। तिरुवनंतपुरं, कोल्लम्, आलप्पुष़ा, पत्तनंतिट्टा इत्येतेषु  दक्षिणजनपदेषु अद्य रक्तजाग्रता प्रख्यापिता। 

  श्व आरभ्य न्यूनमर्दः ट्वट्टै नामकचक्रवातरूपेण भविष्यतीति पर्यावरणविभागेन निगदितमस्ति।

 धार्मिक-राजनैतिक-कार्यक्रमाः भारते कोविड् अतिव्यापनस्य हेतुरभवत् - विश्वस्वास्थ्यसंस्था।

- रमा टी. के 

 धार्मिक-राजनैतिक-कार्यक्रमाः भारते कोविड् अतिव्यापनस्य हेतुरभवत् इति विश्वस्वास्थ्यसंस्थया उच्यते।  Weekly epidemiological update इति सप्ताहिकपत्रिकायाः अन्तिमसम्पुटे एव एतत् कार्यं स्पष्टीकृतम्। विगते बुधवासरे आसीत् पत्रिकायाः प्रकाशनम्। 

रोगाणुव्यापनवर्धनाय बहूनि कारणानि सन्ति। धार्मिक-राजनैतिक-मेलनानि एव तेषु प्राधान्यत्वेन प्रतिपादितम्। सामृहिकदूरपालनं विना जनानां परस्परसम्पर्कः तथा स्वास्थ्य सुविधायाः उचितोपयोगाभावः च कारणानि  इति update मध्ये सूचितमस्ति।

कोविडस्य भारतीयविभेदः 'विश्वस्य उत्कण्ठा'  इति विश्वस्वास्थ्यसंस्थया प्रख्यापितम्। प्रथमतया     प्रत्यभिज्ञातः      बि.१.१६७ विभेदः एव 'varient of concern ' इति विभागे आयोजितम्। भारतीयविभेदस्य अतिव्यापनक्षमता अस्ति इत्यतः एव संक्रमः।

किन्तु विश्वस्वास्थ्यसंस्थायाः प्रमाणेषु  Indian varient   इति विभेदः नास्ति इति केन्द्रसर्वकारविभागेन  उक्तम्।  बि.१.१६७ इति प्रथमतया प्रत्यभिज्ञातस्य अणुविभेदस्य 'भारतीयविभेदः' इति केचन वार्तामाध्यमैः आवेदितम्। किन्तु एतत् सत्यविरुद्धम् एव। विश्वस्वास्थ्य संस्थया' अयं  भारतीयविभेदः' इति कुत्रापि न सूचितः इति औद्योगिकवृन्तैः विज्ञापितम्। भारतस्य कोविड् प्रतिरोधप्रवर्तनानां यशसि कलङ्कं प्रसारयितुम् एव 'भारतीयविभेद'  प्रयोगः क्रियते इति केन्द्रसर्वकारविभागेन  उक्तम्। ।

 इस्रयेल् - पालस्तीनसंघर्षे हतायाः भारतीयायाः शरीरं स्वेदेशमानयति। 

नवदिल्ली> दिनानि यावत् अनुवर्तमाने इस्रयेल-पालस्तीनयोः व्योमाक्रमणे उपशतं जनाः मृत्युमुपगताः। तेषु एका भारतीया अप्यस्ति। केरलस्थे इटुक्कीजनपदे कीरित्तोट् प्रदेशीया सौम्या नामिका कुजवासरे 'हमास्' संघटनेन इस्रयेलं विरुध्य कृते अग्निबाणाक्रमणे हता आसीत्।  इस्रयेलस्थे 'अष्कलोण'नगरे कस्मिंश्चन गृहे परिपालिकारूपेण [Caretaker] प्रवृत्तमाणा आसीत् सौम्या। 

  सौम्यायाः मृतशरीरं इस्रयेलस्थे भारतस्थानपतिकार्यालयेन स्वीकृतम्। सविशेषेण विमानेन शनिवासरे एव स्वदेशमानेतुं पदक्षेपाः स्वीकृताः इति विदेशकार्यसहमन्त्रिणा वि. मुरलीधरेण प्रोक्तम्।

~ संप्रति वार्ता
Uttararaamacharitam (Bhavabhuti)


सतां सद्भिस्संगः क्थमपि हि पुण्येन भवति

Sataam sadbhih sangah kathamapi hi punyena bhavati

The meeting of good people with good people somehow happens only by punya (fruit of meritorious deeds done in the past)


प्रियप्राया वृत्तिः विनयमधुरो वाचि नियमः
प्रकृत्या कल्याणी मतिरनवगीतः परिचयः।
पुरो वा पश्चाद्वा तदिदमविपर्यासित रसं
रहस्यं साधूनामनुपदि विशुद्धं विजयते॥

Priyapraayaa vrittih vinayamadhuro vaachi niyamah
Prakrityaa kalyaanee matiranavageetah parichayah
Puro vaa pashchaadwaa tadidamaviparyaasita rasam
Rahasyam saadhoonaamanupadhi vishuddham vijayate


Loving, polite and pleasing interaction with others, controlled speech, a heart which only thinks of the good of others, introduction which is not boastful, Uniform behaviour before and after (when face to face or behand the back)– These are the secrets, pure and simple, of saintly souls.


वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि ।
लोकोत्तराणां चेतांसि को नो विज्ञातुमर्हति॥

Vajraadapi kathhoraani mridooni kusumaadapi
Lokottaraanaam chetaamsi ko nu vijnaatumarhati.


The hearts of the best of men who are a cut above the ordinary people are harder than diamond (when facing obstacles or enemies ) and softer than flowers (towards the less privileged and the miserable). Who can understand the hearts of such men?


न किञ्चिदपि कुर्वाणः सौख्यैर्दु:खान्यपोहति।
तत्तस्य किमपि द्रव्यं यो हि यस्य प्रियो जनः

Na kinchidapi kurvaanah saukhyairdukhaanyapohati
Tattasya kimapi dravyam yo hi yasya priyo janah


Without doing anything, if one converts the sorrows of another person into joy and happiness, then the first one, who is the object of love for the second one, is a valuable thing for the latter.


अन्तःकरणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेह्संश्रयात्।
आनन्दग्रन्थिरेकोऽयं अपत्यमिति बध्यते ॥

Antahkaranatattwasya dampatyoh snehasamshrayaat
Aanandagranthireko’yam apatyamiti badhyate


The concrete manifestation of the joy arising out of the union of the minds of the husband and the wife is called apatyam (progeny) on which converges the love of both of them.


एको रसः करुण एव निमित्तभेदात्
भिन्नः पृथक्पृथगिवाश्रयते विवर्तान् ।
आवर्त बुद्बुद तरंगमयान् विकारान्
अंभो यथा सलिलमेव तु तत्समस्तम् ॥।

Eko rasah karuna eva nimittabhedaa-
dbhinnah pruthakprithagivaashrayate vivartaan
Aavarta budbuda taranga mayaan vikaaraan
Ambho yathaa salilameva tu tatsamastam


Karuna(pathetic) rasa (emotion) is the only one which manifests in the form of other emotions like sringara (love) etc. depending on the underlying circumstances which give rise to the emotion in the same way as bubbles, waves, swell etc are only different forms that water takes. The basic substance is water only.
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - तृतीया सुबह 07:59 तक तत्पश्चात चतुर्थी

दिनांक - 15 मई 2021
दिन - शनिवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - वैशाख
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - मॄगशिरा सुबह 08:39 तक तत्पश्चात आर्द्रा
योग - धृति 16 मई रात्रि 02:29 तक तत्पश्चात शूल
राहुकाल - सुबह 09:18 से सुबह 10:57 तक
सूर्योदय - 06:02
सूर्यास्त - 19:08
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
वसुधैव कुटुम्बकम् सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है,जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- *धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)*। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।

*अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।*
*उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥*


यह मेरा है, वह पराया है, ऐसे छोटे विचार के व्यक्ति करते हैं।
उच्च चरित्र वाले लोग समस्त संसार को ही परिवार मानते हैं॥

English translation:


This is mine, that is his, say the small minded,
The wise believe that the entire world is a family.
Sanskrit-0655-0700
१५.५ आकाशवाणी संस्कृत
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📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। षोडशः सर्गः ।।

🍃 स चाप्यपुत्रो नृपतिस्तस्मिन्काले महाद्युतिः।
अयजत्पुत्रियामिष्टिं पुत्रेप्सुररिसूदनः॥९॥

⚜️ भावार्थ - उसी समय पुत्रहीन, महाद्युतिमान् शत्रुहन्ता महाराज दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्रेष्टियज्ञ करना प्रारम्भ किया ॥९॥

🍃 स कृत्वा निश्चयं विष्णुरामन्त्र्य च पितामहम्।
अन्तर्धानं गतो देवैः पूज्यमाना महर्षिभिः॥१०॥

⚜️ भावार्थ - इस प्रकार महाराज दशरथ के घर में जन्म लेने का निश्चय कर और ब्रह्मा जी से बातचीत कर भगवान् विष्णु वहाँ से अन्तर्धान हो गये ॥१०॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त - २५ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ११ , देवता - वरुण

🍃अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति कृतानि या च कर्त्या.. (११)

⚜️ भावार्थ - बुद्धिमान् मनुष्य वरुण की अनुकंपा से वर्तमान काल और भविष्यत् काल की आश्चर्यजनक घटनाओं को देख लेते हैं। (११)

#Rgveda
चाणक्य नीति ⚔️

✒️ चतुर्दशः अध्याय

♦️श्लोक:-१

पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि अन्नमापः सुभाषितम्।
मूढैः पाषाणखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।१।।


धरती पर तीन ही रत्न है जल, अन्न और मधुर वचन, किन्तु मूर्ख पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहते हैं।

#Chanakya
माता मित्रं पिता चेति
स्वभावात्रितयं हितम्।
कार्यकारणतश्चान्ये
भवन्ति हितबुद्धयः॥
82/035॥

अर्थः-

माँ, मित्र और पिता का स्वभाव स्वाभाविक रूप से हितकारी होता है। इनके अलावा अन्य लोगों का स्वभाव कार्य-कारण संबंध से निर्धारित होता है, अर्थात् यदि आपका कार्य उनके लाभ में हो तो वे आपके हितकारी बनते हैं।

MEANING:

Mother, father, and a true friend are naturally trustworthy. Others will be either faithful or hostile toward us based on the justice of our actions, meaning they will respond according to whether our deeds align with or oppose their interests.

© Sanjeev GN #Subhashitam
ओ3म्

159. संस्कृत वाक्य अभ्यासः

कुछ दिन तक अपने पाठ को हिन्दी भाषा में लिखकर प्रारम्भ करना चाहता हूँ।
संस्कृत सीखने की चाह रखने वाले ( इच्छुक ) लोग आज भी हमारे समाज में अनेक हैं। ठीक उसी प्रकार संस्कृत सिखाने, पढ़ाने वाले भी अनेक हैं।

संस्कृत सिखाने, पढ़ाने वाले बहुत से लोग व्याकरण का ज्ञान देते हुए संस्कृत पढ़ाते हैं, तो कुछ लोग सीधे संस्कृत सम्वाद सिखाने का काम करते हैं।

व्याकरण का बोध सरलता से देना और सरलता से पाना यह सबके वश की बात नहीं होती है। यही कारण है कि जब व्याकरण समझ नहीं आता तब प्रायः सभी लोग व्याकरण से दूर भागने लग जाते हैं।

और संस्कृत व्याकरण को तो कुछ लोगों ने अज्ञानतावश और पूर्वाग्रह के चलते कठिन, क्लिष्ट, दुरूह आदि की संज्ञा दे डाली है।

जिन्हें व्याकरण कठिन लगता है उनके लिये यह आवश्यक नहीं है कि वे अष्टाध्यायी महाभाष्य पढ़कर संस्कृत सीखें। जब कि वे चुने हुए कुछ वाक्यों को अपने दैनिक वार्तालाप का हिस्सा बना लें।

जैसे –

आपसे कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा में नाम पूछे, पर आप तो उत्तर संस्कृत में ही दीजिये।

किसी ने पूछा- “वॉट इज यूवर नेम..?”

आपका उत्तर तो संस्कृत में ही होना चाहिये।

उत्तर- मम नाम अखिलेशः।

– मम नाम विनीता।

– मम नाम योगेन्द्रः।

– मम नाम सुधीरः। आदि ….

‘सॉरी’ न कहें , ‘क्षम्यताम्’ कहा करें।

“थैंक यू” न कहें , ‘धन्यवादः’ कहा करें।

‘प्लीज’ न कहें, ‘कृपया’ कहा करें।

‘वेलकम’ न कहें, ‘स्वागतम्’ कहा करें।

दैनिक व्यवहार से संस्कृत दूर हो गई तो संस्कृति नष्ट हो जाएगी। संस्कृति नष्ट हो गई तो हमारी ही भाषा, शिक्षा, व्याकरण आदि सब कठिन लगने लग जाएँगे।

संस्कृत के छोटे छोटे शब्दों को अपनी दैनिक व्यवहार की भाषा में पुनः स्थान दीजिये। बार बार संस्कृत शब्दों को बोलिये, सबके सामने बोलिये। अधिक से अधिक क्या होगा ? प्रारम्भ में लोग हँसेंगे… पर हमें संस्कृत को बढ़ाना है, संस्कृत का संवर्धन करना है तो इसी प्रकार से संस्कृत सम्वाद का शुभारम्भ करना होगा।

मुझे आशा है कि जिन लोगों को संस्कृत व्याकरण का ज्ञान नहीं है वे लोग भी इस पद्धति का अनुसरण करते हुए संस्कृत के पास आएँगे और संस्कृत से स्नेह बढ़ाएँगे।

आगे कुछ दिनों तक “संस्कृत वाक्य अभ्यास” नाम से पाठों का तरीका यही रहेगा।

मदर नहीं वह है माता मेरी।
फादर नहीं वह पिता हैं मेरे।

मॉर्निंग नहीं यह है ‘प्रातः’ प्यारा।
इवनिंग नहीं यह ‘सन्ध्या’ प्यारी।

वॉटर नहीं ‘जल’ पियो रे प्यारे।

मिल्क नहीं ‘दुग्धम्’ मीठा रे।

चलो संकल्प करें हम संस्कृत शब्दों को अपनाएँगे, अपनी भाषा को प्राञ्जल और सुदृढ़ बनाएँगे।

ओ3म्

160. संस्कृत वाक्य अभ्यासः

संस्कृत सीखने की चाह रखने वालों के उद्देश्य भिन्न भिन्न होते हैं।

वे लोग जिन्हें वेदमन्त्रों को अर्थसहित समझने की ललक होती है। केवल वेद को ही गहराई से समझना चाहते हैं तथा वेद का सटीक, शुद्ध भाष्य पढ़ना और पढ़ाना चाहते हैं।

वे लोग जिन्हें वेद, वेदाङ्ग, उपनिषद्, दर्शन आदि भी पढ़ने की इच्छा होती है।

वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन करने की रुचि वाले लोग अष्टाध्यायी, महाभाष्य, काशिका, निघण्टु आदि को पढ़ते हैं और संस्कृत व्याकरण का गहन अध्ययन करते हैं।

वे लोग जो संस्कृत पढ़ कर आजीविका पाना चाहते हैं।

वे लोग जो शौक के लिये संस्कृत पढ़ना चाहते हैं।

वे लोग जो संस्कृत की विरासत को सम्भाल कर रखना चाहते हैं।

वे लोग जो नित्य संस्कृत में बातचीत करना चाहते हैं।

आप इनमें से जिस भी वर्ग के हों प्रतिदिन अभ्यास नहीं करेंगे तब तक आप संस्कृत नहीं सीख पाएँगे।

आईये अभ्यास करें-

अहम् = मैं
सः = वह ( पुलिँग )
सा = वह ( स्त्रीलिंग)
एषः = यह ( पुलिँग)
एषा = यह ( स्त्रीलिंग)
भवान् = आप ( पुलिँग)
भवती = आप ( स्त्रीलिंग)

अस्मि = हूँ।
अस्ति = है।

अहम् अस्मि। = मैं हूँ।

सः अस्ति = वह है।
सा अस्ति = वह है।
एषः अस्ति = यह है।
एषा अस्ति = यह है।
भवान् अस्ति = आप हैं।
भवती अस्ति = आप हैं।

नियम-
1) संस्कृत में वार्तालाप का अभ्यास करने के लिए पहले दो दो शब्दों के वाक्य बोलें।
2) सर्वप्रथम एकवचन में ही वाक्यों का अभ्यास करें।

शनैः शनैः आप संस्कृत में बोलने लग जाएँगे।

निवेदक

अखिलेश आचार्य
संस्कृत सेवक
आदिपुर ( गुजरात )
अपि स्वर्णमयी लङ्का ।
न मे लक्ष्मण रोचते ।।
जननी जन्मभूमिश्च ।
स्वर्गादपि गरीयसी ।।

ಅಪಿ ಸ್ವರ್ಣಮಯೀ ಲಂಕಾ |
ನ ಮೇ ಲಕ್ಷ್ಮಣ ರೋಚತೇ ||
ಜನನೀ ಜನ್ಮಭೂಮಿಶ್ಚ |
ಸ್ವರ್ಗಾದಪಿ ಗರೀಯಸೀ ||

api swarnamayI lankA /
na mE lakShmaNa rOchatE //
jananI janmabhUmishcha /
swargAdapi garIyasI //

अन्वयः

हे लक्ष्मण, लङ्का स्वर्णमयी अपि मे न रोचते । यतः जननी च जन्मभूमिः मे स्वर्गात् अपि गरीयसी अस्ति ।

अन्वयार्थः

हे लक्ष्मण - हे अनुज लक्ष्मण,

लङ्का - लंकानगर

स्वर्णमयी अपि - सोने से युक्त होते हुए भी

मे - मुझे

न रोचते - लुभाती नहीं है ।

यतः - क्यों कि

जननी - जनम देने वाली माता

च - तथा

जन्मभूमिः - जिस देश की भूमी में जन्म हुआ है वह भूमी

मे - मुझे

स्वर्गात् अपि - स्वर्ग से भी

गरीयसी अस्ति - महान लगती है ।

विवरण:

त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और महाबलशाली रावण के बीच के युद्ध के बाद रावण की मृत्यु हुई । तब विभीषण आदि सज्जनों ने भगवान श्रीराम जी को लंका के भूमी का राजा बनाने का प्रस्ताव सामने रखा । तब श्रीराम जी ने अपने चहीते अनुज लक्ष्मण जी से कहा कि हे अनुज यह लंका सोने से बनी है, स्वर्ग जैसे ही यह नगरी दिखती है, लेकिन मुझे यह भूमी रास नही आती । क्यों की जिस भूमी पर मेरा जनम हुआ है, और जिस ने मुझे जनम दिया है उन दोनों के कदमों में ही स्वर्ग है, और वह जननी या माता और मातृभूमी ही मुझे स्वर्ग से बडी लगती है । इसीलिये मैं लंका में नहीं बल की अपने माँ और मातृभूमी के साथ रहना पसंद करता हूँ ।

आज मातृदिवस के उपलक्ष्य में यह श्लोक यहाँ पर प्रस्तुत किया गया है । यह श्लोक रामायण ग्रंथ के उत्तरकांड से लिया गया है ।।

ॐ नमो भगवते रामाय ।।

ಅನ್ವಯ:

ಹೇ ಲಕ್ಷ್ಮಣ, ಲಂಕಾ ಸ್ವರ್ಣಮಯೀ ಅಪಿ ಮೇ ನ ರೋಚತೇ. ಯತಃ ಜನನೀ ಚ ಜನ್ಮಭೂಮಿಃ ಮೇ ಸ್ವರ್ಗಾತ್ ಅಪಿ ಗರೀಯಸೀ ಅಸ್ತಿ.

ಅನ್ವಯಾರ್ಥ:

ಹೇ ಲಕ್ಷ್ಮಣ - ಎಲೈ ಲಕ್ಷ್ಮಣನೇ

ಲಂಕಾ - ಲಂಕಾಪಟ್ಟಣವು

ಸ್ವರ್ಣಮಯೀ ಅಪಿ - ಬಂಗಾರದಿಂದ ಮಾಡಲ್ಪಟ್ಟರೂ ಕೂಡ

ಮೇ - ನನಗೆ

ನ ರೋಚತೇ - ಇಷ್ಟವಿಲ್ಲ.

ಯತಃ - ಏಕೆಂದರೆ

ಜನನೀ - ಜನ್ಮ ಕೊಟ್ಟ ತಾಯಿಯು

ಚ - ಮತ್ತು

ಜನ್ಮಭೂಮಿಃ - ಜನ್ಮ ಪಡೆದ ಭೂಮಿಯು

ಮೇ - ನನಗೆ

ಸ್ವರ್ಗಾತ್ ಅಪಿ - ಸ್ವರ್ಗಕ್ಕಿಂತಲೂ

ಗರೀಯಸೀ ಅಸ್ತಿ - ಹೆಚ್ಚು ಎನಿಸುತ್ತದೆ.

ವಿವರಣೆ:

ತ್ರೇತಾಯುಗದಲ್ಲಿ ಭಗವಾನ್ ಶ್ರೀರಾಮದೇವರು ಹಾಗೂ ಮಹಾಪ್ರತಾಪಿಯಾದ ರಾವಣರ ಯುದ್ಧದ ಪರಿಣಾಮವಾಗಿ ರಾವಣನು ರಾಮದೇವರಿಂದ ಹತನಾದನು. ವಿಭೀಷಣಾದಿ ರಾಮನ ಭಕ್ತರೆಲ್ಲರೂ ಶ್ರೀರಾಮದೇವರನ್ನು ಲಂಕೆಯ ರಾಜನನ್ನಾಗಿ ನೇಮಕ ಮಾಡುವುದಾಗಿ ನಿಶ್ಚಯಿಸಿ ಶ್ರೀರಾಮದೇವರ ಮುಂದೆ ಈ ಪ್ರಸ್ತಾವನೆಯನ್ನು ಇಟ್ಟರು. ಅದಕ್ಕೆ ಶ್ರೀರಾಮದೇವರು ಲಕ್ಷ್ಮಣ ಹಾಗೂ ಇತರರೆಲ್ಲರನ್ನೂ ಕುರಿತು ಲಂಕಾನಗರವು ಬಂಗಾರದಿಂದ ಕೂಡಿ ಸ್ವರ್ಗದಂತೇ ಸುಂದರವಾಗಿ ಕಂಡರೂ ನನಗೆ ರುಚಿಸದು, ನನ್ನ ಮನಸ್ಸನ್ನು ಇದು ಸಂತೋಷಗೊಳಿಸದು. ಏಕೆಂದರೆ ನನ್ನ ಮಾತೃಭೂಮಿಯಾದ ಅಯೋಧ್ಯೆ ಹಾಗೂ ನನ್ನ ತಾಯಿಯಾದ ಕೌಸಲ್ಯಾದೇವಿಯು ನನಗೆ ಸ್ವರ್ಗಕ್ಕಿಂತಲೂ ಮಿಗಿಲಾದದ್ದು. ಆದ್ದರಿಂದ ನಾನು ನನ್ನ ಜನ್ಮಭೂಮಿಯಾದ ಅಯೋಧ್ಯೆಗೆ ಹೋಗಿ ನನ್ನ ಜನನಿಯಾದ ಕೌಸಲ್ಯಾದೇವಿಯ ಸೇವೆ ಮಾಡುತ್ತೇನೆ, ಅದೇ ನನಗೆ ಇಷ್ಟವಾದದ್ದು ಎಂದು ಹೇಳಿ ತನ್ನ ಆದರ್ಶವನ್ನು ಪಾಲಿಸಿದನು.

ಇಂದು ಮಾತೃದಿನೋತ್ಸವದ ಅಂಗವಾಗಿ ಈ ಶ್ಲೋಕವನ್ನು ಇಲ್ಲಿ ಕೊಡಲಾಗಿದೆ. ವಾಲ್ಮೀಕಿಮಹರ್ಷಿಗಳಿಂದ ಪ್ರಣೀತವಾದ ರಾಮಾಯಣಗ್ರಂಥದ ಉತ್ತರಕಾಂಡದ ಶ್ಲೋಕವಿದು.

ಓಂ ನಮೋ ಭಗವತೇ ರಾಮಾಯ ||
writereaddata_Bulletins_Text_NSD_2021_May_NSD_Sanskrit_Sanskrit.pdf
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१५.५ सायंकाल आकाशवाणी
 इस्रयेलराष्ट्रेण गासा सीमायां सैनिकविन्यासं शक्तं कृतम्। हतानां संख्या शताधिका जाता।


 गासा/जरूसलें इस्रयेल्-पालस्तीन् संघर्षे गासायां हतानां संख्या शताधिका जाता।इस्रयेल् प्रतिरोधमन्त्रालयात् उपलब्धे आवेदने नवाधिकशतं जनाः हताः इति औद्योगिकस्थिरीकरणमपि अस्ति। तेषु अष्टाविंशति बालकाः, सप्त इस्रयेली नागरिकाः च मृतिमुपगताः, अष्टाशीतिः जनाः व्रणिताश्च अभवन् इति गासा स्वास्थ्यमन्त्रालयेन निगदितम्। संघर्षादारभ्य चतुर्थदिनाभ्यन्तरगणनेयम्। 

इदानीं इस्रयेलराष्ट्रः आक्रमणं सुशक्तं कर्तुं गासा सीमायां अधिकतया सैन्यान् व्यन्यसत्। व्योमाक्रमणं स्थलाक्रमणं च आरब्धम् इति इस्रयेल् सैन्येन निगदितम्।तदभ्यन्तरे उभयोरपि सैन्ययोः गोलिकाप्रहरस्थगनाय ऐक्यराष्ट्रसंस्थया उपदेशो दत्तः। ईजिप्त् कुवैत् आदिभिः देशैः उभयोर्मध्ये शान्तिं पुनस्थापयितुम् आह्वानं दत्तम्।

~ संप्रति वार्ता