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🔆विनयभावेन अपयशस्य पराक्रमेण अथवा उद्योगेन कुभाग्यमपि क्षमया क्रोधस्य तथैव सदाचारेण अशकुनानां नाशं कर्तुं शक्नुमः।
⚜विनयभाव अपयश का नाश करता है पराक्रम अनर्थ को दूर करता है। क्षमा सदा क्रोध का नाश करती है, और सदाचार का पालन कुलक्षण का नाश करता है।
#Subhashitam
अकीर्तिं विनयो हन्ति हन्त्यनर्थं पराक्रमः ।
हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधम् आचारो हन्त्यलक्षणम्
॥🔆विनयभावेन अपयशस्य पराक्रमेण अथवा उद्योगेन कुभाग्यमपि क्षमया क्रोधस्य तथैव सदाचारेण अशकुनानां नाशं कर्तुं शक्नुमः।
⚜विनयभाव अपयश का नाश करता है पराक्रम अनर्थ को दूर करता है। क्षमा सदा क्रोध का नाश करती है, और सदाचार का पालन कुलक्षण का नाश करता है।
#Subhashitam
संलापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
श्रीमद्भगवद्गीता
#samlapshala
#samlapshala
एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है। अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।
•• एक: पञ्चदशवर्षीय: भ्राता आत्मन: पितरं सूचितवान् , "तात!श्व: अग्रजाया: भाविश्वसुरदम्पती आगन्तारौ।इदानीं भगिनीपति: दूरवाण्या सूचितवान् ।"
दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।
•• दीदी अर्थात् तस्य अत्तिकाया: विवाह-वाग्दानं किञ्चिद्दिनपूर्वं एकस्मिन् सम्मानितगृहे निर्णीतोऽभवत्।
दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे।
•• दीनदयाल: पूर्वादेव खिन्न: उपविष्टान् आसीत्।
धीरे से बोले - " बेटा! उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं।
••मन्दस्वरेण अवदत् - " पुत्र !स ह्य: एव दूरवाणीं कृतवान् यत् स दिनद्वये यौतुकस्य विषये चर्चां कर्तुम् आगन्ता।"
दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है।
•• यौतुकस्य विषये भवता सह आवश्यकी चर्चा करणीयास्ति।
कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरा ही नहीं कर पाऊं।
•• भविष्ये तस्य यौतुकवाञ्छा इयती अधिका भवेत् यत् अहं पूरयितुं हि न शक्नवानि।
बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था।
•• महता कष्टेन एष योग्य: वरो मया प्राप्त: आसीत्।
कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं।
••कथयतः तस्य चक्षुषी अश्रुपूरिते अभवताम्।
घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी।
•• गृहस्य प्रत्येकं सदस्यमनसि मुखे च चिन्ताया: रेखा: स्पष्टरूपेण दृश्यन्ते स्म।
लड़की भी उदास हो गयी।
•• युवती अपि चिन्ताग्रस्ता अभवत्।
खैर
•• अस्तु।
अगले दिन समधी समधिन आए।
•• परेद्युः सम्बन्धी सम्बन्धिनी च अगच्छताम्।
उनकी खूब आवभगत
की गयी।
•• तयो: भृशं सत्कार: कृत:।
कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा " दीनदयाल जी। अब काम की बात हो जाए।
•• किञ्चित्कालम् उपविश्यानन्तरं युवकस्य पिता युवत्या: पितरम् अकथयत् - "दीनदयाल: महोदय!सम्प्रति आवश्यकी वार्ता भवेत्।
दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी।
•• दीनदयालमहोदयस्य हृदयगतिः वर्धिता।
बोले- हां हां।समधी जी! जो आप हुकुम करें।
•• अवदत् - आम् आम् । सम्बन्धिन् महोदय! भवान् यदपि आज्ञां करोतु।
#vakyabhyas
•• एक: पञ्चदशवर्षीय: भ्राता आत्मन: पितरं सूचितवान् , "तात!श्व: अग्रजाया: भाविश्वसुरदम्पती आगन्तारौ।इदानीं भगिनीपति: दूरवाण्या सूचितवान् ।"
दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।
•• दीदी अर्थात् तस्य अत्तिकाया: विवाह-वाग्दानं किञ्चिद्दिनपूर्वं एकस्मिन् सम्मानितगृहे निर्णीतोऽभवत्।
दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे।
•• दीनदयाल: पूर्वादेव खिन्न: उपविष्टान् आसीत्।
धीरे से बोले - " बेटा! उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं।
••मन्दस्वरेण अवदत् - " पुत्र !स ह्य: एव दूरवाणीं कृतवान् यत् स दिनद्वये यौतुकस्य विषये चर्चां कर्तुम् आगन्ता।"
दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है।
•• यौतुकस्य विषये भवता सह आवश्यकी चर्चा करणीयास्ति।
कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरा ही नहीं कर पाऊं।
•• भविष्ये तस्य यौतुकवाञ्छा इयती अधिका भवेत् यत् अहं पूरयितुं हि न शक्नवानि।
बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था।
•• महता कष्टेन एष योग्य: वरो मया प्राप्त: आसीत्।
कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं।
••कथयतः तस्य चक्षुषी अश्रुपूरिते अभवताम्।
घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी।
•• गृहस्य प्रत्येकं सदस्यमनसि मुखे च चिन्ताया: रेखा: स्पष्टरूपेण दृश्यन्ते स्म।
लड़की भी उदास हो गयी।
•• युवती अपि चिन्ताग्रस्ता अभवत्।
खैर
•• अस्तु।
अगले दिन समधी समधिन आए।
•• परेद्युः सम्बन्धी सम्बन्धिनी च अगच्छताम्।
उनकी खूब आवभगत
की गयी।
•• तयो: भृशं सत्कार: कृत:।
कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा " दीनदयाल जी। अब काम की बात हो जाए।
•• किञ्चित्कालम् उपविश्यानन्तरं युवकस्य पिता युवत्या: पितरम् अकथयत् - "दीनदयाल: महोदय!सम्प्रति आवश्यकी वार्ता भवेत्।
दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी।
•• दीनदयालमहोदयस्य हृदयगतिः वर्धिता।
बोले- हां हां।समधी जी! जो आप हुकुम करें।
•• अवदत् - आम् आम् । सम्बन्धिन् महोदय! भवान् यदपि आज्ञां करोतु।
#vakyabhyas
प्रथितभौतशास्त्रज्ञः ऐन्श्टैनः सापेक्षतावादमधिकृत्य वारं वारं नैकविद्यालयेषु सभाङ्गणेषु भाषते स्म । सभायां ऐन्श्टैने भाषमाणे तस्य कार्-यानस्य सारथिः सभाङ्गणस्य कस्मिंश्चन पीठे एव उपविशति स्म । गच्छत्सु दिनेषु ऐन्श्टैनस्य भाषणवाक्स्रोतः सारथेः कण्ठगतमभवत् ।
कार्-याने कदाचन तयोः सभाङ्गणं गच्छतोः, सारथिः ऐन्श्टैनमवदत्, “आर्य, यदा भवान् क्लान्तः तदा अहमेव भवतः भाषणं कर्तुं यते ।" ऐन्श्टैनः अवदत्, “तथास्तु, अद्य एव मम स्थाने मम परिधानं परिधाय त्वमेव भाषस्व । अहं तव परिधानं परिधाय सभायां उपविशामि।“ तौ तथैव अकुरुताम् । सारथिः मनागपि स्खलनम् विना बभाषे ।
भाषणानन्तरं कश्चन सभ्यः कठिनं प्रश्नमेकमपृच्छत् । सारथिः असंभ्रान्तः तत्क्षणमेव “आर्य, तव प्रश्नः अतीव सरलः । मम सारथिरपि उत्तरं दातुं समर्थः,“ इति वदन् ऐन्श्टैनं अङ्गुल्या निरदिशत् ।
~ जी एस् एस् मूर्तिः
#hasya
कार्-याने कदाचन तयोः सभाङ्गणं गच्छतोः, सारथिः ऐन्श्टैनमवदत्, “आर्य, यदा भवान् क्लान्तः तदा अहमेव भवतः भाषणं कर्तुं यते ।" ऐन्श्टैनः अवदत्, “तथास्तु, अद्य एव मम स्थाने मम परिधानं परिधाय त्वमेव भाषस्व । अहं तव परिधानं परिधाय सभायां उपविशामि।“ तौ तथैव अकुरुताम् । सारथिः मनागपि स्खलनम् विना बभाषे ।
भाषणानन्तरं कश्चन सभ्यः कठिनं प्रश्नमेकमपृच्छत् । सारथिः असंभ्रान्तः तत्क्षणमेव “आर्य, तव प्रश्नः अतीव सरलः । मम सारथिरपि उत्तरं दातुं समर्थः,“ इति वदन् ऐन्श्टैनं अङ्गुल्या निरदिशत् ।
~ जी एस् एस् मूर्तिः
#hasya
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
⏳ 45 निमेषाः
🕛 IST 12:00 PM
🔰 वार्ताः
🗓 04 दिसम्बर 2022, रविवासरः
🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.
📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(स्वस्थानियां प्रादेशीयाम् आन्ताराष्ट्रीयां वार्तां वा श्रावयन्तु)। चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु ⏰
👇👇👇👇👇
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
सङ्ग्रहः
https://archive.org/details/samlapshala_
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
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🔰 वार्ताः
🗓 04 दिसम्बर 2022, रविवासरः
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वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
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🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩 तिथि - द्वादशी 05 दिसम्बर प्रातः 05:57 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅दिनांक - 04 दिसम्बर 2022
⛅दिन - रविवार
⛅शक संवत् - 1944
⛅अयन - दक्षिणायन
⛅ऋतु - हेमंत
⛅मास - मार्गशीर्ष
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅नक्षत्र - अश्विनी पूर्ण रात्रि तक
⛅योग - व्यतिपात प्रातः 04:35 तक तत्पश्चात वरियान
⛅राहु काल - शाम 04:33 से 05:54 तक
⛅सूर्योदय - 07:06
⛅सूर्यास्त - 05:54
⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:20 से 06:13 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩 तिथि - द्वादशी 05 दिसम्बर प्रातः 05:57 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅दिनांक - 04 दिसम्बर 2022
⛅दिन - रविवार
⛅शक संवत् - 1944
⛅अयन - दक्षिणायन
⛅ऋतु - हेमंत
⛅मास - मार्गशीर्ष
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅नक्षत्र - अश्विनी पूर्ण रात्रि तक
⛅योग - व्यतिपात प्रातः 04:35 तक तत्पश्चात वरियान
⛅राहु काल - शाम 04:33 से 05:54 तक
⛅सूर्योदय - 07:06
⛅सूर्यास्त - 05:54
⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:20 से 06:13 तक
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
https://youtu.be/-qtHa-jdn_E
https://youtu.be/-qtHa-jdn_E
YouTube
वार्ता: संस्कृत भाषा में मुख्य समाचार
DD News 24x7 | #BreakingNews & other #LiveUpdates | News in Hindi
DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar Bharati. It has the distinction of being India’s only terrestrial cum satellite News…
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सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं।
भारतीय गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि. वाराहमिहिर ने अपने पंचसिद्धांतिका में चार अन्य टीकाओं सहित इसका उल्लेख किया है, जो हैं:
पैतामाह सिद्धान्त, (जो कि परम्परागत वेदांग ज्योतिष से अधिक समान है),
पौलिष सिद्धान्त
रोमक सिद्धान्त (जो यूनानी खगोलशास्त्र के समान है), और
वशिष्ठ सिद्धान्त
सूर्य सिद्धान्त नामक वर्णित कार्य, कई बार ढाला गया है। इसके प्राचीनतम उल्लेख बौद्ध काल (तीसरी शताब्दी, ई.पू) के मिलते हैं। वह कार्य, संरक्षित करके और सम्पादित किया हुआ (बर्गस द्वारा १८५८ में) मध्य काल को संकेत करता है। वाराहमिहिर का दसवीं शताब्दी के एक टीकाकार, ने सूर्य सिद्धांत से छः श्लोकों का उद्धरण किया है, जिनमें से एक भी अब इस सिद्धांत में नहीं मिलता है। वर्तमान सूर्य सिद्धांत को तब वाराहमिहिर को उपलब्ध उपलब्ध पाठ्य का सीधा वंशज माना जा सकता है।[1] इस लेख में बर्गस द्वारा सम्पादित किया गया संस्करण ही मिल पायेगा. गुप्त काल के जो साक्ष्य हैं, उन्हें पठन करने हेतु देखें पंचसिद्धांतिका।
इसमें वे नियम दिये गये हैं, जिनके द्वारा ब्रह्माण्डीय पिण्डों की गति को उनकी वास्तविक स्थिति सहित जाना जा सकता है। यह विभिन्न तारों की स्थितियां, चांद्रीय नक्षत्रों के सिवाय; की स्थिति का भी ज्ञान कराता है। इसके द्वारा सूर्य ग्रहण का आकलन भी किया जा सकता है।
त्रिकोणमिति (Trigonometry)
सूर्यसिद्धान्त आधुनिक त्रिकोणमिति का मूल है। सूर्यसिद्धान्त में वर्णित ज्या और कोटिज्या फलनों से ही आधुनिक साइन (sine) और कोसाइन (cosine) नाम व्युत्पन्न हुए हैं ( जो भारत से अरब-जगत होते हुए यूरोप पहुँचे)। इतना ही नहीं, सूर्यसिद्धान्त के तृतीय अध्याय (त्रिप्रश्नाधिकारः) में ही सबसे पहले स्पर्शज्या (tangent) और व्युकोज्या (secant) का प्रयोग हुआ है। निम्नलिखित श्लोकों में शंकुक द्वारा निर्मित छाया का वर्णन करते हुए इनका उपयोग हुआ है-
शेषम् नताम्शाः सूर्यस्य तद्बाहुज्या च कोटिज्या।
शंकुमानांगुलाभ्यस्ते भुजत्रिज्ये यथाक्रमम् ॥ ३.२१ ॥
कोटिज्यया विभज्याप्ते छायाकर्णाव् अहर्दले।
क्रान्तिज्या विषुवत्कर्णगुणाप्ता शंकुजीवया ॥ ३.२२ ॥
Of [the sun's meridian zenith distance] find the jya ("base sine") and kojya (cosine or "perpendicular sine"). If then the jya and radius be multiplied respectively by the measure of the gnomon in digits, and divided by the kojya, the results are the shadow and hypotenuse at mid-day.
कैलेण्डरीय प्रयोग
१८७१-७२ ई का हिन्दू पञ्चाङ्ग
मुख्य लेख: हिन्दू पंचांग
भारत के विभिन्न भागों में भारतीय सौर पंचांग तथा चन्द्र-सौर पंचांग प्रयुक्त होते हैं। इनके आधार पर ही विभिन्न त्यौहार, मेले, क्रियाकर्म होते हैं। भारत में प्रचलित आधुनिक सौर तथा चान्द्रसौर पंचांग, सूर्य के विभिन्न राशियों में प्रवेश के समय पर ही आधारित हैं।
परम्परागत पंचांगकार, आज भी सूर्यसिद्धान्त में निहित सूत्रों और समीकरणों का ही प्रयोग करके अपने पंचांग का निर्माण करते हैं। भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन पर पंचांग का बहुत अधिक प्रभाव है तथा अधिकांश घरों में पंचांग रखने की प्रथा है।
To learn more, Enrol here for Sūryasiddhāntaḥ Course (online) at SPF. Fee Rs.500 Use code SPF25 for 10% discount for any course at SPF.
Course Description
Learn Samskrit – the Language of Jyotisha (Level 4)
https://learnsamskrit.online/course_details?name/=NjA3NTc1MzE5NzAyMg==
• This is subject matter Samskrit text of Jyotisha Shastra called Sūryasiddhāntaḥ (Madhyamādhikāraḥ).
• You will study “Madhyamādhikāraḥ” from this text.Around 70shlokas are explained in detail.
• Total videos = 22 ; Total Viewing time is around 12:00 hours.
• This is one of the text books on Indian Scientific Knowledge.
#SanskritEducation
भारतीय गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि. वाराहमिहिर ने अपने पंचसिद्धांतिका में चार अन्य टीकाओं सहित इसका उल्लेख किया है, जो हैं:
पैतामाह सिद्धान्त, (जो कि परम्परागत वेदांग ज्योतिष से अधिक समान है),
पौलिष सिद्धान्त
रोमक सिद्धान्त (जो यूनानी खगोलशास्त्र के समान है), और
वशिष्ठ सिद्धान्त
सूर्य सिद्धान्त नामक वर्णित कार्य, कई बार ढाला गया है। इसके प्राचीनतम उल्लेख बौद्ध काल (तीसरी शताब्दी, ई.पू) के मिलते हैं। वह कार्य, संरक्षित करके और सम्पादित किया हुआ (बर्गस द्वारा १८५८ में) मध्य काल को संकेत करता है। वाराहमिहिर का दसवीं शताब्दी के एक टीकाकार, ने सूर्य सिद्धांत से छः श्लोकों का उद्धरण किया है, जिनमें से एक भी अब इस सिद्धांत में नहीं मिलता है। वर्तमान सूर्य सिद्धांत को तब वाराहमिहिर को उपलब्ध उपलब्ध पाठ्य का सीधा वंशज माना जा सकता है।[1] इस लेख में बर्गस द्वारा सम्पादित किया गया संस्करण ही मिल पायेगा. गुप्त काल के जो साक्ष्य हैं, उन्हें पठन करने हेतु देखें पंचसिद्धांतिका।
इसमें वे नियम दिये गये हैं, जिनके द्वारा ब्रह्माण्डीय पिण्डों की गति को उनकी वास्तविक स्थिति सहित जाना जा सकता है। यह विभिन्न तारों की स्थितियां, चांद्रीय नक्षत्रों के सिवाय; की स्थिति का भी ज्ञान कराता है। इसके द्वारा सूर्य ग्रहण का आकलन भी किया जा सकता है।
त्रिकोणमिति (Trigonometry)
सूर्यसिद्धान्त आधुनिक त्रिकोणमिति का मूल है। सूर्यसिद्धान्त में वर्णित ज्या और कोटिज्या फलनों से ही आधुनिक साइन (sine) और कोसाइन (cosine) नाम व्युत्पन्न हुए हैं ( जो भारत से अरब-जगत होते हुए यूरोप पहुँचे)। इतना ही नहीं, सूर्यसिद्धान्त के तृतीय अध्याय (त्रिप्रश्नाधिकारः) में ही सबसे पहले स्पर्शज्या (tangent) और व्युकोज्या (secant) का प्रयोग हुआ है। निम्नलिखित श्लोकों में शंकुक द्वारा निर्मित छाया का वर्णन करते हुए इनका उपयोग हुआ है-
शेषम् नताम्शाः सूर्यस्य तद्बाहुज्या च कोटिज्या।
शंकुमानांगुलाभ्यस्ते भुजत्रिज्ये यथाक्रमम् ॥ ३.२१ ॥
कोटिज्यया विभज्याप्ते छायाकर्णाव् अहर्दले।
क्रान्तिज्या विषुवत्कर्णगुणाप्ता शंकुजीवया ॥ ३.२२ ॥
Of [the sun's meridian zenith distance] find the jya ("base sine") and kojya (cosine or "perpendicular sine"). If then the jya and radius be multiplied respectively by the measure of the gnomon in digits, and divided by the kojya, the results are the shadow and hypotenuse at mid-day.
कैलेण्डरीय प्रयोग
१८७१-७२ ई का हिन्दू पञ्चाङ्ग
मुख्य लेख: हिन्दू पंचांग
भारत के विभिन्न भागों में भारतीय सौर पंचांग तथा चन्द्र-सौर पंचांग प्रयुक्त होते हैं। इनके आधार पर ही विभिन्न त्यौहार, मेले, क्रियाकर्म होते हैं। भारत में प्रचलित आधुनिक सौर तथा चान्द्रसौर पंचांग, सूर्य के विभिन्न राशियों में प्रवेश के समय पर ही आधारित हैं।
परम्परागत पंचांगकार, आज भी सूर्यसिद्धान्त में निहित सूत्रों और समीकरणों का ही प्रयोग करके अपने पंचांग का निर्माण करते हैं। भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन पर पंचांग का बहुत अधिक प्रभाव है तथा अधिकांश घरों में पंचांग रखने की प्रथा है।
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Course Description
Learn Samskrit – the Language of Jyotisha (Level 4)
https://learnsamskrit.online/course_details?name/=NjA3NTc1MzE5NzAyMg==
• This is subject matter Samskrit text of Jyotisha Shastra called Sūryasiddhāntaḥ (Madhyamādhikāraḥ).
• You will study “Madhyamādhikāraḥ” from this text.Around 70shlokas are explained in detail.
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• This is one of the text books on Indian Scientific Knowledge.
#SanskritEducation
learnsamskrit.online
Sūryasiddhāntaḥ - Jyotiṣasya Bhāṣā Saṃskṛtaṃ Paṭhyatām। - Course Details
Learn Samskrit – the Language of Jyotisha (Level 4)
• This is subject matter Samskrit text of Jyotisha Shastra called Sūryasiddhāntaḥ (Madhyamādhikāraḥ).
• You will study “Madhyamādhikāraḥ” from this text.Around 70shlokas are explained in detail.
…
• This is subject matter Samskrit text of Jyotisha Shastra called Sūryasiddhāntaḥ (Madhyamādhikāraḥ).
• You will study “Madhyamādhikāraḥ” from this text.Around 70shlokas are explained in detail.
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