संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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हितोपदेशः - HITOPADESHAH

अपृष्टोऽपि हितं ब्रूया-
द्यस्य नेच्छेत्पराभवम्।
एष एव सतां धर्मो
विपरीतमतोऽन्यथा।। 376/129।।

अर्थः:

जिस व्यक्ति को पराजय नहीं चाहिए, उसके बिन पूछे ही उसके हित की बात करनी चाहिए। यही सज्जनों का धर्म है, इसका विपरीत आचरण अधर्म है।

MEANING:

One should speak positively and offer beneficial advice to someone who does not desire defeat, even if they do not ask for it. This is the way of the righteous; doing otherwise is considered unrighteous.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
प्रतिदिनं संस्कृतं
*कथापठनशृङ्खला*
केवलं 30 निमेषा:
समय: - 12 Noon to 12.30

Google Meet joining info
Video call link: https://meet.google.com/anj-tyfb-aum

क्षम्यताम् अन्यकार्यस्य कारणात् अद्य विलम्ब: जात: | अद्य द्वादशवादने कथापठनं भविष्यति |
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 एवं दत्त्वा वरं देवो देवानां विष्णुरात्मवान्।
मानुषे चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मनः॥२९॥

⚜️ भावार्थ - इस प्रकार भगवान् विष्णु देवताओं को वरदान दे अपने जन्म लेने योग्य मनुष्य लोक में स्थान चुनने लगे॥२९ ॥

ततः पद्मपलाशाक्षः कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम्।
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्॥३०॥

⚜️ भावार्थ - कमलनयन भगवान् विष्णु ने अपने चार रूपों से महाराज दशरथ को अपना पिता बनाना, अर्थात् उनके घर में जन्म लेना पसंद किया॥३०॥

🍃 ततो देवर्षिगन्धवः सरुद्राः साप्सरोगणाः।
स्तुति॑भिर्दिव्यरूपाभिस्तुष्टवुर्मधुसूदनम् ॥३१॥

⚜️ भावार्थ - तब देवर्षि, गन्धर्व, रुद्र, अप्सरा इन सब ने मधुसूदन भगवान् की स्तुति कर, उनको सन्तुष्ट किया॥३१॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त - २५ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०५ , देवता - वरुण

🍃 कदा क्षेत्रश्रियं नरमा वरुणं करामहे. मृळीकायोरुचक्षसम्.. (५)

⚜️ भावार्थ - हम शक्तिशाली नेताओं तथा अगणित लोगों पर दृष्टि रखने वाले वरुण को इस यज्ञ में ले आयेंगे। (५)

#Rgveda
चाणक्य नीति ⚔️
✒️त्रयोदश अध्याय

♦️श्लोक:-१४

यथा धेनु सहस्त्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति।।१४।।

♦️भावार्थ --जैसे हजारों गायों में भी बछड़ा अपनी माता के पास ही पहुंच जाता है अथवा उसके पीछे-पीछे चलता है, उसी प्रकार किया हुआ कर्म भी सदा कर्त्ता के पीछे-पीछे चलता रहता है।।

#Chanakya
चत्वारो वेदाः

सम्प्रति काले वेदाः चत्वारो मन्यन्ते ; ते १ - ऋग्वेदः, २ - यजुर्वेदः, ३ - सामवेदः, ४ - अथर्ववेदः चेति ।
द्वापरयुगस्य समाप्तेः पूर्वं वेदानां तद्विभागचतुष्टयं न मन्यते स्म । तत्समये ऋक्, यजुः, साम इतित्रयाणां शब्दशैल्याः सङ्ग्रहात्मक एको विशिष्टः अध्ययनीयः शब्दराशिः हि वेद आख्यायते स्म । एतदपि सत्यं यत् परमपित्रा परमेश्वरेण प्रत्येकं कल्पस्य आरम्भे सर्वप्रथमं परमेष्ठि-प्रजापतेः अर्थात् ब्रह्मणो हृदये समस्तवेदानां प्रादुर्भावः कारित आसीत्, ये वेदाश्च तस्य चतुर्मुखेषु सर्वदा विद्यमाना वर्तन्ते । ब्रह्मणः ऋषिसन्ततयः अग्रे गत्वा स्वतपस्याद्वारा एतस्य शब्दराशेः साक्षात्कारं कृतवन्त आसन्, तथाच पठनपाठनमाध्यमेन एतस्य संरक्षणमपि कृतवन्तः ।
विश्वे शब्दप्रयोगस्य शैली त्रिविधा वर्तते - पद्यम्, गद्यम्, गानम् चेति । वेदमन्त्राणां संज्ञाभूतः - ऋक्, गद्यात्मकमन्त्रभूतः - यजुः, गानात्मकमन्त्रभूतश्च साम इति कथ्यते । एतेषां शैलीत्रयाणाम् आधारे हि शास्त्रे लोके च वेदार्थं 'त्रयी' इति शब्दस्य व्यवहारः कृतोऽस्ति इति वेदविषयकः संक्षिप्तः परिचयः इति, शुभम् ।

-- नारदोपाध्यायः ।


👆 👆 👆
वेदानां निर्मिति-विषये एतत् विवरणम् अन्यस्मिन् समूहे पठितं मया ।

मूलभूतं संक्षिप्तं च भवतु नाम वेदानां निर्माण-विषये संस्कृतेन इयत् सुलभं सरलं च संज्ञापनं मया इतःपूर्वं न एव पठितम् ।

सुलभ-सरल-लेखनं भाषणं च कर्तुं सर्वतः कठिनम् । अतः तत् एव विद्वत्तायाः प्रथमं लक्षणम् ।
🙏🙏🙏
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम केवलम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।


कलियुग में केवल हरिनाम ही गति है। अन्यथा और कोई गति नहीं।

(श्री चैतन्य)
ओ३म्

१३३. संस्कृत वाक्याभ्यासः

अहं गृहतः कार्यालयं गच्छामि।
= मैं घर से दफ्तर जाता हूँ।

सुजितः पुस्तकालयतः उद्यानं गच्छति।
= सुजित पुस्तकालय से उद्यान जाता है।

वृन्दा अम्बालातः कोल्हापुरं गच्छति।
= वृन्दा अम्बाला से कोल्हापुर जाती है।

सैनिकः लेहतः सियाचिनं गच्छति।
= सैनिक लेह से सियाचिन जाता है।

भवान् कुतः कुत्र गच्छति ?
= आप कहाँ से कहाँ जाते हैं ?

भवती कुतः कुत्र गच्छति ?
= आप कहाँ से कहाँ जाती हैं ?

ओ३म्

१३४. संस्कृत वाक्याभ्यासः

मम गृहे तुलस्याः पादपः।
= मेरे घर में तुलसी का पौधा है।

अङ्कितस्य गृहे कदलीवृक्षः अस्ति।
= अंकित के घर केले का पेड़ है।

मोहितस्य गृहे आम्रवृक्षः अस्ति।
= मोहित के घर आम् का पेड़ है।

गीतिकायाः गृहे पाटलस्य वृक्षः अस्ति।
= गीतिका के घर गुलाब का पेड़ है।

तव गृहे कस्य वृक्षः अस्ति ?
= तुम्हारे घर किसका वृक्ष है ?

भवतः गृहे कस्य वृक्षः अस्ति ?
= आपके घर किसका पेड़ है ?

भवत्याः गृहे कस्य वृक्षः अस्ति ?
= आपके घर किसका पेड़ है ?

ओ३म्

१३५. संस्कृत वाक्याभ्यासः

सः बालकः।

बालकः चित्रं पश्यति।
= बालक चित्र देखता है।

तद् चित्रं तस्य परिवारस्य अस्ति।
= वह चित्र उसके परिवार का है।

सः बालकः चित्रं दृष्ट्वा वदति।
= वह बच्चा चित्र देख कर बोलता है।

एषः मम पितामहः अस्ति।
= ये मेरे दादाजी हैं।

एषा मम पितामही अस्ति।
= ये मेरी दादीजी हैं।

एषः मम पिता अस्ति।
= ये मेरे पिताजी हैं।

एषा मम माता।
= ये मेरी माँ हैं।

एषः मम मातुलः अस्ति।
= ये मेरे मामा हैं।

एषा मम मातुलानी अस्ति।
= ये मेरी मामीजी हैं।

एषा मम भगिनी अस्ति।
= ये मेरी बहन है।

चित्रे मातामही नास्ति।
= चित्र में नानीजी नहीं हैं।

एतस्मिन् चित्रे मातामहः अपि नास्ति।
= इस चित्र में नानाजी भी नहीं हैं।

तौ अन्यस्मिन् चित्रे स्तः।
= वे दोनों अन्य चित्र में हैं।
ओ३म्

१३६. संस्कृत वाक्याभ्यासः

शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष ये छः वेदाङ्ग हैं। प्राचीन समय में इनकी विद्या को प्राप्त करना अनिवार्य था।

आज हम सभी को व्याकरण-विमुख बना दिया गया है। परन्तु व्याकरण-विमुख रह कर भी हम संस्कृताभ्यास तो कर ही सकते हैं।
प्रतिदिन के सम्वादों में एक सम्वाद या वाक्य हम सभी अवश्य बोला करते हैं

‘‘मैं क्या करूँगा / क्या करूँगी ?’’

अहं गमिष्यामि।
अहम् उद्यानं गमिष्यामि।
सायंकाले अहम् उद्यानं गमिष्यामि।

अहं पठिष्यामि।
अहं वदिष्यामि।
अहं खादिष्यामि।
अहं चलिष्यामि
अहं पास्यामि = मैं पिऊँगा।

अहं दास्यामि = मैं दूँगा।

अहं मेलिष्यामि = मैं मिलूँगा।

अहं लेखिष्यामि = मैं लिखूँगा।

अहं नेष्यामि = मैं ले जाऊँगा।

अहम् आनेष्यामि = मैं लाऊँगा।

अहं द्रक्ष्यामि = मैं देखूँगा।

अहं प्रक्ष्यामि = मैं पूछूँगा।

अहं श्रोष्यामि = मैं सुनूँगा।

अहं स्थापयिष्यामि = मैं रखूँगा।

ओ३म्

छोटे छोटे सरल सरल संस्कृत वाक्य बोलते जाइए , संस्कृत में पारंगत बनते जाइए।

१३७. संस्कृत वाक्याभ्यासः

गाँव ढोरी , जिला कच्छ ( गुजरात ) का निवासी श्री शम्भु आहिर कल भुज में मिला था। सात वर्ष पहले उसने संस्कृत पढ़ी थी।
गाँव में उसके साथ कोई भी संस्कृत में बातचीत नहीं करता है परन्तु वह नित्य सम्भाषण का अभ्यास करता है।

मेरे साथ उसने १५ मिनट तक एक भोजनालय में बैठ कर संस्कृत में बात की। सभी लोग हमारा संस्कृत सम्वाद सुन रहे थे।

शम्भुः – नमो नमः।

अहम् – नमो नमः।

अहम् – भवान् कः ? = आप कौन ?

शम्भुः – मम नाम शम्भुः।

अहम् – कुतः ? = कहाँ से ?

शम्भुः – अहं ढोरीतः।
= मैं ढोरी से

शम्भुः – भवान् संस्कृतं पाठितवान्।
= आपने संस्कृत पढाई थी।

अहम् – कदा ? कब ?

शम्भुः – सप्तवर्षेभ्यः पूर्वम्।
= सात वर्ष पहले।

शम्भुः – अमितः अपि पाठयति स्म।
= अमित जी भी पढ़ाते थे।

अहम् – आम्, अधुना स्मरणे आगतम्।
= अब याद आया।

अहम् – तदानीं विलासबा भगिनी अपि पाठयति स्म।
= तब विलासबा बहन भी पढ़ाती थीं।

शम्भुः – अधुना अहं शिक्षकः अस्मि।
= अब मैं शिक्षक हूँ।

छात्रान् संस्कृतं पाठयामि।
= छात्रों को संस्कृत पढ़ाता हूँ।

आवां द्वौ सुखेन संस्कृते वार्तालापं कृतवन्तौ।
= हम दोनों ने सुख से संस्कृत में बातचीत की।

जनाः आवयोः सम्भाषणं श्रृण्वन्ति स्म।
= लोग हमारी बात सुन रहे थे।

आप भी ऐसे ही संस्कृत में बात किया करें।

#Vakyabhyas
*भारतीय चिकित्सा-विज्ञान में गौरवपूर्ण स्वच्छता के सूत्र*=

हमारे पूर्वज अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने हजारों वर्षों पूर्व वेदों व शास्त्रों में महामारी की रोकथाम के लिए परिपूर्ण स्वच्छता रखने के लिए स्पष्ट निर्देश दे रखें हैं –

1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं
तैलं तथैव च ।
लेह्यं पेयं च विविधं
हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।।
- धर्मसिन्धू ३पू. आह्निक

नामक, घी, तेल, चावल, एवं अन्य खाद्य पदार्थ चम्मच से परोसना चाहिए, हाथों से नहीं।

2. अनातुरः स्वानि खानि न
स्पृशेदनिमित्ततः ।।
- मनुस्मृति ४/१४४

अपने शरीर के अंगों जैसे आँख, नाक, कान आदि को बिना किसी कारण के छूना नहीं चाहिए।

3. अपमृज्यान्न च स्न्नातो
गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।।
- मार्कण्डेय पुराण ३४/५२

एक बार पहने हुए वस्त्र धोने के बाद ही पहनना चाहिए। स्नान के बाद अपने शरीर को शीघ्र सुखाना चाहिए।

4. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे
भोजनं चरेत् ।।
पद्म०सृष्टि.५१/८८
नाप्रक्षालितपाणिपादो
भुञ्जीत ।।
- सुश्रुतसंहिता चिकित्सा
२४/९८
अपने हाथ, मुंह व पैर स्वच्छ करने के बाद ही भोजन करना चाहिए।

5. स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः
स्युः निष्फलाः क्रियाः ।।

- वाघलस्मृति ६९

बिना स्नान व शुद्धि के यदि कोई कर्म किये जाते हैं तो वो निष्फल रहते हैं।

6. न धारयेत् परस्यैवं
स्न्नानवस्त्रं कदाचन ।I
- पद्म० सृष्टि.५१/८६

स्नान के बाद अपना शरीर पोंछने के लिए किसी अन्य द्वारा उपयोग किया गया वस्त्र(टॉवेल) उपयोग में नहीं लाना चाहिये।

7. अन्यदेव भवद्वासः
शयनीये नरोत्तम ।
अन्यद् रथ्यासु देवानाम
अर्चायाम् अन्यदेव हि ।।
- महाभारत अनु १०४/८६

पूजन, शयन एवं घर के बाहर जाते समय अलग-अलग वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।

8. तथा न अन्यधृतं (वस्त्रं
धार्यम् ।।
- महाभारत अनु १०४/८६

दूसरे द्वारा पहने गए वस्त्रों को नहीं पहनना चाहिए।

9. न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं
वसनं बिभृयाद् ।।
- विष्णुस्मृति ६४

एक बार पहने हुए वस्त्रों को स्वच्छ करने के बाद ही दूसरी बार पहनना चाहिए।

10. न आद्रं परिदधीत ।।
- गोभिसगृह्यसूत्र ३/५/२४

गीले वस्त्र न पहनें।

सनातन धर्म ग्रंथो के माध्यम से ये सभी सावधानियां समस्त भारतवासियों को हजारों वर्षों पूर्व से सिखाई जाती रही हैं।
इस पद्धति से हमें अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता को बनाये रखने के लिए सावधानियां बरतने के निर्देश तब दिए गए थे जब आज के जमाने के माइक्रोस्कोप नही थे। लेकिन हमारे पूर्वजों ने वैदिक ज्ञान का उपयोग कर धार्मिकता व सदाचरण का अभ्यास दैनिक जीवन में स्थापित किया था।आज भी ये सावधानियाँ अत्यन्त प्रासंगिक हैं। यदि हमें ये उपयोगी लगती हो तो इनका पालन कर सकते हैं।
।।श्रीराधे।।

🌻🙏जयतु भारतीयविज्ञानम्।🙏🌻
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 डि आर् डि ओ संस्थया आविष्कृताय कोविडौषधाय अनुज्ञा लब्धा। 

   नवदिल्ली> भारतस्य प्रतिरोध गवेषणकेन्द्रेण डि आर् डि ओ संस्थया आविष्कृताय कोविडौषधाय 2-डि जि [2 de Oxi -D- Glucose] नामकाय आकस्मिकवेलायाम् उपयोक्तुम् 'ड्रग्स् कण्ट्रोलर् ओफ् इन्डिया' संस्थया  अनुज्ञा लब्धा। 

  ग्लूकोस् अस्त्यस्यौषधस्य प्रधानांशः। अतः इदमौषधं राष्ट्रे भूरिशः निर्मातुं वितरीतुं च शक्यत इति डि आर् डि ओ संस्थया निगदितम्। कोविड्रोगिषु कृते परीक्षणे अनुकूलं फलमजायत इत्यनेनैव अनुज्ञा लब्धा। डि आर् डि ओ संस्थायाः Institute of Nuclear Medicine and Allied Science lab तथा हैदराबादस्था Dr. Reddi's Laboratory इति संस्थया च सहयौगिकतया आविष्कृतमौषधं भवत्येतत्।

~ संप्रति वार्ता
AIR Tirupati 21-05-09 1820 AEFmtConversion1620570909245 AETrim1620570963701
९.५ सायंकाल शुभेच्छा
🙏 💐 8.5.21 वेदवाणी 🙏💐
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा प्रचारित 🙏💐

इन्द्रमिवेदुभये वि ह्वयन्त उदीराणा यज्ञमुपप्रयन्तः।
दधिक्रामु सूदनं मर्त्याय ददथुर्मित्रावरुणा नो अश्वम्॥ ऋग्वेद ४-३९-५॥🙏💐

प्राण और उदान के सदृश्य शासक और उसके सहयोगी अनुसंधानकर्ता, विज्ञान से जुड़े लोग आदि जब मिलकर प्रजाहित में ऊर्जा और जल क्षेत्रों में उन्नति के कार्य करते हैं। तो उनकी प्रशंसा सर्वत्र होती है।🙏💐

Like Pran and Udaan, the ruler and his associate researchers, people associated with science, etc., work together in the fields of energy and water in the interest of people. Then, they are praised everywhere. (Rig Veda 4-39-5)


🙏 9.5.21 वेदवाणी🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌹

*दधिक्राव्ण इदु नु चर्किराम विश्वा इन्मामुषसः सूदयन्तु।*
*अपामग्नेरुषसः सूर्यस्य बृहस्पतेराङ्गिरसस्य जिष्णोः॥ ऋग्वेद ४-४०-१॥*🙏🌹

हे आरोही उषा ! हमें प्रेरणा दें कि हम जनता के कल्याण के लिए जल, अग्नि, सूर्य, ब्रहस्पति, प्राण आदि की लौकिक ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं।🙏🌹

O Ascending Usha ! Inspire us that we can utilize the cosmic energies of water, fire, sun, Brahspati, Pran etc. for the welfare of the public. (Rig Veda 4–40–1)🙏🌹#vedgsawan🙏🌹
Kiraataarjuneeyam (Mahakavi Bharavi)

नहि प्रियं वक्तुमिच्छन्ति मृषा हितैषिणः

Nahi priyam vaktumichchhanti mrishaa hitaishinah

Those who mean well for others do not want to please them by false praise.


ननु वक्तृविशेष नि:स्पृहा गुणगृह्या वचने विपश्चितः

Nanu vaktrivishesha ni:sprihaa gunagrihyaa vachane vipashchitah

The wise are indifferent as to who uttered the words, they judge the words by their inherent quality.


निवसन्ति पराक्रमाश्रया न विषादेन समं समृद्धयः

Nivasanti paraakramaashrayaa na vishaadena samam samriddhayah

Abundance (affluence) co-exists with valour not with melancholy or absence of enthusiasm.


सहसा विदधीत न क्रियामविवेक: परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥

Sahasaa vidadheeta na kriyaamavivekah paramaapadaam padam
Vrinute hi vimrishyakaarinam gunalubdhaah swayameva sampadah


Do not embark on an endeavour on the spur of the moment without analysing its pros and cons. The absence of discrimination is the cause of great misfortune. Fortune, ever greedy for good qualities in men, embraces those who engage themselves in an endeavour after consultations and discussions with men of knowledge.


स्पृहणीयगुणैर्महात्मभिश्चरिते वर्त्मनि यच्छतां मनः
विधिहेतुर्हेतुरागसां विनिपातोऽपि समुन्नतेस्समः

Sprihaneeya gunairmahaatmabhih charite vartmani yachchhataam manah
Vidhiheturaheturaagasaam vinipaato’pi samunnateh samah


For those who follow in the footsteps of great men possessing highly desirable qualities, even a downfall on account of fate and not involving wrong doings is equal to rising higher in status.


यशोऽधिगन्तुं सुखलिप्सया वा मनुष्यसंख्यामतिवर्तितुं वा
निरुत्सुकानामभियोगभाजां समुत्सुकेवाङ्कमुपैति सिद्धिः

Yasho’dhigantum sukhalipsayaa vaa manushyasamkhyaamativartitum vaa
Nirutsukaanaamabhiyogabhaajaam samutsukevaankamupaiti siddhih


Achievement, it seems, is enthusiastic to sit on the lap of those who engage themselves diligently in an endeavour without caring for fame, happiness or rise in popularity.


किं वावसादकर आत्मवताम्

Kimivaavasaadakara aatmavataam

There is nothing which will tire out or disturb the mind of high-minded persons.


प्रेम पश्यति भयानपदेऽपि

Prema pashyati bhayaanapade’pi

Love sees cause for fear even in the most unlikely places.


उपनतमवधीरयन्त्यभव्याः

Upanatamavadheerayantyabhavyaah

Unlucky persons disregard ( do not care about) what is already at hand.


शरदम्बुधरच्छाया जत्वर्यो यौवनश्रियः
आपातरम्याः विषयाः पर्यन्तपरितापिनः

Sharadambudharachchhaayaa jatwaryo yauvanashriyah
Aapaataramyaah vishayaah paryanta paritaapinah


Youth is fleeting like the clouds of autumn. The pleasures of the senses are sweet in the beginning but yield bitter results in the end.


तदा रम्याण्यरम्याणि प्रियः शल्यं तदासवः ।
तदेकाकी सबंधुस्सन् इष्टेन रहितो यदा ॥

Tadaa ramyaanyaramyaani priyah shalyam tadaasavah
Tadekaakee sabandhuh sannishtena rahito yadaa


when one’s loved one is absent, beautiful things seem ugly, what one likes including one’s own life becomes a pain, one feels lonely even in the midst of one’s relatives.


जीयन्तां दुर्जया देहे रिपवश्च्क्षुरादयः ।
जितेषु ननु लोकोऽयं तेषु कृत्स्नस्त्वया जितः॥

Jeeyantaam durjayaa dehe ripavashchakshuraadayah
Jiteshu nanu loko’yam teshu kritsnastwayaa jitah


The enemies resident in the body, namely the sense organs like the eyes, which are difficult to control, should be conquered. Once they are conquered, it is as good as the whole world has been conquered by you.


तावदाश्रयते लक्ष्म्या तावदस्य स्थिरं यशः ।
पुरुषस्तावदेवासौ यावन्मानान्न हीयते ॥

Taavadaashreeyate lakshmyaa taavadasya sthiram yashah
Purushastaavadevaasau yaavanmaanaanna heeyate


One can accumulate wealth, one’s fame remains stable and one is considered a man of substance only so long as one commands the respect of society.


प्रकृत्यमित्रा हि सतामसाधवः

Prakrityamitraa hi sataamasaadhavah

Evil men are natural enemies of the good ones.
🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - चतुर्दशी रात्रि 09:55 तक तत्पश्चात अमावस्या

दिनांक - 10 मई 2021
दिन - सोमवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - वैशाख
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - अश्विनी रात्रि 08:26 तक तत्पश्चात भरणी
योग - आयुष्मान् रात्रि 09:40 तक तत्पश्चात सौभाग्य
राहुकाल - सुबह 07:41 से सुबह 09:19 तक
सूर्योदय - 06:04
सूर्यास्त - 19:06
दिशाशूल - पूर्व दिशा में