📙 ऋग्वेद
सूक्त - २४ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १२ , देवता - अग्नि आदि।
🍃 तदिन्नक्तं तद्दिवा मह्यमाहुस्तदयं केतो हृद आ वि चष्टे. शुनःशेपो
यमह्वद्गृभीतः सो अस्मान् राजा वरुणो मुमोक्तु.. (१२)
⚜️ भावार्थ - कर्त्तव्य को जानने वाले लोगों ने रात में और दिन में मुझसे यही कहा है। मेरे हृदय से उत्पन्न ज्ञान भी यही सलाह देता है। शुनः शेप ने सूर्य से बंधकर जिनको पुकारा था, वे ही राजा वरुण हमें बंधन से मुक्त करें। (१२)
सूक्त - २४ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १२ , देवता - अग्नि आदि।
🍃 तदिन्नक्तं तद्दिवा मह्यमाहुस्तदयं केतो हृद आ वि चष्टे. शुनःशेपो
यमह्वद्गृभीतः सो अस्मान् राजा वरुणो मुमोक्तु.. (१२)
⚜️ भावार्थ - कर्त्तव्य को जानने वाले लोगों ने रात में और दिन में मुझसे यही कहा है। मेरे हृदय से उत्पन्न ज्ञान भी यही सलाह देता है। शुनः शेप ने सूर्य से बंधकर जिनको पुकारा था, वे ही राजा वरुण हमें बंधन से मुक्त करें। (१२)
✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️ त्रयोदश अध्याय
♦️श्लोक :- ६
अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा।
द्वावेतौ सुखमेवैते यद्भविष्यो विनश्यति।।६।।
♦️भावार्थ - दुःख के आने से पूर्व ही उसके निवारण का उपाय कर लेने वाला तथा संकट पड़ने पर तुरन्त समाधान खोजकर उससे मुक्त हो जाने वाला, ये दोनों ही सुखी रहते हैं।
#Chanakya
✒️ त्रयोदश अध्याय
♦️श्लोक :- ६
अनागत विधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा।
द्वावेतौ सुखमेवैते यद्भविष्यो विनश्यति।।६।।
♦️भावार्थ - दुःख के आने से पूर्व ही उसके निवारण का उपाय कर लेने वाला तथा संकट पड़ने पर तुरन्त समाधान खोजकर उससे मुक्त हो जाने वाला, ये दोनों ही सुखी रहते हैं।
#Chanakya
ओ३म्
५७. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अहं कष्टं सहे।
= मैं कष्ट सहन करता / करती हूँ
त्वं कष्टं सहसे।
= तुम कष्ट सहन करते / करती हो
सः दुःखं सहते।
= वह दुःख सहता है
सा पीड़ां सहते।
= वह पीड़ा सहन करती है
सैनिकाः सर्वदा कष्टं सहन्ते।
= सैनिक हमेशा कष्ट सहन करते हैं
कृषकाः कष्टं सोढ्वा कृषिकार्यं कुर्वन्ति।
= किसान कष्ट सहन करके खेती करते हैं
जीवने कष्टं तु सहनीयं भवति।
= जीवन में कष्ट तो सहन करना पड़ता है
जीवने पीड़ा तु सहनीया भवति।
= जीवन में पीड़ा तो सहन करनी पड़ती है
यः किमपि न सहते।
= जो कुछ नहीं सहन करता है
सः जीवनं न जीवति।
= वह जीवन नहीं जीता है
ओ३म्
५८. संस्कृत वाक्याभ्यासः
ऋषिदेवः रविवासरे मौनव्रतं पालयति।
= ऋषिदेव रविवार को मौनव्रत पालता है
रविवासरे सः एकम् अपि शब्दं न वदति।
= रविवार को वह एक भी शब्द नहीं बोलता है
सः केवलं लिखति।
= वह केवल लिखता है
सः यत्किमपि वक्तुम् इच्छति।
= वह जो कुछ भी बोलना चाहता है
तद् सर्वं लिखित्वा एव सूचयति।
= वह सब लिखकर के ही सूचित करता है
सः सर्वं संस्कृत-भाषायामेव लिखति।
= वह सब कुछ संस्कृत भाषा में ही लिखता है
तस्य पुत्रः विभुः उचैः तस्य लेखं पठति।
= उसका बेटा विभु जोर से उसका लेख पढ़ता है
पठित्वा शीघ्रमेव वस्तूनि आनयति।
= पढ़कर जल्दी से वस्तुएँ लाता है
विभुः अपि संस्कृतं जानाति।
= विभु भी संस्कृत जानता है
विभुः आज्ञाकारी बालकः अस्ति।
= विभु आज्ञाकारी बालक है
ओ३म्
५९. संस्कृत वाक्याभ्यासः
तेन उक्तम्।
= उसने कहा
अवश्यमेव आगच्छतु।
= अवश्य आईयेगा
तया अपि उक्तम्।
= उसने भी कहा
अवश्यमेव आगच्छतु।
= अवश्य आईयेगा
अहम् उभयत्र न गतवान्।
= मैं दोनों जगह नहीं गया
अहम् अन्यत्र गतवान्।
= मैं और कहीं गया
अद्य द्वयोः गृहं गच्छामि।
= आज दोनों के घर जा रहा हूँ
दूरवाण्या सूचितवान् अहम्।
= दूरवाणी से मैंने सूचित कर दिया है
ओ३म्
६०. संस्कृत वाक्याभ्यासः
द्वादश-वर्षाणि पर्यन्तं सः कारावासे आसीत्।
= बारह वर्ष तक वह जेल में था
सः भयकरः अपराधी अस्ति।
= वह खतरनाक अपराधी है
सः आतंकवादी सदृशः अस्ति।
= वह आतंकवादी जैसा है
अधुना सः कारागारात् मुक्तः जातः।
= अब वह जेल से मुक्त हो गया है
यदा सः कारागारात् बहिः आगतवान्।
= जब वह जेल से बहार आया
तदा धूर्ताः राजनेतारः तस्य स्वागतम् अकुर्वन्।
= तब धूर्त राजनेताओं ने उसका स्वागत किया
सीवानस्य सर्वे जनाः भयभीताः सन्ति।
= सीवान के सभी लोग भयभीत हैं
७१. संस्कृत वाक्याभ्यासः
पत्नी – श्रृणोति वा ?
= सुनते हैं ?
विनय दुग्धं न पिबति।
= विनय दूध नहीं पी रहा है
किञ्चित् तर्जयतु।
= थोड़ा डांटिये
पतिः – किमर्थं वत्स..!
= क्यों बेटा
दुग्धं किमर्थं न पिबसि त्वम् ?
= तुम दूध क्यों नहीं पी रहे हो ?
तुभ्यं दुग्धं न रोचते वा ?
= तुम्हें दूध पसन्द नहीं है क्या ?
विनयः – तात ! दुग्धं तु रोचते मह्यम्।
= मुझे दूध तो पसंद है
– गोपालः धेनुं सूचिऔषधं मारयति।
= गोपाल गाय को इन्जेक्शन मारता है
– तद् मह्यं न रोचते।
= वो मुझे पसंद नहीं है
ओ३म्
७२. संस्कृत वाक्याभ्यासः
गर्वम् अनुभवामि।
= मुझे गर्व हो रहा है
मम वीराणाम् उपरि गर्वम् अनुभवामि।
= अपने वीरों पर मुझे गर्व हो रहा है
ते अद्य सीमापारं गत्वा आतंकवादिनः मारितवन्तः।
उन्होंने सीमापार जाकर आतंकवादियों को मार दिया
तेषाम् आतंकशिबिराणि ध्वस्तानि कृतानि।
उनके आतंकी शिविरोंको ध्वस्त किया
अस्माभिः सङ्कल्पः कर्तव्यः।ं
हम सबको संकल्प करना चाहिये
वयं अस्मिन् वर्षे नवरात्रिः दीपावली च पर्वावसरे नूतनानि वस्त्राणि निर्मापयिष्यामः।
हम इस वर्ष नवरात्रि में या दीवाली में नए कपड़े नहीं सिलाएँगे ….
अस्मिन् वर्षे दीपावल्यां अग्निक्रीडनकानि न क्रेष्यामः।
हम इस वर्ष दीवाली पर पटाखे नहीं खरीदेंगे …..
अग्निक्रीडा च न करिष्यामः
और आतिशबाजी नहीं करेंगे ….
यानि रुप्यकाणि अवशिष्यन्ते सर्वाणि वीरेभ्यः सैनिकेभ्यः प्रदास्यामः।
जो भी पैसा बचेगा वो सब हमारी बहादुर सेना के लिये दे देंगे।
ओ३म्
७३. संस्कृत वाक्याभ्यासः
रात्रौ अधिकं जागरणं कुर्मः चेत् ….
= रात को अधिक जागरण करते हैं तो ….
दिवसे निद्रा आगच्छति।
= दिन में नींद आती है
दिवसे सुखेन कार्यं कर्तुं न शक्नुमः।
= दिन में सुख से काम नहीं कर पाते हैं
वयं दिवसे जृम्भामहे।
= हम दिन में जम्हाई लेते हैं
प्रायः सर्वे जृम्भन्ते।
= प्रायः सभी जम्हाई लेते हैं
अद्य अहम् अपि जृम्भे।
= आज मैं भी जम्हाई ले रहा हूँ
रात्रौ विलम्बेन शयनं कृतम्।
= रात में देर से सोया
#vakyabhyas
५७. संस्कृत वाक्याभ्यासः
अहं कष्टं सहे।
= मैं कष्ट सहन करता / करती हूँ
त्वं कष्टं सहसे।
= तुम कष्ट सहन करते / करती हो
सः दुःखं सहते।
= वह दुःख सहता है
सा पीड़ां सहते।
= वह पीड़ा सहन करती है
सैनिकाः सर्वदा कष्टं सहन्ते।
= सैनिक हमेशा कष्ट सहन करते हैं
कृषकाः कष्टं सोढ्वा कृषिकार्यं कुर्वन्ति।
= किसान कष्ट सहन करके खेती करते हैं
जीवने कष्टं तु सहनीयं भवति।
= जीवन में कष्ट तो सहन करना पड़ता है
जीवने पीड़ा तु सहनीया भवति।
= जीवन में पीड़ा तो सहन करनी पड़ती है
यः किमपि न सहते।
= जो कुछ नहीं सहन करता है
सः जीवनं न जीवति।
= वह जीवन नहीं जीता है
ओ३म्
५८. संस्कृत वाक्याभ्यासः
ऋषिदेवः रविवासरे मौनव्रतं पालयति।
= ऋषिदेव रविवार को मौनव्रत पालता है
रविवासरे सः एकम् अपि शब्दं न वदति।
= रविवार को वह एक भी शब्द नहीं बोलता है
सः केवलं लिखति।
= वह केवल लिखता है
सः यत्किमपि वक्तुम् इच्छति।
= वह जो कुछ भी बोलना चाहता है
तद् सर्वं लिखित्वा एव सूचयति।
= वह सब लिखकर के ही सूचित करता है
सः सर्वं संस्कृत-भाषायामेव लिखति।
= वह सब कुछ संस्कृत भाषा में ही लिखता है
तस्य पुत्रः विभुः उचैः तस्य लेखं पठति।
= उसका बेटा विभु जोर से उसका लेख पढ़ता है
पठित्वा शीघ्रमेव वस्तूनि आनयति।
= पढ़कर जल्दी से वस्तुएँ लाता है
विभुः अपि संस्कृतं जानाति।
= विभु भी संस्कृत जानता है
विभुः आज्ञाकारी बालकः अस्ति।
= विभु आज्ञाकारी बालक है
ओ३म्
५९. संस्कृत वाक्याभ्यासः
तेन उक्तम्।
= उसने कहा
अवश्यमेव आगच्छतु।
= अवश्य आईयेगा
तया अपि उक्तम्।
= उसने भी कहा
अवश्यमेव आगच्छतु।
= अवश्य आईयेगा
अहम् उभयत्र न गतवान्।
= मैं दोनों जगह नहीं गया
अहम् अन्यत्र गतवान्।
= मैं और कहीं गया
अद्य द्वयोः गृहं गच्छामि।
= आज दोनों के घर जा रहा हूँ
दूरवाण्या सूचितवान् अहम्।
= दूरवाणी से मैंने सूचित कर दिया है
ओ३म्
६०. संस्कृत वाक्याभ्यासः
द्वादश-वर्षाणि पर्यन्तं सः कारावासे आसीत्।
= बारह वर्ष तक वह जेल में था
सः भयकरः अपराधी अस्ति।
= वह खतरनाक अपराधी है
सः आतंकवादी सदृशः अस्ति।
= वह आतंकवादी जैसा है
अधुना सः कारागारात् मुक्तः जातः।
= अब वह जेल से मुक्त हो गया है
यदा सः कारागारात् बहिः आगतवान्।
= जब वह जेल से बहार आया
तदा धूर्ताः राजनेतारः तस्य स्वागतम् अकुर्वन्।
= तब धूर्त राजनेताओं ने उसका स्वागत किया
सीवानस्य सर्वे जनाः भयभीताः सन्ति।
= सीवान के सभी लोग भयभीत हैं
७१. संस्कृत वाक्याभ्यासः
पत्नी – श्रृणोति वा ?
= सुनते हैं ?
विनय दुग्धं न पिबति।
= विनय दूध नहीं पी रहा है
किञ्चित् तर्जयतु।
= थोड़ा डांटिये
पतिः – किमर्थं वत्स..!
= क्यों बेटा
दुग्धं किमर्थं न पिबसि त्वम् ?
= तुम दूध क्यों नहीं पी रहे हो ?
तुभ्यं दुग्धं न रोचते वा ?
= तुम्हें दूध पसन्द नहीं है क्या ?
विनयः – तात ! दुग्धं तु रोचते मह्यम्।
= मुझे दूध तो पसंद है
– गोपालः धेनुं सूचिऔषधं मारयति।
= गोपाल गाय को इन्जेक्शन मारता है
– तद् मह्यं न रोचते।
= वो मुझे पसंद नहीं है
ओ३म्
७२. संस्कृत वाक्याभ्यासः
गर्वम् अनुभवामि।
= मुझे गर्व हो रहा है
मम वीराणाम् उपरि गर्वम् अनुभवामि।
= अपने वीरों पर मुझे गर्व हो रहा है
ते अद्य सीमापारं गत्वा आतंकवादिनः मारितवन्तः।
उन्होंने सीमापार जाकर आतंकवादियों को मार दिया
तेषाम् आतंकशिबिराणि ध्वस्तानि कृतानि।
उनके आतंकी शिविरोंको ध्वस्त किया
अस्माभिः सङ्कल्पः कर्तव्यः।ं
हम सबको संकल्प करना चाहिये
वयं अस्मिन् वर्षे नवरात्रिः दीपावली च पर्वावसरे नूतनानि वस्त्राणि निर्मापयिष्यामः।
हम इस वर्ष नवरात्रि में या दीवाली में नए कपड़े नहीं सिलाएँगे ….
अस्मिन् वर्षे दीपावल्यां अग्निक्रीडनकानि न क्रेष्यामः।
हम इस वर्ष दीवाली पर पटाखे नहीं खरीदेंगे …..
अग्निक्रीडा च न करिष्यामः
और आतिशबाजी नहीं करेंगे ….
यानि रुप्यकाणि अवशिष्यन्ते सर्वाणि वीरेभ्यः सैनिकेभ्यः प्रदास्यामः।
जो भी पैसा बचेगा वो सब हमारी बहादुर सेना के लिये दे देंगे।
ओ३म्
७३. संस्कृत वाक्याभ्यासः
रात्रौ अधिकं जागरणं कुर्मः चेत् ….
= रात को अधिक जागरण करते हैं तो ….
दिवसे निद्रा आगच्छति।
= दिन में नींद आती है
दिवसे सुखेन कार्यं कर्तुं न शक्नुमः।
= दिन में सुख से काम नहीं कर पाते हैं
वयं दिवसे जृम्भामहे।
= हम दिन में जम्हाई लेते हैं
प्रायः सर्वे जृम्भन्ते।
= प्रायः सभी जम्हाई लेते हैं
अद्य अहम् अपि जृम्भे।
= आज मैं भी जम्हाई ले रहा हूँ
रात्रौ विलम्बेन शयनं कृतम्।
= रात में देर से सोया
#vakyabhyas
🙏 30.4.21 वेदवाणी🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌻
आरे अस्मदमतिमारे अंह आरे विश्वां दुर्मतिं यन्निपासि।
दोषा शिवः सहसः सूनो अग्ने यं देव आ चित्सचसे स्वस्ति॥ ऋग्वेद ४-११-६॥🙏🌻
जो विद्वान लोग हमें अज्ञानता, पाप विचारों और दुष्ट बुद्धि वाले लोगों से दूर करते हैं। ऐसे लोग ही हमारे दिन-रात सत्कार करने के योग्य हैं। 🙏🌻
The learned people who keep us far from ignorance, sinful thoughts, and wicked intellects. Only such people are worth to be respected by us day and night. (Rig Veda 4-11-6)🙏🌻#rgveda 🙏🌻
🙏 29.4.21 वेदवाणी 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🏵️
ये गोमन्तं वाजवन्तं सुवीरं रयिं धत्थ वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
ते अग्रेपा ऋभवो मन्दसाना अस्मे धत्त ये च रातिं गृणन्ति॥ ऋग्वेद ४-३४-१०॥🙏🏵️
हे प्रतिभाशाली व्यक्तियों ! तुम धन-धान्य और खाद्यान्नों से समृद्ध हो। आप के दान की प्रशंसा सर्वत्र होती है। आप समाज के हित में कार्य कर रहे हो।🙏🏵️
O geniuses ! You are rich in wealth and grains. Your charity is praised everywhere. You are working in the interest of society. (Rig Veda 4-34-10)🙏🏵️ #rgveda 🙏🏵️
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌻
आरे अस्मदमतिमारे अंह आरे विश्वां दुर्मतिं यन्निपासि।
दोषा शिवः सहसः सूनो अग्ने यं देव आ चित्सचसे स्वस्ति॥ ऋग्वेद ४-११-६॥🙏🌻
जो विद्वान लोग हमें अज्ञानता, पाप विचारों और दुष्ट बुद्धि वाले लोगों से दूर करते हैं। ऐसे लोग ही हमारे दिन-रात सत्कार करने के योग्य हैं। 🙏🌻
The learned people who keep us far from ignorance, sinful thoughts, and wicked intellects. Only such people are worth to be respected by us day and night. (Rig Veda 4-11-6)🙏🌻#rgveda 🙏🌻
🙏 29.4.21 वेदवाणी 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🏵️
ये गोमन्तं वाजवन्तं सुवीरं रयिं धत्थ वसुमन्तं पुरुक्षुम्।
ते अग्रेपा ऋभवो मन्दसाना अस्मे धत्त ये च रातिं गृणन्ति॥ ऋग्वेद ४-३४-१०॥🙏🏵️
हे प्रतिभाशाली व्यक्तियों ! तुम धन-धान्य और खाद्यान्नों से समृद्ध हो। आप के दान की प्रशंसा सर्वत्र होती है। आप समाज के हित में कार्य कर रहे हो।🙏🏵️
O geniuses ! You are rich in wealth and grains. Your charity is praised everywhere. You are working in the interest of society. (Rig Veda 4-34-10)🙏🏵️ #rgveda 🙏🏵️
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।
🍃 तेन गन्धर्व यक्षाणां देवदानवरक्षसाम् ।
अवध्योऽस्मीति वागुक्ता तथेत्युक्तं च तन्मया ।।१३।।
⚜️ भावार्थ - रावण के वर मांगने पर हमने उसे गन्धर्व, यक्ष, देवता, दानव और राक्षसों द्वारा अवध्य होने का वरदान तो अवश्य दे दिया है ॥१३॥
🍃 नाकीर्तयदवज्ञानात्तद्रक्षो मानुपांस्तदा ।
तस्मात्स मानुपाद्वथ्यो मृत्युर्नान्योऽस्य विद्यते ।।१४।।
⚜️ भावार्थ - किन्तु उसने मनुष्यों को कुछ भी न समझ वरदान में मनुष्यों का नाम नहीं लिया था। अतः वह सिवाय मनुष्य के और किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता॥१४॥
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।
🍃 तेन गन्धर्व यक्षाणां देवदानवरक्षसाम् ।
अवध्योऽस्मीति वागुक्ता तथेत्युक्तं च तन्मया ।।१३।।
⚜️ भावार्थ - रावण के वर मांगने पर हमने उसे गन्धर्व, यक्ष, देवता, दानव और राक्षसों द्वारा अवध्य होने का वरदान तो अवश्य दे दिया है ॥१३॥
🍃 नाकीर्तयदवज्ञानात्तद्रक्षो मानुपांस्तदा ।
तस्मात्स मानुपाद्वथ्यो मृत्युर्नान्योऽस्य विद्यते ।।१४।।
⚜️ भावार्थ - किन्तु उसने मनुष्यों को कुछ भी न समझ वरदान में मनुष्यों का नाम नहीं लिया था। अतः वह सिवाय मनुष्य के और किसी के द्वारा नहीं मारा जा सकता॥१४॥
📙 ऋग्वेद
सूक्त - २४ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १३ , देवता - अग्नि आदि।
🍃 शुनःशेपो ह्यह्वद्गृभीतस्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः।
अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विदाँ अदब्धों वि मुमोक्तु पाशान् (१३)
⚜️ भावार्थ - लकड़ी के तीन यूपों से बंधे हुए शुनः शेप ने अदिति के पुत्र वरुण का आह्वान किया था, इसलिए विद्वान् एवं दयालु राजा वरुण ने शुनःशेप को बंधन से छुड़ा दिया था। (१३)
सूक्त - २४ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १३ , देवता - अग्नि आदि।
🍃 शुनःशेपो ह्यह्वद्गृभीतस्रिष्वादित्यं द्रुपदेषु बद्धः।
अवैनं राजा वरुणः ससृज्याद्विदाँ अदब्धों वि मुमोक्तु पाशान् (१३)
⚜️ भावार्थ - लकड़ी के तीन यूपों से बंधे हुए शुनः शेप ने अदिति के पुत्र वरुण का आह्वान किया था, इसलिए विद्वान् एवं दयालु राजा वरुण ने शुनःशेप को बंधन से छुड़ा दिया था। (१३)
Saturday, May 1, 2021
भारते कोविड्बाधा प्रतिदिनं चतुर्लक्षमुपगच्छति।
नवदिल्ली> गतदिने भारते कोविड्बाधितानां संख्या ३,८६,४५२ जाता। इतःपर्यन्तम् अत्युन्नता गणना। अनेन राष्ट्रे आहत्य १,८७,६२,९७६ जनाः कोविड्बाधिताः अभवन्।
विविधराज्येषु ३१,७०,२२८ रोगिणः परिचर्यायां वर्तन्ते। केन्द्रस्वास्थ्यमन्त्रालयस्य गणनामनुसृत्य गत२४होरासु ३,४९८ जनाः कोविड्बाधया मृत्युमुपगताः। आहत्य मृत्युसंख्या २,०८,३३० अभवत्। इतःपर्यन्तं १,५३,८४,४१८ जनाः स्वस्थीभूताः जाताः।
~ संप्रति वार्ता
भारते कोविड्बाधा प्रतिदिनं चतुर्लक्षमुपगच्छति।
नवदिल्ली> गतदिने भारते कोविड्बाधितानां संख्या ३,८६,४५२ जाता। इतःपर्यन्तम् अत्युन्नता गणना। अनेन राष्ट्रे आहत्य १,८७,६२,९७६ जनाः कोविड्बाधिताः अभवन्।
विविधराज्येषु ३१,७०,२२८ रोगिणः परिचर्यायां वर्तन्ते। केन्द्रस्वास्थ्यमन्त्रालयस्य गणनामनुसृत्य गत२४होरासु ३,४९८ जनाः कोविड्बाधया मृत्युमुपगताः। आहत्य मृत्युसंख्या २,०८,३३० अभवत्। इतःपर्यन्तं १,५३,८४,४१८ जनाः स्वस्थीभूताः जाताः।
~ संप्रति वार्ता
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - षष्ठी दोपहर 02:50 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅ दिनांक - 02 मई 2021
⛅ दिन - रविवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - ग्रीष्म
⛅ मास - वैशाख
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - पूर्वाषाढा सुबह 08:59 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा
⛅ योग - साध्य रात्रि 11:26 तक तत्पश्चात शुभ
⛅ राहुकाल - शाम 05:27 से शाम 07:04 तक
⛅ सूर्योदय - 06:08
⛅ सूर्यास्त - 19:02
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - षष्ठी दोपहर 02:50 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅ दिनांक - 02 मई 2021
⛅ दिन - रविवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - ग्रीष्म
⛅ मास - वैशाख
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - पूर्वाषाढा सुबह 08:59 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा
⛅ योग - साध्य रात्रि 11:26 तक तत्पश्चात शुभ
⛅ राहुकाल - शाम 05:27 से शाम 07:04 तक
⛅ सूर्योदय - 06:08
⛅ सूर्यास्त - 19:02
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
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२.५ संस्कृत आकाशवाणी
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✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️त्रयोदश अध्याय
♦️श्लोक:-०७
राज्ञेधर्मणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः।
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः।।7।।
♦️भावार्थ --आचार्य चाणक्य राजा और प्रजा के स्वाभाव में सम्बन्ध बताते हुए कहते हैं, जिस देश का राजा धार्मिक होता है वहां की प्रजा भी धार्मिक होती है, यदि राजा पापी होता है तो प्रजा भी पापी होती है और सम होने पर सम।
#chanakya
✒️त्रयोदश अध्याय
♦️श्लोक:-०७
राज्ञेधर्मणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः।
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः।।7।।
♦️भावार्थ --आचार्य चाणक्य राजा और प्रजा के स्वाभाव में सम्बन्ध बताते हुए कहते हैं, जिस देश का राजा धार्मिक होता है वहां की प्रजा भी धार्मिक होती है, यदि राजा पापी होता है तो प्रजा भी पापी होती है और सम होने पर सम।
#chanakya
ओ३म्
७४. संस्कृत वाक्याभ्यासः
ओह, एकसाकं कति जनाः आगतवन्तः।
= ओह एक साथ कितने लोग आ गए हैं
धीरजः – मम कार्यं सर्वप्रथमं समापयतु।
= मेरा काम पहले पूरा करें
जयेन्द्रः – मया शीघ्रमेव गन्तव्यम् अस्ति।
= मुझे जल्दी से जाना है
पूर्वं मम कार्यं समापयतु।
= पहले मेरा काम पूरा करिये
सुकृतिः – एकं निवेदनम् अस्ति।
= एक निवेदन है
मम पुत्रः रुग्णः अस्ति।
= मेरा बेटा बीमार है
कृपया पूर्वं मम कार्यं समाप्स्यति वा ?
= कृपया पहले मेरा काम पूरा करेंगे क्या ?
अधुना भवन्तः / भवत्यः एव वदन्तु ।
= अभी आप ही बताए
कस्य / कस्याः कार्यं सर्वप्रथमं समापयामि ?
= किसका काम सबसे पहले करूँ ?
ओ३म्
७५. संस्कृत वाक्याभ्यासः
मम गृहे स्वर्णस्य आभूषणम् अस्ति।
= मेरे घर सोने का आभूषण है
मम गृहे रजतस्य नूपुरः अस्ति।
= मेरे घर चाँदी की पायल है
मम गृहे ताम्रस्य कर्कः अस्ति।
= मेरे घर तांबे का लोटा है
मम गृहे पित्तलस्य स्थालिका अस्ति।
= मेरे घर पीतल की थाली है
मम गृहे लौहस्य कटाहः अस्ति।
= मेरे घर लोहे की कढ़ाई है
मम गृहे काष्ठस्य चमसः अस्ति।
= मेरे घर लकड़ी का चम्मच है
मम गृहे काँचस्य चषकः अस्ति।
= मेरे घर काँच का गिलास है
मम गृहे मृत्तिकायाः घटः अस्ति।
= मेरे घर मिट्टी का घड़ा है
ओ३म्
७६. संस्कृत वाक्याभ्यासः
आचार्यः धर्मवीरः परोपकारिणी-सभायाः अध्यक्षः आसीत्।
= आचार्य धर्मवीर जी परोपकारिणी सभा के अध्यक्ष थे
परोपकारिणी सभा अजमेर नगरे अस्ति।
= परोपकारिणी सभा अजमेर शहर में है
डहृ. धर्मवीरः वैदिक विद्वान् आसीत्।
= डहृ धर्मवीर वैदिक विद्वान् थे
सः सर्वत्र वेदप्रचारं करोति स्म।
= वे सब जगह वेद प्रचार करते थे
सः प्रतिदिनं यज्ञम् अपि करोति स्म।
= वे प्रतिदिन यज्ञ भी करते थे।
सः परोपकारी नाम्नीम् एकां पत्रिकाम् अपि प्रकाशयति स्म।
= वे परोपकारी नाम की एक पत्रिका भी छापते थे
सः संस्कृत-विद्वान् आसीत्।
= वे संस्कृत विद्वान् थे
गतदिने सः दिवंगतः जातः।
= कल उनका देहावसान हुआ
तस्मै वयं श्रद्धाञ्जलीं दद्मः।
= उनको हम श्रद्धांजलि देते हैं
ओ३म्
७७. संस्कृत वाक्याभ्यासः
रावणः तु विद्वान् आसीत्।
= रावण तो विद्वान् था
रावणः वेदज्ञः आसीत्।
= रावण को वेद ज्ञात थे
रावणः दर्शनाचार्यः आसीत्।
= रावण दर्शनाचार्य था
तथापि श्रीरामः रावणं किमर्थं मारितवान् ?
= फिर भी श्रीराम ने रावण को क्यों मारा ?
रावणः राक्षसान् पोषयति स्म।
= रावण राक्षसों को पोषित करता था
रावणः अहंकारी आसीत्।
= रावण अहंकारी था
प्रतिदिनं रावणस्य अहंकारः वर्धते स्म।
= हररोज रावण का अहंकार बढ़ रहा था
अहंकारस्य कारणात् सः निर्दोषान् अपि मारयति स्म।
= अहंकार के कारण वह निर्दोषों को भी मारता था
रावणः विद्यायाः दुरुपयोगं करोति स्म।
= रावण विद्या का दुरुपयोग करता था
अतः तस्य हननम् आवश्यकम् आसीत्।
= इसलिये उसका हनन आवश्यक था
अधुना तु रावण-सदृशाः तु अनेके दृश्यन्ते।
= अब तो रावण के जैसे अनेक दीखते हैं
विजयादशमी पर्वणः सर्वेभ्यः कोटिशः मंगलकामनाः।
दशहरे की सभी को शुभ कोटि-कोटि शुभकामनाएं
ओ३म्
७८. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः सारंगः अस्ति।
= वह सारंग है
सारंगः अधुना ममैव पार्श्वे उपविष्टः अस्ति।
= सारंग अभी मेरे ही पास बैठा है
सः माम् न जानाति।
= वह मुझे नहीं जानता है
अहं तं न जानामि।
= मैं उसको नहीं जानता हूँ
सः मन्दस्वरेण संगीतं श्रृण्वन् अस्ति।
= वह धीमे स्वर में संगीत सुन रहा है
सः नेत्रे निमील्य संगीतं श्रृणोति।
= वह आँखें बन्द कर के संगीत सुनता है
तस्य मुखे स्मितं पश्यामि।
= उसके चेहरे पर स्मित देख रहा हूँ
वस्तुतः सः शास्त्रीयं रागं श्रृण्वन् अस्ति
= वास्तव में वह शास्त्रीय संगीत सुन रहा है
ओ३म्
७९. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः प्रेम्णा माम् अनयत्।
= वह मुझे प्रेम से ले गया
अहम् अपृच्छम्।
= मैंने पूछा
कुत्र नयति ?
= कहाँ ले जा रहे हो ?
चलतु ….. यदा तत्र प्राप्स्यति ….
= चलिये …. आप जब वहाँ पहुंचेंगे ….
तदा प्रसन्नः भविष्यति।
= तब खुश हो जाएंगे
एक घण्टा अनन्तरम् अहं तत्र प्राप्तवान्।
= एक घण्टे के बाद मैं वहाँ पहुँचा
आवां द्वौ प्राप्तवन्तौ।
= हम दोनों पहुँचे
अत्र तु पुरातनः दुर्गः अस्ति।
= यहाँ तो पुराना किला है
एषः सज्जनः माम् रोहा ग्रामम् आनीतवान् अस्ति।
= ये सज्जन मुझे रोहा गाँव लाए हैं।
#vakyabhyas
७४. संस्कृत वाक्याभ्यासः
ओह, एकसाकं कति जनाः आगतवन्तः।
= ओह एक साथ कितने लोग आ गए हैं
धीरजः – मम कार्यं सर्वप्रथमं समापयतु।
= मेरा काम पहले पूरा करें
जयेन्द्रः – मया शीघ्रमेव गन्तव्यम् अस्ति।
= मुझे जल्दी से जाना है
पूर्वं मम कार्यं समापयतु।
= पहले मेरा काम पूरा करिये
सुकृतिः – एकं निवेदनम् अस्ति।
= एक निवेदन है
मम पुत्रः रुग्णः अस्ति।
= मेरा बेटा बीमार है
कृपया पूर्वं मम कार्यं समाप्स्यति वा ?
= कृपया पहले मेरा काम पूरा करेंगे क्या ?
अधुना भवन्तः / भवत्यः एव वदन्तु ।
= अभी आप ही बताए
कस्य / कस्याः कार्यं सर्वप्रथमं समापयामि ?
= किसका काम सबसे पहले करूँ ?
ओ३म्
७५. संस्कृत वाक्याभ्यासः
मम गृहे स्वर्णस्य आभूषणम् अस्ति।
= मेरे घर सोने का आभूषण है
मम गृहे रजतस्य नूपुरः अस्ति।
= मेरे घर चाँदी की पायल है
मम गृहे ताम्रस्य कर्कः अस्ति।
= मेरे घर तांबे का लोटा है
मम गृहे पित्तलस्य स्थालिका अस्ति।
= मेरे घर पीतल की थाली है
मम गृहे लौहस्य कटाहः अस्ति।
= मेरे घर लोहे की कढ़ाई है
मम गृहे काष्ठस्य चमसः अस्ति।
= मेरे घर लकड़ी का चम्मच है
मम गृहे काँचस्य चषकः अस्ति।
= मेरे घर काँच का गिलास है
मम गृहे मृत्तिकायाः घटः अस्ति।
= मेरे घर मिट्टी का घड़ा है
ओ३म्
७६. संस्कृत वाक्याभ्यासः
आचार्यः धर्मवीरः परोपकारिणी-सभायाः अध्यक्षः आसीत्।
= आचार्य धर्मवीर जी परोपकारिणी सभा के अध्यक्ष थे
परोपकारिणी सभा अजमेर नगरे अस्ति।
= परोपकारिणी सभा अजमेर शहर में है
डहृ. धर्मवीरः वैदिक विद्वान् आसीत्।
= डहृ धर्मवीर वैदिक विद्वान् थे
सः सर्वत्र वेदप्रचारं करोति स्म।
= वे सब जगह वेद प्रचार करते थे
सः प्रतिदिनं यज्ञम् अपि करोति स्म।
= वे प्रतिदिन यज्ञ भी करते थे।
सः परोपकारी नाम्नीम् एकां पत्रिकाम् अपि प्रकाशयति स्म।
= वे परोपकारी नाम की एक पत्रिका भी छापते थे
सः संस्कृत-विद्वान् आसीत्।
= वे संस्कृत विद्वान् थे
गतदिने सः दिवंगतः जातः।
= कल उनका देहावसान हुआ
तस्मै वयं श्रद्धाञ्जलीं दद्मः।
= उनको हम श्रद्धांजलि देते हैं
ओ३म्
७७. संस्कृत वाक्याभ्यासः
रावणः तु विद्वान् आसीत्।
= रावण तो विद्वान् था
रावणः वेदज्ञः आसीत्।
= रावण को वेद ज्ञात थे
रावणः दर्शनाचार्यः आसीत्।
= रावण दर्शनाचार्य था
तथापि श्रीरामः रावणं किमर्थं मारितवान् ?
= फिर भी श्रीराम ने रावण को क्यों मारा ?
रावणः राक्षसान् पोषयति स्म।
= रावण राक्षसों को पोषित करता था
रावणः अहंकारी आसीत्।
= रावण अहंकारी था
प्रतिदिनं रावणस्य अहंकारः वर्धते स्म।
= हररोज रावण का अहंकार बढ़ रहा था
अहंकारस्य कारणात् सः निर्दोषान् अपि मारयति स्म।
= अहंकार के कारण वह निर्दोषों को भी मारता था
रावणः विद्यायाः दुरुपयोगं करोति स्म।
= रावण विद्या का दुरुपयोग करता था
अतः तस्य हननम् आवश्यकम् आसीत्।
= इसलिये उसका हनन आवश्यक था
अधुना तु रावण-सदृशाः तु अनेके दृश्यन्ते।
= अब तो रावण के जैसे अनेक दीखते हैं
विजयादशमी पर्वणः सर्वेभ्यः कोटिशः मंगलकामनाः।
दशहरे की सभी को शुभ कोटि-कोटि शुभकामनाएं
ओ३म्
७८. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः सारंगः अस्ति।
= वह सारंग है
सारंगः अधुना ममैव पार्श्वे उपविष्टः अस्ति।
= सारंग अभी मेरे ही पास बैठा है
सः माम् न जानाति।
= वह मुझे नहीं जानता है
अहं तं न जानामि।
= मैं उसको नहीं जानता हूँ
सः मन्दस्वरेण संगीतं श्रृण्वन् अस्ति।
= वह धीमे स्वर में संगीत सुन रहा है
सः नेत्रे निमील्य संगीतं श्रृणोति।
= वह आँखें बन्द कर के संगीत सुनता है
तस्य मुखे स्मितं पश्यामि।
= उसके चेहरे पर स्मित देख रहा हूँ
वस्तुतः सः शास्त्रीयं रागं श्रृण्वन् अस्ति
= वास्तव में वह शास्त्रीय संगीत सुन रहा है
ओ३म्
७९. संस्कृत वाक्याभ्यासः
सः प्रेम्णा माम् अनयत्।
= वह मुझे प्रेम से ले गया
अहम् अपृच्छम्।
= मैंने पूछा
कुत्र नयति ?
= कहाँ ले जा रहे हो ?
चलतु ….. यदा तत्र प्राप्स्यति ….
= चलिये …. आप जब वहाँ पहुंचेंगे ….
तदा प्रसन्नः भविष्यति।
= तब खुश हो जाएंगे
एक घण्टा अनन्तरम् अहं तत्र प्राप्तवान्।
= एक घण्टे के बाद मैं वहाँ पहुँचा
आवां द्वौ प्राप्तवन्तौ।
= हम दोनों पहुँचे
अत्र तु पुरातनः दुर्गः अस्ति।
= यहाँ तो पुराना किला है
एषः सज्जनः माम् रोहा ग्रामम् आनीतवान् अस्ति।
= ये सज्जन मुझे रोहा गाँव लाए हैं।
#vakyabhyas
सिंहकारक मूर्खब्राह्मण कथा
वरं बुद्धिर्न सा विद्या विद्याया बुद्धिरुत्तमा। बुद्धिहीना विनश्यन्ति, यथा ते सिंहकारकाः॥ 19॥
शब्दार्थ= श्रेष्ठ है, विद्यायाः = विद्या से, विनश्यन्ति = नष्ट हो जाते हैं, यथा = जैसे, ते = वे, सिंहकारकाः शेर बनाने वाले।
सरलार्थ-विद्या की अपेक्षा बुद्धि श्रेष्ठ होती है। उत्तम विद्यायुक्त व्यक्ति भी बुद्धि के अभाव में शेर को जीवित करने वाले ब्राह्मणों की तरह नष्ट हो जाते हैं।
चक्रधर आह-"कथमेतत् ? सुवर्णसिद्धिराह
चक्रधर ने कहा-"यह कैसे ?" सुवर्णसिद्धि ने बताया कि
कस्मिंश्चिदधिष्ठाने चत्वारो ब्राह्मणपुत्राः परस्परं मित्रभावमुपगता वसन्ति स्म। तेषां त्रयः शास्त्रपारङ्गताः, परन्तु बुद्धिरहिताः। एकस्तु बुद्धिमान् केवलं शास्त्रपराङ्मुखः। अथ तैः कदाचित् मित्रैर्मन्त्रितम्-“को गुणो विद्यायाः, येन देशान्तरं गत्वा, भूपतीन्, परितोष्यार्थोपार्जन: न क्रियते। तत्पूर्वं देशं गच्छामः।" शब्दार्थ-अधिष्ठाने = नगर में, चत्वारः =: चार, उपगताः प्राप्त हुए, वसन्तिस्म = रहते थे, तेषां = उनमें से, तीन, शास्त्रपारङ्गताः = शास्त्रनिष्णात, शास्त्रपराड्मुखः-शास्त्रों को न जानने वाला, मन्त्रितम् = परामर्श गुणः लाभ, भूपतीन् = राजाओं को, परितोष्य = प्रसन्न करके, अर्थोपार्जन:= धन की कमाई।
सरलार्थ-किसी नगर में चार ब्राह्मण पुत्र आपस में मित्र भाव से रहते थे। उनमें से तीन शास्त्रज्ञ परन्तु मूर्ख थे। चौथा था तो बुद्धिमान् परन्तु अनपढ़ था। एक बार उन मित्रों ने सलाह की कि उस विद्या का क्या लाभ, जिससे किसी स्थानान्तर में जाकर तथा राजाओं को प्रसन्न करके धन न कमाया जाए। इसलिए हम पूर्व देश को चलते हैं।
तथाऽनुनिष्ठते किञ्चिन्मार्गं गत्वा, तेषां ज्येष्ठतरः प्राह-"अहो, अस्माकमेकश्चतुर्थो मूढः, केवलं बुद्धिमान्, न च राजप्रतिग्रहो बुद्धया लभ्यते विद्यां विना। तन्नास्मै स्वोपार्जितं दास्यामि। तद् गच्छतु गृहम्।" ततो द्वितीयेनाऽभिहितम्-"भोः सुबुद्धे! गच्छ त्वं स्वगृहं, यतस्ते विद्या नास्ति।" ततस्तृतीयेनाभिहितम्-"अहो, न युज्यते एवं कर्तुम् यतो वयं बाल्यात्प्रभृत्येकत्र क्रीडिताः, तदागच्छतु महानुभावोऽस्मदुपार्जितवित्तस्य समभागी भविष्यतीति। उक्तञ्च
शब्दार्थ-तथाऽनुष्ठिते = वैसा ही करने पर, ज्येष्ठतरः = सबसे बड़े ने, अस्माकमेकः = हममें से एक, राजप्रतिग्रहः = राजा द्वारा प्राप्त दान या राजकृपा, अस्मै = इसे, स्वोपार्जितं = अपना कमाया हुआ, दास्यामि = दूंगा, गच्छतु = चला जाए, अभिहितम् = कहा, यतः = क्योंकि, ते = तेरे पास, न युज्यते = ठीक नहीं है, बाल्यात्प्रभृति = बचपन से लेकर, एकत्र = एक स्थान पर, क्रीडिता = खेले हैं, समभागी- बराबर का भागीदार।
सरलार्थ-वैसा ही करने पर कुछ दूरी पर जाकर उनमें से सबसे बड़े ने कहा, दुःख की बात है कि हम में से चौथा केवल बुद्धिमान् परन्तु अनपढ़ है। राजाओं से दान, विद्या के विना बुद्धि से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए अपना कमाया हुआ धन मैं इसे नहीं दूंगा। इसलिए यह अपने घर चला जाए। तब दूसरे ने कहा-अरे सुबुद्धि ! तू अपने घर वापस चला जा क्योंकि तेरे पास विद्या नहीं है। तब तीसरे ने कहा-"ऐसा करना उचित नहीं है, क्योंकि हम बचपन से लेकर एक साथ खेले हैं या रहे हैं। इसलिए यह महानुभाव हमारे साथ आ जाए। यह हमारे द्वारा अर्जित धन का समभागी होगा। कहा भी है कि
किं तया क्रियते लक्ष्या, या वधूरिव केवला।
या न वेश्येव सामान्या पथिकैरुपभुज्यते॥20॥
शब्दार्थ-तया = उससे, लक्ष्या = धन-दौलत से, या = जो, वधूरिव = वधू के समान, वेश्येव = वाराङ्गगना के समान, पथिकैः = यात्रियों द्वारा, न उपभुज्यते = नहीं भोगी जाती है।
सरलार्थ-जो धन-दौलत वेश्या के समान पथिकों के उपयोग में नहीं आ सकती है तथा केवल पतिव्रता वधू के समान एक ही व्यक्ति के उपभोग की वस्तु है-उस ऐश्वर्य से क्या लाभ है अर्थात् धन तो सर्वसामान्य के उपयोग में आना चाहिए।
तथा च,,
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥ 21॥
"तदागच्छत्वेषोऽपि" इति।
शब्दार्थ-अयम् = यह, निजः = अपना, पर: वा या दूसरे का, इति= इस प्रकार की, लघुचेतसाम् = तुच्छ हृदय वालों की, उदारचरितानाम् = उदार चरित्र वालों के लिए, वसुधा एव = सम्पूर्ण पृथ्वी ही,कुटुम्बकम्
और भी कहा है कि यह अपना है यह पराया है इस प्रकार के विचार हृदय वाले व्यक्तियों के होते हैं। उदारहृदय व्यक्तियों के लिए तो सारी पृथ्वी ही अपना परिवार है। इसलिए यह भी हमारे साथ चले।
वरं बुद्धिर्न सा विद्या विद्याया बुद्धिरुत्तमा। बुद्धिहीना विनश्यन्ति, यथा ते सिंहकारकाः॥ 19॥
शब्दार्थ= श्रेष्ठ है, विद्यायाः = विद्या से, विनश्यन्ति = नष्ट हो जाते हैं, यथा = जैसे, ते = वे, सिंहकारकाः शेर बनाने वाले।
सरलार्थ-विद्या की अपेक्षा बुद्धि श्रेष्ठ होती है। उत्तम विद्यायुक्त व्यक्ति भी बुद्धि के अभाव में शेर को जीवित करने वाले ब्राह्मणों की तरह नष्ट हो जाते हैं।
चक्रधर आह-"कथमेतत् ? सुवर्णसिद्धिराह
चक्रधर ने कहा-"यह कैसे ?" सुवर्णसिद्धि ने बताया कि
कस्मिंश्चिदधिष्ठाने चत्वारो ब्राह्मणपुत्राः परस्परं मित्रभावमुपगता वसन्ति स्म। तेषां त्रयः शास्त्रपारङ्गताः, परन्तु बुद्धिरहिताः। एकस्तु बुद्धिमान् केवलं शास्त्रपराङ्मुखः। अथ तैः कदाचित् मित्रैर्मन्त्रितम्-“को गुणो विद्यायाः, येन देशान्तरं गत्वा, भूपतीन्, परितोष्यार्थोपार्जन: न क्रियते। तत्पूर्वं देशं गच्छामः।" शब्दार्थ-अधिष्ठाने = नगर में, चत्वारः =: चार, उपगताः प्राप्त हुए, वसन्तिस्म = रहते थे, तेषां = उनमें से, तीन, शास्त्रपारङ्गताः = शास्त्रनिष्णात, शास्त्रपराड्मुखः-शास्त्रों को न जानने वाला, मन्त्रितम् = परामर्श गुणः लाभ, भूपतीन् = राजाओं को, परितोष्य = प्रसन्न करके, अर्थोपार्जन:= धन की कमाई।
सरलार्थ-किसी नगर में चार ब्राह्मण पुत्र आपस में मित्र भाव से रहते थे। उनमें से तीन शास्त्रज्ञ परन्तु मूर्ख थे। चौथा था तो बुद्धिमान् परन्तु अनपढ़ था। एक बार उन मित्रों ने सलाह की कि उस विद्या का क्या लाभ, जिससे किसी स्थानान्तर में जाकर तथा राजाओं को प्रसन्न करके धन न कमाया जाए। इसलिए हम पूर्व देश को चलते हैं।
तथाऽनुनिष्ठते किञ्चिन्मार्गं गत्वा, तेषां ज्येष्ठतरः प्राह-"अहो, अस्माकमेकश्चतुर्थो मूढः, केवलं बुद्धिमान्, न च राजप्रतिग्रहो बुद्धया लभ्यते विद्यां विना। तन्नास्मै स्वोपार्जितं दास्यामि। तद् गच्छतु गृहम्।" ततो द्वितीयेनाऽभिहितम्-"भोः सुबुद्धे! गच्छ त्वं स्वगृहं, यतस्ते विद्या नास्ति।" ततस्तृतीयेनाभिहितम्-"अहो, न युज्यते एवं कर्तुम् यतो वयं बाल्यात्प्रभृत्येकत्र क्रीडिताः, तदागच्छतु महानुभावोऽस्मदुपार्जितवित्तस्य समभागी भविष्यतीति। उक्तञ्च
शब्दार्थ-तथाऽनुष्ठिते = वैसा ही करने पर, ज्येष्ठतरः = सबसे बड़े ने, अस्माकमेकः = हममें से एक, राजप्रतिग्रहः = राजा द्वारा प्राप्त दान या राजकृपा, अस्मै = इसे, स्वोपार्जितं = अपना कमाया हुआ, दास्यामि = दूंगा, गच्छतु = चला जाए, अभिहितम् = कहा, यतः = क्योंकि, ते = तेरे पास, न युज्यते = ठीक नहीं है, बाल्यात्प्रभृति = बचपन से लेकर, एकत्र = एक स्थान पर, क्रीडिता = खेले हैं, समभागी- बराबर का भागीदार।
सरलार्थ-वैसा ही करने पर कुछ दूरी पर जाकर उनमें से सबसे बड़े ने कहा, दुःख की बात है कि हम में से चौथा केवल बुद्धिमान् परन्तु अनपढ़ है। राजाओं से दान, विद्या के विना बुद्धि से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए अपना कमाया हुआ धन मैं इसे नहीं दूंगा। इसलिए यह अपने घर चला जाए। तब दूसरे ने कहा-अरे सुबुद्धि ! तू अपने घर वापस चला जा क्योंकि तेरे पास विद्या नहीं है। तब तीसरे ने कहा-"ऐसा करना उचित नहीं है, क्योंकि हम बचपन से लेकर एक साथ खेले हैं या रहे हैं। इसलिए यह महानुभाव हमारे साथ आ जाए। यह हमारे द्वारा अर्जित धन का समभागी होगा। कहा भी है कि
किं तया क्रियते लक्ष्या, या वधूरिव केवला।
या न वेश्येव सामान्या पथिकैरुपभुज्यते॥20॥
शब्दार्थ-तया = उससे, लक्ष्या = धन-दौलत से, या = जो, वधूरिव = वधू के समान, वेश्येव = वाराङ्गगना के समान, पथिकैः = यात्रियों द्वारा, न उपभुज्यते = नहीं भोगी जाती है।
सरलार्थ-जो धन-दौलत वेश्या के समान पथिकों के उपयोग में नहीं आ सकती है तथा केवल पतिव्रता वधू के समान एक ही व्यक्ति के उपभोग की वस्तु है-उस ऐश्वर्य से क्या लाभ है अर्थात् धन तो सर्वसामान्य के उपयोग में आना चाहिए।
तथा च,,
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानान्तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥ 21॥
"तदागच्छत्वेषोऽपि" इति।
शब्दार्थ-अयम् = यह, निजः = अपना, पर: वा या दूसरे का, इति= इस प्रकार की, लघुचेतसाम् = तुच्छ हृदय वालों की, उदारचरितानाम् = उदार चरित्र वालों के लिए, वसुधा एव = सम्पूर्ण पृथ्वी ही,कुटुम्बकम्
और भी कहा है कि यह अपना है यह पराया है इस प्रकार के विचार हृदय वाले व्यक्तियों के होते हैं। उदारहृदय व्यक्तियों के लिए तो सारी पृथ्वी ही अपना परिवार है। इसलिए यह भी हमारे साथ चले।
तथाऽनुष्ठिते तैर्माश्रितैरटव्यां कतिचिदस्थीनि दृष्टानि। ततश्चैकेनाभिहितम्-''अहो, अद्य: विद्याप्रत्ययः क्रियते। किञ्चिदेतत्सत्त्वं मृतं तिष्ठति। तद् विद्याप्रभावेण जीवनसहितं कुर्मः। अहमस्थिसञ्चयं करोमि। ततश्च तेनौत्सुक्यादस्थिसञ्चयः कृतः। द्वितीयेन चर्ममांसरूधिरं संयोजितम्। तृतीयोऽपि यावज्जीवनं सञ्चारयति, तावत्सुबुद्धिना निषिद्धः- “भो ! तिष्ठतु भवान्। एष सिंहो निष्पाद्यते। यद्येनं सजीवं करिष्यसि ततः सर्वानपि व्यापादयिष्यति।"
शब्दार्थ-मार्गाश्रितैः-मार्ग में जाते हुए, अटव्यां = जंगल में, कतिचिद् = कुछ, अस्थीनि = हड्डियाँ, दुष्टानि देखीं, अद्य आज, विद्याप्रत्ययः = विद्या की परीक्षा, सत्त्वं जीव, मृतं तिष्ठति = मरा हुआ है, अस्थिसञ्चयं करोमि = हड्डियों को यथा-स्थान संयोजित करता हूँ, संयोजितम् = सञ्चरित कर दिया, यावज्जीवनं सञ्चारयति ज्योहि जीवन सञ्चारित करने लगा, निषिद्धः रोक दिया, निष्पाद्यते = बनाया जा रहा है, सजीवं
-जीवित, व्यापादयिष्यति = मार डालेगा।
सरलार्थ-उन द्वारा वैसा मान लेने पर मार्ग में जाते हुए उन्होंने जंगल में कुछ हड्डियाँ पड़ी हुई देखीं। तब उनमें से एक ने कहा-"प्रसन्नता का विषय है कि आज विद्या की परीक्षा की जाएगी। यह कोई जीव मरा पड़ा है। तो विद्या के प्रभाव से हम इसे जीवित करेंगे। मैं हड्डियों को यथा स्थान नियोजित करूँगा। तब उसने उत्सुकता के कारण अस्थिनियोजन कर दिया। दूसरे ने उसमें चमड़ी-मांस एवं रक्त को प्रवाहित किया। तीसरा ज्योंहि उसमें जीवन का सञ्चार करने लगा तो सुबुद्धि ने उसे रोक दिया और कहा अरे ! रुक जाओ ! यह शेर जीवित किया जा रहा है। यदि आप इसे जीवित कर देते हैं तो यह सभी को मार डालेगा।"
इति तेनाभिहित: स आह-"धिङ् मूर्ख ! नाहं विद्याया विफलतां करोमि।" ततस्तेनाभिहितम्-'तर्हि प्रतीक्षस्व क्षणं, यावदहं वृक्षमारोहामि।" तथानुष्ठिते यावत् सजीवः कृतस्तावत्ते त्रयोऽपि सिंहेनोत्थाय व्यापादिताः। स च पुनर्वृक्षादवतीर्य, गृहं गतः। अतोऽहं ब्रवीमि-वरं बुद्धिर्न सा विद्या" इति। अत: परमुक्तं च सुवर्णसिद्धिना
शब्दार्थ-धिक् धिक्कार है, प्रतीक्षस्व इन्तज़ार करो (ठहरो), क्षणम् = क्षण भर, आरोहामि = चढ़ता हूँ, उत्थाय = उठ कर, व्यापादिताः = मार डाले, अवतीर्य= उतर कर, अतःपरम् = इसके पश्चात्। सरलार्थ-उसके ऐसा कहने पर उसने कहा- "मूर्ख तुझे धिक्कार है । मैं अपनी विद्या को व्यर्थ नहीं गवाऊँगा।" तब उसने (सुबुद्धि ने) कहा-'तो आप क्षण भर ठहरो, तब तक मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊं।" उसके वैसा ही करने पर ज्योंहि उसने शेर को जीवित किया तो शेर ने उठकर उन तीनों को मार डाला और वह वृक्ष से उतर कर अपने घर चला गया। इसलिए मैं कहता हूँ कि विद्या से बुद्धि श्रेष्ठ होती है इत्यादि।
अपि शास्त्रेषु कुशला लोकाचारविवर्जिताः ।
सर्वे ते हास्यतां यान्ति, यथा ते मूर्खपण्डिताः ॥ 22॥
चक्रधर आह–'कथमेतत् ?' सोऽब्रवीत्शब्दार्थ-शास्त्रेषु = शास्त्रों में, लोकाचारविवर्जिताः = लोकव्यवहार से अनभिज्ञ, हास्यतां = उपहास को, यान्ति = प्राप्त होते हैं, अब्रवीत् = कहा।
सरलार्थ-शास्त्रों में निष्णात होने पर भी लोकव्यवहार से रहित वे सभी व्यक्ति उसी प्रकार उपहास के पात्र बनते हैं जैसे वे मूर्ख पण्डित बने थे। 22 ।।
शब्दार्थ-मार्गाश्रितैः-मार्ग में जाते हुए, अटव्यां = जंगल में, कतिचिद् = कुछ, अस्थीनि = हड्डियाँ, दुष्टानि देखीं, अद्य आज, विद्याप्रत्ययः = विद्या की परीक्षा, सत्त्वं जीव, मृतं तिष्ठति = मरा हुआ है, अस्थिसञ्चयं करोमि = हड्डियों को यथा-स्थान संयोजित करता हूँ, संयोजितम् = सञ्चरित कर दिया, यावज्जीवनं सञ्चारयति ज्योहि जीवन सञ्चारित करने लगा, निषिद्धः रोक दिया, निष्पाद्यते = बनाया जा रहा है, सजीवं
-जीवित, व्यापादयिष्यति = मार डालेगा।
सरलार्थ-उन द्वारा वैसा मान लेने पर मार्ग में जाते हुए उन्होंने जंगल में कुछ हड्डियाँ पड़ी हुई देखीं। तब उनमें से एक ने कहा-"प्रसन्नता का विषय है कि आज विद्या की परीक्षा की जाएगी। यह कोई जीव मरा पड़ा है। तो विद्या के प्रभाव से हम इसे जीवित करेंगे। मैं हड्डियों को यथा स्थान नियोजित करूँगा। तब उसने उत्सुकता के कारण अस्थिनियोजन कर दिया। दूसरे ने उसमें चमड़ी-मांस एवं रक्त को प्रवाहित किया। तीसरा ज्योंहि उसमें जीवन का सञ्चार करने लगा तो सुबुद्धि ने उसे रोक दिया और कहा अरे ! रुक जाओ ! यह शेर जीवित किया जा रहा है। यदि आप इसे जीवित कर देते हैं तो यह सभी को मार डालेगा।"
इति तेनाभिहित: स आह-"धिङ् मूर्ख ! नाहं विद्याया विफलतां करोमि।" ततस्तेनाभिहितम्-'तर्हि प्रतीक्षस्व क्षणं, यावदहं वृक्षमारोहामि।" तथानुष्ठिते यावत् सजीवः कृतस्तावत्ते त्रयोऽपि सिंहेनोत्थाय व्यापादिताः। स च पुनर्वृक्षादवतीर्य, गृहं गतः। अतोऽहं ब्रवीमि-वरं बुद्धिर्न सा विद्या" इति। अत: परमुक्तं च सुवर्णसिद्धिना
शब्दार्थ-धिक् धिक्कार है, प्रतीक्षस्व इन्तज़ार करो (ठहरो), क्षणम् = क्षण भर, आरोहामि = चढ़ता हूँ, उत्थाय = उठ कर, व्यापादिताः = मार डाले, अवतीर्य= उतर कर, अतःपरम् = इसके पश्चात्। सरलार्थ-उसके ऐसा कहने पर उसने कहा- "मूर्ख तुझे धिक्कार है । मैं अपनी विद्या को व्यर्थ नहीं गवाऊँगा।" तब उसने (सुबुद्धि ने) कहा-'तो आप क्षण भर ठहरो, तब तक मैं वृक्ष पर चढ़ जाऊं।" उसके वैसा ही करने पर ज्योंहि उसने शेर को जीवित किया तो शेर ने उठकर उन तीनों को मार डाला और वह वृक्ष से उतर कर अपने घर चला गया। इसलिए मैं कहता हूँ कि विद्या से बुद्धि श्रेष्ठ होती है इत्यादि।
अपि शास्त्रेषु कुशला लोकाचारविवर्जिताः ।
सर्वे ते हास्यतां यान्ति, यथा ते मूर्खपण्डिताः ॥ 22॥
चक्रधर आह–'कथमेतत् ?' सोऽब्रवीत्शब्दार्थ-शास्त्रेषु = शास्त्रों में, लोकाचारविवर्जिताः = लोकव्यवहार से अनभिज्ञ, हास्यतां = उपहास को, यान्ति = प्राप्त होते हैं, अब्रवीत् = कहा।
सरलार्थ-शास्त्रों में निष्णात होने पर भी लोकव्यवहार से रहित वे सभी व्यक्ति उसी प्रकार उपहास के पात्र बनते हैं जैसे वे मूर्ख पण्डित बने थे। 22 ।।
पप्पू आपणं गत्वा आपणिकं पृष्टवान् भोः महोदय। अस्य वानरस्य चित्रस्य मूल्यं किम् ?
आपणिकः किमपि अनुक्त्वा तूष्णीम् एव आसीत्।
पुनः सः पृष्टवान् भोः। अस्य चित्रस्य मूल्यं किम्?
आपणिकः तदानीम् अपि तूष्णीम् आसीत्।
पप्पू तदा कोपेन पृष्टवान् भोः। किं भवान् मूकः वा?
किमर्थम् उत्तरं न ददाति इति।
तदा सः आपणिकः विनम्रस्वरेण उक्तवान् महोदय इदं न चित्रम्, अपि तु अयं दर्पणः वर्तते।
-प्रदीपः!
😂😆😁😁😆😂🤣😃😄😆
#hasya
आपणिकः किमपि अनुक्त्वा तूष्णीम् एव आसीत्।
पुनः सः पृष्टवान् भोः। अस्य चित्रस्य मूल्यं किम्?
आपणिकः तदानीम् अपि तूष्णीम् आसीत्।
पप्पू तदा कोपेन पृष्टवान् भोः। किं भवान् मूकः वा?
किमर्थम् उत्तरं न ददाति इति।
तदा सः आपणिकः विनम्रस्वरेण उक्तवान् महोदय इदं न चित्रम्, अपि तु अयं दर्पणः वर्तते।
-प्रदीपः!
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