जम्मू कश्मीर के रहने वाले शिल्पकार गुलाम नबी डार को मिला पद्मश्री पुरूस्कार।
लकड़ी की नक्काशी में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित श्रीनगर के 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार का मानना है कि पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने के लिए सरकारी मान्यता और समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है। छह दशकों से अधिक समय तक अपनी कला के प्रति उनके अटूट समर्पण ने उन्हें कई प्रशंसाएं दिलाईं, जिसकी परिणति देश के 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित इस राष्ट्रीय मान्यता के रूप में हुई।
लकड़ी की नक्काशी में योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित श्रीनगर के 72 वर्षीय मास्टर शिल्पकार गुलाम नबी डार का मानना है कि पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने के लिए सरकारी मान्यता और समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है। छह दशकों से अधिक समय तक अपनी कला के प्रति उनके अटूट समर्पण ने उन्हें कई प्रशंसाएं दिलाईं, जिसकी परिणति देश के 75वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित इस राष्ट्रीय मान्यता के रूप में हुई।
15 शाबान यौम ए विलादत मुबारक
शेर ए रज़ा
शेर ए ताजुश्शरिया
अमीर ए अहले सुन्नत
कायद ए अहले सुन्नत
सुलतान
अता ए ताजुश्शरिया
मज़हर ए ताजुश्शरिया
जानशीन ए हुज़ूर ताजुश्शरिया
ज़ीनत ए मसनद ए हुज़ूर ताजुश्शरिया
हमशाबिह ए हुज़ूर ताजुश्शरिया
क़ाज़ी उल कुज़्ज़त फिल हिंद
वली इब्न वली
सखी इब्न सखी
पाइकारे ज़ोहद ओ इत्तेक़ा
दलीले हक के सदाकत
साहिब ए फ़ज़ल ओ अता
वारिस ए उलूम ए ताजुश्शरिया
हुजूर अच्छे मियां
अमीन उल उम्मत
बुरहान ए मिल्लत
पीर ए तरीकत
रहबर ए राहे शरीयत
मांबा ए सखावत
क़ासिम ए फ़ैज़ ए रज़ा
गुल ए गुलज़ार ए रजवियत
अबुल हुसाम
हज़रत उल उल्लम
मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खान कादरी रज़वी नूरी बरकती साहब क़िबला मद्दाज़िलहुँ नूरानी
शेर ए रज़ा
शेर ए ताजुश्शरिया
अमीर ए अहले सुन्नत
कायद ए अहले सुन्नत
सुलतान
अता ए ताजुश्शरिया
मज़हर ए ताजुश्शरिया
जानशीन ए हुज़ूर ताजुश्शरिया
ज़ीनत ए मसनद ए हुज़ूर ताजुश्शरिया
हमशाबिह ए हुज़ूर ताजुश्शरिया
क़ाज़ी उल कुज़्ज़त फिल हिंद
वली इब्न वली
सखी इब्न सखी
पाइकारे ज़ोहद ओ इत्तेक़ा
दलीले हक के सदाकत
साहिब ए फ़ज़ल ओ अता
वारिस ए उलूम ए ताजुश्शरिया
हुजूर अच्छे मियां
अमीन उल उम्मत
बुरहान ए मिल्लत
पीर ए तरीकत
रहबर ए राहे शरीयत
मांबा ए सखावत
क़ासिम ए फ़ैज़ ए रज़ा
गुल ए गुलज़ार ए रजवियत
अबुल हुसाम
हज़रत उल उल्लम
मुफ़्ती मुहम्मद असजद रज़ा खान कादरी रज़वी नूरी बरकती साहब क़िबला मद्दाज़िलहुँ नूरानी
मौलाना नक़ी अली खान, जो कि वालिद हैं इमामे अहले सुन्नत अहमद रज़ा खान फ़ाज़िले बरेलवी के।
आपने अपनी ज़िंदगी में 26 से ज़्यादा किताबें लिखीं, अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। अंग्रेजों ने आपके सर पर 500 रुपये का ईनाम रखा था।
पढ़िए मेरा ये नया लेख।
https://www.newageislam.com/islamic-personalities/maulana-naqi-sunni-islamic-scholar-indian-freedom-fighter/d/132975
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इमाम-ए–अहल–ए–सुन्नत अहमद रज़ा ख़ान फ़ाज़िल–ए–बरेलवी, जिनके दुनियाभर में करोड़ों चाहने वाले हैं, अपने समय के एक बेहतरीन आलिम, फक़ीह, मुदर्रिस, मुसन्निफ़ और मुहक़्क़िक़ थे, आला हज़रत ने पूरी ज़िन्दगी नामूसे रिसालत पर पहरा देते हुए गुज़ारी
पढ़िए मेरा ये लेख।
https://muslimmirror.com/eng/imam-ahmad-raza-khan-barelvi-a-scholar-reformer-and-sufi/
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Death is a bridge which expands the passage for a lover to reach his beloved (God).
-Khwaja Gharib Nawaz Rahmatullah Alaih.
-Khwaja Gharib Nawaz Rahmatullah Alaih.
ایران کے سمنان شہرکے رہنے والے حضرت میر سید حسین سمنانی آٹھویں صدی ہجری میں کشمیر تشریف لانے والے ایک صوفی بزرگ تھے۔، انہیں وادی کشمیر میں اسلامی تعلیمات کے نشر واشاعت میں ایک شخصیت کے طور پر یاد کیا جاتا ہے۔
https://www.urdu.awazthevoice.in/culture-news/mir-syed-hussain-samnani-sufis-who-changed-the-spiritual-conditions-of-kashmir-41243.html
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https://www.urdu.awazthevoice.in
میر سید حسین سمنانی: کشمیر کے روحانی حالات کو تبدیل کرنے والے صوفی
Allah's Messenger (صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ) said to me, "The most beloved fasting to Allah was the fasting of (the Prophet) Dawood who used to fast on alternate days. And the most beloved prayer to Allah was the prayer of Dawood who used to sleep for (the first) half of the night and pray for 1/3 of it and (again) sleep for a sixth of it."
(Sahih al-Bukhari 3420)
To see how this applies today, let's consider a typical night from 6 PM to 6 AM:
First half of the night (Sleep from 9 PM to 2 AM): Imagine going to bed at 9 PM and getting a solid 5 hours of sleep.
One third of the night (Pray from 2 AM to 4 AM): Wake up at 2 AM for Tahajjud, a special night prayer. Use this time for Salah, read the the Quran, and make a lot of dua.
One Sixt of the night (Sleep from 4 AM to 5 AM and then
Fajr): After praying, you can go back to sleep for an hour until Fajr and then wake up for Fajr prayer around 5 AM, depending on the time in your location.
This routine helps us keeping our energy levels up and makes it easier to focus during the day. Even if we can't follow it exactly, we can try to incorporate some elements of this schedule into our lives. The key is consistency and making salah a regular part of our routine.
The last third of the night is particularly special, as it is said that Allah descends to the lowest heaven and answers prayers during this time. It is a precious moment for supplication and reflection.
By trying to follow this routine of Dawood A.S, we can develop discipline, grow spiritually, and maintain a balanced life.
(Sahih al-Bukhari 3420)
To see how this applies today, let's consider a typical night from 6 PM to 6 AM:
First half of the night (Sleep from 9 PM to 2 AM): Imagine going to bed at 9 PM and getting a solid 5 hours of sleep.
One third of the night (Pray from 2 AM to 4 AM): Wake up at 2 AM for Tahajjud, a special night prayer. Use this time for Salah, read the the Quran, and make a lot of dua.
One Sixt of the night (Sleep from 4 AM to 5 AM and then
Fajr): After praying, you can go back to sleep for an hour until Fajr and then wake up for Fajr prayer around 5 AM, depending on the time in your location.
This routine helps us keeping our energy levels up and makes it easier to focus during the day. Even if we can't follow it exactly, we can try to incorporate some elements of this schedule into our lives. The key is consistency and making salah a regular part of our routine.
The last third of the night is particularly special, as it is said that Allah descends to the lowest heaven and answers prayers during this time. It is a precious moment for supplication and reflection.
By trying to follow this routine of Dawood A.S, we can develop discipline, grow spiritually, and maintain a balanced life.
मुझे तेरा ही सहारा है और किसी का नहीं, जब मेरा जिस्म सड़ जाएगा तो उम्मीद तुझ ही से है। जिसे तू देगा उसे कोई छीन नहीं सकता। मुबारक और नामुबारक़ घड़ी काम नहीं आती। अल्लाह तआला जब किसी से कोई नेमत छीन लेता है तो उसे कोई नहीं दे सकता। क़ाबिलिय्यत और ऊंची ज़ात का होना किसी काम नहीं आता। अल्लाह ने हर सख्श को वही दिया जो उसके मुनासिबे हाल था।
-शैख़ नूरुद्दीन
-शैख़ नूरुद्दीन