सनातनी हिन्दू राकेश
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रूस यूक्रेन युद्ध हर रोज नए स्तर पर जा रहा है। जेलेंसकी और बाइडेन रूस को उकसाने मे कोई कसर नही छोड़ रहे। नाटो पहले ढके छुपे यूक्रेन की मदद कर रहा था लेकिन अब ये खुल कर युद्ध मे आ चुका है। रूस के अंदरूनी इलाके तक मे हमले हो रहे हैं। जिस तरह के हथियार और जिस प्रिसिजन से यूक्रेन हमला कर रहा है अब किसी को कोई शक नही बचा की नाटो यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर रूस के सम्मान और स्वाभिमान पर चोट कर रहा है।

रूसी सेना इनके सम्मलित ताकत से पारंपरिक युद्ध मे मुकाबला नही कर सकती। युद्ध अब उस दौर मे पहुंच गया है जहां पुतिन हर बीतते घन्टे असहाय महसूस करने लगे हैं। रूसी सेना मैदान मे हार कर पीछे जा रही है, इनके काफिले पर हमला हो रहा है, रूस के अंदरूनी इलाके बमों की चपेट में आ रहे हैं, आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है। पुतिन अब पूरी तरह कोने मे धकेले जा चुके हैं ऐसे में अब दुनिया पर गम्भीर परमाण्विक खतरा उतपन्न हो चुका है। दुनिया भर के देश अपने नागरिकों को तुरन्त यूक्रेन छोड़ने की सलाह दे रहे हैं।

इधर शी जिंगपिंग एकबार फिर ताइवान पर अपने दावे को लेकर सख्त सन्देश दे रहे हैं। अमेरिका जिस स्तर तक यूक्रेन में इन्वॉल्व हो चुका है और जिस तरह पुतिन नाटो को अपने निशाने पर ले रहे हैं जिंगपिंग को समझ आ गया है कि अमेरिका अभी दो फ्रंट पर भिड़ने से परहेज करेगा। चीन इस मौके को हाथ से नही जाने देना चाहता।

यूक्रेन युद्ध को लेकर जिस तरह विश्व के देश गुटों मे बंटने लगे हैं कुछ वैसा ही ताइवान को लेकर भी होना तय है। मतलब बहुत निकट भविष्य मे दुनिया के अधिकांश देश एक दूसरे के खिलाफ खड़े होंगे। लगता है ईश्वरीय विधान आरम्भ हो चुका है, अब किसी भी तरह का मानवीय प्रयास अप्रभावी रहेगा।

#साभार
@Modified_Hindu9
गोस्वामी तुलसीदास परोपकार को ही मानव धर्म का रूप देते हुए लिखते हैं:-

परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
नहिं पर पीड़ा सम अधमाई॥

अर्थात्

दूसरों की भलाई से बढ़कर संसार में धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा देने से बड़ा अपराध इस धरती पर नहीं है।

परोपकार मनुष्य का आध्यात्मिक सद्गुण है। इसी भावना में संसार का सृजन, व्यवस्था और उत्थान सन्निहित हैं। माता-पिता यह जानते हुए भी कि यह पुत्र हमें सुख देगा, ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं, फिर भी वे कितने सहज स्नेह, प्रेम और दुलार से उसका पालन-पोषण करते हैं। मनुष्य का संपूर्ण विकास पारस्परिक भावना में ही निहित है।

मनुष्य की आध्यात्मिक भूख परोपकार से ही मिटती है।जब तक परहित की भावना मनुष्य के अत:करण में जागृत नहीं होती, तब तक अनेक पूजा प्रक्रियाएं करता हुआ भी वह शांति, सुख और संतोष नहीं प्राप्त कर पाता। किसी प्राणी को संकट से बचा लेने, समय पर सहायता देने, भूखे को भोजन करा देने, रोगी की सेवा सुश्रुषा करने से जो उस व्यक्ति को आंतरिक शांति मिलती है, उसी का प्रतिफल कर्ता के अंत:करण को प्रभावित करता है। इसी से आत्मा को असमी तृप्ति का अनुभव होता है।

परोपकार वह है जो नि:स्वार्थ भाव से किया जाए। उसमें कर्तव्य भावना की विशालता अंतर्हित हो। स्वार्थ की भावना और भविष्य में अपने लिये अनुकूल साधन प्राप्ति की दृष्टि से जो सेवा की जाती है, वह परोपकार नहीं प्रवंचना है।

#साभार
@Modified_Hindu9
व्रत/ उपवास दुनिया को सनातन जीवन प्रणाली की देन है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे नियमपूर्वक नहीं किया जाता है तो इसका कोई लाभ नहीं बल्कि इससे हानि भी हो सकती हैं।

'राजमार्तण्ड' में 24 व्रतों का उल्लेख है।

पं. गोपीनाथ कविराज ने 1622 व्रतों का उल्लेख अपने व्रतकोश में किया है। व्रतों के प्रकार मूलत: तीन है:- 1. नित्य, 2. नैमित्तिक और 3. काम्य।

1. नित्य व्रत उसे कहते हैं जिसमें आचरणों पर बल दिया जाता है, जैसे सत्य बोलना, पवित्र रहना, इंद्रियों का निग्रह करना, क्रोध न करना, अश्लील भाषण न करना और परनिंदा न करना, प्रतिदिन ईश्वर भक्ति का संकल्प लेना आदि नित्य व्रत हैं। इनका पालन नहीं करने से मानव दोषी माना जाता है।

2. नैमिक्तिक व्रत उसे कहते हैं जिसमें किसी प्रकार के पाप हो जाने या दु:खों से छुटकारा पाने का विधान होता है। अन्य किसी प्रकार के निमित्त के उपस्थित होने पर चांद्रायण प्रभृति, तिथि विशेष में जो ऐसे व्रत किए जाते हैं वे नैमिक्तिक व्रत हैं।

3. काम्य व्रत किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं, जैसे संतान प्राप्ति के लिए, धन- समृद्धि के लिए या अन्य सुखों की प्राप्ति के लिए किए जाने वाले व्रत काम्य व्रत हैं।

1. साप्ताहिक व्रत:- सप्ताह में एक दिन व्रत रखना चाहिए। यह सबसे उत्तम है।

2. पाक्षिक व्रत:- 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्या और पूर्णिमा के व्रत महत्वपूर्ण होते हैं। उक्त में से किसी भी एक व्रत को करना चाहिए।

3. त्रैमासिक व्रत:- वैसे त्रैमासिक व्रतों में प्रमुख है नवरात्रि के व्रत। हिंदू माह अनुसार पौष, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन मान में नवरात्रि आती है। उक्त प्रत्येक माह की प्रतिपदा यानी एकम् से नवमी तक का समय नवरात्रि का होता है। इन नौ दिनों तक व्रत और उपवास रखने से सभी तरह के क्लेश समाप्त हो जाते हैं।

4. छह मासिक व्रत:- चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी नवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि कहते हैं। उक्त दोंनों के बीच छह माह का अंतर होता है।

5. वार्षिक व्रत:- वार्षिक व्रतों में पूरे श्रावण मास में व्रत रखने का विधान है। इसके अलवा जो लोग चतुर्मास करते हैं उन्हें जिंदगी में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि व्रतों में 'श्रावण माह' महत्वपूर्ण होता है। सोमवार नहीं पूरे श्रावण माह में व्रत रखने से हर तरह के शारीरिक और मानसिक क्लेश मिट जाते हैं।

उपवास के प्रकार 1. प्रात: उपवास, 2. अद्धोपवास, 3. एकाहारोपवास, 4. रसोपवास, 5. फलोपवास, 6. दुग्धोपवास, 7. तक्रोपवास, 8. पूर्णोपवास, 9. साप्ताहिक उपवास, 10. लघु उपवास, 11. कठोर उपवास, 12. टूटे उपवास, 13. दीर्घ उपवास बताए गए हैं, लेकिन हम यहाँ वर्ष में जो व्रत होते हैं उसके बारे में बता रहे हैं।

1. प्रात: उपवास:- इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ 2 बार ही भोजन करना होता है।

2. अद्धोपवास:- इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं खाया जाता।

3. एकाहारोपवास:- एकाहारोपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है, जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।

4. रसोपवास:- इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा जाता है। दूध पीना भी मना होता है, क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।

5. फलोपवास:- कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।

6. दुग्धोपवास:- दुग्धोपवास को 'दुग्ध कल्प' के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।

7. तक्रोपवास:- तक्रोपवास को 'मठाकल्प' भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।

8. पूर्णोपवास:- स्वच्छ पानी के अलावा कुछ और को बिलकुल न अग्रहण करना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में उपवास से संबंधित बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।

9. साप्ताहिक उपवास:- पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।

10. लघु उपवास:- 3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।
11. कठोर उपवास:- जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।

12. टूटे उपवास:- इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।

13. दीर्घ उपवास:- इस में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता। इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं।

अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।

#साभार
@Modified_Hindu9
शायद... यूक्रेन के पोपट राष्ट्रपति जेलेंस्की को इससे ज्यादा और बड़ा झटका भला और क्या लग सकता है?

अंकल सैम के इशारों पे उठक बैठक करने वाले कुछ यूरोपीय देश और NATO यही समझ रहे थे कि रसिया- यूक्रेन युद्ध में ईरान की एंट्री के बाद इजरायल अपने आप इस युद्ध में हिस्सा ले लेगा... यानी जो इजरायल आजतक इस युद्ध को तटस्थ रह कर देख रहा था, ईरान द्वारा रूस को अस्त्र शस्त्र सहायता देने के बाद, इजरायल यूक्रेन को भी अस्त्र शस्त्र सहायता देना शुरू कर देगा...!! और पोपट भी इसी इंतजार में था।

उसने बड़े कायदे से, वह भी हक के साथ इजरायल से "आयरन डोम" मिसाइल डिफेंस सिस्टम की मांग कर दी!! बड़े अदब व हक के साथ ये कहना शुरू भी कर दिया कि इजरायल आजतक हमें आयरन डोम डिफेंस सिस्टम दिया क्यूं नहीं...?

मुझे लगता है कि यह भिखारियों के साथ रिश्ते रखने का असर भी हो सकता है कि कैसे हक के साथ भीख मांगा जाता है!! शायद आपलोग मेरी इस बात को पकड़ चुके होंगे कि मैं किसके बारे में कह रहा हूं।

अब मुद्दे पर आते हैं... यूक्रेन की इस मांगने वाली अकड़ को ठिकाने लगाते हुए, आज इजरायल ने उसे जबरदस्त झटका दिया है। इजरायल के रक्षामंत्री बेनी गैंट्ज ने कहा है कि मैं इस्राइल के रक्षामंत्री हूं, और मैं इजरायली हथियारों के निर्यात के लिए जिम्मेदार हूं। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम... यूक्रेन को हथियार नहीं बेचेंगे!!

उधर अमेरिका बेल्जियम में NATO देशों के साथ मिलकर, परमाणु युद्ध अभ्यास "स्टेडफास्ट नून" कर रहा है। NATO में अबतक कुल सदस्यों की संख्या 30 है, लेकिन इस युद्ध अभ्यास में महज़ '14 देश' ही भाग ले रहे हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि वे रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को गुस्सा दिलाना नहीं चाहते! बह नैचुरल गैस व क्रूड ऑयल को लेकर हो या परमाणु बम का खौफ हो...

मुझे लगता है कि इजरायल अमेरिकी नेक्सेस से बाहर निकलता जा रहा है, उसे जहां अपने देश की भलाई दिखेगी, वह उधर ही जाएगा। भारत के नक्शेकदम पर अब धीरे-धीरे दुनिया चलने लगी है!! अब वे किसी देश के गुट में बंधे रहना नहीं चाहते...

#साभार
@Modified_Hindu9
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री व भारत के जिगरी दोस्त... स्वर्गीय शिंजो आबे की मौत, अब बहुत मायने रखती है। पाकिस्तान में 2021 तक कुल जापानी निवेश करीब $140 करोड़ डॉलर था, लेकिन जापान अब एक अरब डॉलर, पाकिस्तान में निवेश करने जा रहा है!! ऐसा कौन सा साया है जो पाकिस्तान में कुछ पैसे डालने के लिए जापान के हाथ मरोड़ रहा है? शायद यह वही है जो ऐसा करने के लिए अब... दक्षिण कोरिया का भी हाथ मरोड़ रहा है।

स्वर्गीय शिंजो आबे जापान के संविधान में बदलाव कर जापान का रक्षा बजट बढ़ाना चाहते थे!! वह अमेरिका से इतर होकर उससे निर्भरता कम करना चाहते थे। साथ ही अस्थिर जापान की अर्थव्यवस्था में सुधार करना चाहते थे!! शायद शिंजो आबे परमाणु बम बनाने की ओर भी अग्रसर हो रहे थे...!!

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही, जापान अमेरिका की जागीर राज्य जैसा बना हुआ है। उससे छुटकारा पाने के लिए... स्वर्गीय शिंजो आबे जापान में एक नया संविधान लाने की कोशिश कर रहे थे। कई बार वह रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से भी मिल चुके थे... कहां जाता है कि आजतक उस अदृश्य काले साये के खिलाफ जो भी गया है, उसकी मृत्यु सुनिश्चित है? इसका उदाहरण इतिहास में भरा पड़ा है... इस तरह की घटनाओं को देख कर जब मैं अपने देश के बारे में सोचता हूँ तो... महाकाल रक्षा करें...

#साभार
@Modified_Hindu9
गाड़ी की रफ्तार मध्यम ही थी, तभी नव उम्र बच्चों का दल सामने से आकर गाड़ी रोकने का आदेश देने लगा!! सभी की उम्र पंद्रह बरस के अंदर ही रही होगी।

लेखक ने बिना किसी विरोधाभास के गाड़ी किनारे लगा ली, विंडो डाउन किया, म्युजिक म्यूट किया!

एक थाली हाथ में पर्ची और थाली में सौ डेढ़ सौ ग्राम रामदाना, कुल इतने निवेश के साथ ये दल लक्ष्मीपूजा के लिए चंदा इकट्ठा कर रहा था... और यकीनन आसपास के राही इस परियोजना में सहयोग कर रहे थे। बच्चों की थाली में सिक्का और कुछ नोट भी थी।

"लक्ष्मी पूजा का चंदा चाहिए"

पांच शब्दों का एक कम्युनिकेशन हुआ।

ऐसे समय दो भाव उत्पन्न होते हैं। पहला तो यह कि ये लूट है। दूसरा यह कि अपने त्योहार के लिए जागृति है इन बच्चों में, और दूसरा भाव विजयी हुआ।

पर्स खोला और पर्स के अंदर विद्यमान दूसरे सबसे बड़े 'गांधी' को उन बच्चों के हवाले किया!! एक विजयी मुस्कान थी उनके श्रीमुख पर, संभवतः उनको इसकी उम्मीद नही थी।

लेखक भी स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा था, फिर "चलो थोड़ा सा बड़ा करते हैं..."

लेखक पहले भी ऐसा कर चुका है। अच्छा लगता है, बाकी सब उसी इश्वर का दिया है। वर्ना लेखक तो उत्तर प्रदेश परिवहन की बस में एक बैग लेकर निकला था कभी गाजियाबाद के लिए नौकरी के नाम पर।

कितने की मूर्ति आएगी बेटा?

इस प्रश्न ने उन बच्चों को हैरान कर दिया!!

ऐसा लगा की लेखक उन पर एहसान कर रहा था, परंतु आप यकीन मानिए उन बच्चों के मुख पर अभिमान था...

"भैया आप इतना दे दिए, इहे बहुत है..."

बच्चों के मुख पर लक्ष्मण जैसा तेज था।

और यकीनन ये बस यहीं संभव है सनातन धर्म में।

गाड़ी फिर मद्धम गति पकड़ चुकी है, बच्चे ओझल हो चुके हैं।

इधर लेखक का मदद करने का अभिप्राय या यों कहें अभिमान दोनों टूट चुका है...

मस्त चमचमाती सड़क और हृदय में सनातन की भव्यता का चित्र लिए लेखक रोजी रोटी की ओर अग्रसर हो चुका है।

उधर, म्युजिक सिस्टम में तबले और हार्मोनियम के साथ राजन जी महराज गुनगुना उठे हैं...

"मुझे कौन पूछता था
तेरी बंदगी से पहले
मै बुझा हुआ दिया था
तेरी जिंदगी से पहले..."

#साभार: सूरज उपाध्याय
@Modified_Hindu9
उर्मिला भाग 6

जनकपुर के राजपरिवार ने अपनी चारों राजकुमारियों का विवाह संपन्न करा लिया। पिता के बटवारे में बेटियों के हिस्से आंगन आता है। जब आंगन में बेटी के विवाह का मण्डप बनता है, उसी क्षण वह आंगन बेटी का हो जाता है। विवाह के बाद वर के पिता कन्या के पिता से थोड़ा धन लेकर मण्डप का बंधन खोल वह आंगन लौटा तो देते हैं, पर सच यही है कि पिता अपना आंगन ले नहीं पाता। आंगन सदा बेटियों का ही होता है। घर के आंगन पर बेटियों का अधिकार होने का अर्थ समझ रहे हैं न? अपने घर में भी स्मरण रखियेगा इस बात को... उस दिन राजा जनक के राजमहल के आंगन पर ही नहीं, जनकपुर के हर आंगन पर सिया का अधिकार हो गया। वह आज भी है...

राजा ने बेटियों को भरपूर कन्या धन दिया। लाखों गायें, अकूत स्वर्ण, असंख्य दासियाँ... अब विदा की बेला थी। अपनी अंजुरी में अक्षत भर कर पीछे फेंकती बेटियां आगे बढ़ी, जैसे आशीष देती जा रही हों कि मेरे जाने के बाद भी इस घर में अन्न-धन बरसता रहे, यह घर हमेशा सुखी रहे। वे बढ़ीं अपने नए संसार की ओर! उनकी आंखों से बहते अश्रु उस आंगन को पवित्र कर रहे थे। उनकी सिसकियां कह रही थीं, "पिता! तुम्हारी सारी कठोरता को क्षमा करते हैं। तुम्हारी हर डांट क्षमा... हमारे पोषण में हुई तुम्हारी हर चूक क्षमा..."

माताओं ने बेटियों के आँचल में बांध दिया खोइछां! थोड़े चावल, हल्दी, दूभ और थोड़ा सा धन... ईश्वर से यह प्रार्थना करते हुए, कि तेरे घर में कभी अन्न की कमी न हो! तेरे जीवन में हल्दी का रंग सदैव उतरा रहे, तेरा वंश दूभ की तरह बढ़ता रहे, तेरे घर में धन की वर्षा होती रहे। और साथ ही यह बताते हुए, कि याद रखना! इस घर का सारा अन्न, सारा धन, सारी समृद्धि तुम्हारी भी है, तुम्हारे लिए हम सदैव सबकुछ लेकर खड़े रहेंगे।

जनकपुर की चारों बेटियां विदा हुईं तो सारा जनकपुर रोया। पर ये सिया के मोह में निकले अश्रु नहीं थे, ये सभ्यता के आंसू थे। गाँव के सबसे निर्धन कुल की बेटी के विदा होते समय गाँव की हवेली भी वैसे ही रोती है, जैसे गाँव की राजकुमारी के विदा होते समय गाँव का सबसे दरिद्र बुजुर्ग रोता है। बेटियां किसी के आंगन में जन्में, पर होती सारे गाँव की हैं। सिया उर्मिला केवल जनक की नहीं, जनकपुर की बेटी थीं।

राजा दशरथ पहले ही जनकपुर के राजमहल से निकल कर जनवासे चले गए थे। परम्परा है कि ससुर मायके से विदा होती बहुओं का रोना नहीं सुनता। शायद उस नन्हे पौधे को उसकी मिट्टी से उखाड़ने के पाप से बचने के लिए... उसका धर्म यह है कि जब पौधा उसकी मिट्टी में रोपा जाय, तो वह माली दिन रात उसे पानी दे, खाद दे... अपने बच्चों की नई गृहस्थी को ठीक से सँवार देना ही उसका धर्म है।

चारों वधुएँ अपने नए कुटुंब के संग पतिलोक को चलीं। जनकपुर में महीनों तक छक कर खाने के बाद अयोध्या की प्रजा समधियाने से मिले उपहारों को लेकर गदगद हुई अयोध्या लौट चली।

समय ध्यान से देख रहा था उन चार महान बालिकाओं को, जिन्हें भविष्य में जीवन के अलग अलग मोर्चों पर बड़े कठिन युद्ध लड़ने थे। समय देख रहा था उन चार बालकों को भी, जिनके हिस्से उसने हजार परम्पराओं को एक सूत्र में बांध कर एक नए राष्ट्र के गठन की जिम्मेवारी दी थी।

बारात जनकपुर की सीमा से जैसे ही बाहर निकली, एकाएक तेज आँधी चलने लगी। हाथी भड़कने लगे, रथ डगमगाने लगे, धूल से समूचा आकाश काला हो गया। अचानक सबने देखा, धूल के अंधेरे से एक विराट तेजस्वी मूर्ति निकल कर चली आ रही थी। निकट आने पर सबने पहचाना, वे पिछले युग के राम थे, परशु-राम।

#क्रमशः

#साभार
@Modified_Hindu9
उर्मिला भाग 7

भगवान परशुराम को आते देख कर वृद्ध राजा दशरथ का हृदय कांप उठा। उन्होंने कातर भाव से देखा महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र की ओर, जैसे कह रहे हों- इस ईश्वरीय कोप से हमारी रक्षा करें ऋषिगण...

भगवान विष्णु ने परशुरामावतार सत्ताधारियों की निरंकुशता को समाप्त करने के लिए लिया था। सुदूर पश्चिम के बर्बर प्रदेशों से आने वाले राक्षसों के आक्रमण और कुछ समय तक आर्यवर्त में भी उनकी सत्ता स्थापित होने के कारण कुछ क्षत्रियों पर भी उनका प्रभाव पड़ा था और वे आततायी हो गए थे। भगवान परशुराम ने ऐसे क्षत्रियों को बार बार दंडित किया था। पर रघुकुल के शासक सदैव प्रजावत्सल होते आये थे, सो उनके साथ उनका कोई संघर्ष नहीं हुआ था।

भगवान विष्णु का अंश होने के कारण भगवान परशुराम यह भी जानते थे कि अगला अवतार भी इसी कुल में जन्म लेगा, सो अगले युगनायक की पहचान कर उसका मार्ग प्रशस्त करना भी उनका दायित्व था।

भगवान परशुराम के स्वागत के लिए महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र आगे बढ़े, और उनका यथोचित सम्मान किया। पर आगंतुक की इस सम्मान में कोई रुचि नहीं थी। उनकी दृष्टि जिसे ढूंढ रही थी, उसे देखते ही वे आगे बढ़े और उनतक पहुँच कर पूछा, "राम आप ही हैं?"

राम के मुख पर दैवीय शान्ति थी। कहा, "जी भगवन!"

- शिव धनुष आपने ही तोड़ा है?

- जी प्रभु!

- फिर तो आप यह भी जानते होंगे कि मैं क्यों आया हूँ?

- जी भगवन!

- तो लीजिये भगवान विष्णु का यह महान धनुष, जो युगों से मेरे पास पड़ा शायद आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा है। इसपर प्रत्यंचा चढ़ाइए और सिद्ध कीजिये की आप ही राम हैं।

भगवान परशुराम ने अपने कन्धे से एक अद्भुत धनुष उतारा और राम की ओर बढ़ा दिया। राजा दशरथ के साथ समस्त अयोध्या निवाशी आश्चर्य में डूबे इस महान दृश्य को चुपचाप देख रहे थे। पर दो लोग थे, जिनके मुख पर आश्चर्य नहीं, प्रसन्नता पसरी हुई थी। वे थे महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र!

राम मुस्कुराए। भगवान परशुराम के हाथों से धनुष लिया और क्षण भर में प्रत्यंचा चढ़ा दी। फिर बाण चढ़ा कर बोले, "कहिये भगवन! इस बाण से किसका नाश करूँ?"

भगवान परशुराम अठ्ठाहस कर उठे। उन्हें इस तरह हँसते हुए कभी न देखा गया था। बोले, "इस बाण को छोड़ने की आवश्यकता ही नहीं राम। आपके बाण चढ़ाते ही मेरी समस्त अर्जित शक्तियां आपकी हो गयी हैं और मैं शक्तिहीन हो गया हूँ। इसे उतार लें और मुझे महेंद्र पर्वत पहुँचाने की कृपा करें, क्योंकि इसी के साथ मेरी तीव्र गति से कहीं भी चले जाने की शक्ति भी समाप्त हो गयी है। यह आपका युग है राम! और जबतक आप हैं, तबतक मैं महेंद्र पर्वत पर ही तपस्यारत रहूंगा।"

राम के चेहरे की मुस्कान बनी रही। पूर्व की भांति ही कहा, "जो आज्ञा भगवन!"

भगवान परशुराम अब महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र की ओर मुड़े, और मुस्कुराते हुए कहा, "बधाई हो ऋषिगण!"

उस युग के तीन महान तपस्वी एक साथ हँस उठे, जिसका रहस्य सिवाय राम के और कोई न समझ सका। महर्षि वशिष्ठ ने कहा, "रघुकुल को आपके आशीष की आवश्यकता है भगवन! कृपया सबको कृतार्थ करें।"

राजा दशरथ, राम चारों भाई और चारों वधुएँ निकट आ गयी थीं और सभी हाथ जोड़ कर खड़े थे। परशुराम बोले, "राम को क्या आशीष दूँ, वे तो राम ही हैं। पूरे कुल को आशीष देता हूँ, कि परस्पर प्रेम बना रहे।" इतना कह कर परशुराम वधुओं के निकट चले गए और फिर कहा, "एक दूसरे पर विश्वास और समर्पण बनाये रखना पुत्रियों! तुम्हारे कुल को इसकी बहुत आवश्यकता है। सिया तो समूचे संसार के लिए लक्ष्मी स्वरूपा है, पर रघुकुल की लक्ष्मी तुम हो उर्मिला! सदैव स्मरण रखना, रघुकुल की प्रतिष्ठा तुम्हारी तपस्या से भी तय होगी..."

सबको आशीर्वाद दे कर परशुराम पुनः महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र की ओर मुड़े। तीनों ऋषियों में कुछ वार्ता हुई, जिसे कोई न सुन सका। इसी के साथ परशुराम अपने धाम को लौट चले।

बारात अयोध्या की ओर बढ़ चली।

#क्रमशः

#साभार
@Modified_Hindu9
पिछले मात्र 10 दिनों के अंदर अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी ने भारत को घेरने के लिए, या कहिये रूस मुद्दे पर साथ न देने के लिए सबक सिखाने के लिए, अपनी अपनी कोशिश करीं।

अमेरिका ने अपने नागरिकों को भारत जाने के विरुद्ध आगाह किया और पाकिस्तान को भारत से बेहतर कानून व्यवस्था वाला बताया।

जर्मनी की विदेश मंत्री ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में POK मुद्दे पर पाकिस्तान को समर्थन दिया और भारत को 'समझाने' की कोशिश की।

उधर इंग्लैंड के गृहमंत्री ने भारत विरोधी बयान (बिना वीजा अवैध रूप से रहने वाले भारतीयों को लेकर) दिया, जबकि भारत से व्यापार में कई चीजों पर टैक्स बढ़ाते हुए भारत को आर्थिक नुकसान भी दिया।

और तुरन्त ही भारत ने खुलेआम इन तीनों देशों को कड़े संदेश देकर झुकने को मजबूर कर दिया।

परिणाम, अमेरिका ने पाकिस्तान को सबसे गैर जिम्मेदार परमाणु ताकत वाला देश बोला, भारतीयों को वीजा सुविधा तेज व बेहतर करने का वादा किया। (भारत ने अमेरिका का विरोध करते हुए चीन के विरुद्ध वोट नहीं देकर अमेरिका को चोट पहुंचाई)।

जर्मनी को कई व्यापार आर्डर कैंसल करने की धमकी दी, तुरन्त जर्मनी के भारत स्थित राजदूत ने अपने विदेश मंत्री के बयान को अपने देश का व सरकार का अधिकृत बयान नहीं होने की बात की। जर्मनी के इस विदेश मंत्री को जल्द ही पद से हटाया जा सकता है।

ब्रिटेन के भारतीय सामानों पर टैक्स बढ़ाने वाले मंत्री को पद से हटाया गया (क्योंकि भारत ने भी कई ब्रिटिश उत्पादों पर टैक्स बढ़ा कर ब्रिटेन को बहुत बड़ा नुकसान दिया है), गृहमंत्री को भारतीयों के विरुद्ध बयान देने वाले मामले में ब्रिटिश PM को अपना बयान देने के लिए कहा है, साथ ही मोदी की प्रस्तावित इंग्लैंड यात्रा कैंसल कर दी गई है जिससे भारत व इंग्लैंड के बीच मुक्त व्यापार के कई समझौते अभी नहीं होंगे (जब तक ब्रिटेन अपनी गलती न माने) और इससे भी ब्रिटेन को बहुत तगड़ा नुकसान होने वाला है।

यह नया भारत है।

यह मोदी और जयशंकर का भारत है जो अमेरिका, जर्मनी और इंग्लैंड जैसी महाशक्तियों को भी खुलेआम उनकी गलती बता सकता है और उन्हें अपनी गलती सुधारने के लिए मजबूर कर सकता है।

मोदीजी, एस जयशंकर जी, आपने एक बार फिर वैश्विक मंच पर हमें भारतीय होने पर बहुत गर्व से सीना तानकर खड़े होने का मौका दिया है।

बहुत बहुत धन्यवाद।

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@Modified_Hindu9
जानिए रामायण का एक अनजान सत्य...

केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे... क्या कारण था? पढ़िये पूरी कथा...

हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है। अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया।

भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।

अगस्त्य मुनि बोले, श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था। उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था।

ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे। लक्ष्मण ने उसका वध किया, इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए।

श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे। फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था।

अगस्त्य मुनि ने कहा, प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो...

(१) चौदह वर्षों तक न सोया हो,

(२) जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो, और

(३) चौदह साल तक भोजन न किया हो।

श्रीराम बोले, परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा।

मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है।

अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए। प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो।

अगस्त्य मुनि ने कहा, क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए।

लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा।

प्रभु ने पूछा, हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा? फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे? और १४ साल तक सोए नहीं? यह कैसे हुआ?

लक्ष्मणजी ने बताया, भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा।

आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं।

चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए, आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे। मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था। निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था।

निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी।

आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।

अब मैं १४ साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे। एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो। आपने कभी फल खाने को नहीं कहा, फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?

मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया। सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे। प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया। फलों की गिनती हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे।

प्रभु ने कहा, इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?

लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया, उन सात दिनों में फल आए ही नहीं:-

१. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे।

२. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता।

३. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे।

४. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे।

५. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे।

६. जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी।

७. और जिस दिन आपने रावण-वध किया।

इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी। विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था, बिना आहार किए जीने की विद्या। उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया।

भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया ।🚩🚩

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'हम दो हमारे दो' का षडयंत्र कांग्रेसी सेक्युलर षडयंत्र था। उसे पता था कि हिन्दू देशभक्त हैं, सरकार की सुनता है वो दो बच्चे ही पैदा करेगा, लेकिन थुकल दिन रात थूक थूक दस बारह थुकल पैदा करता रहेगा, इस तरह भारत जल्दी ही थुकल स्टेट बन जायेगा। कांग्रेस का तो मूल मकसद ही भारत को थुकल स्टेट बनाना था क्योंकि ये गिरोह ही थूकलो का है। इस नारे को लागू करने के लिए टीवी पर लाखों बार चलाया गया, हर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व स्कूलो में छोटा परिवार सुखी परिवार पोस्टर लगवाए। इन सभी पोस्टरों में सिर्फ हिंदु को दिखाया गया, हिन्दू हमेशा दो बेटे व एक बेटी कम से कम रखते थे इसलिए कांग्रेस ने बेटा बेटी एक समान का नारा दिया। ध्यान दीजिए इतना सब कुछ किया वो भी पच्चीस साल तक, मगर कानून नहीं बनाया। जागृत हिन्दू इस षडयंत्र को समझ न जाए इसलिए कांग्रेस ने कसाईयो की असल जनसंख्या छिपाई, ताकि हिन्दू चरसी अन्टा लगा सोता रहे। लेकिन जब भाजपा नेताओं ने कहा थुकल हिन्दू से अधिक हो रहे है तो मीडिया जिहाद द्वारा गलत केल्कुलेशन दिखाई गयी कि ऐसा होने में ढाई तीन सौ साल लगेंगे इस अल तकिया की वजह से जागृत हिन्दू भी सो गया...?

सरकारी नौकरी की आदत:

एक षडयंत्र के तहत हिंदुओं को पुश्तैनी काम के प्रति हीन भावना फील कराई गयी, जिससे हिंदुओ में सरकारी नौकरी का क्रेज बढ़ा, भले ही वो चपरासी या ग्रुप डी, बाबू या बैंक क्लर्क की जॉब ही क्यों न हो, लेकिन हो सरकारी ही, इसका फायदा उठाकर थूकलो ने हिंदुओं के पुश्तैनी कामों पर कब्जा कर लिया। ये लोग नगद में कमाते हैं, टैक्स नहीं देते और ऐश करते हैं। जबकि हिन्दू सरकारी नौकरी के चक्कर में 28/30 साल तक घिसता रहता है फिर देर से शादी व कम बच्चे...!

फर्जी महिला सशक्तिकरण:

शिक्षित महिलाएं देर से 28+ में शादी करती है साथ ही सीजेरियन डिलीवरी करती है जिसकी वजह से कम बच्चे होते है, जो महिलाए आर्थिक रूप से मजबूत है, वो अपना निर्णय खुद लेती है। शिक्षित महिलाए भी बच्चों को सरकारी नौकर ही बनाना चाहती है, जिस वजह से महँगे स्कूलों में बच्चों का एडमिशन कराती है, छोटा परिवार रखती है। जब लड़कियों की शादी 28 में हो रही है तो जाहिर सी बात है बच्चे और भी ज्यादा लेट होंगे, लेट शादी होने की वजह से जनसँख्या में गिरावट आएगी, लेट शादी करना जनसँख्या में गिरावट की उतनी ही बड़ी वजह है जितनी कम बच्चे होना, इतने समय में थूकलो की तीन पीढ़ियाँ आयेंगी...?

जड़ता प्रभाव:

अब पिछले तीस साल से हिन्दुओ को दो बच्चों की बिमारी लगी हुई है। इसलिए चार पांच बच्चे के लिए कोई समझाता भी है तो वो तरह-तरह के कुतर्क देने लगता है, पालेगा कौन, शेर पैदा करेंगे, कानून बनवाओ आदि इत्यादि, जब कि एक बच्चा नीति पर आपकी आबादी घटती है। इटली, रूस, स्पेन में यही हो रहा है। दो बच्चा नीति पर आबादी स्थिर हो जाती है। सबसे बड़ी बात जो बहुत दिनों से मन मे दबाए बैठा हूँ, आने वाले दिनों की भयावह तस्वीर देख भयभीत भी हूँ, लेकिन सच्चाई से मुहं नही मोड़ सकता, वो ये कि 2018 में एक सर्वे अनुसार दस से बारह वर्ष के बच्चों की संख्या हिन्दू थुकल अनुपात में थूकल संख्या 1/9 है जो ठीक नौ साल बाद 2029 में वोट बैंक बनेगी। क्या होगा किसी ने अंदाजा लगाया है, कौन मोदी, कौन योगी, कौन शाह, सत्ता भी इनकी, शरीयत लागू फिर आप सबको पता ही है। थुकल अपने एजेंडे अनुसार देश के कोने कोने में फैल चुके है। गलत फहमी में मत रहना कि हम सो करोड़ और वो तीस करोड़। बराबर अनुपात हो चुका है, बार बार टेस्टिंग में जुटे हुए है गजवा ए हिन्द के तहत। ये तो थोड़ा बहुत मोदी शाह योगी से फटती है इनकी, वरना गैर भाजपा प्रदेशो में फिलहाल क्या हो रहा है बताने की जरूरत नही, इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कानून अब सबसे जरुरी हो गया है वो भी कठोर, जैसे वोटिंग का अधिकार छीन लेना। वरना वो दिन अब दूर नहीं जब हमारी गर्दनें कटेगी या फिर हमें भी खतना करवाना ही पड़ेगा ताकि जान बच जाए...!

असल मे अब हिन्दुओ को एक बच्चा पैदा करने की बीमारी लग चुकी है, और उसको बनाना भी है कलेक्टर। सब कलेक्टर तो बन नही सकते तो हिन्दू जीवन भर मेहनत करके इंजीनियरिंग और अन्य की फीस भरकर बबुआ को सेट करता है। शौक में एक बेटी भी पैदा करता है व डायलॉग बोलता भी है लक्ष्मी आयी हैं घर मे। अरे मैं पूछता हूँ कि दुर्गा क्यों नही आई किसी के घर में या फिर काली माता क्यों नही आई। अब लक्ष्मी जी को थर्माकोल की तरह देख भाल करके पालता है, बांस की तरह मजबूती की तरह नही। फिर किसी दिन किसी मलेच्छ की नजर उस बेटी पर पड़ती है, अमूमन सेक्युलरता की अफीम चाटे परिवार की बेटी सूटकेस में आराम से पैक होकर किसी निर्जन स्थान पर मिलती है। एक आधी सेकुलरता वाली अफीम नही चाटती वो निकिता की तरह भेजे में गोली खा सड़क पर पड़ी मिलती है या लक्ष्मी की तरह एसिड पीड़ा से सर्वाइव करके नरक भोगती हैं। हिन्दुओ ने उसका भी रास्ता निकाल रखा है वो ये कि एसिड
से जले हुए चेहरे को कैमरा रख महिमामंडन करते हैं और खूब झूठी तारीफ करते हैं...?

अब चूंकि एक ही लड़का है जो हर राखी उस बहन की सुरक्षा की कसम तो बहुत भारी भरकम खाता है, पर कुछ कर नही पाता हैं। क्योंकि उसके सामने उसकी बीवी बच्चे फिर वही लक्ष्मी और एक एक औलाद वाली रस्म पूरी करनी है। माता पिता का चश्मों चिराग भी वही है अकेला कैसे कुछ उखड़ेगा उससे। मैं कहता हूँ अरे भई चार होता तो कोई एक तो रेल देता वही उसी सड़क पर। खैर छोड़ो उसने क्या किया हमने क्या किया। दोस्तो थोड़ा विषय से हटकर कुछ कहना चाहता हूँ, लव जिहाद पर कल एक पोस्ट देखी जिसमें एक भाई कह रहा था कि लड़की को संस्कार दोगे तो वो किसी मुल्ले थुकल के पीछे नहीं जाएगी, किसी ने कहा लड़कियां तिलक लगाएंगी तो लव जिहाद में नहीं फंसेंगी, किसी ने कहा कि अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है, कोई कह रहा है लड़कियों को ज्यादा घूमने फिरने की स्वतंत्रता की वजह से इसमें फंसती हैं, कोई कह रहा है कि मोबाईल में मुल्ले थुकल फेसबुक पर हिन्दू आईडी बनाकर लड़कियों को फँसाते हैं। ऐसी ही बहुत सी बातें मैं हजारों बार पढ़ने और सुनने के अलावा लिख भी चुका हूं, ऐसी घटनाओं के बार बार होने पर बहुत अनुसंधान करने के बाद जिस नतीजे पर पहुंचा तो कई बार हम अतिनैतिकता वादी बनने के चक्कर में यथार्थ को अनदेखा करने लगते हैं...?

मैं व्यक्तिगत कई बंधुओ को जानता हूँ जो ताजातरीन शादीशुदा हैं और मेरे आगे शेखी बघारते हैं कि आप में और हम में कोई फर्क नहीं, आपने घर बार छोड़ दिया तो क्या हुआ, हमें भी ब्रह्मचारी ही समझो, पत्नी के पास तो साल छह महीने में एक आध बार ही जाते हैं। मेरा उन सबको एक ही जवाब है, अरे भाई जाते ही नहीं उसके पास तो फिर शादी किसलिए कराई है किसी और को ही जाने देते, क्यों किसी की छाती पर चढ़कर बैठ गए हो। और रही मेरी बात तो भई मैंने तो अपना काम पूरा कर ही घर बार छोड़ा है, अपना परिवार बढ़ा घर बार छोड़ा है, अब आप सब को ज्ञान दे रहा हूँ अगर समझ आये तो...?

अब आ जाओ ऊपर लिखी बातों का जवाब ये है कि लड़की को संस्कार दोगे तो वह किसी मुल्ले के पास नहीं जाएगी, हद है भई मन्दबुद्धिता की, अरे वो संस्कार लेने जा रही है क्या वहां, तिलक लगाएंगी तो नहीं फंसेंगी, चित्रलेखा तो खूब बड़ा तिलक लगाती थी फिर क्यों अंदरखाने तिरपाल ओढ़े बैठी है, घूमने फिरने की स्वतंत्रता के कारण फंसती हैं हद पागलपन है यह भी। अरे आज किस लड़की को नहीं पता कि मजहब मतलब काले तिरपाल में कैद, मजहब मतलब जीवन भर की गुलामी, मजहब मतलब परम् परतंत्रता, फिर भी अपनी घूमने फिरने की स्वतंत्रता को ताक पर रखकर जाती हैं, किसलिए? कोई कह रहा है थुकल हिन्दू नाम की आईडी बनाकर फँसाते हैं, अरे वाह नकली लोगों, वे जब नकली हिन्दू नाम से फँसाते हैं, तो भई सीधी सी बात है कि लड़की तो हिन्दू को ही चाह रही थी न, बाद में थुकल निकला तो। अब सब कुछ लुट पिटने के कारण अब नहीं छोड़ पा रही है, कारण की तरफ कभी ध्यान दिया नही। असल बात वे नकली हिन्दू बन फँसाते हैं तो तुम तो सच में असली हिन्दू हो, तुम्हें तो कुछ और बनने की जरूरत भी नहीं, तुम क्या कर रहे हो, बैठ के हनुमान चालीसा पढ़ रहे हो, ब्रह्मचर्य की टिकाएं व्याख्याएं कर रहे हो, अपनी इस नामर्दी को दूसरों पर दोष मढ़कर कब तक छुपाओगे। पिओ खूब कोल्डड्रिंक, पिओ बियर, सुबह उठते ही पिओ खाली पेट चाय, जबकि सारी दुनिया को पता है कि ये सब नपुंसकता के स्त्रोत हैं। यहां ज्ञान झाड़ने की जरूरत नहीं है कि शास्त्र फलां फलां बात कहते हैं। स्त्री मां, बहन, बेटी है, कटुए के पास उसकी बहन बनने नहीं जा रही, न ही उसकी बेटी बनने, वह जो करने जा रही है जग जाहिर है। थुकले इस बात को अच्छी तरह समझ चुके है और मौके का फायदा उठा, गजवा ए हिन्द की पूर्व नियोजित नीति को लागू कर अपनी मन मर्जी से हमारी जनसख्यां बढाने के स्रोत को ही हम से छीन ले रहे है...?

क्यों भूल जाते हो जिनकी आबादी २% है, उनमें से .०१% को खालिस्तान चाहिए, जिनकी आबादी तीस % है,उन को गजवा ए हिन्द चाहिए, बाकि बचे ६५% हिन्दुओं को मुफ्त बिजली, फ्री पानी, सस्ता राशन, सस्ता पेट्रोल, अपनी जाति के प्रधान विधायक सांसद आदि चाहिए। कैसे लड़ोगे ये लड़ाई जो तुम पर जबरदस्ती थोप दी गयी है, कैसे बचा पाओगे अपनी उंस सनातनी परम्परा को जिसे बचाते बचाते हमारे पुरखो ने पता नही कितने बलिदान दिए है। जिसके कारण हम आज भी सनातनी है। थूकलो ने कितनी मार काट मचा कर सत्तावन जाहिल देश खड़े कर लिए। वामपन्थी भी ये गन्ध इसी तरह फैलाते हैं, माफिया भी इसी तरह राज करते हैं। किस संविधान की बात कर रहे हो, कौन सा देश, कौन सी पूलिस, कौन सी सेना, कोई काम नहीं आयेगा, ना 1947 मे ना 1990 में आया। अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी, अपने हाथ में शस्त्र और अस्त्र उठाओ, इस कापी पेस्ट संविधान ने तो हिन्दु ख़त्म करने की सुपारी दे रखी हैं...?
दरअसल असल समस्या हिन्दुओ की ये है कि वे नंगो के साथ लड़ना तो चाहते है पर टाई बांध कर लड़ना चाहते है (मतलब कि इस हिन्दुओ के गले की फांस हिन्दू विरोधी कापी पेस्ट संविधान की उम्मीद के सहारे) "जब तक जवानी खून में नहाती रहती है तब तब वतन की मिट्टी सजती रहती है..." याद रखिये हम सब आज युद्ध के मैदान में है, अतिताइयो द्वारा हम पर थोपे गए इस अनचाहे धर्मयुद्द में मोदी योगी के भरोसे बैठे फट्टूओ की फौज नहीं, धर्म पर मर मिटने वाले लिए दिवानों की टोली चाहिए। तालिबानियों को ट्रम्प के जाने का इंतजार था, यहाँ भी कई तालिबानी बस मोदी के जाने के इंतजार में है। हर बार कुरूक्षेत्र में गीता बाँचने कृष्ण नहीं आऐंगे, आप तैयार हैं तो मुझे नहीं, स्वयं को बताऐं... जय... भवानी जय शिवाजी...!!

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माना जाता है कि श्रीराम अवतार के समय हनुमान जी को स्वयं भगवान श्रीराम ने अमर होने का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण हनुमानजी का प्रताप चारों युगों में रहा है और आगे भी रहेगा, क्योंकि वे अजर-अमर हैं। अंजनी सुत जब तक चाहें शरीर में रहकर इस धरती पर मौजूद रह सकते हैं।

माना जाता है कि पूरे ब्रह्मांड में हनुमानजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी भक्ति से हर तरह के संकट तुरंत ही हल हो जाते हैं और यह एक चमत्कारिक सत्य है।

हनुमान जी की स्तुति के लिए आज के समय में सबसे सरल व सहज वंदना हनुमान चालीसा को माना गया है। हनुमान चालीसा का आधुनिक दुनिया में महत्व बहुत अधिक माना जाता है।

हनुमान चालीसा को महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था। हनुमान चालीसा से पहले भी हनुमानजी पर कई चालीसा लिखी गई और कई स्तुतियां भी लिखी गई थीं लेकिन हनुमान चालीसा का महत्व इसीलिए आधुनिक युग में है क्योंकि यह पढ़ने और समझने बहुत ही सरल है और यह भी कि इस चालीसा में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का वर्णन हो जाता है जिससे उनकी भक्ति करने में आसानी होती है।

हनुमानजी की भक्ति के लिए आप कोई भी स्तुति या वंदना पढ़ें लेकिन हनुमान चालीसा सच में ही अपने आप में एक संपूर्ण रामचरि‍त मानस की तरह है।

हनुमान चालीसा लिखने वाले तुलसीदासजी राम के बहुत बड़े भक्त थे। उनके इसी विश्वास के कारण अकबर ने उन्हे बंदी बना लिया था। माना जाता है कि वहीं बैठकर उन्होंने हनुमान चालीसा लिखा था। अंत में ऐसे कुछ हुआ कि औरंगजेब को उन्हें छोड़ना पड़ा था।

हनुमान चालीसा में 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। आधुनिक युग की भागम-भाग में हनुमान चालीसा ही एक ऐसा पाठ है जिसे तुरंत ही आसानी से पढ़ा जा सकता है, लेकिन उसके लिए हनुमानजी की श्रद्धा भक्ति होना जरूरी है।

आज के युग में सनातन धर्म में हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्व है। हनुमान चालीसा के प्रभाव को तो धीरे धीरे पश्चिम की जनता ने भी स्वीकार करना शुरू कर दिया है।

कहा जाता है कि आज के युग में विश्व शक्ति माने जाने वाले राष्ट्र अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के सिर पर भगवान हनुमान जी का हाथ है। जी हां, बराक ओबामा हनुमानजी के बहुत बड़ भक्त हैं। इतने बड़े भक्त कि वो उनकी एक छोटी सी मूर्ति हमेशा अपनी जेब में रखते हैं।

एक इंटरव्यू के दौरान बराक ओबामा ने बताया कि जब भी वो परेशान या थका हुआ महसूस करते हैं तो हनुमान जी से मदद मांगते हैं। उनका मानना है कि इससे उन्हें पॉजीटिव एनर्जी प्राप्त होती है।

हनुमान चालीसा को पढ़ते रहने से व्यक्ति के मन में साहस, आत्मविश्वास और पराक्रम का संचार होता है। इसके कारण ही वह संसार पर विजय प्राप्त कर लेता है।

इसके एक एक छंद का बहुत महत्व है जैसे...

1. बच्चे का पढ़ाई में मन ना लगे तो उसको इस छंद का पाठ करना चाहिए; बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।

2. मन में अकारण भय हो तो निम्न पंक्ति पढ़ना चाहिए; भूत पिशाच निकट नहीं आवे महावीर जब नाम सुनावे।

3. किसी भी कार्य को सिद्ध करना हो तो यह पंक्ति पढ़ें; भीम रूप धरि असुर सँहारे, रामचन्द्र के काज सँवारे।

4. बहुत समय से यदि बीमार हैं तो यह पंक्ति पढ़ें; नासै रोग हरे सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बीरा।

5. प्राणों पर यदि संकट आ गया हो तो यह पंक्ति पढ़ें; संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। या संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।

6. यदि आप बुरी संगत में पड़े हैं और यह संत छुट नहीं रही है तो यह पढ़ें; महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।

7. यदि आप किसी भी प्रकार के बंधन में हैं तो; जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बन्दि महा सुख होई।

8. किसी भी प्रकार का डर है तो यह पढ़ें; सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना।

9. आपके मन में किसी भी प्रकार की मनोकामना है तो पढ़ें; और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै।

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मसरूर मंदिर, कांगड़ा जिला, हिमाचल प्रदेश

कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) से 35 किमी दूर आठवीं शताब्दी में चट्टानों को काटकर बनाया गया मसरूर मंदिर है। यहां मंदिर परिसर में स्थापित शिवलिंग। जिस समय का यह मंदिर है, उस समय यह क्षेत्र ब्रम्हपुर के राजा यसोवर्मन के अधिकार में था।

मसरूर मंदिर अपनी रॉक कट संरचनाओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। मसरूर रॉक कट मंदिर को ‘हिमालयन पिरामिड’ और ‘वंडर ऑफ द वर्ल्ड’ के रूप में भी जाना जाता है। यह 8 वीं शताब्दी का अखंड पत्थर काटा हुआ मंदिर परिसर है और इसमें पंद्रह मंदिर हैं। मसुर में नक्काशी और अलंकरण बेहतर प्रकार के हैं और देश भर के इतिहासकारों, विद्वानों और सामान्य आगंतुकों को आकर्षित करते हैं। ये रॉक कट मंदिर भारत के शानदार रॉक कट मंदिरों में गिने जाते हैं।

मसरूर मंदिर का स्थान:

यह भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले में स्थित है। यह कांगड़ा घाटी के मसरूर में स्थित है जो कांगड़ा शहर से 32 किमी दूर है। ये मंदिर 2500 ऊंची पहाड़ी श्रृंखला की ऊंचाई पर स्थित हैं।

मसरूर मंदिर के देवता और वास्तुकला:

15 मोनोलिथिक रॉक कट मंदिरों का परिसर इंडो आर्यन शैली में एकल चट्टान से बनाया गया है। मंदिरों में बड़े पैमाने पर नक्काशी की गई है। हालांकि, मंदिर आंशिक रूप से खंडहर में हैं। इस केंद्रीय मंदिर में प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। ये बड़े पैमाने पर अलंकृत गुफा मंदिर पूरे उत्तर भारत में एकमात्र रॉक कट मंदिर हैं। मंदिर परिसर में एक बड़ा आयताकार तालाब है जो पूरे साल पानी से भरा रहता है।

मुख्य तीर्थ में तीन पत्थर के चित्र हैं। छवियों में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता शामिल हैं। लेकिन लिंटेल के मध्य में भगवान शिव की आकृति है। यह एक मजबूत अनुमान है कि मंदिर मूल रूप से महादेव को समर्पित था। वास्तुकला के लिहाज से, रॉक कट मसरूर मंदिर नागर शैली में हैं। मसरूर स्थिति, आकार और निष्पादन में अपने नगाड़ा प्रतिद्वंद्वी को हरा देता है।

इन मंदिरों को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल करने के प्रयास जारी हैं।

हर हर महादेव... ओम नमः शिवाय...

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