JAUN ELIYA
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Main bhī bahut ajiib huuñ itnā ajiib huuñ ki bas
ḳhud ko tabāh kar liyā aur malāl bhī nahīñ.
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शायर हैं आप यानी के सस्ते लतीफ़ागो
ज़ख्मों को दिल से रोइए सबको हसाइए
~ जौन एलिया
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में दर्द ग़ुरबत का साथ देता है
जब मुक़ाबिल हों इश्क़ और दौलत हुस्न दौलत का साथ देता है
~ जौन एलिया
मोहब्बत कुछ न थी जुज़ बद हवासी
के वो बंद-ए-कबा हमसे खुला नहीं
हैं सब एक दूसरे की जुस्तजू में
मगर कोई किसी को भी मिला नहीं
~ जौन एलिया
अब खड़ा सोच रहा हूँ लोगों
क्यूँ किया तुमको इकट्ठा मैंने
~ जौन एलिया
दोनों ने एक ही शख़्स को बर्बाद किया
मैंने उसे और उसने मुझे
~ जौन एलिया
हिज्र की आँखों से आँखें तो मिलाते जाइए 
हिज्र में करना है क्या ये तो बताते जाइए 

बन के ख़ुश्बू की उदासी रहिए दिल के बाग़ में 
दूर होते जाइए नज़दीक आते जाइए 

जाते जाते आप इतना काम तो कीजे मिरा 
याद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए 

रह गई उम्मीद तो बरबाद हो जाऊँगा मैं 
जाइए तो फिर मुझे सच-मुच भुलाते जाइए 

ज़िंदगी की अंजुमन का बस यही दस्तूर है 
बढ़ के मिलिए और मिल कर दूर जाते जाइए 

आख़िरश रिश्ता तो हम में इक ख़ुशी इक ग़म का था 
मुस्कुराते जाइए आँसू बहाते जाइए 

वो गली है इक शराबी चश्म-ए-काफ़िर की गली 
उस गली में जाइए तो लड़खड़ाते जाइए 

आप को जब मुझ से शिकवा ही नहीं कोई तो फिर 
आग ही दिल में लगानी है लगाते जाइए 

कूच है ख़्वाबों से ताबीरों की सम्तों में तो फिर 
जाइए पर दम-ब-दम बरबाद जाते जाइए 

आप का मेहमान हूँ मैं आप मेरे मेज़बान 
सो मुझे ज़हर-ए-मुरव्वत तो पिलाते जाइए 

है सर-ए-शब और मिरे घर में नहीं कोई चराग़ 
आग तो इस घर में जानाना लगाते जाइए 
~ जौन एलिया
नशा-ए-नाज़ ने बेहाल किया है तुमको
अपने ही ज़ोर में कमज़ोर हुई जाती हो
मैं कोई आग नहीं, आँच नहीं, धूप नहीं
क्यूँ पसीने में सराबोर हुई जाती हो
~ जौन एलिया
अजब था उसकी दिलदारी का अन्दाज़
वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
भला मैं पूछता उससे तो कैसे
मता-ए-जाँ तुम्हारा नाम क्या है?
~ जौन एलिया
दिलदारी - मोहब्बत
मता-ए-जाँ - ज़िंदगी की दौलत
आरज़ू-ए-विसाल का रास्ता है
वो रास्ता के उम्र भर चलिए!
इक अजब लहर जी में आयी है
उस की बांहों में जा के मर चलिए!!
~ जौन एलिया
उठ समाधि से ध्यान की, उठ चल, इस गली से गुमान की, उठ चल

माँगते हो जहाँ लहू भी उधार, तूने वहाँ क्यों दुकान की, उठ चल

बैठ मत एक आस्तान पे अभी, उम्र है ये उठान की, उठ चल

किसी बस्ती का ना होना पा-बसता, सैर कर इस जहान की, उठ चल

दिल है जिस ग़म हमेशगी का असीर, है वो बस एक आन की, उठ चल,

जिस्म में पाँव हैं अभी मौजूद, जंग करना है जान की, उठ चल

तू है बेहाल और यहाँ साज़िश है किसी इम्तहान की, उठ चल

हैं मदारों में अपने सय्यारे, ये घड़ी है अमान की, उठ चल

क्या है जो परदेस को देस कहें, थी वो लुकनात ज़बान की, उठ चल

हर किनारा, खि़राम-ए-मौज तुझ याद करती है बान की, उठ चल

उठ समाधि से ध्यान की, उठ चल इस गली के गुमान की, उठ चल

~ जौन एलिया
ऐ वस्ल कुछ यहाँ ना हुआ, कुछ नहीं हुआ
उस जिस्म की मैं जान ना हुआ, कुछ नहीं हुआ
~ जौन एलिया
मुझ पर क्या अपनी फ़ितरत पर भी वो खुलती नहीं
ऐसी पुर-असरार लड़की मैंने देखी ही नहीं
~ जौन एलिया
तेरी यादों के रास्ते की तरफ़ एक कदम भी नहीं बढ़ूँगा
दिल तड़पता है तेरे ख़त पढ़ कर, अब तेरे ख़त नहीं पढ़ूँगा
~ जौन एलिया
है मस्त-ए-रंग तू खुद एक जहान-ए-रंग
सो मस्ती मत दिखा हर एक से मत मिल...
~ जौन एलिया
मैं इस क़दर हार जाऊँगा
तुम जीत कर पछताओगे
~ जौन एलिया
उस की गुल-गश्त से रविश-ब-रविश
रंग ही रंग यार उठता है !!
~ जौन एलिया
हम अपनी हालत-ए-बेहाली-अज़ीयत में
न जाने किसको कैसे याद करने लगते हैं !!
~ जौन एलिया
अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है
क्या है गर ज़िन्दगी का बस न चला
ज़िन्दगी कब किसी के बस में है
~ जौन एलिया