राजरप्पा के माँ छिन्नमस्तिका मंदिर में आज भी जानवरों की बलि दी जाती है, जो सच में बहुत तकलीफ देने वाली बात है। आस्था का मतलब यह नहीं कि किसी निर्दोष जानवर की जान ली जाए। माँ का आशीर्वाद पाने के लिए बलिदान नहीं, सच्ची श्रद्धा चाहिए। ये परंपरा अब पुरानी हो चुकी है और समय के साथ हमें भी बदलना चाहिए। भक्ति को हिंसा से जोड़ना कहीं से भी सही नहीं है। अगर हम सच में माँ के भक्त हैं, तो हमें उनकी पूजा ऐसे तरीके से करनी चाहिए जिससे किसी को तकलीफ न हो, फिर चाहे वो इंसान हो या जानवर।
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Isliye... Thoda bhut zindagi me ghum lo.. jab tk jinda ho..
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