जीवन में पैसे का कितना महत्व है?
हमारा प्लेसमेंट हो रहा था IIM में, तो मेरे साथ के एक सहपाठी की छः लाख की नौकरी लगी। अब उन दिनों मोबाइल फ़ोन हम नहीं रखते थे, इतना चलन नहीं था। तो पहले तो वो जी भर के रोया कि बर्बाद हो गया, सिर्फ़ छः लाख की नौकरी लगी, बड़ी मुश्किल से उसे आत्महत्या करने से रोका गया। और ये आज से पंद्रह साल पहले की बात है। उसके बाद वो पास ही के टेलिफ़ोन बूथ पर गया, तो मैं उसके साथ-साथ गया। मैंने कहा पता नहीं कहाँ रास्ते में ही कट मरे, क्या हो? इसका कोई भरोसा नहीं!
और ये ‘क्रीम ऑफ़ दी नेशन’ है, IIM अहमदाबाद।
अपने पिता को बताता है कि नौ लाख की नौकरी लग गयी। मैंने कहा, ‘क्या कर रहा है?’ बोलता है, ‘मर जायेगा मेरा बाप, वो जीता ही इसी ठसक में है कि लड़का IIM अहमदाबाद में पढ़ता है। पाँच-सात जगह मेरे रिश्ते उसने इसी हिसाब से चला रखे हैं कि मेरा लड़का लाखों कमाएगा। मैं सच बता ही नहीं सकता’।
कैंपस में डोर्म होती थी, उसमें एक कॉमन फ़ोन होता था, तो इन्कमिंग कॉल वहाँ से आती थी। टेलिफ़ोन बूथ से वापिस लौटे, वापिस लौटने में लगा मुश्किल से आधा घंटा, कुछ खाते-पीते लौटे। तब तक उसी सहपाठी का फ़ोन आ गया। और फ़ोन किसका आ रहा है? पड़ोसी के लड़के का। वो फ़ोन कर के क्या कह रहा है? ‘क्या भैया, मरवा दिया आपने, आपकी इतनी अच्छी नौकरी लग गयी है, बारह लाख की आपको बताने की क्या ज़रूरत थी?’
पिता ने जाकर पड़ोसी को बताया कि दस लाख की नौकरी लगी है, राउंड फिगर! ‘ये बईमानी थोड़ी है, नौ का दस ही तो किया है’। तो वर्मा जी ने शर्मा जी को बताया कि मेरे होनहार की दस लाख की नौकरी लग गयी है। फिर शर्मा जी ने अपने बेटे को पकड़ा। ‘वर्मा जी के बेटे की बारह लाख की नौकरी लगी है’। बेचारा वहाँ से फ़ोन कर के कह रहा है, ‘भैया मुझे तो पता ही है कि आप होनहार हो, आपकी बारह लाख की नौकरी लग गयी है, पर आप मुझे क्यों मरवा रहे हो?’
तो इसलिए चाहिए तुम्हें पैसा। ये बेवकूफियाँ करने के लिए।
पैसे का वहाँ तक महत्व है, जहाँ तक शरीर का महत्व है।
अगर उससे ज़्यादा महत्व देने लग गए, तो गड़बड़ हो जाएगी। शरीर चलाने के लिए जितना चाहिए पैसे का उतना ही महत्व है। शरीर चलाने के लिए क्या चाहिए? खाना चाहिए, कुछ कपड़े चाहिए, और कभी-कभी, हमेशा भी नहीं, कभी-कभी सिर छुपाने के लिए कुछ जगह चाहिए। बस इतना ही महत्व है पैसे का।
अगर पैसा तुम्हारे लिए कुछ और बन गया, तुम्हारी पहचान बनने लग गया, तुम्हारे लिए दूसरों को नीचा दिखाने का, अपने आप को ऊँचा दिखाने का साधन बनने लग गया, तो अब ये पैसा बीमारी है। सिर्फ उतना कमाओ जितने से काम चलता हो। सिर्फ उतना। और अगर उससे थोडा ज़्यादा आ जाए, तो खर्च कर दो, मज़ा कर लो।
ये कोशिश भी मत करो कि कल के लिए थोड़ा बचा कर रख लूँ, अपने आप थोड़ा बच गया तो अलग बात है। पर इसलिए मत कमाओ कि बचाना है।
पैसे का इतना ही महत्व है कि शरीर चलता रहे। शरीर चलता रहे ताकि हम मौज कर सकें। तुम लोगों को देखो ना, वो इसलिए नहीं कमाते कि ज़िंदगी चले, वो इसलिए कमाते हैं क्योकि उन्हें कमाना है, क्योंकि कमाना ही लक्ष्य है, क्योंकि वो अपनी हैसियत को पैसे से नापते हैं। वो गिनते हैं कि मेरे पास अब कितना पैसा हो गया, और कहते हैं, ‘अब मेरी हैसियत उतनी ही बढ़ गयी जितना मेरा पैसा बढ़ गया, और अगर पैसा कम हो गया तो हैसियत भी’। ये बीमारी है अब। पूरी बीमारी है। इसलिए मुझे अजीब सा लगता है जब तुममे से कई लोग आकर कहते हो, ‘ये कर लेंगे, वो कर लेंगे तो फिर नौकरी कहाँ से लगेगी, बेरोज़गार रह जायेंगे, पैसा नहीं आएगा’।
मैं पूछ रहा हूँ, तुम्हें कितना पैसा चाहिए? अभी तुम्हारे कितने खर्चे हैं? एक महीने में कितना खर्च कर देते हो?
जब कॉलेज के छात्रों से पूछता हूँ तो किसी का तीन हज़ार होगा, किसी का आठ हज़ार होगा। रेंज यही है। आज अगर तुम्हारा पाँच में काम चल रहा है, तो कल तुम अचानक पन्द्रह-बीस गुना खाना तो नहीं शुरू कर दोगे? भूखे तो नहीं रहते ना अभी? खा-पी भी रहे हो, सब तुम्हारा काम चलता है। यही ज़रूरतें कल भी रहनी हैं। मैं मूलभूत ज़रुरतों की बात कर रहा हूँ, लालच की बात नहीं कर रहा।
जब आज पाँच में काम चल रहा है, तो कल पचास क्यों चाहिए? फोर्थ इयर के अप्रैल तक, जब तक स्टूडेंट हो तुम्हारा पाँच हज़ार में काम चल रहा है, और जुलाई में, अब तुम्हें पचास चाहिए, क्यों?
अप्रैल से जुलाई के बीच में तुम्हारी भूख एकाएक बढ़ गयी है?
क्या हुआ, क्या है? कुछ नहीं हुआ है, इतना ही हुआ है कि समाज का शिकार हो गए हो। इतना ही हुआ है कि परिवार वालों को पड़ोसी को बताना है कि लड़के की कितने की नौकरी लगी, इसलिए पैसा चाहिए। पर तुम्हें कमाना इसलिए है ताकि सिर ऊँचा कर सको, दहेज मिल सके।
वर्मा जी के बेटे की फलानी मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी लगी है!
सुना है न ये?
हमारा प्लेसमेंट हो रहा था IIM में, तो मेरे साथ के एक सहपाठी की छः लाख की नौकरी लगी। अब उन दिनों मोबाइल फ़ोन हम नहीं रखते थे, इतना चलन नहीं था। तो पहले तो वो जी भर के रोया कि बर्बाद हो गया, सिर्फ़ छः लाख की नौकरी लगी, बड़ी मुश्किल से उसे आत्महत्या करने से रोका गया। और ये आज से पंद्रह साल पहले की बात है। उसके बाद वो पास ही के टेलिफ़ोन बूथ पर गया, तो मैं उसके साथ-साथ गया। मैंने कहा पता नहीं कहाँ रास्ते में ही कट मरे, क्या हो? इसका कोई भरोसा नहीं!
और ये ‘क्रीम ऑफ़ दी नेशन’ है, IIM अहमदाबाद।
अपने पिता को बताता है कि नौ लाख की नौकरी लग गयी। मैंने कहा, ‘क्या कर रहा है?’ बोलता है, ‘मर जायेगा मेरा बाप, वो जीता ही इसी ठसक में है कि लड़का IIM अहमदाबाद में पढ़ता है। पाँच-सात जगह मेरे रिश्ते उसने इसी हिसाब से चला रखे हैं कि मेरा लड़का लाखों कमाएगा। मैं सच बता ही नहीं सकता’।
कैंपस में डोर्म होती थी, उसमें एक कॉमन फ़ोन होता था, तो इन्कमिंग कॉल वहाँ से आती थी। टेलिफ़ोन बूथ से वापिस लौटे, वापिस लौटने में लगा मुश्किल से आधा घंटा, कुछ खाते-पीते लौटे। तब तक उसी सहपाठी का फ़ोन आ गया। और फ़ोन किसका आ रहा है? पड़ोसी के लड़के का। वो फ़ोन कर के क्या कह रहा है? ‘क्या भैया, मरवा दिया आपने, आपकी इतनी अच्छी नौकरी लग गयी है, बारह लाख की आपको बताने की क्या ज़रूरत थी?’
पिता ने जाकर पड़ोसी को बताया कि दस लाख की नौकरी लगी है, राउंड फिगर! ‘ये बईमानी थोड़ी है, नौ का दस ही तो किया है’। तो वर्मा जी ने शर्मा जी को बताया कि मेरे होनहार की दस लाख की नौकरी लग गयी है। फिर शर्मा जी ने अपने बेटे को पकड़ा। ‘वर्मा जी के बेटे की बारह लाख की नौकरी लगी है’। बेचारा वहाँ से फ़ोन कर के कह रहा है, ‘भैया मुझे तो पता ही है कि आप होनहार हो, आपकी बारह लाख की नौकरी लग गयी है, पर आप मुझे क्यों मरवा रहे हो?’
तो इसलिए चाहिए तुम्हें पैसा। ये बेवकूफियाँ करने के लिए।
पैसे का वहाँ तक महत्व है, जहाँ तक शरीर का महत्व है।
अगर उससे ज़्यादा महत्व देने लग गए, तो गड़बड़ हो जाएगी। शरीर चलाने के लिए जितना चाहिए पैसे का उतना ही महत्व है। शरीर चलाने के लिए क्या चाहिए? खाना चाहिए, कुछ कपड़े चाहिए, और कभी-कभी, हमेशा भी नहीं, कभी-कभी सिर छुपाने के लिए कुछ जगह चाहिए। बस इतना ही महत्व है पैसे का।
अगर पैसा तुम्हारे लिए कुछ और बन गया, तुम्हारी पहचान बनने लग गया, तुम्हारे लिए दूसरों को नीचा दिखाने का, अपने आप को ऊँचा दिखाने का साधन बनने लग गया, तो अब ये पैसा बीमारी है। सिर्फ उतना कमाओ जितने से काम चलता हो। सिर्फ उतना। और अगर उससे थोडा ज़्यादा आ जाए, तो खर्च कर दो, मज़ा कर लो।
ये कोशिश भी मत करो कि कल के लिए थोड़ा बचा कर रख लूँ, अपने आप थोड़ा बच गया तो अलग बात है। पर इसलिए मत कमाओ कि बचाना है।
पैसे का इतना ही महत्व है कि शरीर चलता रहे। शरीर चलता रहे ताकि हम मौज कर सकें। तुम लोगों को देखो ना, वो इसलिए नहीं कमाते कि ज़िंदगी चले, वो इसलिए कमाते हैं क्योकि उन्हें कमाना है, क्योंकि कमाना ही लक्ष्य है, क्योंकि वो अपनी हैसियत को पैसे से नापते हैं। वो गिनते हैं कि मेरे पास अब कितना पैसा हो गया, और कहते हैं, ‘अब मेरी हैसियत उतनी ही बढ़ गयी जितना मेरा पैसा बढ़ गया, और अगर पैसा कम हो गया तो हैसियत भी’। ये बीमारी है अब। पूरी बीमारी है। इसलिए मुझे अजीब सा लगता है जब तुममे से कई लोग आकर कहते हो, ‘ये कर लेंगे, वो कर लेंगे तो फिर नौकरी कहाँ से लगेगी, बेरोज़गार रह जायेंगे, पैसा नहीं आएगा’।
मैं पूछ रहा हूँ, तुम्हें कितना पैसा चाहिए? अभी तुम्हारे कितने खर्चे हैं? एक महीने में कितना खर्च कर देते हो?
जब कॉलेज के छात्रों से पूछता हूँ तो किसी का तीन हज़ार होगा, किसी का आठ हज़ार होगा। रेंज यही है। आज अगर तुम्हारा पाँच में काम चल रहा है, तो कल तुम अचानक पन्द्रह-बीस गुना खाना तो नहीं शुरू कर दोगे? भूखे तो नहीं रहते ना अभी? खा-पी भी रहे हो, सब तुम्हारा काम चलता है। यही ज़रूरतें कल भी रहनी हैं। मैं मूलभूत ज़रुरतों की बात कर रहा हूँ, लालच की बात नहीं कर रहा।
जब आज पाँच में काम चल रहा है, तो कल पचास क्यों चाहिए? फोर्थ इयर के अप्रैल तक, जब तक स्टूडेंट हो तुम्हारा पाँच हज़ार में काम चल रहा है, और जुलाई में, अब तुम्हें पचास चाहिए, क्यों?
अप्रैल से जुलाई के बीच में तुम्हारी भूख एकाएक बढ़ गयी है?
क्या हुआ, क्या है? कुछ नहीं हुआ है, इतना ही हुआ है कि समाज का शिकार हो गए हो। इतना ही हुआ है कि परिवार वालों को पड़ोसी को बताना है कि लड़के की कितने की नौकरी लगी, इसलिए पैसा चाहिए। पर तुम्हें कमाना इसलिए है ताकि सिर ऊँचा कर सको, दहेज मिल सके।
वर्मा जी के बेटे की फलानी मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी लगी है!
सुना है न ये?
How to bring about change in the society?
By honest effort to understand. To really know what is going on. We are trying to really really understand the matter. We are not trying to put the blame on someone. In fact, we are more than prepared to turn inwards. We are prepared to say that we are the cause of our so-called misery, nobody else causes it. There is no point blaming it on foreign occupation, or this and that.
If I really want change, I have to look at myself. This ‘looking at oneself’ is called Spirituality. That is the only way through which any real and meaningful change can come. Otherwise, there are a thousand ways to keep pampering oneself and keep deceiving oneself. We will raise great institutions, we will have collective actions, we will do this and that.
But collective action won’t help. Institutional interventions won’t help because after all, it is man’s mind that is behind all collectivism, and all institutional action.
Man’s mind has to change.
The fundamental problem is the darkness in human mind.
--------------------------------
Acharya Ji's wisdom literature is also available on Amazon and Kindle.
To get your copy: https://tinyurl.com/Acharya-Prashant
By honest effort to understand. To really know what is going on. We are trying to really really understand the matter. We are not trying to put the blame on someone. In fact, we are more than prepared to turn inwards. We are prepared to say that we are the cause of our so-called misery, nobody else causes it. There is no point blaming it on foreign occupation, or this and that.
If I really want change, I have to look at myself. This ‘looking at oneself’ is called Spirituality. That is the only way through which any real and meaningful change can come. Otherwise, there are a thousand ways to keep pampering oneself and keep deceiving oneself. We will raise great institutions, we will have collective actions, we will do this and that.
But collective action won’t help. Institutional interventions won’t help because after all, it is man’s mind that is behind all collectivism, and all institutional action.
Man’s mind has to change.
The fundamental problem is the darkness in human mind.
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Climate Change is happening and is affecting the entire planet.
Recent bushfires in Australia took an ugly turn when they turned into 'firestorms' and killed 19 people.
Ecologists at the University of Sydney have put out a statement estimating that almost 500 million animal species, including birds, mammals and reptiles, have died, including at least 8,000 koalas in their prime habitat.
But how are we related to something happening in Australia?
In this video Acharya Ji describes the root cause of the above catastrophe and what's our role in it. To watch the complete video: https://youtu.be/TvlGr8201Es
Recent bushfires in Australia took an ugly turn when they turned into 'firestorms' and killed 19 people.
Ecologists at the University of Sydney have put out a statement estimating that almost 500 million animal species, including birds, mammals and reptiles, have died, including at least 8,000 koalas in their prime habitat.
But how are we related to something happening in Australia?
In this video Acharya Ji describes the root cause of the above catastrophe and what's our role in it. To watch the complete video: https://youtu.be/TvlGr8201Es
YouTube
Man's inner ignorance is global climate catastrophe || Acharya Prashant (2019)
To contact the Foundation:
http://acharyaprashant.org/enquiry?formid=202
Or, call: +91-9650585100/9643750710
~~~~~~~~~~~~~
To enroll in online courses with Acharya Prashant: https://solutions.acharyaprashant.org
~~~~~~~~~~~~~
To meet Acharya Prashant…
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To meet Acharya Prashant…
With Kabir Saheb, I am a fanboy.
When He sings, I can stand and clap all day.
Brute honesty and sagelike compassion,
how do you put these two together?
He does.
Utter erudition and childlike simplicity, meet in Him.
If I am dying, just sing Him to me.
https://www.instagram.com/tv/B7RCNs8p4GS/?igshid=10i32lxh5y7ql
When He sings, I can stand and clap all day.
Brute honesty and sagelike compassion,
how do you put these two together?
He does.
Utter erudition and childlike simplicity, meet in Him.
If I am dying, just sing Him to me.
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जैसा जिसका प्रशिक्षण,
वैसी उसकी एकाग्रता।
चींटी गुड़ पर एकाग्र हो जाएगी,
उड़ती हुई चील नीचे मरे हुए चूहे पर।
अपनी रोज़मर्रा की गतिविधियों से
अपने मन का निर्माण तुम ही करते हो।
तो देखो कि तुम्हारी रोज़ की
गतिविधियाँ कैसी हैं।
यदि अपनी एकाग्रता का विषय बदलना है,
तो जीवन को ही बदलना पड़ेगा।
--------------------------
आचार्य जी का बोध-साहित्य अमेज़न पर भी उपलब्ध है।
अपनी प्रति मँगवाने हेतु: https://tinyurl.com/Acharya-Prashant
वैसी उसकी एकाग्रता।
चींटी गुड़ पर एकाग्र हो जाएगी,
उड़ती हुई चील नीचे मरे हुए चूहे पर।
अपनी रोज़मर्रा की गतिविधियों से
अपने मन का निर्माण तुम ही करते हो।
तो देखो कि तुम्हारी रोज़ की
गतिविधियाँ कैसी हैं।
यदि अपनी एकाग्रता का विषय बदलना है,
तो जीवन को ही बदलना पड़ेगा।
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अपनी प्रति मँगवाने हेतु: https://tinyurl.com/Acharya-Prashant
♦ मन पर वासना हमेशा क्यों छाई रहती है?
♦ मन के शोर से छुटकारा कैसे मिले?
जानें: https://youtu.be/qcbgbtE2JfU
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जानें: https://youtu.be/qcbgbtE2JfU
YouTube
खाली और ठंडी गाड़ी ज़्यादा आवाज़ करेगी || आचार्य प्रशांत (2019)
आचार्य प्रशांत से मिलने के लिए आवेदन हेतु: https://acharyaprashant.org/register ~~~~~~~~~~~~~ आचार्य प्रशांत के करीबी माहौल की झलकियाँ पाने, एवं उनसे निजी नि...
I N S I G H T I N T O
Movies in an intelligent society
🎬Know and Share🎬
https://www.linkedin.com/posts/prashantadvait_we-have-had-a-spate-of-movies-in-recent-years-activity-6623134665618350080-Mw5v
Movies in an intelligent society
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बोध-उक्तियों पर पोस्टर हेतु,
हिंन्दी में:
pinterest.com/requests8679/
अंग्रेज़ी में:
pinterest.com/prashantekarshi/
हिंन्दी में:
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अंग्रेज़ी में:
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हमारी बुरी हालत
इसलिए नहीं है कि
हमारे पास कुछ कम है,
हमारी हालत
मार्मिक इसलिए है
क्योंकि हमारे पास
बहुत-बहुत ज़्यादा है कुछ।
जो कुछ होना ही
नहीं चाहिए था,
वैसा कुछ हमने
एकत्रित कर लिया है।
एकत्रित ही नहीं करा है,
उसके साथ हमने
अपना नाम जोड़ दिया है।
अध्यात्म में आकर के
गरीब, अमीर
नहीं बना करते।
अध्यात्म का अर्थ होता है
जानना कि जिसको
तुम अमीरी कहते हो
वो तुम्हारे लिए
कितना बड़ा झंझट है।
जिसको तुम अपनी
संपदा कहते हो,
विपदा है तुम्हारी।
~ आचार्य प्रशांत
https://bit.ly/2tjZ0Q0
इसलिए नहीं है कि
हमारे पास कुछ कम है,
हमारी हालत
मार्मिक इसलिए है
क्योंकि हमारे पास
बहुत-बहुत ज़्यादा है कुछ।
जो कुछ होना ही
नहीं चाहिए था,
वैसा कुछ हमने
एकत्रित कर लिया है।
एकत्रित ही नहीं करा है,
उसके साथ हमने
अपना नाम जोड़ दिया है।
अध्यात्म में आकर के
गरीब, अमीर
नहीं बना करते।
अध्यात्म का अर्थ होता है
जानना कि जिसको
तुम अमीरी कहते हो
वो तुम्हारे लिए
कितना बड़ा झंझट है।
जिसको तुम अपनी
संपदा कहते हो,
विपदा है तुम्हारी।
~ आचार्य प्रशांत
https://bit.ly/2tjZ0Q0
Vokal
ज़िन्दगी की सच्चाई क्या है?
सवालों के जवाब हिंदी में
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That is Bharat!
(Excerpt from the talk 'INDIA and TOLERANCE' given at Maharishi Ramana Kendra, Delhi (Dec'2016))
🍁Watch the full interview🍁
https://youtu.be/Z86d3RwNcz4
(Excerpt from the talk 'INDIA and TOLERANCE' given at Maharishi Ramana Kendra, Delhi (Dec'2016))
🍁Watch the full interview🍁
https://youtu.be/Z86d3RwNcz4
"Attention solves the problem,
ego takes the credit."
Visit Instagram for more: https://www.instagram.com/p/B7X1p5xJHql/?igshid=1xtd9ma423hwj
ego takes the credit."
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“Attention solves the problem, ego takes the credit.” . #AcharyaPrashant . #prayerfulquotes #gratitudequotes #lifeisawesome #truthispower #beautylieswithin #bestquotesever #writersofinstagram #writersociety #inspirationalpoetry #inspirationalquotesdaily #Lifelessons…