Sunil ydv SS
3.94K subscribers
203 photos
5 videos
37 links
Thoughts from the Founder of @SS_Motivation Humanitarian | World Record Holder | Social Activist🏅Karamveer Chakra Awardee🏆

Buy ads: https://telega.io/c/SunilydvSS
Download Telegram
Don’t judge me
You can’t handle half of
What i have survived
हर नफ़रती व्यक्ति “संभावित हत्यारा“ है

अज्ञात
शुरुआत से ही आदमी ने
ग़लत को सही ठहराने के लिए
ईश्वर का इस्तेमाल किया


सलमान रुश्दी
ना जाने किसकी दुआ से ज़िंदा हूँ
सौ शिकारी है और एक मैं परिंदा हूँ

अज्ञात
औरत बेवा हो जाती है तो
उसकी चुड़िया तोड़ देते है ।
मर्द की घड़ी या ऐनक
या हुक्का तोड़ने का
कभी किसी को ख़्याल नहीं आया ।

-इस्म्त चुगताई
कभी कभी आदमी इतना अभागा होता है
कि पाई हुई चीज़ भी नहीं पाता

- रवीन्द्रनाथ टैगोर
जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यास का होता हो
उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा मर जाना बेहतर है
😔
🙁

- जगपाल सिंह सरोज
Please open Telegram to view this post
VIEW IN TELEGRAM
कर्जा देता मित्र को ,वह मूर्ख कहलाए ।
महामूर्ख वह यार है जो पैसे लौटाए ।

हुल्लड़ मुरादाबादी
जहां आपका होना
ना होना
बराबर हो जाए
वहाँ आपका न होना ही बेहतर है

शब्दालय
जो अर्थ ही ना समझे
उनपर शब्द क्या ज़ाया करना

अज्ञात
Thousands of gold are gone and come back
एक पीढ़ी का पाखंड अगली पीढ़ी की परम्परा बन जाती है

- हेलेन कालर
इतिहास गवाह है कि
स्त्रियों की सबसे कट्टर विरोधी स्रिया स्वयं रही है


Wordsmith
Please open Telegram to view this post
VIEW IN TELEGRAM
मैं गिरा, रोया, उठा, फिर हँसा
तुम बस हँसे और कितना गिर गए


अशेष
काश मैं तुम्हारी उस बात को मान लेता😔

मई के आखिरी दिनों में तुमने कहा था, "आ जाओ न बहुत मन कर रहा है मिलने का"
"अभी तो सावनी(राजस्थान में बोई जाने वाली खरीफ की फसल) बोनी है, खेत खाली नहीं रख सकता।" पापा के जाने के बाद वैसे भी चाचा लोग ताना देते हैं कि 'भाई सा धरोहर को सही सहेज नहीं पा रहा।'

"तुम और तुम्हारा खेत, रहो अपने खेत के साथ।" यही तो कहा था तुमने। मेरी भी मजबूरी और कर्तव्य दोनों थे उस खेत को जोतने के लिए , कोई मुझे कुछ भी कह ले, पर पापा को याद करके कहते हैं तो दिल जलता है, मैंने तुम्हारी मिलने की बात को टालते हुए अपने खेत पर हल चलाना ज्यादा मुनासिब समझा।

उन दिनों मैंने रणबीर कपूर की संजू फ़िल्म देखी थी, उसमें जब सुनील दत्त के मृत शरीर पर संजय दत्त अफसोस करता है कि काश ये जो कागज़ पर भाषण लिखा था अपने पापा को सुना देता तो ठीक रहता। संजय दत्त ने वो अपना लिखा हुआ भाषण उस मृत शरीर की जेब में रख दिया और अपने पापा की चिता पर आँसू बहा रहा था, सच कहूं मैं भी रोया।

खेत बोया जा चुका था। खेत में बोये गए बीज अंकुरित होकर अपना सर आसमान की तरफ करके , सीना चौड़ा किये हुए खड़े थे। फिर तुमने कहा "अब तो आ जाओ, खेत जोत लिया है, खेती उग भी आई है।"

"अभी मैं खेत का निनाण(फसल के बीच उग आई खरपतवार को काटना ताकि फसल अच्छे से बढ़ सके) में व्यस्त हूँ मैं आऊंगा, जरूर आऊँगा।" यही कह पाया था मैं।

अभी सावन शुरू हो गया था और उलाहना में तुमने ये गीत भी सुनाया था, "तेरी दो टकियाँ दी बाजरी रे, मेरा लाखों का सावन जाए।" सच कहूँ सावन सूखा ही जा रहा था, बाजरी और मूंग गवार सूखे जाते थे। पर आज बरसेगा..कल बरसेगा यूँ कहते कहते भादो भी गुजर रहा था। फसल संघर्ष के साथ पीली हुई जाती थी, और अपने आपे पर खड़ी हुई थी। तुमने कहा था "सुनो तुम्हारे इंतजार में मैं सूखी जा रही हूँ, मेरा चेहरा पीला ज़र्द हुआ जाता है, तुम्हें तुम्हारी फसल दिखती है…..बस मैं नहीं।" क्या कहता तुमसे, बस खामोशी ने मेरी आँखों में दो जगह सूखा और पीलापन नजर आ रहा था, एक तुम्हारे चेहरे पर, दूसरा मेरे खेत पर।

यूँ तो चार बीघा टुकड़ी में होता भी क्या है, 8 मण बाजरी(एक मण बराबर 40 किलो) और ढाई मण मूंग, दो मण गवार। पर ये अनाज मेरे लिए कम नहीं था , बाजरी घर में खा लेते 10 किलो मूंग घर रखकर बाकी मूंग गवार बाजार में बेच आते। पर ये आंकलन किसान कर तो सकता है पर पा नही सकता।

जैसे तैसे अक्टूबर आया था, फसल ने नियति से लड़कर अपने आपको उस ऊसर रेगिस्तान में भी बचाये रखा, राजस्थान की खेती भी उन रणबांकुरों से कम नहीं जो 20-20 आक्रांताओं से एक एक लड़ जाता था। मेरे खेत की फसल तैयार थी। और मैं इसकी कटाई कर रहा था।

तुम्हारे मनुहार में इस बार आँसू शामिल हुए, "अगर जल्दी न आये तो शायद फिर कभी न मिल सकें " मेरी आँखें भी बरस रही थी और तुम्हारी भी। इस बार एक चीज और बरसी, बरसात जो जब ज़रूरत थी तब न सावन में बरसी, न भादो में पर अब खेत में कटी हुई फसल, जो धरती माता की गोद में पड़ी थी, खड़ी फसल की बजाय बरसात पड़ी फसल पर बरस रही थी और उसने सब चौपट कर दिया, न 8 मण बाजरी हुई ,न ढाई मण मूंग, न दो मण गवार।

हाय री किस्मत न तुमसे मिल पाया, न फसल बचा पाया, खेत में खड़े खड़े कभी तुम्हें याद करके रोया कभी फसल की हालत देखकर। जो कुछ धरती माता ने दिया, उसे पोटली बनाकर नसीब समझकर घर ले आया। बाजरी में गोंद लग गया और मूंग गवार काले पड़ गए।

एक दिन तुमने कहा था "अब मत आना, मेरी सगाई तय कर दी गई है। तुम्हें तुम्हारा खेत और फसल मुबारक, अब मेरे मन रूपी वसुधा पर किसी और का हक हो गया है।"

उसी शाम तीनों चाचाओं ने आकर फैसला सुनाया,
"हम सब मिलकर खेत बेच रहे हैं, अब खेती में पोसाई(बचत) नहीं होती है । खेत बेचकर जो चार पैसे मिलेंगे हम उससे कोई कारोबार शुरू करेंगे। तुम्हें इसलिए कह रहे हैं तुम्हारा खेत सबसे आखिर में पड़ता है। हमने खेत बेच दिया तो, तुम्हारे खेत जाने का रास्ता नहीं रहेगा। हमारे साथ मिलकर बेचेगा तो दो पैसे अच्छे मिलेंगे। अकेली चार बीघा के लिए कोई मोल न लगायेगा, वो भी ऐसी जमीन के लिए, जिसको कोई रास्ता न जाता हो।"

आखिर मुझे उनके साथ मिलकर खेत बेचना पड़ा, और जिस दिन खेत की रजिस्ट्री करवाई ,उसी शाम रजिस्टर्ड डाक से तुम्हारा शादी का कार्ड मेरे हाथों में था, अब मैं बिल्कुल खाली हाथ था, न तुम्हारा हाथ और साथ मेरे हाथ में था, न खेत।

सोच रहा हूँ, काश मैं तुम्हारी उस बात को मान लेता… और तुमसे मिलने आ जाता तो हो सकता था, तुम भी मेरी होती और खेत भी मेरा पर अब मैं अकेला हूँ, खेत बेचने के मिले हुए पैसे से एक दुकान खोल ली है, और एक ट्यूशन सेंटर चलाता हूँ, तुमने उस दिन कहा था न "तुम पढ़ाते बहुत अच्छा हो यही बात सब पढ़ने वाले बच्चे भी कहते हैं, बस एक अफसोस हमेशा रहेगा 'काश मैं तुम्हारी उस बात को मान लेता…'
।"

तुम्हारा जो कभी तुम्हारा था
~ संजय नायक शिल्प
Please open Telegram to view this post
VIEW IN TELEGRAM
चाहते तुम अगर तो पा लेते शायद मुझको,
हर रोज़ परख कर मुझे गवां दिया तुमने

लेखक - अज्ञात
बैंक वालो ने खुद तो
किराए पर ऑफिस लिया हुआ है

और मुझे होम लोन देने के
लिए फोन कर रहे हैं 😐
Please open Telegram to view this post
VIEW IN TELEGRAM
जिनको विरासत में सब कुछ मिल जाता है, वे संघर्ष का वास्तविक अर्थ ही नही समझ पाते हैं।

~ अमीर चतुर्वेदी
अच्छे लोगों की संगत में रहिये क्योंकि सुनार का कचरा भी बनिये की दुकान पे बिकने वाले बादाम से महंगा होता है।

कहावत