लेख | पर्यावरण | प्राकृतिक आपदाओं की आर्थिक गतिशीलता: केरल में आई बाढ़ से साक्ष्य | रॉबर्ट सी एम बेयर (वर्ल्ड बैंक), गोगोल मित्र ठाकुर (सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीस), अभिनव नारायणन (एशियन इन्फ्रस्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें: https://www.ideasforindia.in/topics/environment/httpswwwideasforindiaintopicsenvironmenteconomic-dynamics-of-natural-disasters-evidence-from-the-kerala-floods-hindihtml.html
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प्राकृतिक आपदाओं की आर्थिक गतिशीलता: केरल में आई बाढ़ से साक्ष्य
इस लेख में, प्राकृतिक आपदाओं के आर्थिक प्रभाव को समझने हेतु एक स्वाभाविक प्रयोग (नैचुराल एक्सपेरिमेंट) को डिजाइन करने के लिए, वर्ष 2018 में केरल में आई बाढ़ का संदर्भ लिया गया है, जब वहां पड़ोसी राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु की तुलना में बहुत अधिक बारिश हुई…
लेख | मानव विकास | भारत के सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम के अनपेक्षित सकारात्मक परिणाम | सोमदीप चटर्जी (आईआईएम कलकत्ता), प्रशांत पोद्दार (आईआईएम अमृतसर)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें: https://www.ideasforindia.in/topics/miscellany/the-unintended-positive-consequences-of-india-s-safe-motherhood-programme-hindi.html
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भारत के सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम के अनपेक्षित सकारात्मक परिणाम
भारत के प्रमुख मातृ स्वास्थ्य हस्तक्षेप, जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से संस्थानों में प्रसव करवाने का विकल्प चुनने वाली महिलाओं को सशर्त नकद हस्तांतरण उपलब्ध कराया गया है। इस अध्ययन में चटर्जी और पोद्दार ने बच्चों के शैक्षिक परिणामों पर इस कार्यक्रम के बड़े…
लेख | सामाजिक पहचान | भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन अंतर: एक अपडेट | पल्लबी दास (ऐमिटी यूनिवर्सिटी), सास्वत घोष (इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीस कोलकाता)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें: https://www.ideasforindia.in/topics/social-identity/hindu-muslim-fertility-differentials-in-india-an-update-hindi.html
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भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन अंतर: एक अपडेट
पिछले शोध के आधार पर सास्वत घोष और पल्लबी दास एनएफएचएस के नवीनतम दौर के आंकड़ों का उपयोग करते हुए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के राज्य और जिला स्तर की प्रजनन क्षमता में अंतर का अनुमान लगाते हैं। वे दर्शाते हैं कि भले पिछले दशक के दौरान अधिकांश राज्यों में…
लेख | शासन | सरकारी नौकरियों के संदर्भ में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की लागत | कुणाल मंगल (अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें: https://www.ideasforindia.in/topics/governance/the-costs-of-extreme-competition-for-government-jobs-hindi.html
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सरकारी नौकरियों के संदर्भ में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की लागत
भारतीय राज्यों में सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती हेतु अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परीक्षाएं होती हैं जहाँ इन सरकारी रिक्तियों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हुए कई युवा लंबे समय तक बेरोजगार रहते हैं। कुणाल मंगल तमिलनाडु में सरकारी भर्तियों पर रोक का उम्मीदवारों के आवेदन…
लेख | मानव विकास | अस्पताल की जवाबदेही में सुधार हेतु मरीज़ों को जानकारी देकर सशक्त बनाना | पास्कलिन डुपास और राधिका जैन
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/human-development/empowering-patients-with-information-to-improve-hospital-accountability-hindi.html
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अस्पताल की जवाबदेही में सुधार हेतु मरीज़ों को जानकारी देकर सशक्त बनाना
समूचे भारत में गरीबों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा में विस्तार होने के बावजूद, कई अस्पतालों ने मरीज़ों की जेब से फीस लेना जारी रखा है। डुपास और जैन ने अपने अध्ययन में, इस बात की जांच की है कि क्या मरीज़ों को उनके लाभों के बारे में सूचित करने से अस्पतालों को…
दृष्टिकोण | मानव विकास | मातृत्व पर पोषण का बोझ : क्या बच्चों को दिया जाने वाला मध्याह्न भोजन उनकी माताओं के स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार ला सकता है? | निकिता शर्मा
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/human-development/nutritional-penalty-of-motherhood-can-midday-meals-for-children-also-improve-their-mothers-health-outcomes-hindi.html
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मातृत्व पर पोषण का बोझ : क्या बच्चों को दिया जाने वाला मध्याह्न भोजन उनकी माताओं के स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार ला सकता है?
मध्याह्न भोजन बच्चों को पोषण सुरक्षा जाल प्रदान करता है और उनके अधिगम परिणामों तथा स्कूलों में उनकी उपस्थिति में सुधार लाता है। निकिता शर्मा तर्क देती हैं कि मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले बच्चों की माताओं को भी इसके ‘स्पिलओवर’ लाभ मिल सकते हैं। वह शोध के…
लेख | उत्पादकता और विकास | आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेवा-आधारित विकास : भारतीय नौकरी विज्ञापनों से साक्ष्य | अलेक्जेंडर कोपेस्टेक, मैक्स मार्कज़िनेक, एशले पॉपल, कैथरीन स्टेपलटन
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/productivity-innovation/ai-and-services-led-growth-evidence-from-indian-job-adverts-hindi.html
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सेवा-आधारित विकास : भारतीय नौकरी विज्ञापनों से साक्ष्य
भारत में नौकरियों की सबसे बड़ी वेबसाइट से रिक्तियों की ऑनलाइन सूचनाओं के एक नए डेटासेट का उपयोग करते हुए, कोपेस्टेक एवं अन्य, वर्ष 2016 के बाद से सेवा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित कौशल की मांग में विकसित देशों में हुई प्रगति से मिलती-जुलती…
लेख | मानव विकास | भारत में स्वच्छ पेयजल तक पहुंच और महिलाओं की सुरक्षा | मो. अमजद हुसैन, शीतल सेखरी
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/human-development/access-to-clean-drinking-water-and-women-s-safety-in-india-hindi.html
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भारत में स्वच्छ पेयजल तक पहुंच और महिलाओं की सुरक्षा
सेखरी और हुसैन इस अध्ययन में, भूजल की कमी के कारण महिलाओं के प्रति होने वाली यौन हिंसा में वृद्धि के संदर्भ में अनुभवजन्य साक्ष्य का पता लगाने के लिए जिला स्तर के आंकड़ों का उपयोग करते हैं। वे तर्क देते हैं कि जिन परिवारों को पीने का साफ पानी घरों में नहीं…
लेख | मुद्रा तथा वित्त | क्या मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता विश्वसनीय है? | वैशाली गर्ग, राजेश्वरी सेनगुप्ता, एमित लकड़ावाला
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/money-finance/is-the-rbi-s-commitment-to-inflation-targeting-credible-hindi.html
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क्या मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता विश्वसनीय है?
आरबीआई द्वारा लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (एफआईटी) को अपनाए जाने के आठ साल बाद गर्ग, लकड़ावाला और सेनगुप्ता इस फ्रेमवर्क की सफलता का मूल्यांकन करते हैं। वे कोविड-पूर्व अवधि में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता का आकलन…
लेख | विविध विषय | फिल्में किस तरह से नकारात्मकता (स्टिग्मा) और पसंद को प्रभावित करती हैं- भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग से साक्ष्य | मयंक अग्रवाल, अनिंद्य चक्रवर्ती, चिरंतन चैटर्जी
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/miscellany/how-movies-impact-stigma-and-choice-evidence-from-the-pharmaceutical-industry-hindi.html
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फिल्में किस तरह से नकारात्मकता (स्टिग्मा) और पसंद को प्रभावित करती हैं- भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग से साक्ष्य
हाल ही में, शैक्षिक मनोरंजन सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच के रूप में उभरा है। इस लेख में, अग्रवाल, चक्रवर्ती और चैटर्जी जांच करते हैं कि क्या फिल्में स्वास्थ्य देखभाल के प्रति नकारात्मकता या स्टिग्मा को दूर कर सकती हैं और क्या भारतीय…
दृष्टिकोण | गरीबी तथा असमानता | अज्ञात गरीबों की खोज : अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की पहचान और लक्ष्यीकरण | शगुन सबरवाल, परिक्रमा चौधरी
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/poverty-inequality/finding-the-indiscernible-poor-identification-and-targeting-of-people-living-in-extreme-poverty-hindi.html
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अज्ञात गरीबों की खोज: अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की पहचान और लक्ष्यीकरण
गरीबी के बारे में अलग-अलग अनुमानों के परिणामस्वरूप कुछ वंचित समुदाय अक्सर सरकारी कल्याण योजनाओं से बाहर रह जाते हैं। सबरवाल और चौधरी बिहार में लागू ‘सतत जीविकोपार्जन योजना’ का अध्ययन करते हैं, जिसमें अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की पहचान करने और यह सुनिश्चित…
दृष्टिकोण | पर्यावरण | जलवायु परिवर्तन और नदी प्रदूषण : भारत में उच्च गुणवत्ता के पर्यावरण डेटा की आवश्यकता | अनुपमा मेहता, संजीब पोहित ((नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/environment/the-need-for-high-quality-environment-data-in-india-the-case-of-riverine-pollution-hindi.html
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जलवायु परिवर्तन और नदी प्रदूषण : भारत में उच्च गुणवत्ता के पर्यावरण डेटा की आवश्यकता
भारत में जल प्रदूषण को नियंत्रित करने और जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए गहन डेटा संग्रह और निगरानी की आवश्यकता है। पोहित और मेहता इस लेख में, एनसीएईआर और टीसीडी की एक परियोजना का वर्णन करते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के प्रमुख स्थानों…
लेख | मानव विकास | भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण : क्या औपनिवेशिक इतिहास मायने रखता है? | भारती नंदवानी (IGIDR Mumbai), पुनर्जीत रॉयचौधरी (Shiv Nadar University)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/human-development/women-empowerment-in-india-does-colonial-history-matter-hindi.html
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भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण : क्या औपनिवेशिक इतिहास मायने रखता है?
क्या औपनिवेशिक इतिहास भारत में महिलाओं के समकालीन आर्थिक परिणामों की दृष्टि से मायने रखता है? इसकी जांच करते हुए यह लेख इस बात की ओर इशारा करता है कि जो क्षेत्र सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, महिला सशक्तिकरण के लगभग सभी मानदण्डों के आधार पर वहां की निवासी…
लेख | पर्यावरण | भारत में पराली जलना कम करने के लिए स्थानांतरण भुगतान डिज़ाइन करना | केल्सी जैक (कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा), सीमा जयचंद्रन (प्रिंसटन विश्वविद्यालय), नम्रता काला (एमआईटी स्लोअन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट), रोहिणी पांडे (येल विश्वविद्यालय)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://www.ideasforindia.in/topics/environment/designing-transfer-payments-to-reduce-crop-burning-in-india-hindi.html
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दृष्टिकोण | मानव विकास | भारत में महिला बाल विवाह के संबंध में एक डेटा अध्ययन | शुभम मुदगिल, स्वाति रमेश राव (The Quantum Hub)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : http://ideasforindia.in/topics/human-development/a-data-story-on-female-child-marriage-in-india-hindi.html
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भारत में महिला बाल विवाह के संबंध में एक डेटा अध्ययन
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2023 के उपलक्ष्य में I4I के महीने भर चलने वाले अभियान के आठवें लेख में, क्वांटम हब के शुभम मुदगिल और स्वाति राव देश भर के संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में बाल विवाह पर डेटा हाइलाइट्स प्रस्तुत करने के लिए एनएफएचएस पर आधारित एक नवीनतम…
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अग्रवाल एवं अन्य का एक शोध आलेख जिससे यह पता चलता है कि कैसे फिल्में मानसिक अवस्था के बारे में लोगों के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं और फिल्म 'माई नेम इज़ ख़ान' की रिलीज़ ने कैसे देश के बाज़ारों में एंटीसाइकोटिक्स दवाओं के विकल्पों और उपलब्धता को प्रभावित किया।
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : bit.ly/43TQlPn
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लेख | शासन | बिहार में शराबबंदी का जीवन साथी द्वारा हिंसा पर प्रभाव | सिसिर देबनाथ, सौरभ पॉल, कोमल सरीन (IIT Delhi)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : http://ideasforindia.in/topics/governance/impact-of-bihar-s-alcohol-ban-on-intimate-partner-violence-hindi.html
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बिहार में शराबबंदी का जीवन साथी द्वारा हिंसा पर प्रभाव
इस लेख में वर्ष 2016 में बिहार में शराब की बिक्री और खपत पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के कारण महिलाओं के प्रति उनके जीवन साथी द्वारा होने वाली हिंसा की घटनाओं पर पड़े प्रभाव की जांच की गई है। एनएफएचएस आंकड़ों का उपयोग करते हुए पाया गया कि इस प्रतिबंध के बाद बिहार…
फ़ील्ड नोट | मानव विकास | ‘समय पर चेतावनी’ के रूप में स्कूल में अनुपस्थिति | अनुराग कुंडू (दिल्ली सरकार)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : http://ideasforindia.in/topics/human-development/school-absences-as-an-early-warning-system-hindi.html
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समय पर चेतावनी’ के रूप में स्कूल में अनुपस्थिति
जब बच्चे अक्सर स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि वे प्रतिकूल व्यक्तिगत परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं। अनुराग कुंडू इस लेख में, स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति पर नज़र रखने और कमज़ोर छात्रों को सहायता प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने…
दृष्टिकोण| शासन | क्या वर्ष 2023-24 का बजट लैंगिक प्राथमिकताओं को संतुलित करने में सफल रहा है? | तान्या राणा और नेहा सुज़ैन जैकब (Centre for Policy Research)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : http://ideasforindia.in/topics/governance/has-budget-2023-24-been-successful-in-balancing-gender-priorities-hindl.html
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क्या वर्ष 2023-24 का बजट लैंगिक प्राथमिकताओं को संतुलित करने में सफल रहा है?
तान्या राणा और नेहा सुज़ैन जैकब केंद्रीय बजट के लैंगिक बजट वक्तव्य या जेंडर बजट स्टेटमेंट (जीबीएस) के माध्यम से, उसके दो हिस्सों के तहत विभिन्न मंत्रालय और विभाग किन योजनाओं को प्राथमिकता देते हैं, इस पर ध्यान देते हुए योजना आवंटन को वर्गीकृत कर के उसका विश्लेषण…
दृष्टिकोण | शहरीकरण | क्या भारत के शहर उसके महत्वाकांक्षी शून्य उत्सर्जन (नेट ज़ीरो) लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा बन रहे हैं? | सैम डाउन्स और जगन शाह (Artha Global)
पूरा आलेख यहाँ पढ़ें : https://ideasforindia.in/topics/urbanisation/are-cities-holding-india-back-from-reaching-its-ambitious-net-zero-targets-hindi.html
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क्या भारत के शहर उसके महत्वाकांक्षी शून्य उत्सर्जन (नेट ज़ीरो) लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा बन रहे हैं?
विश्व के शहरों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन राष्ट्रीय औसत से काफी कम है, जबकि दिल्ली और कोलकाता जैसे बड़े भारतीय शहरों में राष्ट्रीय औसत से दोगुना तक उत्सर्जन होता है। शाह और डाउन्स इस बात का पता लगाते हैं कि भारत में हो रहा शहरीकरण देश के राष्ट्रीय डीकार्बोनाइज़ेशन…