चरणामृत का महत्व
अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.
क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की कि चरणामृत का क्या महत्व है.
🚩 शास्त्रों में कहा गया है---
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।
जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,
जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने
तीन पग में तीन लोक नाप लिए। जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया.
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की. जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर
चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी .
जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है -
"चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।
इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।
ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए
चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?
दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है। इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।""
अक्सर जब हम मंदिर जाते है तो पंडित जी हमें भगवान का चरणामृत देते है.
क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की कि चरणामृत का क्या महत्व है.
🚩 शास्त्रों में कहा गया है---
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधि विनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।
"अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है।
जो चरणामृत पीता है उसका पुनः जन्म नहीं होता" जल तब तक जल ही रहता है जब तक भगवान के चरणों से नहीं लगता,
जैसे ही भगवान के चरणों से लगा तो अमृत रूप हो गया और चरणामृत बन जाता है.
जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञ शाला में दान लेने गए तब उन्होंने
तीन पग में तीन लोक नाप लिए। जब उन्होंने पहले पग में नीचे के लोक नाप लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक में उनका चरण गया तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने कमंडल में रख लिया.
वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी सारी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहाँ से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की. जिस पर ब्रह्मा जी ने साधारण जल चढाया था पर
चरणों का स्पर्श होते ही बन गई गंगा जी .
जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते है तो कहते है -
"चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने सारी दुनिया तारी "
धर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से लगाने के बाद इसका सेवन किया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना गया है। कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया बल्कि उसने अपने पूर्वजों को भी तार दिया।
चरणामृत का जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार तांबे के पात्र में अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो उसमें रखे जल में आ जाती है। उस जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते।
इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और भी बढ़ जाती है। तुलसी के पत्ते पर जल इतने परिमाण में होना चाहिए कि सरसों का दाना उसमें डूब जाए।
ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि उसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ काम या अच्छे काम का जल्द परिणाम मिलता है। इसीलिए
चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेना चाहिये, लेकिन चरणामृत लेने के बाद अधिकतर लोगों की आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं?
दरअसल शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना अच्छा नहीं माना जाता है।
कहते हैं इससे विचारों में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती है। इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ नहीं फेरना चाहिए।""
*भोजन करते समय अक्सर हम सबने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा....*
*पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से बाहर न करके बड़े चाव से इसका सेवन शुरू कर देंगे..!*
*तेजपत्ता को तेजपत्र, तेजपान, तमालका, तमालपत्र, तेजपात, इन्डियन केसिया आदि आदि नामों से जाना जाता है।*
*तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू- कश्मीर, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है।*
*ये हमेशा हरा रहने वाले तमाल वृक्ष के पत्ते हैं जो कई सालों तक लगातार उपज देता रहता है।*
*इस पेड़ को यदि एक बार लगाया गया तो यह 50 से 100 सालों तक उपज देकर सेवा करता रहता है।*
*रोपण करने के 6 साल बाद जब इसका पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियों को इक्कठा कर लिया जाता है।*
*पत्तियों को इक्कठा करने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है।*
*तब ये पत्तियां उपयोग करने के लिए तैयार हो जाती है। फसल की कटाई करने का बाद, इसकी पत्तियों को छाया में सुखाया जाता है।*
*तेज पत्ते का तेल निकालने के लिए आसवन यंत्र का प्रयोग किया जाता है।*
*इसकी पत्तियों से हमे 0.6% खुशबूदार तेल की प्राप्ति होती है।*
*इसका तेल भी एक बहुआयामी बहुकीमती औषधि है।*
*औषधीय गुण* 🍾👌
*तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम, जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में अत्यंत उपयोगी है।*
*तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते रहे हैं।*
*चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम, छींकें आना, बुखार, नाक बहना, जलन, सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है।*
*तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है।*
*तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है।*
*एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।*
*तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है।*
*कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिये, ऊनी, सूती, रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे।*
*अनाजों के बीच में 4-5 पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे लेकिन उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।*
*अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है, वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न.!*
*तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए, आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा, कभी हृदय रोग नहीं होंगे।*
*इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।*
*इसका धुँआ मिर्गी रोगी के लिए काफी लाभदायक होता है।*
*पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से बाहर न करके बड़े चाव से इसका सेवन शुरू कर देंगे..!*
*तेजपत्ता को तेजपत्र, तेजपान, तमालका, तमालपत्र, तेजपात, इन्डियन केसिया आदि आदि नामों से जाना जाता है।*
*तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू- कश्मीर, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है।*
*ये हमेशा हरा रहने वाले तमाल वृक्ष के पत्ते हैं जो कई सालों तक लगातार उपज देता रहता है।*
*इस पेड़ को यदि एक बार लगाया गया तो यह 50 से 100 सालों तक उपज देकर सेवा करता रहता है।*
*रोपण करने के 6 साल बाद जब इसका पेड़ पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो इसकी पत्तियों को इक्कठा कर लिया जाता है।*
*पत्तियों को इक्कठा करने के बाद इन्हें छाया में सुखाया जाता है।*
*तब ये पत्तियां उपयोग करने के लिए तैयार हो जाती है। फसल की कटाई करने का बाद, इसकी पत्तियों को छाया में सुखाया जाता है।*
*तेज पत्ते का तेल निकालने के लिए आसवन यंत्र का प्रयोग किया जाता है।*
*इसकी पत्तियों से हमे 0.6% खुशबूदार तेल की प्राप्ति होती है।*
*इसका तेल भी एक बहुआयामी बहुकीमती औषधि है।*
*औषधीय गुण* 🍾👌
*तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम, जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में अत्यंत उपयोगी है।*
*तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते रहे हैं।*
*चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम, छींकें आना, बुखार, नाक बहना, जलन, सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है।*
*तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है।*
*तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है।*
*एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।*
*तेजपात के पत्तों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर पीने से पेट का फूलना व अतिसार आदि में लाभ होता है।*
*कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिये, ऊनी, सूती, रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे।*
*अनाजों के बीच में 4-5 पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे लेकिन उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।*
*अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है, वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न.!*
*तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए, आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा, कभी हृदय रोग नहीं होंगे।*
*इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।*
*इसका धुँआ मिर्गी रोगी के लिए काफी लाभदायक होता है।*