Computer Basic Knowledge
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Operating System कौन से काम करता है?

👉 अगर आप को यह समझाना है की ऑपरेटिंग सिस्टम क्या काम करता है तो आप बस यह जान लीजिये की कम्यूटर में हो रहे हर काम को ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है ! जब ही आप कोई भी एप्लीकेशन जैसे की व्हाट्सप्प खोलते हैं, उसी समय आपके मोबाइल का ऑपरेटिंग सिस्टम उस व्हाट्सप्प को RAM में load करता है !

👉 व्हाट्सप्प को लोड करने के बाद ही जैसे जैसे यूजर, मतलब आप व्हाट्सप्प को चलते हो वो सारे काम ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है ! जब आप कंप्यूटर या लैपटॉप से गूगल क्रोम या कोई भी  अप्लीकेशन खोलते है और उसका इस्तेमाल करते है, उन सभी कामों को आपके कंप्यूटर का ऑपरेटिंग  करता है !

👉 ऐसे और भी अधिक काम है जिसे की ऑपरेटिंग सिस्टम करता है, उन सभी कामों को निचे अच्छे से समझाया गया है !

1. File Management
2. User और Application के बीच तालमेल बनाना
3. Process Management
4. Memory Management
5. Security
6. Device Management
7. Maintaining System Performance
8. Error देखना
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👉 मदरबोर्ड क्या होता हैं – What is Motherboard in Hindi?

👉 मदरबोर्ड कम्प्यूटर का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। जिसमे सभी आवश्यक उपकरण जुडे रहते हैं. इनमें CPU, RAM, HDD, Monitor, BIOS, CMOS, Mouse, Keyboard आदि उपकरण शामिल है जो Dedicated Ports के माध्यम से जुडे रहते हैं. मदरबोर्ड इन उपकरणों को Power Supply पहुँचाता है और आपस में Communication करवाता हैं।
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☝️ एक कम्प्यूटर मदरबोर्ड

👉 कम्प्यूटर मदरबोर्ड एक Printed Circuit Board (PCB) होता है. जिसे Logical Board, System Board, Printed Wired Board (PWB), और Mainboard (Mobo) के नाम से भी जाना जाता है।

👉 मदरबोर्ड एक प्लास्टिक शीट होती हैं जिसमे उपकरणों को जोडने के लिए विभिन्न Ports बनाये जाते है. प्रत्येक पोर्ट का Connection मदरबोर्ड में Solder किया हुआ रहता हैं। जिसे हम अपनी आंखों से भी देख सकते हैं।
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कम्प्यूटर मदरबोर्ड के विभिन्न प्रकार – Motherboard Types

👉 यह उपकरण बहुत सारी विशेषताओं और क्षमताओं मे उपलब्ध हैं. और ये क्षमता और विशेषता मदरबोर्ड निर्माताओं के ऊपर निर्भर करती हैं.

👉 इसलिये मदरबोर्ड का कोई खास प्रकार उपलब्ध नही हैं. मगर इनकी बनावट के आधार पर इन्हे दो भागों में बांटा जा सकता है.

1. Integrated Motherboard

2. Non-Integrated Motherboard
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👉 1. Integrated Motherboard
जिन मदरबोर्ड में कम्प्यूटर के विभिन्न उपकरणों को जोडने के लिए अलग से Ports बनाये जाते हैं उन्हे Integrated Motherboard कहते हैं.

आजकल यही मदरबोर्ड PCs, Laptops आदि में इस्तेमाल किये जाते हैं. इन मदरबोर्ड के माध्यम से आप अपने कम्प्यूटर के किसी पार्ट को आसानी से Upgrade भी कर सकते है।


👉 2. Non-Integrated Motherboard
जिन मदरबोर्ड में आवश्यक उपकरणों को जोडने के लिए Ports नही होते हैं उन्हे Non-Integrated Motherboard कहा जाता हैं.

इन मदरबोर्ड में CPU, RAM आदि को Solder किया जाता हैं. और इन्हे बाद में Upgrade भी नही किया जा सकता हैं. Smartphones, Tables आदि में इसी प्रकार के मदरबोर्ड का इस्तेमाल होता हैं।
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♦️ मदरबोर्ड के कार्य – Functions of Motherboard

👉 कम्प्यूटर मदरबोर्ड सहायक उपकरणों को जोडने के लिए जगह उपलब्ध करवाता है. इसलिए इसे कम्प्यूटर की Backbone भी कहा जाता हैं।

👉 यह Connected Devices को Power Supply पहुँचाता है और उन्हे Manage भी करता हैं।

👉 एक उपकरण की दूसरे उपकरण के साथ बातचीत यानि Communication करवाता हैं।

👉 Computer की BIOS Settings और सूचना को सुरक्षित रखता है ताकि कम्प्यूटर आसानी से चालु हो सके।
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♦️ Computer RAM क्या है 

RAM का पूरा नाम Random Access Memory होता हैं. इसे Main Memory और प्राथमिक मेमोरी भी कहते हैं. RAM में CPU द्वारा वर्तमान में किये जा रहे कार्यों का डाटा और निर्देश स्टोर रहते हैं. यह मेमोरी CPU का भाग होती हैं. इसलिए इसका डाटा Direct Access किया जा सकता है.

इस कम्प्यूटर मेमोरी में डाटा और निर्देश Cells में Store रहता हैं. प्रत्येक Cell कुछ Rows एवं Columns से मिलकर बना होता हैं, जिसका अपना Unique Address होता हैं. इस युनिक एड्रेस को Cell Path भी कहते है।

CPU इन Cells से अलग-अलग डाटा प्राप्त कर सकता हैं. और वो भी बिना Sequent के मतलब RAM में उपलब्ध डाटा को Randomly Access किया जा सकता हैं. शायद इसी विशेषता के कारण इस मेमोरी का नाम Random Access Memory रखा गया हैं.

RAM एक Volatile Memory होती हैं. इसलिए इसमे Store Data हमेशा के लिए स्टोर नही रहता है. जब तक RAM में Power Supply On रहती है. तब तक डाटा रहता हैं. Computer Shut Down होने पर RAM का सारा डाटा स्वत: डिलित हो जाता हैं।
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RAM के विभिन्न प्रकार – Types of RAM

👉 Computer लगातार विकास कर रहा हैं. जिसके कारण इसके अन्य महत्वपूर्ण भागों को भी उन्नत होना पडा हैं. जिनमे RAM भी शामिल हैं. RAM भी विकास के कारण अलग-अलग कार्य विशेषताओं में उपलब्ध हुई हैं. जिन्हे दो प्रमुख प्रकार में बांट सकते हैं.

1 SRAM

2 DRAM
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1. SRAM

SRAM का पूरा नाम Static Random Access Memory होता हैं. जिसमें शब्द “Static” बताता हैं कि इस RAM में डाटा स्थिर रहता हैं. और उसे बार-बार Refresh करने की जरूरत नही पडती है.

यह RAM भी Volatile Memory होती हैं. इसलिए Power On रहने तक इसमे डाटा मौजूद रहता हैं. Power Off होते ही सारा डाटा स्वत: डिलिट हो जाता हैं. इस मेमोरी को Cache Memory के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं।

2. DRAM

DRAM का पूरा नाम Dynamic Random Access Memory होता हैं। जिसमे शब्द “Dynamic” का मतलब होता हैं चलायमान. अर्थात हमेशा परिवर्तित होते रहना. इसलिए इस RAM को लगातार Refresh करना पडता हैं. तभी इसमें डाटा स्टोर किया जा सकता है।
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♦️ कीबोर्ड के प्रकार – Types of Keyboard

एक कीबोर्ड पर कुंजीयों (Keys) की विशेष जमावट को ही कीबोर्ड लेआउट कहते है. कीबोर्ड लेआउट ही कीबोर्ड की बनावट, आकार तथा प्रकार को निर्धारित करता है।

आज कम्प्यूटर कीबोर्ड के विभिन्न लेआउट उपलब्ध हैं. दुनिया के अलग-अलग देशों ने अपनी भाषा और लिपि के अनुसार Keyboard Layouts विकसित किये हैं।

हम इन सभी कीबोर्ड लेआउट को मोटे तौर पर दो वर्गों में बांट सकते है:

1. QWERTY Keyboard Layout

2. Non-QWERTY Keyboard Layout
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1. QWERTY Keyboard Layout

यह सबसे ज्यादा प्रचलित और उपयोग होने वाला कीबोर्ड लेआउट है. इसे दुनियाभर में अपनाया गया है. और आधुनिक कम्प्यूटर कीबोर्ड में इसी लेआउट को ही इस्तेमाल किया जाता है।

QWERTY Layout पर आधारित कुछ अन्य Keyboard Layouts:

QWERTY

QWERTZ

AZERTY

QZERTY
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2. Non-QWERTY Keyboard Layout

जिन कीबोर्ड में QWERTY Layout को कुंजीयों की जमावट के लिए इस्तेमाल नही किया जाता हैं, उन्हे Non-QWERTY Keyboard कहते हैं।
कुछ Non-QWERTY Keyboard Layouts.

Dvork

Colemak

Workman
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TCP/IP क्या है ?

टी सी पी (TCP) का अर्थ है ट्रान्समिशन कन्ट्रोल प्रोटोकॉल (Transmission Control Protocol) और आई पी (IP)का अर्थ जय इन्टरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol)।

यह नियमों का एक समूह है, जो इंटरनेट कैसे कार्य करता है यह निर्णय करता है । यह दो कम्प्यूटर के बीच सूचना स्थान्तरण और संचार को संभव करता है । इनका प्रयोग डाटा को सुरक्षित ढंग से भेजने के लिए किया जाता है । टी सी पी की भूमिका डाटा को छोटे-छोटे भागों में बाँटने की होती है और आई पी इन पैकिटों पर लक्ष्य स्थल का पता अंकित करता है ।

TCP/IP इंटरनेट में उपलब्ध प्रोटोकॉल है । जिनके जरिये इन्टरनेट, नेटवर्क या अन्य इन्टरनेट Device के मध्य सूचनाओ का आदान प्रदान होता है । TCP/IP कंप्यूटर व नेटवर्क के मध्य कम्युनिकेशन बनाने वाले प्रोटोकॉल्स का एक समूह होते है । जिनके जरिये हम अपने मोबाइल और अन्य Device की मदत से इन्टरनेट से सूचना का आदान प्रदान कर सकते है ।
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🍀 TCP/IP कैसे कार्य करते है ?

👉 TCP/IP प्रोटोकॉल इन्टरनेट में डाटा को सुरक्षित रखते हुए उस डाटा को उसके निश्चित स्थान तक पहुचाते है । TCP (ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल) एक पुरे डाटा को छोटे छोटे डाटा पैकेट के रूप में विभाजित कर देता है । और इसे इन्टरनेट में भेज देता है । अब IP (इन्टरनेट प्रोटोकॉल) इस डाटा को उसके Destination Point तक पहुचाता है । जिससे इन्टरनेट व नेटवर्क के बीच कम्युनिकेशन स्थापित हो जाता है । इन दोनों प्रोटोकॉल में बिना इन्टरनेट में कम्युनिकेशन संभव नहीं है।
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♦️ TCP/IP नेटवर्क मॉडल में मुख्य रूप से चार प्रकार की Layers होती है :-

1. Network Interface Layer :- यह TCP/IP के सबसे नीचे की लेयर है । इस लेयर को Network Access Layer भी कहते है । यह लेयर OSI Model के Physical Layer व Data Link Layer की तरह कार्य करती है । Network Layer यह describe करती है की डाटा को किस तरह से Network में sent करना है ।

2. Internet Layer (Network Layer) :- यह लेयर OSI Model के Network Layer की तरह कार्य करती है इसी कारण इसे Network Layer भी कहा जाता है । यह लेयर Application Layer व Transport Layer के मध्य उपस्थित होती है । इस लेयर का मुख्य कार्य नेटवर्क में connectionless कम्युनिकेशन उपलब्ध कराना है ।

3. Transport Layer :- यह लेयर Application Layer और Internet Layer के मध्य में स्थित होती है । इस लेयर का मुख्य कार्य डाटा को Transmission करना होता है । इस लेयर में दो प्रकार के प्रोटोकॉल कार्य करते है- 1) Transmission Control Protocol (TCP) 2) User Datagram Protocol (UDP)

4. Application Layer :- यह TCP/IP की सबसे ऊपर की लेयर है । इस लेयर के द्वारा ही यूजर अन्य सभी लेयर्स का लाभ ले सकता है । इस लेयर के द्वारा ही यूजर इन्टरनेट या नेटवर्क से जुड़ता है । जैसे :- वेब ब्राउज़र , ईमेल ब्राउज़र आदि । एप्लीकेशन लेयर बहुत प्रकार के प्रोटोकॉल का उसे करता है जैसे – HTTP, DNS, FTP आदि ।
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♦️ CSS क्या है ?

👉 CSS का full form Cascading Style sheets है यह एक प्रकार का language है जिसके जरिये हम अपने Website की designing करते हैं।

👉 साधारण भाषा में कहें तो CSS आपके browser को यह बताता है कि web page में उपलब्ध contents (जैसे text, image, paragraph आदि) के font, color, size, position आदि क्या होंगे।
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👉 CSS एक Style Sheet Language है, जिसे W3C – World Wide Web Consortium द्वारा विकसित किया गया है । CSS का पहला संस्करण 1996 में प्रकाशित किया गया था । CSS 3 इसका नवीनतम संस्करण है । CSS का उपयोग Web Pages को सजाने के लिए किया जाता है । CSS एक Website के look and feel को परिभाषित करती है । CSS का उपयोग HTML के साथ-साथ ही किया जाता है।

👉 ध्यान रहे बिना HTML के CSS से कुछ भी नही बनाया जा सकता है इसलिए आपको HTML की जानकारी होनी जरुरी है। HTML और CSS दोनों मिलकर एक web page को रंग-रूप और आकार प्रदान करते हैं। HTML वेबपेज को आकार देता है और वहीँ CSS का काम वेबपेज को आकर्षक बनाना होता है।

👉 CSS का जनक Hakon Wium Lie हैं । इन्होने ही सबसे पहले 1994 में CSS Rules को बनाया था और इसके बाद W3C – World Wide Web Consortium द्वारा CSS Level 1 को दिसबंर 1996 में प्रकाशित किया गया यह CSS का पहला Version कहलाया।
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♦️ CSS इस्तेमाल करने के निम्नलिखित प्रमुख फायदे है

👉 Save Time :

आप एक बार CSS Rules को लिखते हैं, और उन्हे कई बार Apply कर सकते हैं । आप एक Stylesheet को Multiple Webpages पर Apply कर सकते हैं । आपको प्रत्येक नय HTML Document के लिए CSS Rule लिखने की जरूरत नहीं हैं । इसलिए CSS Web Masters का कीमती समय बचाती हैं ।

👉 Increase Page Speed :

एक HTML Document में दर्जनों Elements होते हैं, जिनके लिए हमें अलग-अलग Style Rules Set करने पडते हैं और किसी-किसी में तो इनकी संख्या सैंकडो या हजारों में भी पहुँच जाती हैं। इसलिए Page का Size बढ जाता हैं। लेकिन, CSS की मदद से केवल एक Stylesheet में ही सभी Elements के लिए Style Rules Set कर दिए जाते हैं। जिससे Extra HTML हट जाती हैं. और Page का Size कम हो जाता हैं और इस कारण Page Fast Load होता हैं।

👉 Easy to Maintenance :

आप पूरी वेबसाईट के लिए सिर्फ एक Stylesheet में CSS Rules Set कर सकते हैं । इसलिए हमे एक फाईल को Manage करने में कोई परेशानी नही आती है ।

👉 Provide Responsive Design :

आप HTML से वेबपेज को प्रत्येक Device के लिए Optimize नहीं कर सकते हैं. लेकिन, CSS की Media Queries Rules से आप Webpages को Device के हिसाब से Responsive बना सकते हैं।
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